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20 साल में 11 मुख्यमंत्री, फिर भी नहीं बदली पहाड़ की नियति, आज भी कंधों पर 'जिंदगी'

चमोली के नारायणबगड़ के ग्राम पंचायत तुनेडा में सड़क सुविधा न होने से ग्रामीणों ने घायल महिला को डंडी-कंडी से 15 किमी पैदल चलकर अस्पताल पहुंचाया. ग्रामीणों ने सरकार से उनकी सुध लेने की मांग की है.

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Published : Jul 5, 2021, 6:55 PM IST

Updated : Jul 5, 2021, 7:07 PM IST

थरालीः सूबे में भले ही इन 20 सालों में 11 मुख्यमंत्री बदल गए हों, लेकिन आज भी पहाड़ों की तस्वीर नहीं बदल पाई है. आज भी ग्रामीण अंचलों में लोगों को मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझना पड़ रहा है. ऐसा ही मामला नारायणबगड़ से सामने आया है. जहां तुनेडा गांव में सड़क सुविधा न होने से एक महिला को ग्रामीणों ने डंडी-कंडी के सहारे 15 किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल पहुंचाया, जहां पर महिला का इलाज जारी है.

दरअसल, चमोली जिले के विकासखंड नारायणबगड़ के ग्राम पंचायत तुनेडा की एक महिला मवेशियों के लिए चारा-पत्ती लेने जंगल गई थी. घास काटने के दौरान अचानक महिला फिसल गई. जिससे उसके पैर की हड्डी टूट गई. गनीमत रही कि जंगल में मोबाइल नेटवर्क आ रहा था. ऐसे में घायल महिला और अन्य महिलाओं ने फोन के जरिए हादसे की सूचना ग्रामीणों को दी. सूचना मिलने पर ग्रामीण मौके पर पहुंचे और घायल महिला को डंडी-कंडी के सहारे 15 किमी पैदल चलकर अस्पताल पहुंचाया.

घायल महिला को अस्पताल पहुंचाते ग्रामीण.

ये भी पढ़ेंः बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था: डंडी-कंडी से 6 किमी चलकर मरीज को पहुंचाया अस्पताल

महिलाएं के कंधों पर जिम्मेदारी

ग्रामीण सागर कोठियाल ने बताया कि गांव में सड़क सुविधा न होने से गांव से धीरे-धीरे पलायन हो रहा है. गांव में कुछ ही पुरुष बचे हैं. ऐसे में जब कोई बीमार या घायल हो जाता है तो उसे अस्पताल पहुंचाने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है. इतना ही नहीं गांव में पुरुषों के न होने पर महिलाओं को ही मरीज को कंधों के सहारे सड़क और अस्पताल तक पहुंचाना पड़ता है.

tuneda village
घायल महिला को महिलाओं के कंधों का सहारा.

ये भी पढ़ेंः पथरीला रास्ता और बीमार को डंडी-कंडी का सहारा, आखिर कब खत्म होगा पहाड़ का 'दर्द'

फारकोट-तुनेडा मोटरमार्ग की हो चुकी सैद्धांतिक स्वीकृति

बता दें कि साल 2018 में 5 किलोमीटर की लंबी फारकोट-तुनेडा सड़क की सैद्धांतिक स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन अभी तक सड़क नहीं बन पाई है. आज भी ग्रामीण डंडी-कंडी और घोड़े-खच्चरों पर निर्भर हैं. आलम तो ये है कि ग्रामीण घने जंगलों और नदी-नालों को पार कर सड़क मार्ग तक पहुंच पाते हैं. इसमें भी जंगली जानवरों और पत्थर गिरने का डर सताता रहता है.

ये भी पढ़ेंः उत्तराखंड में डोली के सहारे है स्वास्थ्य सेवा, बीमार महिला को लेकर चले पांच किमी पैदल

6 महीने बीत गए विधायक जी के दावे नहीं हुए पूरे

ग्राम प्रधान सुनीता देवी का कहना है कि तुनेडा गांव में अभी तक सड़क न पहुंचने से ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. सरकार से लेकर क्षेत्रीय विधायक मुन्नी देवी शाह को लगातार पत्राचार कर चुके हैं. इसके बावजूद भी तुनेडा गांव सड़क मार्ग से वंचित है. उन्होंने कहा कि बीते जनवरी महीने में स्थानीय विधायक मुन्नी देवी शाह गांव के भ्रमण पर आईं थीं.

उस दौरान ग्रामीणों ने उनके सामने सड़क पहुंचाने की मांग रखी थी. जिस पर विधायक ने तीन महीने के भीतर सड़क पहुंचाने का आश्वासन दिया था, लेकिन 6 महीने बीत जाने के बाद भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है. ऐसे में ग्रामीण खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.

वहीं, उन्होंने कहा कि ग्रामीण बमुश्किल अपनी गुजर-बसर कर रहे हैं. सड़क मार्ग न होने से गर्भवती महिलाओं, घायल और बीमार लोगों को 15 किलोमीटर पैदल डंडी और कंडी के सहारे ले जाना पड़ता है, लेकिन सरकार उनकी सुध नहीं ले रही है.

थरालीः सूबे में भले ही इन 20 सालों में 11 मुख्यमंत्री बदल गए हों, लेकिन आज भी पहाड़ों की तस्वीर नहीं बदल पाई है. आज भी ग्रामीण अंचलों में लोगों को मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझना पड़ रहा है. ऐसा ही मामला नारायणबगड़ से सामने आया है. जहां तुनेडा गांव में सड़क सुविधा न होने से एक महिला को ग्रामीणों ने डंडी-कंडी के सहारे 15 किलोमीटर पैदल चलकर अस्पताल पहुंचाया, जहां पर महिला का इलाज जारी है.

दरअसल, चमोली जिले के विकासखंड नारायणबगड़ के ग्राम पंचायत तुनेडा की एक महिला मवेशियों के लिए चारा-पत्ती लेने जंगल गई थी. घास काटने के दौरान अचानक महिला फिसल गई. जिससे उसके पैर की हड्डी टूट गई. गनीमत रही कि जंगल में मोबाइल नेटवर्क आ रहा था. ऐसे में घायल महिला और अन्य महिलाओं ने फोन के जरिए हादसे की सूचना ग्रामीणों को दी. सूचना मिलने पर ग्रामीण मौके पर पहुंचे और घायल महिला को डंडी-कंडी के सहारे 15 किमी पैदल चलकर अस्पताल पहुंचाया.

घायल महिला को अस्पताल पहुंचाते ग्रामीण.

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महिलाएं के कंधों पर जिम्मेदारी

ग्रामीण सागर कोठियाल ने बताया कि गांव में सड़क सुविधा न होने से गांव से धीरे-धीरे पलायन हो रहा है. गांव में कुछ ही पुरुष बचे हैं. ऐसे में जब कोई बीमार या घायल हो जाता है तो उसे अस्पताल पहुंचाने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है. इतना ही नहीं गांव में पुरुषों के न होने पर महिलाओं को ही मरीज को कंधों के सहारे सड़क और अस्पताल तक पहुंचाना पड़ता है.

tuneda village
घायल महिला को महिलाओं के कंधों का सहारा.

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फारकोट-तुनेडा मोटरमार्ग की हो चुकी सैद्धांतिक स्वीकृति

बता दें कि साल 2018 में 5 किलोमीटर की लंबी फारकोट-तुनेडा सड़क की सैद्धांतिक स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन अभी तक सड़क नहीं बन पाई है. आज भी ग्रामीण डंडी-कंडी और घोड़े-खच्चरों पर निर्भर हैं. आलम तो ये है कि ग्रामीण घने जंगलों और नदी-नालों को पार कर सड़क मार्ग तक पहुंच पाते हैं. इसमें भी जंगली जानवरों और पत्थर गिरने का डर सताता रहता है.

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6 महीने बीत गए विधायक जी के दावे नहीं हुए पूरे

ग्राम प्रधान सुनीता देवी का कहना है कि तुनेडा गांव में अभी तक सड़क न पहुंचने से ग्रामीणों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. सरकार से लेकर क्षेत्रीय विधायक मुन्नी देवी शाह को लगातार पत्राचार कर चुके हैं. इसके बावजूद भी तुनेडा गांव सड़क मार्ग से वंचित है. उन्होंने कहा कि बीते जनवरी महीने में स्थानीय विधायक मुन्नी देवी शाह गांव के भ्रमण पर आईं थीं.

उस दौरान ग्रामीणों ने उनके सामने सड़क पहुंचाने की मांग रखी थी. जिस पर विधायक ने तीन महीने के भीतर सड़क पहुंचाने का आश्वासन दिया था, लेकिन 6 महीने बीत जाने के बाद भी अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है. ऐसे में ग्रामीण खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं.

वहीं, उन्होंने कहा कि ग्रामीण बमुश्किल अपनी गुजर-बसर कर रहे हैं. सड़क मार्ग न होने से गर्भवती महिलाओं, घायल और बीमार लोगों को 15 किलोमीटर पैदल डंडी और कंडी के सहारे ले जाना पड़ता है, लेकिन सरकार उनकी सुध नहीं ले रही है.

Last Updated : Jul 5, 2021, 7:07 PM IST
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