देहरादून: प्रदेश के प्रशासनिक अधिकारी आज भी केंद्रीय योजनाओं की फाइलों को लटकाने में लगे हुए हैं. जिसके कारण राज्य में केंद्र पोषित योजनाओं के परवान चढ़ने में लगातार देरी हो रही है. हाल में नीति आयोग द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में अधिकारियों की लापरवाही उजागर हुई है. नीति आयोग ने उत्तराखंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को लेकर एक रिपोर्ट पेश की है. जिसमें अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार अधिकारी केंद्रीय योजनाओं में फाइलों को कछुए की गति से आगे बढ़ातें हैं जिसके कारण विकास कार्यों पर असर पड़ता है.
पढ़ें-गढ़वाल परिक्षेत्र के 46 उपनिरीक्षकों के तबादले, आईजी ने 7 जुलाई तक दिए ज्वाइनिंग के आदेश
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की योजनाओं को पलीता लगाने में अधिकारी कोई कसर नहीं छोड़ रहे. ऐसा हम नहीं बल्कि नीति आयोग की रिपोर्ट बयां कर रही है. बताया जा रहा है कि नीति आयोग की रिपोर्ट में एनएचएम की केंद्र पोषित योजनाओं की फाइलों को देरी से आगे बढ़ाने की बात कही गई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिकारी केंद्रीय योजनाओं की फाइलों को तीन-तीन महीनों बाद आगे बढ़ाते हैं. जिसके कारण प्रदेश में विकास की योजनाएं पिछड़ रही हैं.
पढ़ें-गंगा में बह रही बोतल पकड़ने के चक्कर में लापता हुए हरियाणा के दो सगे भाई, तलाश में जुटी पुलिस
बता दें कि उत्तराखंड में एनएचएम के तहत केंद्र पोषित योजनाओं में करीब 400 करोड़ रुपए हर साल मिलते हैं. ऐसे में योजनाओं के लिए बजट को जल्द से जल्द खर्च करने की बजाय अधिकारी फाइलों को समय से आगे ही नहीं बढ़ाते. जो कि अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है. दरअसल केंद्रीय योजनाओं के लिए फंड जारी करने का औसत समय 27 दिन का होता है. लेकिन प्रदेश में अधिकारी 3 महीनों तक फाइलें नहीं बढ़ातें हैं. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अधिकारी किस तरह से काम करते हैं.
पढ़ें-पिथौरागढ़ हवाई सेवा: DGCA ने दी अनुमति, फिर भी एविएशन कंपनी नहीं दिखा रही दिलचस्पी
केंद्रीय योजनाओं के लिए फंड जारी करने की स्थिति को देखा जाये तो धीरे-धीरे उत्तराखंड की परफॉर्मेंस खराब हो रही है. राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखंड केंद्रीय योजनाएं धरातल पर लाने की दिशा में 16वें स्थान पर पहुंच गया है. जिसे अच्छा किसी भी तौर पर नहीं कहा जा सकता है.