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रैणी आपदा@1 सालः भयानक त्रासदी को याद कर सिहर जाते हैं लोग, अभी भी सता रहा खतरा

रैणी आपदा का भयावह मंजर आज भी जब जेहन में आता है तो लोग सिहर उठते हैं. 7 फरवरी 2021 में आई जल प्रलय में 200 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी. जिसमें अभी कई लोग लापता हैं. आपदा के एक साल बाद भी ग्रामीण काफी खौफजदा हैं. थोड़े से ही बारिश में ग्रामीण घबरा जाते हैं.

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रैणी आपदा
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Published : Feb 7, 2022, 5:44 PM IST

Updated : Feb 7, 2022, 5:57 PM IST

देहरादून/चमोलीः रैणी आपदा को आज एक साल पूरे हो गए हैं. आपदा के जख्म अभी तक नहीं भर पाए हैं. आज भी इस जल प्रलय को याद कर लोग सिहर उठते हैं. आलम ये है कि आज भी तपोवन और रैणी क्षेत्र के ग्रामीण नदी किनारे जाने से भी घबरा रहे हैं. उन्हें आज भी अनहोनी की आशंका सता रही है.

गौर हो कि बीते साल यानी 7 फरवरी 2021 को चमोली के तपोवन क्षेत्र में रैणी गांव के पास ऋषिगंगा में आए जल सैलाब से भारी तबाही मची थी. जिसकी चपेट में आने से ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना और एनटीपीसी जल विद्युत परियोजना में कार्यरत 204 लोगों की मौत हो गई थी. अभी भी कई लोग लापता चल रहे हैं. इस तबाही का जख्म अभी भी नहीं भर पाया है. ग्रामीणों की मानें तो पैदल रास्ते अभी भी क्षतिग्रस्त पड़े हैं और ऋषि गंगा के किनारे बाढ़ सुरक्षा कार्य भी नहीं हुए हैं.

चमोली हादसे की वजह: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) के वैज्ञानिकों ने जांच के बाद पाया कि करीब 5,600 मीटर की ऊंचाई से रौंथी पीक (Raunthi Peak) के नीचे रौंथी ग्लेशियर कैचमेंट में रॉक मास के साथ एक लटकता हुआ ग्लेशियर टूट गया था. बर्फ और चट्टान का यह टुकड़ा करीब 3 किलोमीटर का नीचे की ओर सफर तय कर करीब 3,600 मीटर की ऊंचाई पर रौंथी धारा तक पहुंच गया था, जो रौंथी ग्लेशियर के मुंह से करीब 1.6 किलोमीटर नीचे की ओर मौजूद है.

वैज्ञानिकों के अनुसार रौंथी कैचमेंट में साल 2015-2017 के बीच हिमस्खलन और मलबे के प्रवाह की घटना देखी गई. इन घटनाओं ने डाउनस्ट्रीम में कोई बड़ी आपदा नहीं की. लेकिन कैचमेंट में हुए बड़े बदलाव की वजह से रौंथी धारा के हिमनद क्षेत्र में ढीले मोरेनिक मलबे और तलछट के संचय का कारण बना.

ये भी पढ़ेंः चमोली आपदा के बाद से हिमालय में हो रही हलचल तबाही का संकेत तो नहीं?

लिहाजा, 7 फरवरी 2021 को बर्फ, ग्लेशियर, चट्टान के टुकड़े, मोरेनिक मलबे आदि चीजें एक साथ मिक्स हो गए, जो करीब 8.5 किमी रौंथी धारा की ओर नीचे आ गया और करीब 2,300 मीटर की ऊंचाई पर ऋषिगंगा नदी को अवरुद्ध कर दिया. जिससे एक पानी के झील का निर्माण हुआ.

ऋषिगंगा नदी से आई आपदा: रौंथी कैचमेंट से आए इस मलबे ने ऋषिगंगा नदी पर स्थित 13.2 मेगावाट क्षमता वाले हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट को तबाह कर दिया. इसके साथ ही रैणी गांव के पास ऋषिगंगा नदी पर नदी तल से करीब 70 मीटर ऊंचाई पर बना एक बड़ा पुल भी बह गया था, जिससे नदी के ऊपर के गांवों और सीमावर्ती क्षेत्रों में आपूर्ति बाधित हो गई और फिर यह मलबा आगे बढ़ते हुए तपोवन परियोजना को भी क्षतिग्रस्त कर गया.

तपोवन हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट क्षमता की परियोजना थी. चमोली आपदा के दौरान तपोवन एचईपी में करीब 20 मीटर और बैराज गेट्स के पास 12 मीटर ऊंचाई तक मलबा और बड़े-बड़े बोल्डर जमा हो गए थे. जिससे इस प्रोजेक्ट को भी काफी नुकसान पहुंचा था. इस आपदा ने न सिर्फ 204 लोगों की जान ले ली, बल्कि अपने रास्ते में आने वाले सभी बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया. आपदा में करीब 1,625 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था.

ये भी पढ़ेंः बारिश से रैणी गांव में भू-कटाव और पड़ी दरारें, खौफजदा ग्रामीण

वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता: रैणी आपदा के बाद प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ ऐसा हो रहा है, जिसने वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. हिमालयी क्षेत्रों में हो रही हलचल की एक मुख्य वजह ग्लोबल वॉर्मिंग को माना जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिक अभी ग्लोबल वॉर्मिंग और पहाड़ों की हलचल के कनेक्शन को लेकर पुख्ता नहीं हैं. उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्रदेश में आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं. लेकिन, मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश में आपदा जैसे हालात, भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं बढ़ जाती हैं.

रैणी आपदा के कई कारण: रैणी गांव में आयी आपदा पर रिसर्च कर रही वरिष्ठ पत्रकार कविता उपाध्याय की मानें तो अभी तक उनकी रिसर्च में जो बातें निकल कर सामने आयी हैं उसके अनुसार हिमालय में हो रहे बदलाव के लिए सिर्फ ग्लोबल वॉर्मिंग को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, इसके कई और भी कारण हैं. मुख्य रूप से रैणी गांव में आई आपदा में हुए जान के नुकसान को बचाया जा सकता था. इसके लिए उस क्षेत्र में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम मौजूद होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं था. कविता बताती हैं कि उनकी रिसर्च में यह बात निकलकर सामने आई है कि साल 2016 में रौंथी ग्लेशियर में दरार पायी गयी थी. जिसके बाद 7 फरवरी 2021 की सुबह 10:21 बजे ग्लेशियर टूट गया और चमोली में बड़ी आपदा आई.

ये भी पढ़ेंः रैणी आपदा: नहीं बना धौली गंगा पर झूला पुल, ट्रॉली के सहारे जिंदगी

कुछ परिवारों का विस्थापन जरूरी: कविता बताती हैं कि रैणी गांव में आई भीषण आपदा के बाद स्थानीय लोगों में काफी डर का माहौल है. रैणी गांव में करीब 150 परिवार रहते हैं. जिसमें से कई परिवार संवेदनशील स्थानों पर हैं, जिनका विस्थापन किया जाना जरूरी है. बीते 24 जुलाई को सेलांग गांव के पास तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना की सुरंग के कुछ हिस्से सहित कई उपकरण भूस्खलन में क्षतिग्रस्त हो गए.

इतना ही नहीं ऋषिगंगा-धौली गंगा का क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ है. जिससे उभरने में काफी समय लग सकता है. साथ ही उस क्षेत्र में दोबारा से हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट लगाने की संभावना भी काफी कम है. जोशीमठ एसडीएम कुमकुम जोशी की मानें तो सभी 204 लोगों के मृत्यु प्रमाणपत्र तहसील प्रशासन की ओर से दे दिए गए हैं. साथ ही सभी मृतकों के आश्रितों को सात लाख रुपए का मुआवजा भी दे दिया गया है.

हाईकोर्ट से याचिका खारिज: आपदा के 6 महीने बाद रैणी गांव के तीन और जोशीमठ के दो लोगों ने उत्तराखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और याचिका दायर कर परियोजनाओं की वन और पर्यावरण मंजूरी को रद्द करने के साथ ही दो जलविद्युत परियोजनाओं को रद्द करने की मांग की. हालांकि, जनहित याचिका में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि परियोजना निर्माण के दौरान विस्फोटकों के उपयोग ने पहले से ही नाजुक पहाड़ियों को कमजोर कर दिया है, जिससे क्षेत्र में भूस्खलन की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ गई थी.

मौजूदा हालात ऐसे हैं कि सुरक्षा के लिए रैणी के ग्रामीण कभी-कभी पास के जंगलों में शरण ले लेते हैं. जिसके बाद 14 जुलाई को सुनवाई के पहले दिन मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने याचिका को निरस्त कर दिया. याचिका का उद्देश्य चमोली त्रासदी की जवाबदेही तय करना, पीड़ितों को मुआवजा दिलाना और भविष्य में ऐसी घटनाओं को फिर से होने से रोकना था.

ये भी पढ़ेंः रैणी आपदा के लिए रिसर्च टीम ने वेदर अर्ली वार्निंग सिस्टम को बताया जिम्मेदार, नोटिस हुआ जारी

रैणी गांव में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगा: उत्तराखंड एसडीआरएफ ने 31 जुलाई को रैणी गांव में फिर से अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को एक्टिवेट कर दिया था. ऐसे में नदी का जलस्तर यदि बढ़ता है तो वॉर्निंग सिस्टम के जरिए आस-पास के गांवों को अलर्ट कर दिया जाएगा और 5 से 7 मिनट के भीतर पूरे इलाके को खाली कराया जा सकता है.

अलकनंदा नदी में मछलियां हुईं खत्मः सैलाब का असर अलकनंदा नदी पर बुरी तरह से पड़ा है. जल सैलाब के साथ आए गाद से अलकनंदा नदी की मछलियां मर गई थी. जोशीमठ से लेकर कर्णप्रयाग तक अलकनंदा नदी इन दिनों मछली विहीन है. जिससे मछली पकड़कर आजीविका चलाने वाले परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है.

इस वजह से हुई मछलियाओं की मौतः चमोली में तैनात सहायक मत्स्य जगतम्बा प्रसाद का कहना है कि ऋषि गंगा में आई आपदा के दौरान पानी से साथ आया मलबा मछलियों के गलफड़ों में चले जाने से अलकनंदा नदी में मौजूद मछलियां मर गई थी. जिससे मछलियों की ताताद में भारी कमी आई है.

हिमालयन ट्राउट को लौटने में लगेंगे तीन सालः मत्स्य विभाग की ओर से बिरही गंगा से छोटी-छोटी मछलियों के बीज को छोड़ा जा चुका है, ताकि एक बार अलकनंदा नदी में फिर से मछलियां लौट सके. गांव-गांव में भी ट्राउट मछली पालन पर भी जोर दिया जा रहा है. अलकनंदा नदी में हिमालयन ट्राउट की दोबारा पैदावार के लिए 3 साल का वक्त लगेगा.

देहरादून/चमोलीः रैणी आपदा को आज एक साल पूरे हो गए हैं. आपदा के जख्म अभी तक नहीं भर पाए हैं. आज भी इस जल प्रलय को याद कर लोग सिहर उठते हैं. आलम ये है कि आज भी तपोवन और रैणी क्षेत्र के ग्रामीण नदी किनारे जाने से भी घबरा रहे हैं. उन्हें आज भी अनहोनी की आशंका सता रही है.

गौर हो कि बीते साल यानी 7 फरवरी 2021 को चमोली के तपोवन क्षेत्र में रैणी गांव के पास ऋषिगंगा में आए जल सैलाब से भारी तबाही मची थी. जिसकी चपेट में आने से ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना और एनटीपीसी जल विद्युत परियोजना में कार्यरत 204 लोगों की मौत हो गई थी. अभी भी कई लोग लापता चल रहे हैं. इस तबाही का जख्म अभी भी नहीं भर पाया है. ग्रामीणों की मानें तो पैदल रास्ते अभी भी क्षतिग्रस्त पड़े हैं और ऋषि गंगा के किनारे बाढ़ सुरक्षा कार्य भी नहीं हुए हैं.

चमोली हादसे की वजह: वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) के वैज्ञानिकों ने जांच के बाद पाया कि करीब 5,600 मीटर की ऊंचाई से रौंथी पीक (Raunthi Peak) के नीचे रौंथी ग्लेशियर कैचमेंट में रॉक मास के साथ एक लटकता हुआ ग्लेशियर टूट गया था. बर्फ और चट्टान का यह टुकड़ा करीब 3 किलोमीटर का नीचे की ओर सफर तय कर करीब 3,600 मीटर की ऊंचाई पर रौंथी धारा तक पहुंच गया था, जो रौंथी ग्लेशियर के मुंह से करीब 1.6 किलोमीटर नीचे की ओर मौजूद है.

वैज्ञानिकों के अनुसार रौंथी कैचमेंट में साल 2015-2017 के बीच हिमस्खलन और मलबे के प्रवाह की घटना देखी गई. इन घटनाओं ने डाउनस्ट्रीम में कोई बड़ी आपदा नहीं की. लेकिन कैचमेंट में हुए बड़े बदलाव की वजह से रौंथी धारा के हिमनद क्षेत्र में ढीले मोरेनिक मलबे और तलछट के संचय का कारण बना.

ये भी पढ़ेंः चमोली आपदा के बाद से हिमालय में हो रही हलचल तबाही का संकेत तो नहीं?

लिहाजा, 7 फरवरी 2021 को बर्फ, ग्लेशियर, चट्टान के टुकड़े, मोरेनिक मलबे आदि चीजें एक साथ मिक्स हो गए, जो करीब 8.5 किमी रौंथी धारा की ओर नीचे आ गया और करीब 2,300 मीटर की ऊंचाई पर ऋषिगंगा नदी को अवरुद्ध कर दिया. जिससे एक पानी के झील का निर्माण हुआ.

ऋषिगंगा नदी से आई आपदा: रौंथी कैचमेंट से आए इस मलबे ने ऋषिगंगा नदी पर स्थित 13.2 मेगावाट क्षमता वाले हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट को तबाह कर दिया. इसके साथ ही रैणी गांव के पास ऋषिगंगा नदी पर नदी तल से करीब 70 मीटर ऊंचाई पर बना एक बड़ा पुल भी बह गया था, जिससे नदी के ऊपर के गांवों और सीमावर्ती क्षेत्रों में आपूर्ति बाधित हो गई और फिर यह मलबा आगे बढ़ते हुए तपोवन परियोजना को भी क्षतिग्रस्त कर गया.

तपोवन हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट क्षमता की परियोजना थी. चमोली आपदा के दौरान तपोवन एचईपी में करीब 20 मीटर और बैराज गेट्स के पास 12 मीटर ऊंचाई तक मलबा और बड़े-बड़े बोल्डर जमा हो गए थे. जिससे इस प्रोजेक्ट को भी काफी नुकसान पहुंचा था. इस आपदा ने न सिर्फ 204 लोगों की जान ले ली, बल्कि अपने रास्ते में आने वाले सभी बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया. आपदा में करीब 1,625 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था.

ये भी पढ़ेंः बारिश से रैणी गांव में भू-कटाव और पड़ी दरारें, खौफजदा ग्रामीण

वैज्ञानिकों की बढ़ी चिंता: रैणी आपदा के बाद प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में कुछ ऐसा हो रहा है, जिसने वैज्ञानिकों की चिंताएं बढ़ा दी हैं. हिमालयी क्षेत्रों में हो रही हलचल की एक मुख्य वजह ग्लोबल वॉर्मिंग को माना जा रहा है, लेकिन वैज्ञानिक अभी ग्लोबल वॉर्मिंग और पहाड़ों की हलचल के कनेक्शन को लेकर पुख्ता नहीं हैं. उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते प्रदेश में आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं. लेकिन, मॉनसून सीजन के दौरान प्रदेश में आपदा जैसे हालात, भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं बढ़ जाती हैं.

रैणी आपदा के कई कारण: रैणी गांव में आयी आपदा पर रिसर्च कर रही वरिष्ठ पत्रकार कविता उपाध्याय की मानें तो अभी तक उनकी रिसर्च में जो बातें निकल कर सामने आयी हैं उसके अनुसार हिमालय में हो रहे बदलाव के लिए सिर्फ ग्लोबल वॉर्मिंग को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, इसके कई और भी कारण हैं. मुख्य रूप से रैणी गांव में आई आपदा में हुए जान के नुकसान को बचाया जा सकता था. इसके लिए उस क्षेत्र में अर्ली वॉर्निंग सिस्टम मौजूद होना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं था. कविता बताती हैं कि उनकी रिसर्च में यह बात निकलकर सामने आई है कि साल 2016 में रौंथी ग्लेशियर में दरार पायी गयी थी. जिसके बाद 7 फरवरी 2021 की सुबह 10:21 बजे ग्लेशियर टूट गया और चमोली में बड़ी आपदा आई.

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कुछ परिवारों का विस्थापन जरूरी: कविता बताती हैं कि रैणी गांव में आई भीषण आपदा के बाद स्थानीय लोगों में काफी डर का माहौल है. रैणी गांव में करीब 150 परिवार रहते हैं. जिसमें से कई परिवार संवेदनशील स्थानों पर हैं, जिनका विस्थापन किया जाना जरूरी है. बीते 24 जुलाई को सेलांग गांव के पास तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना की सुरंग के कुछ हिस्से सहित कई उपकरण भूस्खलन में क्षतिग्रस्त हो गए.

इतना ही नहीं ऋषिगंगा-धौली गंगा का क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ है. जिससे उभरने में काफी समय लग सकता है. साथ ही उस क्षेत्र में दोबारा से हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट लगाने की संभावना भी काफी कम है. जोशीमठ एसडीएम कुमकुम जोशी की मानें तो सभी 204 लोगों के मृत्यु प्रमाणपत्र तहसील प्रशासन की ओर से दे दिए गए हैं. साथ ही सभी मृतकों के आश्रितों को सात लाख रुपए का मुआवजा भी दे दिया गया है.

हाईकोर्ट से याचिका खारिज: आपदा के 6 महीने बाद रैणी गांव के तीन और जोशीमठ के दो लोगों ने उत्तराखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और याचिका दायर कर परियोजनाओं की वन और पर्यावरण मंजूरी को रद्द करने के साथ ही दो जलविद्युत परियोजनाओं को रद्द करने की मांग की. हालांकि, जनहित याचिका में याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि परियोजना निर्माण के दौरान विस्फोटकों के उपयोग ने पहले से ही नाजुक पहाड़ियों को कमजोर कर दिया है, जिससे क्षेत्र में भूस्खलन की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ गई थी.

मौजूदा हालात ऐसे हैं कि सुरक्षा के लिए रैणी के ग्रामीण कभी-कभी पास के जंगलों में शरण ले लेते हैं. जिसके बाद 14 जुलाई को सुनवाई के पहले दिन मुख्य न्यायाधीश राघवेंद्र सिंह चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने याचिका को निरस्त कर दिया. याचिका का उद्देश्य चमोली त्रासदी की जवाबदेही तय करना, पीड़ितों को मुआवजा दिलाना और भविष्य में ऐसी घटनाओं को फिर से होने से रोकना था.

ये भी पढ़ेंः रैणी आपदा के लिए रिसर्च टीम ने वेदर अर्ली वार्निंग सिस्टम को बताया जिम्मेदार, नोटिस हुआ जारी

रैणी गांव में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगा: उत्तराखंड एसडीआरएफ ने 31 जुलाई को रैणी गांव में फिर से अर्ली वॉर्निंग सिस्टम को एक्टिवेट कर दिया था. ऐसे में नदी का जलस्तर यदि बढ़ता है तो वॉर्निंग सिस्टम के जरिए आस-पास के गांवों को अलर्ट कर दिया जाएगा और 5 से 7 मिनट के भीतर पूरे इलाके को खाली कराया जा सकता है.

अलकनंदा नदी में मछलियां हुईं खत्मः सैलाब का असर अलकनंदा नदी पर बुरी तरह से पड़ा है. जल सैलाब के साथ आए गाद से अलकनंदा नदी की मछलियां मर गई थी. जोशीमठ से लेकर कर्णप्रयाग तक अलकनंदा नदी इन दिनों मछली विहीन है. जिससे मछली पकड़कर आजीविका चलाने वाले परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट गहरा गया है.

इस वजह से हुई मछलियाओं की मौतः चमोली में तैनात सहायक मत्स्य जगतम्बा प्रसाद का कहना है कि ऋषि गंगा में आई आपदा के दौरान पानी से साथ आया मलबा मछलियों के गलफड़ों में चले जाने से अलकनंदा नदी में मौजूद मछलियां मर गई थी. जिससे मछलियों की ताताद में भारी कमी आई है.

हिमालयन ट्राउट को लौटने में लगेंगे तीन सालः मत्स्य विभाग की ओर से बिरही गंगा से छोटी-छोटी मछलियों के बीज को छोड़ा जा चुका है, ताकि एक बार अलकनंदा नदी में फिर से मछलियां लौट सके. गांव-गांव में भी ट्राउट मछली पालन पर भी जोर दिया जा रहा है. अलकनंदा नदी में हिमालयन ट्राउट की दोबारा पैदावार के लिए 3 साल का वक्त लगेगा.

Last Updated : Feb 7, 2022, 5:57 PM IST
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