चमोलीः वामन द्वादशी के मौके पर अंतिम गांव माणा के पास स्थित मंदिर में माता मूर्ति मेला का संपन्न हुआ. माता मूर्ति मेले में भगवान नारायण का अपनी मां मूर्ति से भाव-विभोर कर देने वाला मिलन हुआ. बदरी विशाल और मातामूर्ति की जयकारे के साथ डोली रवाना हुई. इस पावन क्षण के सैकड़ों लोग साक्षी बने. वहीं, अब बदरीनाथ के मुख्य पुजारी और रावल अलकनंदा पार आ जा सकेंगे.
परंपरा के अनुसार माता मूर्ति मेला संपन्न होने के बाद अब बदरीनाथ धाम के मुख्य पुजारी और रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी धाम में कहीं भी आवाजाही कर सकते हैं. भाद्रपद शुक्ल द्वादशी पर हर साल माणा गांव स्थित माता मूर्ति मंदिर में भव्य मेले का आयोजन होता है. मंगलवार को भी सुबह 9.30 बजे बदरीनाथ मंदिर में भगवान नारायण को दोपहर का राजभोग लगाने के बाद उद्धवजी को गर्भगृह से बाहर निकाला गया. ठीक दस बजे मंदिर के कपाट बंद किए गए और फिर भगवान के उत्सव विग्रह उद्धवजी की डोली माता मूर्ति मंदिर के लिए रवाना हुई.
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इस दौरान भगवान नारायण की जय जयकार से संपूर्ण बदरीशपुरी नारायणमय हो गई. धाम के मुख्य पुजारी और रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी के नेतृत्व में उत्सव डोली यात्रा नाग-नागिन, गजकोटी और इंद्रधारा होते हुए तीन किमी की पैदल दूरी तय कर माणा गांवा स्थित माता मूर्ति मंदिर पहुंची. यहां पर रावल ने माता मूर्ति की पूजा-अर्चना की और फिर भगवान को दोपहर का राजभोग लगाया गया. मंदिर में जब भगवान नारायण का मां मूर्ति से भावपूर्ण मिलन हुआ तो भक्तों की आंखें भी छलछला आई.
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वहीं, स्थानीय लोगों ने सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के माध्यम से लोकजीवन के रंग बिखेरे. माणा गांव की महिलाओं ने झुमेलो और पौणा नृत्य का मनोहारी झांकी प्रस्तुत की. भगवान के अपनी मां से मिलन के बाद अब धाम के रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी नर-नारायण पर्वत समेत संपूर्ण बदरीशपुरी में कहीं भी आ-जा सकते हैं. इतना ही नहीं वो अलकनंदा नदी को भी पार कर सकते हैं.
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दरअसल, परंपरा के अनुसार धाम के कपाट खुलने से लेकर माता मूर्ति मेले तक रावल मंदिर से अपने आवास और तप्त कुंड परिसर तक ही जा सकते हैं. इसके अलावा उनके लिए अन्य किसी भी क्षेत्र में जाना निषेध है. भगवान नारायण और माता मूर्ति के मिलने के बाद मुख्य पुजारी और रावल को आने जाने की अनुमति मिल गई है.