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वो गांव जिसका भगवान से है सीधा कनेक्शन! जानें बदरी विशाल और बामणी गांव का रिश्ता

भगवान बदरीविशाल मंदिर के पास भगवान बदरीविशाल के हक-हकूकधारियों का बामणी गांव बसा है. इस गांव में भगवान बदरीनाथ के कपाट खुलने के साथ ही रौनक लौट आती है. इन दिनों बामणी गांव में चहल पहल देखने को मिल रही है. इस गांव की आजीविका बदरीनाथ यात्रा से जुड़ी हुई है.

significance of bamani village
बामणी गांव
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Published : May 23, 2022, 5:05 PM IST

रुद्रप्रयाग: बदरीनाथ मंदिर के बगल पर ही बसे बामणी गांव में बदरीनाथ के कपाट खुलने के साथ ही गांव में रौनक लौट आती है. बामणी गांव के लोगों का रोजगार भगवान बदरी विशाल की यात्रा के साथ जुड़ा हुआ है. कपाट खुलने के बाद से ही बामणी गांव में चहल-पहल देखने को मिल रही है. क्योंकि 6 महीने के लंबे वक्त के बाद ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ गांव में लौट आए हैं. बता दें, बामणी गांव के लोग 6 महीने अपने शीतकालीन प्रवास के लिए पांडुकेश्वर आ जाते हैं.

बामणी गांव के ग्रामीणों की आजीविका पूरी तरह से बदरीनाथ की यात्रा पर निर्भर है. आदि गुरु शंकराचार्य के समय से ही धाम की स्थापना से लेकर अबतक धाम की परंपराओं की तरह उनके आस-पास के गांव वालों को मिले अधिकार भी वैसे ही बरकरार हैं. इस गांव के ग्रामीण बदरीनाथ धाम के हक-हकूकधारी हैं.

बामणी गांव के ग्रामीणों को भगवान बदरीनाथ का भोग तैयार करने की सामग्री और उसे भोग मंडी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी होती है. बदरीनाथ में हर दिन होने वाली आरती की जिम्मेदारी भी बामणी गांव के ग्रामीणों को है. तुलसी भगवान बदरी नारायण की पहचान का प्रतीक है. इसकी सुगंध से पूरी बदरीपुरी सुगंधित होती है. बदरीनाथ धाम में तीर्थयात्री भगवान विष्णु को तुलसी की माला, तुलसी के पत्ते व फूल चढ़ाते हैं.

भगवान के श्रृंगार के लिए तुलसी की माला की जिम्मेदारी बामणी गांव के ग्रामीण के अलावा अन्य लोगों को दी गई है. बामणी गांव के ग्रामीणों द्वारा तुलसी के पत्तों और फूलों की माला बनाई जाती है, जो भगवान बदरी विशाल को चढ़ाई जाती है. प्रसाद के रूप में श्रद्धालु अपने अपने घर ले जाते हैं. तुलसी की माला से ग्रामीणों को रोजगार भी मिल जाता है. बदरीश पंचायत में शामिल कुबेर महाराज को बामणी गांव के ग्रामीण ईष्ट देवता के रूप में पूजते हैं.
पढ़ें- चारधाम यात्रा में अब तक 60 तीर्थ यात्रियों की मौत, केदारनाथ में सबसे ज्यादा लोगों की थमी सांसें

नंदा देवी का मायका माना जाता है बामणी गांव: समुद्रतल से 10 हजार 250 फीट की ऊंचाई पर स्थित बामणी गांव को देवी नंदा का मायका माना गया है. हर साल भादों के महीने में नंदा अष्टमी के अवसर पर तीन दिन के लिए देवी नंदा यहां आती हैं और इसी के साथ नंदा देवी महोत्सव की शुरुआत होती है. इस मौके पर देवी के श्रृंगार के लिए बामणी गांव के बारीदार (फुलारी) नीलकंठ की तलहटी से कंडियों में हिमालयी पुष्प ब्रह्मकमल लाते हैं.

इस अवसर पर गांव की महिलाओं द्वारा नंदा के पौराणिक जागर गाए जाते हैं. नंदा अष्टमी मेले में बदरीश पंचायत से कुबेर जी की डोली बामणी गांव पहुंचती है. देवताओं के इस अद्भुत मिलन को देखने के लिए यहां पूरे देश से हजारों श्रद्धालु जुटते हैं. भगवान विष्णु के तप से उनकी जंघा से उर्वशी नाम की एक अप्सरा उत्पन्न हुई. बामणी गांव में ही उर्वशी का मन्दिर है. हर साल हजारों श्रद्धालु उर्वशी मंदिर को देखने बामणी गांव पहुंचते हैं. अधिकांश तीर्थयात्री बदरीनाथ धाम के साथ-साथ बामणी गांव भी पहुंचते हैं.

रुद्रप्रयाग: बदरीनाथ मंदिर के बगल पर ही बसे बामणी गांव में बदरीनाथ के कपाट खुलने के साथ ही गांव में रौनक लौट आती है. बामणी गांव के लोगों का रोजगार भगवान बदरी विशाल की यात्रा के साथ जुड़ा हुआ है. कपाट खुलने के बाद से ही बामणी गांव में चहल-पहल देखने को मिल रही है. क्योंकि 6 महीने के लंबे वक्त के बाद ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ गांव में लौट आए हैं. बता दें, बामणी गांव के लोग 6 महीने अपने शीतकालीन प्रवास के लिए पांडुकेश्वर आ जाते हैं.

बामणी गांव के ग्रामीणों की आजीविका पूरी तरह से बदरीनाथ की यात्रा पर निर्भर है. आदि गुरु शंकराचार्य के समय से ही धाम की स्थापना से लेकर अबतक धाम की परंपराओं की तरह उनके आस-पास के गांव वालों को मिले अधिकार भी वैसे ही बरकरार हैं. इस गांव के ग्रामीण बदरीनाथ धाम के हक-हकूकधारी हैं.

बामणी गांव के ग्रामीणों को भगवान बदरीनाथ का भोग तैयार करने की सामग्री और उसे भोग मंडी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी होती है. बदरीनाथ में हर दिन होने वाली आरती की जिम्मेदारी भी बामणी गांव के ग्रामीणों को है. तुलसी भगवान बदरी नारायण की पहचान का प्रतीक है. इसकी सुगंध से पूरी बदरीपुरी सुगंधित होती है. बदरीनाथ धाम में तीर्थयात्री भगवान विष्णु को तुलसी की माला, तुलसी के पत्ते व फूल चढ़ाते हैं.

भगवान के श्रृंगार के लिए तुलसी की माला की जिम्मेदारी बामणी गांव के ग्रामीण के अलावा अन्य लोगों को दी गई है. बामणी गांव के ग्रामीणों द्वारा तुलसी के पत्तों और फूलों की माला बनाई जाती है, जो भगवान बदरी विशाल को चढ़ाई जाती है. प्रसाद के रूप में श्रद्धालु अपने अपने घर ले जाते हैं. तुलसी की माला से ग्रामीणों को रोजगार भी मिल जाता है. बदरीश पंचायत में शामिल कुबेर महाराज को बामणी गांव के ग्रामीण ईष्ट देवता के रूप में पूजते हैं.
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नंदा देवी का मायका माना जाता है बामणी गांव: समुद्रतल से 10 हजार 250 फीट की ऊंचाई पर स्थित बामणी गांव को देवी नंदा का मायका माना गया है. हर साल भादों के महीने में नंदा अष्टमी के अवसर पर तीन दिन के लिए देवी नंदा यहां आती हैं और इसी के साथ नंदा देवी महोत्सव की शुरुआत होती है. इस मौके पर देवी के श्रृंगार के लिए बामणी गांव के बारीदार (फुलारी) नीलकंठ की तलहटी से कंडियों में हिमालयी पुष्प ब्रह्मकमल लाते हैं.

इस अवसर पर गांव की महिलाओं द्वारा नंदा के पौराणिक जागर गाए जाते हैं. नंदा अष्टमी मेले में बदरीश पंचायत से कुबेर जी की डोली बामणी गांव पहुंचती है. देवताओं के इस अद्भुत मिलन को देखने के लिए यहां पूरे देश से हजारों श्रद्धालु जुटते हैं. भगवान विष्णु के तप से उनकी जंघा से उर्वशी नाम की एक अप्सरा उत्पन्न हुई. बामणी गांव में ही उर्वशी का मन्दिर है. हर साल हजारों श्रद्धालु उर्वशी मंदिर को देखने बामणी गांव पहुंचते हैं. अधिकांश तीर्थयात्री बदरीनाथ धाम के साथ-साथ बामणी गांव भी पहुंचते हैं.

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