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नवरात्रि पर नंदादेवी मंदिर में भक्तों का लगा तांता, यहां होती है हर मुराद पूरी

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Published : Apr 8, 2019, 12:30 AM IST

Updated : Apr 8, 2019, 7:57 AM IST

कुरुड़ गांव में मां नंदादेवी का मायका माना जाता है. सिद्धपीठ नंदा देवी मंदिर कुरुड़ में मां दुर्गा की स्वयंभू मूर्ति भी है. मां नंदादेवी की दिव्य डोलियां भी इन दिनों मंदिर में ही विद्यमान है. जिसके दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं.

सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर कुरुड़.

चमोलीः चैत्र नवरात्रि शुरू होते ही पूरे देश में विभिन्न मदिरों में भक्तजन पूजा-अर्चना करने पहुंच रहे हैं. इसी क्रम में चमोली के विभिन्न मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. सिद्धपीठ कुरुड़ में स्थित नंदादेवी मंदिर में दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं. यहां पर नवरात्रि के नौ दिनों तक विशेष पूजा-अर्चना होती है. इस मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में देने के लिए जौ भी बोई जाती है.

सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर कुरुड़.


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुरुड़ गांव में मां नंदा देवी का मायका माना जाता है. सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर कुरुड़ में मां दुर्गा की स्वयंभू मूर्ति भी है. मां नंदादेवी की दिव्य डोलियां भी इन दिनों मंदिर में ही विद्यमान है. जिसके दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. मंदिर के पुजारी उमेश गौड़ का कहना है कि कुरुड़ नंदा देवी से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. मुराद पुरी होने पर श्रद्धालु देवी के मंदिर में फिर से पहुंचते हैं.

ये भी पढ़ेंः अजय भट्ट बोले- अकेले पड़े हरीश रावत, समर्थन में नहीं आया कोई स्टार प्रचारक

बता दें कि 12 सालों के अतंराल में आयोजित होने वाली विश्व प्रसिद्ध नंदादेवी राजजात का संचालन भी कुरुड़ मंदिर से होता है. साथ ही हर साल लोकजात का भी आयोजन इसी मंदिर से होता है. इस दौरान कुरुड़ मंदिर में तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है. मेले की अंतिम दिन श्रद्धालु और पुजारी मां नंदा देवी की डोली को कैलाश विदा करने के लिए जाते है. कैलाश यात्रा संपन्न होने के बाद नंदा की डोली को 6 महीने के लिए चमोली के थराली विकासखंड के देवराडा गांव में पूजा-अर्चना के लिए रखा जाता है. देवराडा गांव को मां नंदा देवी का ननिहाल माना जाता है. 6 महीने तक ननिहाल में प्रवास के बाद मां नंदादेवी की डोली जनवरी महीने में कुरुड़ मंदिर में पहुंचाई जाती है. जंहा पर श्रद्धालु मां नंदा के दर्शन करते हैं.

चमोलीः चैत्र नवरात्रि शुरू होते ही पूरे देश में विभिन्न मदिरों में भक्तजन पूजा-अर्चना करने पहुंच रहे हैं. इसी क्रम में चमोली के विभिन्न मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. सिद्धपीठ कुरुड़ में स्थित नंदादेवी मंदिर में दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं. यहां पर नवरात्रि के नौ दिनों तक विशेष पूजा-अर्चना होती है. इस मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में देने के लिए जौ भी बोई जाती है.

सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर कुरुड़.


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुरुड़ गांव में मां नंदा देवी का मायका माना जाता है. सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर कुरुड़ में मां दुर्गा की स्वयंभू मूर्ति भी है. मां नंदादेवी की दिव्य डोलियां भी इन दिनों मंदिर में ही विद्यमान है. जिसके दर्शनों के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. मंदिर के पुजारी उमेश गौड़ का कहना है कि कुरुड़ नंदा देवी से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. मुराद पुरी होने पर श्रद्धालु देवी के मंदिर में फिर से पहुंचते हैं.

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बता दें कि 12 सालों के अतंराल में आयोजित होने वाली विश्व प्रसिद्ध नंदादेवी राजजात का संचालन भी कुरुड़ मंदिर से होता है. साथ ही हर साल लोकजात का भी आयोजन इसी मंदिर से होता है. इस दौरान कुरुड़ मंदिर में तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है. मेले की अंतिम दिन श्रद्धालु और पुजारी मां नंदा देवी की डोली को कैलाश विदा करने के लिए जाते है. कैलाश यात्रा संपन्न होने के बाद नंदा की डोली को 6 महीने के लिए चमोली के थराली विकासखंड के देवराडा गांव में पूजा-अर्चना के लिए रखा जाता है. देवराडा गांव को मां नंदा देवी का ननिहाल माना जाता है. 6 महीने तक ननिहाल में प्रवास के बाद मां नंदादेवी की डोली जनवरी महीने में कुरुड़ मंदिर में पहुंचाई जाती है. जंहा पर श्रद्धालु मां नंदा के दर्शन करते हैं.

Intro:इन दिनों चमोली के मंदिरों में चैत्र नवरात्रो के चलते श्रदालुओ की खासी भीड़ उमड़ रही है ।आज नवरात्रि के दूसरे दिन दिन भी मंदिरों में श्रदालुओ का तांता लगा रहा।लेकिन इन सब के बीच नवरात्रो में खास पहचान रखने वाले सिद्धपीठ कुरुड़ में स्थित नंदादेवी मंदिर में नवरात्रा के 9 दिनों तक विशेष पूजा अर्चना की जाती है ।जिसको लेकर श्रदालुओ में खासा उत्साह रहता है ।


Body:जाहिर है कि चमोली जनपद में स्थित नंदादेवी सिद्धपीठ कुरुड़ को पूरे उत्तराखंड में जाना जाता है ।चमोली जनपद सहित राज्य के कई हिस्सों से श्रदालू माँ नंदादेवी के दर्शनों के लिए कुरुड़ मंदिर पहुंचते है ।नवरात्रो के दिनों में कुरुड़ मंदिर में माँ नंदादेवी की विशेष पूजा की जाती है ।साथ ही मंदिर में श्रदालुओ को प्रसाद के रूप में देने के लिए जौ भी बोई जाती है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कुरुड़ गाँव मे माँ नंदा देवी का मायका बताया जाता है ।सिद्धपीठ नंदादेवी मंदिर कुरुड़ में माँ दुर्गा की स्वयंभू मूर्ति भी है । और साथ ही माँ नंदादेवी की दिव्य डोलिया भी इन दिनों मंदिर में ही विद्यमान है,जिनके दर्शनों के लिए दूर दूर से श्रदालू कुरुड़ मंदिर पहुंचते है ,और माँ नंदादेवी की पूजा करने के बाद मनोकामनाएं मांग कर अपने घरों को जाते है।पुजारी बताते है कि कुरुड़ नंदादेवी से मांगी गई मनोती आवश्य पूर्ण होती है ,और मनोती पूर्ण होने पर श्रदालू देवी का धन्यवाद करने भी कुरुड़ मंदिर पहुंचते है ।

बाईट-उमेश गौड़-पुजारी।
बाईट-श्रदालू।


Conclusion:बताते चले कि 12 वर्षो में आयोजित होने वाली विश्वप्रशिद्ध नंदादेवी राजजात का संचालन भी कुरुड़ मंदिर से किया जाता है साथ ही प्रतिवर्ष लोकजात का भी आयोजन भी कुरुड़ मंदिर से ही होता है ।इस दौरान कुरुड़ मंदिर में 3 दिवसीय मेले का भी आयोजन किया जाता है।मेले की समाप्ति के दिन माँ नंदादेवी की डोली के साथ श्रदालू और पुजारी माँ नंदादेवी को कैलाश विदा करने के लिए जाते है ।और माँ नंदा की कैलाश यात्रा संपन्न होने के बाद नंदा की डोली को 6 माह के लिए चमोली के ही थराली विकासखंड के देवराडा गांव में पूजा अर्चना के लिए रखा जाता है।देवराडा गांव को माँ नंदादेवी का ननिहाल बताया गया है ।6 माह तक ननिहाल में प्रवास के बाद माँ नंदादेवी की डोली जनवरी माह में कुरुड़ मंदिर में पहुंचाई जाती है ,जंहा कि श्रदालू नंदा के दर्शन करते है ।
Last Updated : Apr 8, 2019, 7:57 AM IST
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