चमोली: ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व को समेटे हुए मां नंदा देवी की लोकजात यात्रा शुरू हो गई है. शुक्रवार को मां नंदा की डोली कुरुड़ मंदिर से सैकड़ों श्रद्धालुओं के साथ कैलाश के लिए विदा हुई. 5 सितम्बर को नंदा सप्तमी के दिन वैदनी कुंड और बालपाटा में नंदा देवी लोकजात संपन्न होगी. वहीं, मां नंदा के मायके विकासखंड घाट के कुरुड़ गांव में आयोजित तीन दिवसीय मेले का समापन भी हो गया है.
हिमालयी महाकुंभ के नाम से प्रसिद्ध नंदादेवी लोकजात की यात्रा 12 सालों में आयोजित की जाती है. जबकि हर साल मां नंदा के मायके कुरुड़ मंदिर से नंदा लोकजात आयोजित की जाती है. जिसमें मां नंदा की डोली को नम आंखों से कैलाश के लिए विदा किया जाता है. कैलाश में मां नंदा का ससुराल है और कुरुड़ गांव में मां नंदा का मायका.
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नंदा देवी लोकजात के दौरान सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कई मील पैदल यात्रा कर मां नंदा की डोली को विदा करने वैदनी कुंड और बालपाटा पहुंचते हैं. जहां नंदा सप्तमी के दिन वैदनी कुंड और बालपाटा बुग्याल में नंदादेवी की डोलियों की पूजा करने के बाद लोकजात संपन्न होती है. लोकजात संपन्न होने के बाद 6 माह के लिए मां नंदा की डोली को थराली विकासखंड स्थित मां नंदा के नैनिहाल देवराडा गांव में रखा जाता है.
मान्यता है कि इस यात्रा में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामनाएं पूरी होती है. यह यात्रा दुर्गम रास्तों से होकर गुजरती है. जिसमें क्षेत्र के हजारो श्रद्धालु शामिल होते हैं. जब नंदादेवी लोकजात विभिन्न पड़ावों से होकर गुजरती है तो स्थानीय लोग हर्ष और उल्लास के साथ मां नंदा का स्वागत करते हैं. इस मौके पर स्थानीय महिलाओं पर देवता भी अवतरित होते हैं, जो संपूर्ण वातावरण को भक्तिमय बनाता है.