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शंकराचार्य स्वरूपानंद ने अपने शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद को सौंपा ज्योतिर्मठ का कार्यभार

चमोली के ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर और जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के आदेश पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिर्मठ के संचालन का पदभार दिया गया है.

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चमोली
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Published : Nov 23, 2020, 12:29 PM IST

चमोली: ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के आदेश पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिर्मठ के संचालन का पदभार दिया गया है. रविवार को अविमुक्तेश्वरानंद ने सनातन धर्म ध्वजा लहराकर पदभार ग्रहण किया. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज ने कहा कि जोशीमठ सनातन धर्म की उत्तर राजधानी है, इसी रूप में इसका विकास होना चाहिए.

पदभार ग्रहण करते स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि उत्तराखंड का जोशीमठ कोई सामान्य नगर नहीं बल्कि देश की चार दिशाओं में आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा घोषित सनातन धर्म की चार राजधानियों में से एक है. इसी गौरव के अनुरूप इसका विकास होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि समूचा उत्तराखंड देवभूमि है और हम इसे प्रणाम करते हैं. यहां की आध्यात्मिकता को बनाये रखने, संस्कृति और परम्पराओं को संरक्षित करने के लिये सबके सहयोग से कार्य किया जायेगा. सभी कार्यों का मूल आधार लोक-कल्याण होगा.

पढ़ें: कोविड-19 की समीक्षा के लिए राज्यों के साथ बैठक कर सकते हैं पीएम मोदी

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि पूज्य शंकराचार्य जी महाराज के आदेशों-निर्देशों के पालन में ही भगवान बदरीनाथ जी के पट बंद होते समय बदरीनाथ पहुंचकर शंकराचार्य जी की ओर से सत्र की अंतिम पूजा और फिर शंकराचार्य जी महाराज की पालकी का अनुगमन किया गया. भविष्य में भी इन परम्पराओं में सम्मिलित होकर ज्योतिर्मठ और पूज्य शंकराचार्य जी महाराज की ओर से योगदान करते रहेंगे.

चमोली: ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के आदेश पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिर्मठ के संचालन का पदभार दिया गया है. रविवार को अविमुक्तेश्वरानंद ने सनातन धर्म ध्वजा लहराकर पदभार ग्रहण किया. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी महाराज ने कहा कि जोशीमठ सनातन धर्म की उत्तर राजधानी है, इसी रूप में इसका विकास होना चाहिए.

पदभार ग्रहण करते स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि उत्तराखंड का जोशीमठ कोई सामान्य नगर नहीं बल्कि देश की चार दिशाओं में आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा घोषित सनातन धर्म की चार राजधानियों में से एक है. इसी गौरव के अनुरूप इसका विकास होना चाहिए.

उन्होंने कहा कि समूचा उत्तराखंड देवभूमि है और हम इसे प्रणाम करते हैं. यहां की आध्यात्मिकता को बनाये रखने, संस्कृति और परम्पराओं को संरक्षित करने के लिये सबके सहयोग से कार्य किया जायेगा. सभी कार्यों का मूल आधार लोक-कल्याण होगा.

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स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि पूज्य शंकराचार्य जी महाराज के आदेशों-निर्देशों के पालन में ही भगवान बदरीनाथ जी के पट बंद होते समय बदरीनाथ पहुंचकर शंकराचार्य जी की ओर से सत्र की अंतिम पूजा और फिर शंकराचार्य जी महाराज की पालकी का अनुगमन किया गया. भविष्य में भी इन परम्पराओं में सम्मिलित होकर ज्योतिर्मठ और पूज्य शंकराचार्य जी महाराज की ओर से योगदान करते रहेंगे.

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