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कंधों पर मरीज ढो रहा सपनों का उत्तराखंड, सरकारी दावों को आइना दिखाती तस्वीर - उत्तराखंड में बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं

पहाड़ों के दूरस्थ गांवों की खूबसूरती हर किसी को अपनी और खींचती है. मगर खूबसूरती के पीछे का दर्द क्या होता है, ये शायद आप नहीं जानते होंगे. पहाड़ में जीवन कितना मुश्किल है, ये गैरसैंण ब्लॉक के सेरा तवाखर्क गांव से आए वीडियो में देखा जा रहा है. एक बीमार महिला को लोग पांच किलोमीटर पैदल अपने कंधों पर ढोकर अस्पताल लाए.

Gairsain
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Published : Jul 8, 2021, 6:34 PM IST

चमोली: साढ़े चार साल में बीजेपी ने तीन नेताओं को मुख्यमंत्री बनाकर उनकी किस्मत तो चमका दी है, लेकिन सीमांत जिलों के दूरस्थ गांवों में रह रहे लोगों की किस्मत कब बदलेगी, इसका जवाब उन्हें आज तक नहीं मिला है. 20 साल के उत्तराखंड ने पांच सरकारें और 11 मुख्यमंत्री देख लिए हैं. लेकिन उन्होंने विकास कितना किया? इसका जवाब वो लोग दे सकते हैं, जो मरीजों को कंधों पर लादकर कई किलोमीटर पैदल चलते हैं.

ऐसे ही एक तस्वीर आई है, चमोली जिले के गैरसैण ब्लॉक से. यहां ग्रामीणों ने मरीज को लेकर करीब पांच किमी का पैदल सफर तय किया है. वो भी तब जब गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानसभा है. वहां हाल ही में बजट सत्र हुआ था. इसी गैरसैंण को राज्य आंदोलन की उत्पत्ति से ही उत्तराखंड की राजधानी माना गया था.

मरीज को कंधे पर ले जाने को मजबूर

पढ़ें- स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह का ऐलान, दिसंबर तक होगा 100 फीसदी वैक्सीनेशन

दरअसल, सेरा तेवाखर्क गांव निवासी काशी देवी (46) की अचानक तबीयत खराब हो गई थी. काशी देवी का जीवन बचाने के लिए उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराना जरूरी था. गांव सड़क के इतनी दूर है कि काशी देवी को तत्काल हॉस्पिटल नहीं पहुंचाया जा सकता था. ऐसे में ग्रामीणों ने काशी देवी को कंधों के सहारे लकड़ी के स्ट्रेचर पर करीब 5 किलोमीटर पैदल पगडंडियों के रास्ते सड़क मार्ग तक पहुंचाया. फिर गाड़ी के जरिए 15 किलोमीटर दूर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गैरसैंण पहुंचाया.

आपको जानकार ताज्जुब होगा कि ये स्थिति ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से 20 किलोमीटर दूर की है, जहां तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने लोगों को विकास के नए सपने दिखाए थे. बता दें कि सेरा-तेवाखर्क गांव तक सड़क के निर्माण को लेकर 26 जनवरी को ग्रामीणों ने आंदोलन भी किया था. इसके बाद भी जब सरकार नींद से नहीं जागी तो ग्रामीणों ने श्रमदान कर सड़क बनाने का निर्णय लिया.

15 फरवरी को ग्रामीणों ने सड़क की मांग को लेकर क्रमिक अनशन शुरू किया था. इसके बाद ग्रामीणों का विरोध आमरण अनशन में बदल गया था. इसके बाद प्रशासन के कानों पर जूं रेंगी और 46 दिन के धरने के बाद एसडीएम गैरसैंण ने ग्रामीणों को भरोसा दिया कि सड़क का कार्य जल्द शुरू किया जाएगा. इसके बाद ग्रामीणों ने आमरण अनशन समाप्त किया था. लेकिन आजतक सड़क का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है.

चमोली: साढ़े चार साल में बीजेपी ने तीन नेताओं को मुख्यमंत्री बनाकर उनकी किस्मत तो चमका दी है, लेकिन सीमांत जिलों के दूरस्थ गांवों में रह रहे लोगों की किस्मत कब बदलेगी, इसका जवाब उन्हें आज तक नहीं मिला है. 20 साल के उत्तराखंड ने पांच सरकारें और 11 मुख्यमंत्री देख लिए हैं. लेकिन उन्होंने विकास कितना किया? इसका जवाब वो लोग दे सकते हैं, जो मरीजों को कंधों पर लादकर कई किलोमीटर पैदल चलते हैं.

ऐसे ही एक तस्वीर आई है, चमोली जिले के गैरसैण ब्लॉक से. यहां ग्रामीणों ने मरीज को लेकर करीब पांच किमी का पैदल सफर तय किया है. वो भी तब जब गैरसैंण के भराड़ीसैंण में विधानसभा है. वहां हाल ही में बजट सत्र हुआ था. इसी गैरसैंण को राज्य आंदोलन की उत्पत्ति से ही उत्तराखंड की राजधानी माना गया था.

मरीज को कंधे पर ले जाने को मजबूर

पढ़ें- स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह का ऐलान, दिसंबर तक होगा 100 फीसदी वैक्सीनेशन

दरअसल, सेरा तेवाखर्क गांव निवासी काशी देवी (46) की अचानक तबीयत खराब हो गई थी. काशी देवी का जीवन बचाने के लिए उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती कराना जरूरी था. गांव सड़क के इतनी दूर है कि काशी देवी को तत्काल हॉस्पिटल नहीं पहुंचाया जा सकता था. ऐसे में ग्रामीणों ने काशी देवी को कंधों के सहारे लकड़ी के स्ट्रेचर पर करीब 5 किलोमीटर पैदल पगडंडियों के रास्ते सड़क मार्ग तक पहुंचाया. फिर गाड़ी के जरिए 15 किलोमीटर दूर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गैरसैंण पहुंचाया.

आपको जानकार ताज्जुब होगा कि ये स्थिति ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से 20 किलोमीटर दूर की है, जहां तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने लोगों को विकास के नए सपने दिखाए थे. बता दें कि सेरा-तेवाखर्क गांव तक सड़क के निर्माण को लेकर 26 जनवरी को ग्रामीणों ने आंदोलन भी किया था. इसके बाद भी जब सरकार नींद से नहीं जागी तो ग्रामीणों ने श्रमदान कर सड़क बनाने का निर्णय लिया.

15 फरवरी को ग्रामीणों ने सड़क की मांग को लेकर क्रमिक अनशन शुरू किया था. इसके बाद ग्रामीणों का विरोध आमरण अनशन में बदल गया था. इसके बाद प्रशासन के कानों पर जूं रेंगी और 46 दिन के धरने के बाद एसडीएम गैरसैंण ने ग्रामीणों को भरोसा दिया कि सड़क का कार्य जल्द शुरू किया जाएगा. इसके बाद ग्रामीणों ने आमरण अनशन समाप्त किया था. लेकिन आजतक सड़क का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है.

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