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मां नंदा देवी की लोकजात हुई शुरू, नम आंखों से कैलाश के लिए विदा हुई डोली

मां नंदा देवी की लोकजात शुरू हो गई है. मां नंदा की डोली कुरुड़ मंदिर से सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ कैलाश के लिए विदा हो चुकी है. वहीं, मां नंदा के मायके में आयोजित तीन दिवसीय मेले का समापन भी हो गया है.

मां नंदा देवी की लोकजात हुई शुरू
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Published : Aug 23, 2019, 9:35 PM IST

चमोली: ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व को समेटे हुए मां नंदा देवी की लोकजात यात्रा शुरू हो गई है. शुक्रवार को मां नंदा की डोली कुरुड़ मंदिर से सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ कैलाश के लिए विदा हुई. 5 सितम्बर को नंदा सप्तमी के दिन वैदनी कुंड और बालपाटा में नंदा देवी लोकजात संपन्न होगी. वहीं, मां नंदा के मायके विकासखंड घाट के कुरुड़ गांव में आयोजित तीन दिवसीय मेले का समापन भी हो गया है.

हिमालयी महाकुंभ के नाम से प्रसिद्ध नंदादेवी लोकजात की यात्रा 12 सालों में आयोजित की जाती है. जबकि हर साल मां नंदा के मायके कुरुड़ मंदिर से नंदा लोकजात आयोजित की जाती है. जिसमें मां नंदा की डोली को नम आंखों से कैलाश के लिए विदा किया जाता है. कैलाश में मां नंदा का ससुराल है और कुरुड़ गांव में मां नंदा का मायका.

मां नंदा देवी की लोकजात हुई शुरू.

पढ़ें: जल्द हाईटेक होगा दून रेलवे स्टेशन, पूरी हुई सभी औपचारिकताएं

नंदा देवी लोकजात के दौरान सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कई मील पैदल यात्रा कर मां नंदा की डोली को विदा करने वैदनी कुंड और बालपाटा पहुंचते हैं. जहां नंदा सप्तमी के दिन वैदनी कुंड और बालपाटा बुग्याल में नंदादेवी की डोलियों की पूजा करने के बाद लोकजात संपन्न होती है. लोकजात संपन्न होने के बाद 6 माह के लिए मां नंदा की डोली को थराली विकासखंड स्थित मां नंदा के नैनिहाल देवराडा गांव में रखा जाता है.

मान्यता है कि इस यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामनाएं पूरी होती है. यह यात्रा दुर्गम रास्तों से होकर गुजरती है. जिसमें क्षेत्र के हजारो श्रद्धालु शामिल होते हैं. जब नंदादेवी लोकजात विभिन्न पड़ावों से होकर गुजरती है तो स्थानीय लोग हर्ष और उल्लास के साथ मां नंदा का स्वागत करते हैं. इस मौके पर स्थानीय महिलाओं पर देवता भी अवतरित होते हैं, जो संपूर्ण वातावरण को भक्तिमय बनाता है.

चमोली: ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व को समेटे हुए मां नंदा देवी की लोकजात यात्रा शुरू हो गई है. शुक्रवार को मां नंदा की डोली कुरुड़ मंदिर से सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ कैलाश के लिए विदा हुई. 5 सितम्बर को नंदा सप्तमी के दिन वैदनी कुंड और बालपाटा में नंदा देवी लोकजात संपन्न होगी. वहीं, मां नंदा के मायके विकासखंड घाट के कुरुड़ गांव में आयोजित तीन दिवसीय मेले का समापन भी हो गया है.

हिमालयी महाकुंभ के नाम से प्रसिद्ध नंदादेवी लोकजात की यात्रा 12 सालों में आयोजित की जाती है. जबकि हर साल मां नंदा के मायके कुरुड़ मंदिर से नंदा लोकजात आयोजित की जाती है. जिसमें मां नंदा की डोली को नम आंखों से कैलाश के लिए विदा किया जाता है. कैलाश में मां नंदा का ससुराल है और कुरुड़ गांव में मां नंदा का मायका.

मां नंदा देवी की लोकजात हुई शुरू.

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नंदा देवी लोकजात के दौरान सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कई मील पैदल यात्रा कर मां नंदा की डोली को विदा करने वैदनी कुंड और बालपाटा पहुंचते हैं. जहां नंदा सप्तमी के दिन वैदनी कुंड और बालपाटा बुग्याल में नंदादेवी की डोलियों की पूजा करने के बाद लोकजात संपन्न होती है. लोकजात संपन्न होने के बाद 6 माह के लिए मां नंदा की डोली को थराली विकासखंड स्थित मां नंदा के नैनिहाल देवराडा गांव में रखा जाता है.

मान्यता है कि इस यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामनाएं पूरी होती है. यह यात्रा दुर्गम रास्तों से होकर गुजरती है. जिसमें क्षेत्र के हजारो श्रद्धालु शामिल होते हैं. जब नंदादेवी लोकजात विभिन्न पड़ावों से होकर गुजरती है तो स्थानीय लोग हर्ष और उल्लास के साथ मां नंदा का स्वागत करते हैं. इस मौके पर स्थानीय महिलाओं पर देवता भी अवतरित होते हैं, जो संपूर्ण वातावरण को भक्तिमय बनाता है.

Intro:ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व को समेटे हुए मां नंदा देवी की लोकजात शुरू हो गई है। पिछले तीन दिनों से मां नंदा के मायके विकासखंड घाट के कुरुड़ गांव में आयोजित तीन दिवसीय मेले के समापन के साथ ही आज माँ नंदा की डोली कुरुड़ मंदिर से सैकड़ो श्रदालुओं के साथ कैलाश के लिए विदा हो चुकी है ।5 सितम्बर को नंदा सप्तमी के दिन वैदनी कुंड और बालपाटा में नंदादेवी लोकजात समपन्न होगी।

विस्वल बाईट मेल से भेजा है।


Body:हिमालयी महाकुम्भ के नाम से विख्यात नंदादेवी राजजात की यात्रा प्रत्येक 12 वर्षो में आयोजित होती है ।जबकि प्रत्येक वर्ष माँ नंदा के मायके कुरुड़ मंदिर से नंदा लोकजात आयोजित की जाती है। जसमे कि माँ नंदा की डोली को नम आंखों से कैलाश के लिए विदा किया जाता है ।कैलाश में माँ नंदा का ससुराल है,और कुरुड़ गांव में माँ नंदा का मायका।नंदादेवी लोकजात के दौरान सेकड़ो की संख्या में श्रदालू कई मील पैदल यात्रा कर माँ नंदा की डोली को विदा करने वैदनी कुंड और बालपाटा पहुंचते हैं,जंहा पहुंचने के बाद नंदा सप्तमी के दिन वैदनी कुंड और बालपाटा बुग्याल में नंदादेवी की डोलियों की पूजा करने के बाद लोकजात सम्पन्न होती है।लोकजात सम्पन्न होने के बाद 6 माह के लिए माँ नंदा की डोली को थराली विकासखंड स्थित मां नंदा के नैनिहाल देवराडा गांव में रखा जाता है ,6 माह तक माँ नंदा की पूजा देवराडा गांव में ही कुरुड़ गांव के गौड़ ब्राह्मणों के द्वारा की जाती है।

बाईट-मंसाराम गौड़-पुजारी
बाईट-कन्हैया प्रसाद गौड़-पुजारी।
बाईट-श्रदालू।


Conclusion:मान्यता है कि इस इस यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामनाएं पूर्ण होती है। यह यात्रा दुर्गम रास्तों से होकर पैदल गुजरती है ।जिसमें क्षेत्र के हजारो श्रद्धालु शामिल होते हैं । नंदा देवी लोकजात पहाड़ के कठिन जीवन शैली का आइना है तो स्थानीय लोगों का प्रकृति व देवताओं के प्रति आघात प्यार को भी दर्शाता है। जब नंदादेवी लोकजात विभिन्न पड़ावों से होकर गुजरती है तो स्थानीय लोग हर्ष और उल्लास के साथ माँ नंदा का स्वागत करते है। इस अवसर पर स्थानीय महिलाओं पर देवता भी अवतरित होती है जो संपूर्ण वातावरण को भक्तिमयी बनाता है। हर कोई इस घड़ी के साक्षी बनने के लिए आतुर दिखता है।
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