देहरादून: हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का बहुत महत्व है. 29 सितंबर के श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुके हैं, जो 14 अक्टूबर तक चलेंगे. इन 16 दिनों में लोग अपने पितरों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करते है. भारत में वैसे तो कई जगहों पर श्राद्ध किया जाता है, लेकिन शास्त्रों में तीन जगहों पर काफी महत्व बताया गया है. पहले बिहार के गया में, दूसरा उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में स्थित नारायाण शिला मंदिर और तीसरी उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित बदरीनाथ धाम. इससे पहले हमने आपको नारायाण शिला मंदिर हरिद्वार के बारे में बताया था, वहीं आज हम आपको बदरीनाथ धाम में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने का क्या महत्व इसके बारे में बताते है.
हिंदूओं में श्राद्ध पक्ष को लेकर मान्यता है इन 16 दिनों में हमारे पितर यमलोक से धरती पर आते है और परिजन उनका सत्कार करते है. कहा जाता है कि पितृ अगर खुश होते हैं तो परिवार में सुख शांति और समृद्धि आती है और अगर पितृ दोष लगा हुआ है तो बने हुए काम भी बिगड़ जाते हैं. इसलिए आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पर अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करने से अन्य जगहों के मुकाबले 8 गुना अधिक फल प्राप्त होता है.
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कपाल मोचन तीर्थ: देश के चारधामों में एक बदरीनाथ धाम को विष्णु का स्थान कहा गया है. बदरीनाथ धाम से करीब 200 मीटर दूर ही ब्रह्मकपाल स्थित है, जिसे कपाल मोचन तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है. यहां पिंडदान और तर्पण आदि करने का बड़ा महत्व है. शास्त्रों में तो यहां तक कहा गया है कि यदि यहां कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों का पिंडदान और तर्पण करता है तो उसे गया जी से आठ गुणा ज्यादा फल मिलता है. यही कारण है कि यहां बड़ी संख्या में लोग अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण करने आते हैं.
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बदरीनाथ धाम में स्थित कपाल मोचन तीर्थ में पिंडदान और तर्पण का इतना महत्व क्यों है, इसका वर्णन भी शास्त्रों में मिलता है. मान्यता के अनुसार यहां एक बार पिंडदान करने के बाद कहीं और पिंडदान करने की जरूरत नहीं है. कपाल मोचन तीर्थ यानी ब्रह्मकपाल से जुड़ी जो पौराणिक मान्यता है, उसके अनुसार भगवान शिव ने सृष्टि रचयिता भगवान ब्रह्मा का पांचवां सिर काटा था और वो ब्रह्मकपाल में आकर गिरा था. इस तरह से भगवान शिव पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया था. यहां पर ब्रह्मा जी के एक सिर के रूप में एक शिला मौजूद है और उस शिला पर ही तर्पण पिंडदान और अन्य कर्मकांड किए जाते हैं.
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मान्यता के अनुसार, ब्रह्म दोष की हत्या के मुक्ति पाने के लिए भगवान शंकर श्री हरि विष्णु के पास गए थे. भगवान विष्णु ने भगवान शिव को ब्रह्मकपाल में जाकर श्राद्ध करने का कहा था. भगवान विष्णु के बताए अनुसार भगवान शिव ने ब्रह्मकपाल में श्राद्ध किया था, जिसके बाद भगवान शिव को ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति मिली थी. इसके बाद उन्होंने अपने आगे की यात्रा यहां से प्रारंभ की थी.
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क्या कहते है तीर्थ पुरोहित: बद्रीनाथ के पुरोहित और मंदिर समिति के सदस्य आशुतोष डिमरी ने बताया कि बदरीनाथ धाम में भगवान विष्णु का जितना महत्व है, उनता ही महत्व यहां पिंडदान और तर्पण करने का है. यह स्थान अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के लिए महातीर्थ है. यहां पर श्राद्ध तर्पण इत्यादि करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है. कहा तो यहां तक जाता है कि बदरीनाथ धाम में पिंडदान और तर्पण करने के बाद किसी और जगह पिंडदान करने की जरूरत खत्म हो जाती है.