चंपावतः प्रसिद्ध मां बाराही धाम देवीधुरा में रक्षाबंधन को होने वाला बग्वाल मेला अपने अनूठे इतिहास और परंपराओं को संजोए हुए हैं. हर साल श्रावण के पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन के दिन देवीधुरा के मां बाराही देवी के प्रांगण में एक विशाल मेले का आयोजन होता है. इस दौरान यहां पर 'पाषाण युद्ध' बग्वाल मनाया जाता है. जिसमें चार खामों के दो दल एक-दूसरे के ऊपर फलों और फूलों से बग्वाल खेलते हैं. जो पहले पत्थरों से खेली जाती थी. वहीं, इस बार यह बग्वाल कोरोना महामारी के चलते सांकेतिक होगी.
वैश्विक महामारी कोरोना वायरस का असर धार्मिक कार्यक्रमों और तीज-त्योहारों पर भी पड़ा है. इस बार इसका असर देवीधुरा में रक्षाबंधन के दिन मनाए जाने वाले बग्वाल मेले पर भी पड़ता नजर आ रहा है. इस बार यह मेला सिर्फ सांकेतिक होगी. चार खाम और सात थोक मंदिर समिति व जिला प्रशासन ने कोरोना महामारी के मद्देनजर यह निर्णय लिया है. बताया जा रहा है कि इतिहास में पहली बार मेला सांकेतिक रूप में हो रहा है.
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माना जाता है कि एक बार अंग्रेजों ने भी बग्वाल रोकने का प्रयास किया था, लेकिन उस दौरान भी बग्वाल नहीं रूकी थी. इस बार कोरोना महामारी से बचने के लिए यह निर्णय लिया गया है. जबकि, इस बार मेले का आयोजन नहीं होगा. बग्वाल खेलने के लिए मात्र 4 खाम और 7 थोकों के लोग शामिल होंगे. मां बारही की पूजा-अर्चना के साथ सांकेतिक बग्वाल होगी.
मान्यता है कि देवीधुरा क्षेत्र में नरमेध यज्ञ हुआ करता था. जिस कारण यहां नर बलि दी जाती थी. चम्याल खाम की एक वृद्ध महिला का एक पोता था. जिसने मां बाराही से प्रार्थना की थी. जिसके बाद मां बाराही ने उसे सपने में दर्शन दिया और समस्त गांव वालों के साथ मिलकर बग्वाल के आयोजन करने के लिए कहा था. तब से ही यह परंपरा देवीधुरा में चली आ रही है. बग्वाल मेला तब तक नहीं रुकता है जब तक एक आदमी के बराबर खून नहीं निकल जाता है. ये परंपरा अतीत से ही चली आ रही है.