चमोली: जोशीमठ ब्लॉक की धरती रैणी गांव में चिपको आंदोलन के 48 वर्ष पूरे होने पर 49वीं वर्षगांठ बड़े ही धूमधाम से मनाई गई. इस दौरान गांव की महिलाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए. पिछले वर्ष 7 फरवरी 2021 को आई प्राकृतिक आपदा के कारण चिपको आंदोलन की 48वीं वर्षगांठ नहीं मनाई गई थी. आपदा में चिपको आंदोलन की जननी गौरा देवी की स्मृति स्थल को भी भारी नुकसान पहुंचा था. जिसके बाद गौरा देवी की मूर्ति को हटाकर दूसरे स्थान पर रखा गया था. आज एक बार फिर से गौरा देवी की मूर्ति को रैणी गांव में पुनः स्थापित कर दिया गया है.
गोरा देवी की सहेलियों का मिला सम्मान: चिपको आंदोलन के 48 वर्ष पूरे होने पर गौरा देवी की 6 सहेलियों को भी सम्मानित किया गया. ये वही 6 सहेलियां हैं, जिन्होंने चिपको आंदोलन में गौरा देवी के साथ पेड़ों से चिपक कर अपने जंगल की रक्षा की थी. इस दौरान गौरा देवी की सहेलियों ने एक गीत के माध्यम से भी अपने जंगल को बचाने का प्रयास किया था. जिसे आज भी गुनगुना कर गौरा देवी को उनकी सहेलियां याद करती हैं.
चिपको आंदोलन की वर्षगांठ पर कार्यक्रम: चिपको आंदोलन की वर्षगांठ के कार्यक्रम का आयोजन नीति माणा विकास समिति द्वारा कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए किया गया. ग्रामीणों ने बढ़ चढ़कर इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया. इस दौरान पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को भी सम्मानित किया गया. साथ ही गांव के लोगों ने पर्यावरण को जीवित रखने का संकल्प भी लिया.
चिपको आंदोलन का इतिहास: गौरतलब है कि यह आंदोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जिले के छोटे से रैणी गांव से 26 मार्च यानि आज ही के दिन से साल 1973 में शुरू हुई थी. साल 1972 में प्रदेश के पहाड़ी जिलों में जंगलों की अंधाधुंध कटाई का सिलसिला शुरू हो चुका था. लगातार पेड़ों के अवैध कटान से आहत होकर गौरा देवी के नेतृत्व में ग्रामीणों ने आंदोलन तेज कर दिया था. बंदूकों की परवाह किए बिना ही उन्होंने पेड़ों को घेर लिया और पूरी रात पेड़ों से चिपकी रहीं. अगले दिन यह खबर आग की तरह फैल गई और आसपास के गांवों में पेड़ों को बचाने के लिए लोग पेड़ों से चिपकने लगे. चार दिन के टकराव के बाद पेड़ काटने वालों को अपने कदम पीछे खींचने पड़े.
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पेड़ कटान का ग्रामीणों ने किया विरोध: इस आंदोलन में महिला, बच्चे और पुरुषों ने पेड़ों से लिपटकर अवैध कटान का पुरजोर विरोध किया था. गौरा देवी वो शख्सियत हैं, जिनके प्रयासों से ही चिपको आंदोलन को विश्व पटल पर जगह मिल पाई. इस आंदोलन में प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविंद सिंह रावत, चंडीप्रसाद भट्ट समेत कई लोग भी शामिल थे.
आंदोलन के बाद वन संरक्षण अधिनियम बना: वहीं, 1973 में शुरू हुए इस आंदोलन की गूंज सरकार तक पहुंच गई थी. इस आंदोलन का असर उस दौर में केंद्र की राजनीति में पर्यावरण का एक एजेंडा बना. आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया. इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वन की रक्षा करना और पर्यावरण को जीवित करना था. चिपको आंदोलन के चलते ही साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक विधेयक बनाया था. जिसके तहत देश के सभी हिमालयी क्षेत्रों में वनों के काटने पर 15 सालों का प्रतिबंध लगा दिया गया था. इस आंदोलन के बलबूते महिलाओं को एक अलग पहचान मिल पाई थी. महिलाओं और पुरुषों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की थी.