चमोली: विश्व विख्यात बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने की तैयारियां शुरू हो गई हैं. भगवान बदरीविशाल की मूर्ति के महाभिषेक के लिए तिल का तेल उपयोग करने की पौराणिक धार्मिक परंपरा है. तिलों का तेल पिरोने के बाद तेल को एक घड़े में भरा जाता है, जिसको गाडू घड़ा कहा जाता है. आज डिमरी पंडितों द्वारा गाडू घड़े को कर्णप्रयाग स्थित उमा मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद डिम्मर गांव स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर में रखा गया. यहां 6 दिनों तक श्रदालु इसका दर्शन कर सकेंगे. जिसके बाद 12 मई को इसे बदरीनाथ धाम के लिए रवाना किया जाएगा.
गाडू घड़े को लेकर लोगों की आस्था होती है. जिस जिस मार्ग से गाडू घड़े की शोभायात्रा गुजरती है. वहां श्रद्धालुओं का घड़े के दर्शन के लिए भीड़ उमड़ती है. टिहरी राजदरबार से 5 मई को गाडू घड़ा डिम्मर गांव के पंडितों के सानिध्य में भगवान बदरीनाथ के लिए भेजा गया. भगवान बदरीविशाल के महाभिषेक में प्रयुक्त होने वाले तिल के तेल को राजदरबार की सुहागिन महिलाओं द्वारा विशेष पोशाक पहनकर पिरोया जाता है.
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लॉकडाउन के चलते बड़ी सादगी के साथ गाडू घड़े को आज पूजा अर्चना के लिए कर्णप्रयाग स्थित उमा देवी मंदिर पहुंचाया गया. यहां पुजारियों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पूजा अर्चना की. वहीं, 12 मई को गाडू घड़े को नृसिंह मंदिर पहुंचाया जाएगा औऱ 13 मई को गाडू घड़े को लेकर पुजारी योग ध्यान बदरी पांडुकेश्वर पहुंचेंगे.
इसके साथ ही जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर से आदिगुरु शंकराचार्य की गद्दी भी पांडुकेश्वर पहुंचेगी. 14 मई को गाडू घड़े के साथ साथ शंकराचार्य की गद्दी व भगवान बदरीनाथ की उत्सवमूर्ति, उद्धव जी और कुबेर जी की डोली भी पांडुकेश्वर से बदरीनाथ धाम पहुंचेगी. जिसके बाद 15 मई को सुबह ब्रह्ममुहूर्त पर 4:30 बजे भगवान बदरीनाथ धाम के कपाट खोले जाएंगे.