देहरादून: देहरादून की जमीनों का सरकारी रिकॉर्ड 23 साल बाद आखिरकार राज्य ने हासिल कर लिया है. सुनने में यह अजीब लगेगा, लेकिन यह सच है कि देहरादून और मसूरी के धूल फांकते अभिलेख अब दो दशक बाद उत्तराखंड को वापस मिल गए हैं. करीब 150 साल पुराना यह हिसाब किताब भू माफियाओं के गलत इरादों पर भी कड़ा प्रहार है. हालांकि इतने सालों में कई जमीनों के खुर्द बुर्द होने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन देर आए दुरुस्त आए की तर्ज पर सरकार ने अपने अभिलेख उत्तर प्रदेश से वापस ले लिए हैं..जानिए क्या है ये पूरा माजरा.
उत्तराखंड की सरकारें कर रही थी अनदेखी: राजधानी देहरादून और मसूरी की बेशकीमती जमीनों पर भू माफियाओं की नजरें हमेशा से रही हैं. सरकारी सिस्टम की सुस्ती ने इन माफ़ियाओं के इरादों को और भी मजबूत किया है. हैरानी की बात यह है कि यह दस्तावेज 20 या 30 साल नहीं, बल्कि 150 साल पुराने हैं. दरअसल 23 साल पहले उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था. इस दौरान देहरादून मसूरी का पूरा क्षेत्र सहारनपुर में आता था. ब्रिटिश काल से ही इस पूरे इलाके के जमीनी दस्तावेजों का पूरा हिसाब किताब सहारनपुर में रखा जाता था. बड़ी बात यह है कि समय बीतने के साथ उत्तराखंड एक अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ और देहरादून इसकी अस्थाई राजधानी घोषित हुआ. इसके बावजूद इस पूरे क्षेत्र के जमीन से जुड़े सरकारी दस्तावेज सहारनपुर में ही धूल फांकते रहे.
सहारनपुर में थे साल 1865 से 1958 तक के भू अभिलेख: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में देहरादून और मसूरी के भू-अभिलेखों को रखा गया था. यह अभिलेख साल 1865 से 1958 के बीच के थे. यह समय काफी अहम था क्योंकि इस बीच देश में कई घटनाक्रम हुए थे और देश की आजादी के साथ भारत में रहने वाले कई लोग देश छोड़कर पाकिस्तान भी गए थे. बताया जाता है कि इन्हीं स्थितियों का भू माफिया फायदा उठाकर सरकारी जमीनों पर कब्जे की भी कोशिश करते रहे.
अभिलेख न होने से भू माफियाओं की बनी हुई थी चांदी: वरिष्ठ पत्रकार नीरज कोहली ने बताया कि उनके द्वारा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी सहारनपुर में रखे इन महत्वपूर्ण दस्तावेजों की जानकारी दी गई. जिसके बाद मुख्य सचिव के निर्देशों के क्रम में जिलाधिकारी देहरादून की तरफ से महत्वपूर्ण कदम उठाए गए. उन्होंने बताया कि देहरादून और मसूरी दोनों ही जगहों पर जमीनों की कीमतें आसमान छू रही हैं. खास तौर पर देहरादून में तो अक्सर लैंड फ्रॉड के मामले सुनाई देते हैं. इन स्थितियों के बीच देहरादून की जमीनों के महत्वपूर्ण दस्तावेज दूसरे राज्य के जिले सहारनपुर में होने से भू माफियाओं की चांदी बनी हुई थी.
अभिलेखों को व्यवस्थित करना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती: राज्य सरकार ने इसी साल डेढ़ सौ साल पुराने देहरादून और मसूरी के जमीनी अभिलेखों को चार ट्रकों में भरकर वापस मंगाया है. हालांकि यह अभिलेख बेहद पुराने हैं और उर्दू फारसी और अंग्रेजी में लिखे हुए हैं. लिहाजा इन्हें दोबारा से देहरादून में व्यवस्थित करना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है. इन्हीं बातों को समझते हुए इन सभी दस्तावेजों को स्कैन कर लिया गया है और अब डिजिटल रूप में इन दस्तावेजों को व्यवस्थित करने की कोशिश की जा रही है.
अभिलेखों की स्कैनिंग का काम पूरा: जिलाधिकारी देहरादून सोनिका ने बताया कि अभिलेखों की स्कैनिंग का काम पूरा किया जा चुका है. इन दस्तावेजों को पूरी तरह डिजिटल किया जा रहा है. ऐसा होने के बाद जमीनों से जुड़ी धोखेबाजी के मामले बेहद कम हो जाएंगे और जमीनों पर फ्रॉड करना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा.
सहारनपुर प्रशासन उत्तराखंड को भेजता था नोटिस: बताया जाता है कि सहारनपुर के जिलाधिकारियों की तरफ से भी समय-समय पर इन दस्तावेजों को वापस ले जाए जाने का नोटिस राज्य को भेजा गया था. करीब 100 साल के इस रिकॉर्ड को कागजी रूप से अपने पास संभालकर रखना सहारनपुर प्रशासन के लिए भी मुश्किल था. लिहाजा कोशिश थी कि उत्तराखंड इसको वापस ले जाए, लेकिन उत्तराखंड सरकारों की तरफ से इस पर ध्यान नहीं दिया गया.
ये भी पढ़ें: सरकारी जमीन और इको टूरिज्म का डिजिटल डाटा तैयार करेंगे अफसर, CS ने दिए निर्देश