देहरादून: उत्तराखंड में प्रशासन के शीर्ष पर बैठे अफसरों की मनमौजी कम होने का नाम ही नहीं ले रही है. 2021 महाकुंभ को लेकर राजधानी में हुई समीक्षा बैठक बिना किसी चर्चा के ही खत्म हो गई. कुंभ की इस बैठक में विभिन्न विभागों के सचिवों को बुलाया गया था, लेकिन कई विभागों के सचिव इस बैठक में नहीं पहुंचे. इसी बात पर नाराज होकर मदन कौशिक नाराज हो गए और बैठक छोड़कर चले गए.
हालांकि, इससे पहले उधम सिंह नगर में बीजेपी विधायक राजेश शुक्ला की जिलाधिकारी से नाराजगी का मामला भी प्रदेश में जमकर उछला था. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से नौकरशाही के हावी होने को मामला प्रदेश की सियासी फिजा में रह-रह कर तल्खी घोलता रहा है. कुछ समय पहले अधिकारियों द्वारा जनप्रतिनिधियों के फोन नहीं उठाए जाने से नाराज स्पीकर ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर जनप्रतिनिधियों को उचित सम्मान देने को कहा था. इसके साथ ही मुख्यमंत्री भी अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों को सम्मान देने की बात कह चुके हैं. लेकिन बावजूद इसके अधिकारियों के व्यवहार में किसी भी तरह का कोई भी बदलाव देखने को नहीं मिला है.
उत्तराखंड में नौकरशाही की मनमर्जी सातवें आसमान पर है. नतीजा, मंत्री और विधायक अब खुलकर अपनी नाराजगी व्यक्त करने लगे हैं. नौकरशाही के मनमर्जी वाले इस व्यवहार को लेकर अब पक्ष-विपक्ष में भी आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया है. कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना का कहना है कि उत्तराखंड में ब्यूरोक्रेट्स आउट ऑफ कंट्रोल हो गए हैं.
नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश नौकरशाही के पक्ष में बोलते हुए कहा कि 'पुरानी कहावत है कि घोड़ा अपने घुड़सवार को पहचानता है. जब घुड़सवार ही कमजोर हो जाता है तो घोड़ा दुलत्ती मारकर अपने घुड़सवार को गिरा देता है. इंदिरा हृदयेश का कहना है कि अधिकारियों पर बेवजह इल्जाम लगाने से बेहतर है कि त्रिवेंद्र सरकार अपनी कमियों को देखे. वहीं, उत्तराखंड सरकार के प्रवक्ता मदन कौशिश सब कुछ ठीक होने की बात कह रहे हैं.
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मंगलौर से कांग्रेस विधायक काजी निजामुद्दीन ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि कुंभ को लेकर मीटिंग का एजेंडा 4 दिन पहले ही तय हो गया था. ऐसे में वरिष्ठ मंत्री की बैठक में अधिकारी नहीं पहुंचते तो इसका मतलब यह है कि उत्तराखंड सरकार ऑटो पायलट मोड में है और सरकार की अधिकारियों पर पकड़ नहीं है.
उत्तराखंड की नौकरशाही मनमर्जी में जुटी हुई है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या अधिकारी जनप्रतिनिधियों को कुछ नहीं समझते या अधिकारियों को किसी 'बड़े' का शह मिला हुआ है. अधिकारियों का बैठक में न पहुंचना, विधायक की याददाश्त को कमजोर ठहराना उत्तराखंड के विकास में बड़ी बाधा बनती जा रही है.