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FOREST FIRE से उत्तराखंड धुआं-धुआं! 24 घंटे में 32 जगह लगी आग, 40 हेक्टेयर जंगल खाक - Uttarakhand Forest Fire

उत्तराखंड में इन दिनों एक बड़ी आपदा के संकेत मिलने लगे हैं, यह आपदा वनाग्नि से जुड़ी है. जंगल में आग लगने से लाखों की वन संपदा जलकर राख हो रही है. पिछले 24 घंटे में उत्तराखंड में 32 अलग-अलग जंगलों क्षेत्रों में आग लगी. इस आग में 40.2 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जलकर खाक हो गया.

Uttarakhand Forest Fire
उत्तराखंड वनाग्नि
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Published : Apr 7, 2022, 10:16 PM IST

Updated : Apr 7, 2022, 10:34 PM IST

देहरादूनः उत्तराखंड में इन दिनों एक बड़ी आपदा के संकेत मिलने लगे हैं. यह आपदा है वनाग्नि. जी हां, राज्य के जंगलों में जिस तरह से आग अपने पैर पसार रही है, उससे आने वाले दिनों में एक बड़ा खतरा पैदा हो गया है. मौजूदा स्थिति ये है कि बीते 24 घंटे में उत्तराखंड में 32 अलग-अलग क्षेत्रों में जंगलों में आग लगी. इस आग में 40.2 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जलकर खाक हो गए हैं. वहीं, अभी तक इस सीजन में वनाग्नि की घटनाओं में 300 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र जल चुका है.

जंगलों में आग लगने की दो वजह मानी जाती है. पहली प्राकृतिक और दूसरा इंसानों द्वारा लगाई गई आग. ज्यादातर घटनाओं के पीछे इंसानों की हाथ रहता है. लेकिन वन विभाग ने इतने सालों में ऐसी घटनाओं के लिए कितने मुकदमे दर्ज किए और कितने लोगों को जेल की हवा खिलाई. इसका आंकड़ा देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि या तो वन विभाग बेहद लापरवाह है या फिर इन आग की घटनाओं के पीछे वन विभाग अपनी नाकामी छिपा रहा है.

24 घंटे में 32 जगह लगी आग, 40 हेक्टेयर जंगल खाक

उत्तराखंड में धधकते जंगल

  • 15 फरवरी से 6 अप्रैल 2022 तक कुल 240 वनों में आग लगने की घटनाएं सामने आई.
  • इसमें आरक्षित वन क्षेत्रों में 188 घटनाएं तो सिविल वन पंचायत क्षेत्रों में 52 घटनाएं हुई.
  • पिछले डेढ़ महीने में करीब 300.36 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग से प्रभावित हुआ.
  • इसमें आरक्षित वन क्षेत्र का 218.16 हेक्टेयर क्षेत्र है, जबकि सिविल वन पंचायत का 82.2 हेक्टेयर है.
  • पिछले डेढ़ महीने में वन संपदा के चलते करीब 11 लाख से ज्यादा का नुकसान हुआ.

ये भी पढ़ेंः FOREST FIRE की घटनाएं महज एक संयोग या इसके पीछे कोई बड़ी साजिश?

300 हेक्टेयर जंगल खाकः आग लगने की घटनाएं वन पंचायत के जंगलों की बजाय आरक्षित वनों में ज्यादा सामने आ रही है. ऐसे में एक सवाल यह उठता है कि वन क्षेत्रों में प्लांटेशन को लेकर जो गड़बड़ी के सवाल उठते रहे हैं, कहीं इन आग की घटनाओं का उससे कोई सीधा कनेक्शन तो नहीं. हालांकि, यह एक जांच का विषय है. बीते 24 घंटे में उत्तराखंड में 32 अलग-अलग क्षेत्रों में जंगलों में आग लगी, जिनमें 40.2 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जलकर राख हो गया. प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल का कहना है कि इस मामले में सभी को निर्देश दिए गए हैं कि उचित व्यवस्था की जाए.

इंडियन रिमोट सेंसिंग डिपार्टमेंटः उत्तराखंड में वन विभाग द्वारा आग बुझाने के लिए हाईटेक तकनीक का भी प्रयोग किया जा रहा है. प्रमुख वन संरक्षक ने बताया है कि इंडियन रिमोट सेंसिंग डिपार्टमेंट की मदद से एक विशेष ऐप बनाया गया है. इसमें लोग जिस भी जंगल में आग लगी होगी, उसकी फोटो भेजेंगे तो उसकी पूरी लोकेशन और स्थिति की जानकारी वन विभाग को मिल जाएगी और तत्काल आग बुझाने के कार्य किए जाएंगे.

Uttarakhand Forest Fire
वनाग्नि के आंकड़े.

मास्टर कंट्रोल रूम से जुड़ेः देहरादून के डीएफओ नीतीश मणि त्रिपाठी ने बताया कि देहरादून मैदानी क्षेत्र है, जिसके चलते इस क्षेत्र में अगर कोई वनाग्नि की छुटपुट घटना होती है तो वहां तत्काल प्रभाव से वन विभाग का स्टाफ पहुंचकर आग पर काबू पा लेता है. साथ ही कहा कि 8 रेंज देहरादून डीएफओ में आते हैं, जहां स्टाफ और पर्याप्त इक्विपमेंट की व्यवस्था पहले ही की जा चुकी है. इसके साथ ही वायरलेस के माध्यम से मास्टर कंट्रोल रूम से सभी जुड़े हुए हैं.
ये भी पढ़ेंः जानें, कैसे मौसम ने दी वनाग्नि को हवा, गर्मी बढ़ते ही धधकने लगे पहाड़ों के जंगल

घटना या साजिशः वन विभाग में बड़े स्तर पर होने वाला पौधारोपण हमेशा सवालों के घेरे में रहा है. आरोप लगते रहे हैं कि पौधारोपण के नाम पर महकमे में काफी गड़बड़ होती है. लेकिन यह कैसी प्रक्रिया है जिसे पकड़ पाना काफी मुश्किल होता है. उधर जंगलों में लगने वाली आग से बड़ी मात्रा में नया पौधारोपण भी जलकर खाक हो जाता है और इन्हीं घटनाओं के कारण कुछ लोग इस बात की भी आशंका जताते हैं कि कहीं आग की यह घटनाएं कोई साजिश ना हो.

इन परिस्थितियों के बीच वन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि विभाग की तरफ से सभी तैयारियों कर ली गई है. आग बुझाने के लिए उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. साथ ही समय से सूचनाएं मिले इसके लिए भी व्यवस्थाएं की गई हैं.
ये भी पढ़ेंः अल्मोड़ा के रवि ने तैयार की आग बुझाने वाली अनोखी मशीन, वनों को बचाने में आएगी काम

साल दर साल आग से नुकसान: गौर हो कि पिछले दस सालों में वनाग्नि का आंकड़ों की बात करें तो साल 2012- 2823.89 हेक्टेयर वन आग से धधके, साल 2013 में 384.05 हेक्टेयर वन संपदा आग की भेंट चढ़ी. साल 2014 में 930.33 हेक्टेयर वनों को नुकसान पहुंचा. साल 2015 में 701.61 हेक्टेयर वन जलकर राख हो गया. साल 2016 में 4433.75 हेक्टेयर वन संपदा जली, साल 2017 में 1244.64 हेक्टेयर, साल 2018 में 4480.04 हेक्टेयर, साल 2019 में 2981.55 हेक्टेयर, साल 2020 में 172.69 हेक्टेयर, साल 2021 में 3970 हेक्टेयर, साल 2021 में 3970 हेक्टेयर वन संपदा आग की भेंट चढ़ी.

Uttarakhand Forest Fire
वनाग्नि से होने वाला नुकसान.

लोगों की लापरवाही एक बड़ा कारण: बारिश की कमी से जंगलों में ज्यादातर कांटेदार झाड़ियों और सूखी लकड़ियों की भरमार हो जाती है, जो जरा सी चिंगारी पर भी बहुत जल्दी आग पकड़ती हैं. ऐसे में लोगों की छोटी सी लापरवाही भी एक बहुत बड़ी गलती बन जाती है. कभी सिगरेट पीते-पीते वहीं पर माचिस की तीली या कैंप पर आए लोगों द्वारा रोशनी के लिए लापरवाही से जलाई गई लकड़ियों से पूरे जंगल में आग फैल जाती है.

देहरादूनः उत्तराखंड में इन दिनों एक बड़ी आपदा के संकेत मिलने लगे हैं. यह आपदा है वनाग्नि. जी हां, राज्य के जंगलों में जिस तरह से आग अपने पैर पसार रही है, उससे आने वाले दिनों में एक बड़ा खतरा पैदा हो गया है. मौजूदा स्थिति ये है कि बीते 24 घंटे में उत्तराखंड में 32 अलग-अलग क्षेत्रों में जंगलों में आग लगी. इस आग में 40.2 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जलकर खाक हो गए हैं. वहीं, अभी तक इस सीजन में वनाग्नि की घटनाओं में 300 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र जल चुका है.

जंगलों में आग लगने की दो वजह मानी जाती है. पहली प्राकृतिक और दूसरा इंसानों द्वारा लगाई गई आग. ज्यादातर घटनाओं के पीछे इंसानों की हाथ रहता है. लेकिन वन विभाग ने इतने सालों में ऐसी घटनाओं के लिए कितने मुकदमे दर्ज किए और कितने लोगों को जेल की हवा खिलाई. इसका आंकड़ा देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि या तो वन विभाग बेहद लापरवाह है या फिर इन आग की घटनाओं के पीछे वन विभाग अपनी नाकामी छिपा रहा है.

24 घंटे में 32 जगह लगी आग, 40 हेक्टेयर जंगल खाक

उत्तराखंड में धधकते जंगल

  • 15 फरवरी से 6 अप्रैल 2022 तक कुल 240 वनों में आग लगने की घटनाएं सामने आई.
  • इसमें आरक्षित वन क्षेत्रों में 188 घटनाएं तो सिविल वन पंचायत क्षेत्रों में 52 घटनाएं हुई.
  • पिछले डेढ़ महीने में करीब 300.36 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग से प्रभावित हुआ.
  • इसमें आरक्षित वन क्षेत्र का 218.16 हेक्टेयर क्षेत्र है, जबकि सिविल वन पंचायत का 82.2 हेक्टेयर है.
  • पिछले डेढ़ महीने में वन संपदा के चलते करीब 11 लाख से ज्यादा का नुकसान हुआ.

ये भी पढ़ेंः FOREST FIRE की घटनाएं महज एक संयोग या इसके पीछे कोई बड़ी साजिश?

300 हेक्टेयर जंगल खाकः आग लगने की घटनाएं वन पंचायत के जंगलों की बजाय आरक्षित वनों में ज्यादा सामने आ रही है. ऐसे में एक सवाल यह उठता है कि वन क्षेत्रों में प्लांटेशन को लेकर जो गड़बड़ी के सवाल उठते रहे हैं, कहीं इन आग की घटनाओं का उससे कोई सीधा कनेक्शन तो नहीं. हालांकि, यह एक जांच का विषय है. बीते 24 घंटे में उत्तराखंड में 32 अलग-अलग क्षेत्रों में जंगलों में आग लगी, जिनमें 40.2 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जलकर राख हो गया. प्रमुख वन संरक्षक विनोद सिंघल का कहना है कि इस मामले में सभी को निर्देश दिए गए हैं कि उचित व्यवस्था की जाए.

इंडियन रिमोट सेंसिंग डिपार्टमेंटः उत्तराखंड में वन विभाग द्वारा आग बुझाने के लिए हाईटेक तकनीक का भी प्रयोग किया जा रहा है. प्रमुख वन संरक्षक ने बताया है कि इंडियन रिमोट सेंसिंग डिपार्टमेंट की मदद से एक विशेष ऐप बनाया गया है. इसमें लोग जिस भी जंगल में आग लगी होगी, उसकी फोटो भेजेंगे तो उसकी पूरी लोकेशन और स्थिति की जानकारी वन विभाग को मिल जाएगी और तत्काल आग बुझाने के कार्य किए जाएंगे.

Uttarakhand Forest Fire
वनाग्नि के आंकड़े.

मास्टर कंट्रोल रूम से जुड़ेः देहरादून के डीएफओ नीतीश मणि त्रिपाठी ने बताया कि देहरादून मैदानी क्षेत्र है, जिसके चलते इस क्षेत्र में अगर कोई वनाग्नि की छुटपुट घटना होती है तो वहां तत्काल प्रभाव से वन विभाग का स्टाफ पहुंचकर आग पर काबू पा लेता है. साथ ही कहा कि 8 रेंज देहरादून डीएफओ में आते हैं, जहां स्टाफ और पर्याप्त इक्विपमेंट की व्यवस्था पहले ही की जा चुकी है. इसके साथ ही वायरलेस के माध्यम से मास्टर कंट्रोल रूम से सभी जुड़े हुए हैं.
ये भी पढ़ेंः जानें, कैसे मौसम ने दी वनाग्नि को हवा, गर्मी बढ़ते ही धधकने लगे पहाड़ों के जंगल

घटना या साजिशः वन विभाग में बड़े स्तर पर होने वाला पौधारोपण हमेशा सवालों के घेरे में रहा है. आरोप लगते रहे हैं कि पौधारोपण के नाम पर महकमे में काफी गड़बड़ होती है. लेकिन यह कैसी प्रक्रिया है जिसे पकड़ पाना काफी मुश्किल होता है. उधर जंगलों में लगने वाली आग से बड़ी मात्रा में नया पौधारोपण भी जलकर खाक हो जाता है और इन्हीं घटनाओं के कारण कुछ लोग इस बात की भी आशंका जताते हैं कि कहीं आग की यह घटनाएं कोई साजिश ना हो.

इन परिस्थितियों के बीच वन मंत्री सुबोध उनियाल का कहना है कि विभाग की तरफ से सभी तैयारियों कर ली गई है. आग बुझाने के लिए उपकरणों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. साथ ही समय से सूचनाएं मिले इसके लिए भी व्यवस्थाएं की गई हैं.
ये भी पढ़ेंः अल्मोड़ा के रवि ने तैयार की आग बुझाने वाली अनोखी मशीन, वनों को बचाने में आएगी काम

साल दर साल आग से नुकसान: गौर हो कि पिछले दस सालों में वनाग्नि का आंकड़ों की बात करें तो साल 2012- 2823.89 हेक्टेयर वन आग से धधके, साल 2013 में 384.05 हेक्टेयर वन संपदा आग की भेंट चढ़ी. साल 2014 में 930.33 हेक्टेयर वनों को नुकसान पहुंचा. साल 2015 में 701.61 हेक्टेयर वन जलकर राख हो गया. साल 2016 में 4433.75 हेक्टेयर वन संपदा जली, साल 2017 में 1244.64 हेक्टेयर, साल 2018 में 4480.04 हेक्टेयर, साल 2019 में 2981.55 हेक्टेयर, साल 2020 में 172.69 हेक्टेयर, साल 2021 में 3970 हेक्टेयर, साल 2021 में 3970 हेक्टेयर वन संपदा आग की भेंट चढ़ी.

Uttarakhand Forest Fire
वनाग्नि से होने वाला नुकसान.

लोगों की लापरवाही एक बड़ा कारण: बारिश की कमी से जंगलों में ज्यादातर कांटेदार झाड़ियों और सूखी लकड़ियों की भरमार हो जाती है, जो जरा सी चिंगारी पर भी बहुत जल्दी आग पकड़ती हैं. ऐसे में लोगों की छोटी सी लापरवाही भी एक बहुत बड़ी गलती बन जाती है. कभी सिगरेट पीते-पीते वहीं पर माचिस की तीली या कैंप पर आए लोगों द्वारा रोशनी के लिए लापरवाही से जलाई गई लकड़ियों से पूरे जंगल में आग फैल जाती है.

Last Updated : Apr 7, 2022, 10:34 PM IST
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