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Forest Fire: उत्तराखंड में वनाग्नि की 25 घटनाएं, फिर से क्यों धधक उठे उत्तराखंड के जंगल? - Uttarakhand Forest Fire 2022

उत्तराखंड में 15 फरवरी से फायर सीजन शुरू हो चुका है. इसके साथ ही उत्तराखंड के जंगल धधकने लगे हैं. वन विभाग के वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, इस सीजन में अब तक 25 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई हैं. सबसे ज्यादा 11 कुमाऊं से घटनाएं सामने आई हैं.

forest fire incidents
वनाग्नि की घटनाएं
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Published : Mar 15, 2022, 5:37 PM IST

Updated : Mar 15, 2022, 7:44 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड में फायर सीजन में वनाग्नि की घटनाओं का सिलसिला शुरू हो गया है. हालांकि, वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक फायर सीजन से निपटने के पूरी तैयारियां हो चुकी हैं. क्योंकि अभी पीक फायर सीजन का आना बाकी है. वन विभाग के वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, इस सीजन में 25 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई हैं. जिसमें 27.95 हेक्टेयर वन भूमि संपदा को नुकसान हुआ है. इसमें 22 घटनाएं आरक्षित वन और 3 वनाग्नि घटनाएं 3 सिविल वन (नागरिक वन) में दर्ज की गई हैं. सबसे अधिक घटनाएं कुमाऊं मंडल में दर्ज की गई है.

वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन के मुख्य वन सरंक्षक निशांत वर्मा ने बताया कि 15 फरवरी से अब तक वनाग्नि की कुमाऊं मंडल में 11, गढ़वाल मंडल में 7 और वन्य जीव में 7 घटनाएं दर्ज हुई हैं. वहीं, पिछले 12 घंटों में कुमाऊं में 5 और गढ़वाल में 3 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई हैं. अब तक बागेश्वर जिले में सबसे अधिक 7 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई हैं. मुख्य वन सरंक्षक निशांत वर्मा ने बताया कि इस वर्ष इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग के साथ वन विभाग का टायअप कर दो सिस्टम बनाए गए हैं. जिससे कि वनाग्नि को रोकने में ग्राउंड से लेकर कंट्रोल रूम तक त्वरित कार्रवाई की जा सके.

उत्तराखंड में वनाग्नि की 25 घटनाएं
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उत्तराखंड में वन विभाग ने तैयार किया फॉरेस्ट फायर एप, जंगलों को आग से बचाएगा

मुख्य वन सरंक्षक निशांत वर्मा ने बताया कि IIRS (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग) के साथ मिलकर फॉरेस्ट फायर रिपोर्टिंग मोबाइल एप तैयार किया गया है. जिससे कि कहीं पर भी घटना होने पर संबंधित प्रभाग और कर्मचारी उसे लाइव भेजेंगे और वह मुख्यालय में कंट्रोल रूम के डैशबोर्ड पर दिखेगा. जिससे कि स्थिति को देखते हुए मुख्यालय से त्वरित निर्देश दिए जाएंगे.

forest fire incidents
जंगलों की आग से होने वाले नुकसान.

साथ ही ऑटोमेटेड फॉरेस्ट फायर रिस्क एडवाइजरी एप भी बनाया गया है. जिससे कि सभी प्रभागों से यह जानकारी ली जाएगी कि अगले 24 घंटे में सबसे संवदेनशील क्षेत्र कौन से हैं. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक त्वरित कार्रवाई की जाएगी. वर्मा ने बताया कि पूरे प्रदेश में 1317 क्रू स्टेशन हैं. जिसमें इस साल 40 मॉडल क्रू स्टेशन बनाए जा रहे हैं. जिसमें करीब 14 तैयार हो चुके हैं.

लोगों की लापरवाही एक बड़ा कारण: बारिश की कमी से जंगलों में ज्यादातर कांटेदार झाड़ियों और सूखी लकड़ियों की भरमार हो जाती है, जो जरा सी चिंगारी पर भी बहुत जल्दी आग पकड़ती हैं. ऐसे में लोगों की छोटी सी लापरवाही भी एक बहुत बड़ी गलती बन जाती है. कभी सिगरेट पीते-पीते वहीं पर माचिस की तीली या कैंप पर आए लोगों द्वारा रोशनी के लिए लापरवाही से जलाई गई लकड़ियों से पूरे जंगल में आग फैल जाती है.

forest fire incidents
उत्तराखंड में साल दर साल वनाग्नि के आंकड़े.

स्थानीय लोगों के अनुसार, इस साल गर्मी के दौरान जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ सकती हैं, हालांकि इससे निपटने के लिए हमने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं. जंगलों में आग लगने से आसपास के ग्रामीणों को भी भारी परेशानियों और नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. कई लोगों ने अपने बाग-बगीचे खो दिए तो किसी आग की वजह से किसी की पूरी फसल ही जलकर राख हो गई है.

जंगल की आग का मॉनसून कनेक्शनः अप्रैल और मई का महीना ऐसे होता है जब पूरे देश के अलग-अलग राज्यों से जंगल में आग लगने की खबरें आती हैं. उत्तराखंड में 24,303 वर्ग किलोमीटर यानी राज्य के क्षेत्रफल का 45 फीसदी हिस्सा जंगल है. ये जंगल देहरादून, हरिद्वार, गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल, उधमसिंहनगर, चंपावत जिलों में हैं. इन सभी जंगलों में आग लगने की आशंका सबसे ज्यादा रहती है.
ये भी पढ़ेंः कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में वनाग्नि रोकने के लिए वन महकमे ने कसी कमर

उत्तराखंड में वनाग्नि के जो आंकड़े सामने आए है वो काफी चौकाने वाले है.

  • साल 2014 में वनाग्नि के 515 मामले सामने आये. जिसमें करीब 930.33 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया. इससे करीब 23.57 लाख रुपए की वन संपदा को नुकसान हुआ.
  • साल 2015 में जंगलों में आग लगने की 412 घटनाएं सामने आई है. इससे करीब 701.61 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया. जिसमें 7.94 लाख रुपए का नुकसान हुआ.
  • साल 2016 में वनाग्नि के 2074 मामले सामने आये. जिसमें करीब 4433.75 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया. जिसमें 46.50 लाख रुपए के नुकसान हुआ.
  • साल 2017 में जंगलों में आग लगने की 805 घटनाएं सामने आई है. इसके करीब 1244.64 हेक्टेयर वन राख हो गया और 18.34 लाख रुपए की वन संपदा नष्ट हुई.
  • साल 2018 में वनाग्नि की सबसे ज्यादा 2150 घटनाएं सामने आई है. इस साल पूरे उत्तराखंड की बात करीब 4480.04 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हुआ है. जिसमें में करीब 86.05 लाख रुपए के नुकसान हुआ.
  • साल 2019 की बात करते तो इस साल अभीतक के जो आंकड़े सामने आए है वो काफी चौकाने वाले है. इस साल 1819 वनाग्नि की घटनाएं सामने आ चुकी है. जिनमें 2363 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो चुका है. इसमें 1790 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि और 5720 हेक्टेयर वन पंचायत के जंगल राख हो चुके है.
  • साल 2020 में कोरोनावायरस के कारण लोग स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों में रहे, लेकिन जंगलों में आग को लेकर यह साल सबसे अच्छा रहा. पिछले 10 सालों में सबसे कम आग 2020 में लगी. 2020 में मात्र 135 घटनाएं भी सामने आईं. इसमें केवल 172 हेक्टेयर जंगल जले.
  • साल 2021 उत्तराखंड में साल 2021 में वनाग्नि की 2813 घटनाएं हुईं, जिसमें 3943.88 भूमि जलकर राख हो गई थी.

देहरादून: उत्तराखंड में फायर सीजन में वनाग्नि की घटनाओं का सिलसिला शुरू हो गया है. हालांकि, वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक फायर सीजन से निपटने के पूरी तैयारियां हो चुकी हैं. क्योंकि अभी पीक फायर सीजन का आना बाकी है. वन विभाग के वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, इस सीजन में 25 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई हैं. जिसमें 27.95 हेक्टेयर वन भूमि संपदा को नुकसान हुआ है. इसमें 22 घटनाएं आरक्षित वन और 3 वनाग्नि घटनाएं 3 सिविल वन (नागरिक वन) में दर्ज की गई हैं. सबसे अधिक घटनाएं कुमाऊं मंडल में दर्ज की गई है.

वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन के मुख्य वन सरंक्षक निशांत वर्मा ने बताया कि 15 फरवरी से अब तक वनाग्नि की कुमाऊं मंडल में 11, गढ़वाल मंडल में 7 और वन्य जीव में 7 घटनाएं दर्ज हुई हैं. वहीं, पिछले 12 घंटों में कुमाऊं में 5 और गढ़वाल में 3 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई हैं. अब तक बागेश्वर जिले में सबसे अधिक 7 वनाग्नि की घटनाएं दर्ज की गई हैं. मुख्य वन सरंक्षक निशांत वर्मा ने बताया कि इस वर्ष इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग के साथ वन विभाग का टायअप कर दो सिस्टम बनाए गए हैं. जिससे कि वनाग्नि को रोकने में ग्राउंड से लेकर कंट्रोल रूम तक त्वरित कार्रवाई की जा सके.

उत्तराखंड में वनाग्नि की 25 घटनाएं
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मुख्य वन सरंक्षक निशांत वर्मा ने बताया कि IIRS (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग) के साथ मिलकर फॉरेस्ट फायर रिपोर्टिंग मोबाइल एप तैयार किया गया है. जिससे कि कहीं पर भी घटना होने पर संबंधित प्रभाग और कर्मचारी उसे लाइव भेजेंगे और वह मुख्यालय में कंट्रोल रूम के डैशबोर्ड पर दिखेगा. जिससे कि स्थिति को देखते हुए मुख्यालय से त्वरित निर्देश दिए जाएंगे.

forest fire incidents
जंगलों की आग से होने वाले नुकसान.

साथ ही ऑटोमेटेड फॉरेस्ट फायर रिस्क एडवाइजरी एप भी बनाया गया है. जिससे कि सभी प्रभागों से यह जानकारी ली जाएगी कि अगले 24 घंटे में सबसे संवदेनशील क्षेत्र कौन से हैं. उनकी रिपोर्ट के मुताबिक त्वरित कार्रवाई की जाएगी. वर्मा ने बताया कि पूरे प्रदेश में 1317 क्रू स्टेशन हैं. जिसमें इस साल 40 मॉडल क्रू स्टेशन बनाए जा रहे हैं. जिसमें करीब 14 तैयार हो चुके हैं.

लोगों की लापरवाही एक बड़ा कारण: बारिश की कमी से जंगलों में ज्यादातर कांटेदार झाड़ियों और सूखी लकड़ियों की भरमार हो जाती है, जो जरा सी चिंगारी पर भी बहुत जल्दी आग पकड़ती हैं. ऐसे में लोगों की छोटी सी लापरवाही भी एक बहुत बड़ी गलती बन जाती है. कभी सिगरेट पीते-पीते वहीं पर माचिस की तीली या कैंप पर आए लोगों द्वारा रोशनी के लिए लापरवाही से जलाई गई लकड़ियों से पूरे जंगल में आग फैल जाती है.

forest fire incidents
उत्तराखंड में साल दर साल वनाग्नि के आंकड़े.

स्थानीय लोगों के अनुसार, इस साल गर्मी के दौरान जंगलों में आग की घटनाएं बढ़ सकती हैं, हालांकि इससे निपटने के लिए हमने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं. जंगलों में आग लगने से आसपास के ग्रामीणों को भी भारी परेशानियों और नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. कई लोगों ने अपने बाग-बगीचे खो दिए तो किसी आग की वजह से किसी की पूरी फसल ही जलकर राख हो गई है.

जंगल की आग का मॉनसून कनेक्शनः अप्रैल और मई का महीना ऐसे होता है जब पूरे देश के अलग-अलग राज्यों से जंगल में आग लगने की खबरें आती हैं. उत्तराखंड में 24,303 वर्ग किलोमीटर यानी राज्य के क्षेत्रफल का 45 फीसदी हिस्सा जंगल है. ये जंगल देहरादून, हरिद्वार, गढ़वाल, अल्मोड़ा, नैनीताल, उधमसिंहनगर, चंपावत जिलों में हैं. इन सभी जंगलों में आग लगने की आशंका सबसे ज्यादा रहती है.
ये भी पढ़ेंः कुमाऊं और गढ़वाल मंडल में वनाग्नि रोकने के लिए वन महकमे ने कसी कमर

उत्तराखंड में वनाग्नि के जो आंकड़े सामने आए है वो काफी चौकाने वाले है.

  • साल 2014 में वनाग्नि के 515 मामले सामने आये. जिसमें करीब 930.33 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया. इससे करीब 23.57 लाख रुपए की वन संपदा को नुकसान हुआ.
  • साल 2015 में जंगलों में आग लगने की 412 घटनाएं सामने आई है. इससे करीब 701.61 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया. जिसमें 7.94 लाख रुपए का नुकसान हुआ.
  • साल 2016 में वनाग्नि के 2074 मामले सामने आये. जिसमें करीब 4433.75 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो गया. जिसमें 46.50 लाख रुपए के नुकसान हुआ.
  • साल 2017 में जंगलों में आग लगने की 805 घटनाएं सामने आई है. इसके करीब 1244.64 हेक्टेयर वन राख हो गया और 18.34 लाख रुपए की वन संपदा नष्ट हुई.
  • साल 2018 में वनाग्नि की सबसे ज्यादा 2150 घटनाएं सामने आई है. इस साल पूरे उत्तराखंड की बात करीब 4480.04 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हुआ है. जिसमें में करीब 86.05 लाख रुपए के नुकसान हुआ.
  • साल 2019 की बात करते तो इस साल अभीतक के जो आंकड़े सामने आए है वो काफी चौकाने वाले है. इस साल 1819 वनाग्नि की घटनाएं सामने आ चुकी है. जिनमें 2363 हेक्टेयर जंगल जलकर राख हो चुका है. इसमें 1790 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि और 5720 हेक्टेयर वन पंचायत के जंगल राख हो चुके है.
  • साल 2020 में कोरोनावायरस के कारण लोग स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों में रहे, लेकिन जंगलों में आग को लेकर यह साल सबसे अच्छा रहा. पिछले 10 सालों में सबसे कम आग 2020 में लगी. 2020 में मात्र 135 घटनाएं भी सामने आईं. इसमें केवल 172 हेक्टेयर जंगल जले.
  • साल 2021 उत्तराखंड में साल 2021 में वनाग्नि की 2813 घटनाएं हुईं, जिसमें 3943.88 भूमि जलकर राख हो गई थी.
Last Updated : Mar 15, 2022, 7:44 PM IST
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