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ग्रामीणों ने ढोल-दमाऊ के साथ की धान की अंतिम रोपाई, महिलाओं की छलकी आंखें

चमोली के सैकोट गांव में ढोल-दमाऊ की थाप और नम आखों के साथ ग्रामीणों ने धान की अंतिम रोपाई की. जिसे ग्रामीणों ने यादगार बना दिया.

paddy transplanting
धान की रोपाई
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Published : Jun 25, 2021, 9:11 PM IST

Updated : Jun 25, 2021, 10:28 PM IST

चमोलीः दशोली विकासखंड के सैकोट गांव में ढोल-दमाऊ और जागर गीतों के साथ ग्रामीणों ने धान की अंतिम रोपाई की, जो आने वाली पीढ़ी के लिए यादगार बन गई है. इस दौरान महिलाओं की आंखें छलक गईं और अपनी भूमि से बिछुड़ने का दर्द महसूस किया.

दरअसल, सैकोट गांव में चारधाम रेलवे प्रोजेक्ट के तहत केदारनाथ और बदरीनाथ के लिए मुख्य रेलवे स्टेशन का निर्माण होना है. जिसके लिए रेलवे की ओर से गांव की 200 के अधिक नाली भूमि अधिग्रहित की गई है. ग्रामीणों का मानना है कि आगामी वर्ष से रेलवे स्टेशन का कार्य शुरू होने की वजह से गांव के खेतों में धान की रोपाई होना मुश्किल है. जिसे देखते हुए ग्रामीणों ने गांव की अंतिम धान की रोपाई को यादगार बना दिया.

ग्रामीणों ने ढोल-दमाऊ के साथ की धान की अंतिम रोपाई.

ये भी पढ़ेंः हुड़कियां बौल पर हुई धान की रोपाई, लोकसंस्कृति को जिंदा रखने का प्रयास

पलायन के छाया से दूर सैकोट गांव

चमोली के जिला मुख्यालय गोपेश्वर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर सैकोट गांव स्थित है. गांव में मौजूदा समय में करीब 150 परिवार निवास करते हैं. ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय कृषि व पशुपालन है, जिससे इस गांव पर आज तक पलायन की छाया तक नहीं पड़ी है. गांव में आवासीय मकानों के आसपास ही दूर-दूर तक फैले बड़े-बड़े खेत हैं. हर साल ग्रामीण बड़े उल्लास के साथ अपने इन खेतों में धान की रोपाई करते हैं. रोपाई की तैयारी भी एक महीने पहले से ही शुरू कर दी जाती है.

paddy transplanting
धान की अंतिम रोपाई करतीं महिलाएं.

धान की बिज्वाड़ को सामूहिक तरीके से लगाने की है परंपरा

धान की बिज्वाड़ (धान के पौधे) की निराई-गुड़ाई के लिए गांव की सभी महिलाएं एकजुट हो जाती हैं. इस साल की धान की रोपाई ग्रामीणों के लिए खास बन गई. ग्रामीणों ने सुबह से ही खेतों में पानी लगाया और बेलों की जोड़ी के साथ ही ढोल-दमाऊ भी लेकर खेतों में पहुंचे. महिलाओं ने जीतू बगड़वाल के जागरों के साथ धान की रोपाई की.

ये भी पढ़ेंः हुड़के की थाप और चूड़ियों की खनक के साथ यहां होती है धान की रोपाई, सदियों से चली आ रही ये परंपरा

महिलाओं की छलकी आखें

खेतों में धान की रोपाई के बीच जागर गाते-गाते महिलाएं रोनें लगी. तुलसी देवी, दीपा, बबीता का कहना है कि क्षेत्र में रेल मार्ग का विस्तार हो जाएगा, यह विकास कार्य है, लेकिन अब हमारे खेत खुर्दबुर्द हो जाएंगे. खेतों का तो मुआवजा मिल जाएगा, लेकिन अपनी भूमि से बिछुड़ने का दर्द उन्हें हमेशा सताता रहेगा.

paddy transplanting
ढोल-दमाऊ की थाप धान की रोपाई.

सेरा हिट गैलयाणी रोपणियों का दिन ऐगिन...

पहाड़ों में धान की रोपाई के दौरान 'सेरा हिट गैलयाणी रोपणियों का दिन ऐगिन, गांव का भैबंद सभी धाणियों में लगी गैन...' गीत हर किसी को भावविभोर कर देता है. यह अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है. आज भी ग्रामीणों ने संजोए रखा है. ग्रामीणों के लिए धान की रोपाई किसी उत्सव से कम नहीं होता है. रोपाई के एक दिन पहले महिलाएं क्यारी से धान की पौध (बिज्वाड़) निकालती हैं. दूसरे दिन पूजा-अर्चना के बाद रोपाई का काम शुरू होता है.

गांव की ब्याही बेटियां भी मायके आकर रोपाई में बंटाती है हाथ

पुरुष लोग हल और मय्या लगाकर खेत को तैयार करते हैं. इसके बाद महिलाएं धान की पौध को रोपना शुरू करती हैं. इस दौरान ढोल-दमाऊ की गूंज के साथ देवताओं की स्तुति भी की जाती है. साथ ही गीतों की धुन पर धान की रोपाई की जाती है. इतना ही नहीं महिलाएं सज-धज के अपने खेतों पर जाती हैं. गांव की ब्याही बेटियां भी मायके आकर रोपाई में सहयोग करती हैं. इस दिन विशेष पकवान भी बनाए जाते हैं, लेकिन बदलते दौर में यह परंपरा अब कम होती नजर आ रही है.

चमोलीः दशोली विकासखंड के सैकोट गांव में ढोल-दमाऊ और जागर गीतों के साथ ग्रामीणों ने धान की अंतिम रोपाई की, जो आने वाली पीढ़ी के लिए यादगार बन गई है. इस दौरान महिलाओं की आंखें छलक गईं और अपनी भूमि से बिछुड़ने का दर्द महसूस किया.

दरअसल, सैकोट गांव में चारधाम रेलवे प्रोजेक्ट के तहत केदारनाथ और बदरीनाथ के लिए मुख्य रेलवे स्टेशन का निर्माण होना है. जिसके लिए रेलवे की ओर से गांव की 200 के अधिक नाली भूमि अधिग्रहित की गई है. ग्रामीणों का मानना है कि आगामी वर्ष से रेलवे स्टेशन का कार्य शुरू होने की वजह से गांव के खेतों में धान की रोपाई होना मुश्किल है. जिसे देखते हुए ग्रामीणों ने गांव की अंतिम धान की रोपाई को यादगार बना दिया.

ग्रामीणों ने ढोल-दमाऊ के साथ की धान की अंतिम रोपाई.

ये भी पढ़ेंः हुड़कियां बौल पर हुई धान की रोपाई, लोकसंस्कृति को जिंदा रखने का प्रयास

पलायन के छाया से दूर सैकोट गांव

चमोली के जिला मुख्यालय गोपेश्वर से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर सैकोट गांव स्थित है. गांव में मौजूदा समय में करीब 150 परिवार निवास करते हैं. ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय कृषि व पशुपालन है, जिससे इस गांव पर आज तक पलायन की छाया तक नहीं पड़ी है. गांव में आवासीय मकानों के आसपास ही दूर-दूर तक फैले बड़े-बड़े खेत हैं. हर साल ग्रामीण बड़े उल्लास के साथ अपने इन खेतों में धान की रोपाई करते हैं. रोपाई की तैयारी भी एक महीने पहले से ही शुरू कर दी जाती है.

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धान की अंतिम रोपाई करतीं महिलाएं.

धान की बिज्वाड़ को सामूहिक तरीके से लगाने की है परंपरा

धान की बिज्वाड़ (धान के पौधे) की निराई-गुड़ाई के लिए गांव की सभी महिलाएं एकजुट हो जाती हैं. इस साल की धान की रोपाई ग्रामीणों के लिए खास बन गई. ग्रामीणों ने सुबह से ही खेतों में पानी लगाया और बेलों की जोड़ी के साथ ही ढोल-दमाऊ भी लेकर खेतों में पहुंचे. महिलाओं ने जीतू बगड़वाल के जागरों के साथ धान की रोपाई की.

ये भी पढ़ेंः हुड़के की थाप और चूड़ियों की खनक के साथ यहां होती है धान की रोपाई, सदियों से चली आ रही ये परंपरा

महिलाओं की छलकी आखें

खेतों में धान की रोपाई के बीच जागर गाते-गाते महिलाएं रोनें लगी. तुलसी देवी, दीपा, बबीता का कहना है कि क्षेत्र में रेल मार्ग का विस्तार हो जाएगा, यह विकास कार्य है, लेकिन अब हमारे खेत खुर्दबुर्द हो जाएंगे. खेतों का तो मुआवजा मिल जाएगा, लेकिन अपनी भूमि से बिछुड़ने का दर्द उन्हें हमेशा सताता रहेगा.

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ढोल-दमाऊ की थाप धान की रोपाई.

सेरा हिट गैलयाणी रोपणियों का दिन ऐगिन...

पहाड़ों में धान की रोपाई के दौरान 'सेरा हिट गैलयाणी रोपणियों का दिन ऐगिन, गांव का भैबंद सभी धाणियों में लगी गैन...' गीत हर किसी को भावविभोर कर देता है. यह अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है. आज भी ग्रामीणों ने संजोए रखा है. ग्रामीणों के लिए धान की रोपाई किसी उत्सव से कम नहीं होता है. रोपाई के एक दिन पहले महिलाएं क्यारी से धान की पौध (बिज्वाड़) निकालती हैं. दूसरे दिन पूजा-अर्चना के बाद रोपाई का काम शुरू होता है.

गांव की ब्याही बेटियां भी मायके आकर रोपाई में बंटाती है हाथ

पुरुष लोग हल और मय्या लगाकर खेत को तैयार करते हैं. इसके बाद महिलाएं धान की पौध को रोपना शुरू करती हैं. इस दौरान ढोल-दमाऊ की गूंज के साथ देवताओं की स्तुति भी की जाती है. साथ ही गीतों की धुन पर धान की रोपाई की जाती है. इतना ही नहीं महिलाएं सज-धज के अपने खेतों पर जाती हैं. गांव की ब्याही बेटियां भी मायके आकर रोपाई में सहयोग करती हैं. इस दिन विशेष पकवान भी बनाए जाते हैं, लेकिन बदलते दौर में यह परंपरा अब कम होती नजर आ रही है.

Last Updated : Jun 25, 2021, 10:28 PM IST
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