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1965 और 1971 की लड़ाई में दून के इन 3 जांबाज पायलटों ने पाक को दिया था मुंहतोड़ जवाब, सरकार ने भी किया वीरता को सलाम

एयर स्ट्राइक से पहले भी 1947, 1965, 1971 और 1999 की लड़़ाई में भारतीय वायुसेना ने अपना लोहा मनवाया है. जिसमें 1965 और 1971 के युद्ध में देहरादून के तीन जांबाजों के किस्से खूब सुनने को मिलते हैं.

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Published : Mar 2, 2019, 6:19 PM IST

Updated : Mar 2, 2019, 7:54 PM IST

1965 की लड़ाई में जांबाजों का पराक्रम

देहरादून: एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के जवाबी हमले में भारतीय वायुसेना के मिग-21 ने पाक के F-16 को मार गिराया. ये कोई पहला मौका नहीं है जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को सबक सिखाया हो. इससे पहले भी 1947, 1965, 1971 और 1999 की लड़़ाई में भारतीय वायुसेना ने अपना लोहा मनवाया है. जिसमें 1965 और 1971 के युद्ध में देहरादून के तीन जांबाजों के किस्से खूब सुनने को मिलते हैं. जिन्हें भारत सरकार ने वीर चक्र से सम्मानित किया.

जब विंग कमांडर सुरपति ने उड़ाए पाकिस्तानी सेना के टैंक
विंग कमांडर सुरपति भट्टाचार्य पश्चिमी सेक्टर में फाइटर स्क्वाड्रन के फ्लाइंग कमांडर थे. 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान उन्होंने 12 सितंबर 1965 को स्क्वाड्रन की कमान संभाली थी. इस दौरान वो दुश्मन के टैंक, बख्तरबंद वाहनों और पाक सेना की एकाग्रता को नष्ट करने में सफल रहे. इसके चलते 12 सितंबर 1965 को उन्हें वीर चक्र से नवाजा गया.

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1965 की लड़ाई में जांबाजों का पराक्रम

कलीकुंडा हवाई क्षेत्र में पायलट सुबोध ने दिखाया अपना पराक्रम
वहीं विंग कमांडर सुबोध चन्द ममंगाई ने भी 10 फरवरी 1962 को वायुसेना में कमीशन हासिल की. इसके बाद 1965 युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने कलीकुंडा हवाई क्षेत्र में 6 फाइटर प्लेन से हमला किया. इस पर तुरंत कार्रवाई करते हुए जांबाज सुबोध ने उनको मुंहतोड़ जवाब दिया. उनके इस अद्मय साहस और पराक्रम के चलते उन्हें 7 सितंबर 1965 को वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

फ्लाइट लेफ्टिनेंट विनोद ने 1971 में दिखाया पराक्रम
वहीं फ्लाइट लेफ्टिनेंट विनोद कुमार नेब ने 4 दिसंबर 1971 को कुर्मी एयर फील्ड पर हवाई हमला किया. इस दौरान उन्होंने दुश्मन के कई फाइटर जहाजों को नेस्तोनाबूत कर दिया. उनकी इस वीरता के लिए 1972 में उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

इन तीनों जवानों की बहादूरी के किस्से लोगों तक पहुंचाने के लिए दून रेलवे स्टेशन पर एक शिलापट्ट लगा है. जिसको देखकर हर देशवासी फक्र महसूस करता है.

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देहरादून: एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान के जवाबी हमले में भारतीय वायुसेना के मिग-21 ने पाक के F-16 को मार गिराया. ये कोई पहला मौका नहीं है जब भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान को सबक सिखाया हो. इससे पहले भी 1947, 1965, 1971 और 1999 की लड़़ाई में भारतीय वायुसेना ने अपना लोहा मनवाया है. जिसमें 1965 और 1971 के युद्ध में देहरादून के तीन जांबाजों के किस्से खूब सुनने को मिलते हैं. जिन्हें भारत सरकार ने वीर चक्र से सम्मानित किया.

जब विंग कमांडर सुरपति ने उड़ाए पाकिस्तानी सेना के टैंक
विंग कमांडर सुरपति भट्टाचार्य पश्चिमी सेक्टर में फाइटर स्क्वाड्रन के फ्लाइंग कमांडर थे. 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान उन्होंने 12 सितंबर 1965 को स्क्वाड्रन की कमान संभाली थी. इस दौरान वो दुश्मन के टैंक, बख्तरबंद वाहनों और पाक सेना की एकाग्रता को नष्ट करने में सफल रहे. इसके चलते 12 सितंबर 1965 को उन्हें वीर चक्र से नवाजा गया.

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1965 की लड़ाई में जांबाजों का पराक्रम

कलीकुंडा हवाई क्षेत्र में पायलट सुबोध ने दिखाया अपना पराक्रम
वहीं विंग कमांडर सुबोध चन्द ममंगाई ने भी 10 फरवरी 1962 को वायुसेना में कमीशन हासिल की. इसके बाद 1965 युद्ध के दौरान पाकिस्तान ने कलीकुंडा हवाई क्षेत्र में 6 फाइटर प्लेन से हमला किया. इस पर तुरंत कार्रवाई करते हुए जांबाज सुबोध ने उनको मुंहतोड़ जवाब दिया. उनके इस अद्मय साहस और पराक्रम के चलते उन्हें 7 सितंबर 1965 को वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

फ्लाइट लेफ्टिनेंट विनोद ने 1971 में दिखाया पराक्रम
वहीं फ्लाइट लेफ्टिनेंट विनोद कुमार नेब ने 4 दिसंबर 1971 को कुर्मी एयर फील्ड पर हवाई हमला किया. इस दौरान उन्होंने दुश्मन के कई फाइटर जहाजों को नेस्तोनाबूत कर दिया. उनकी इस वीरता के लिए 1972 में उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया.

इन तीनों जवानों की बहादूरी के किस्से लोगों तक पहुंचाने के लिए दून रेलवे स्टेशन पर एक शिलापट्ट लगा है. जिसको देखकर हर देशवासी फक्र महसूस करता है.

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Intro:एंकर- आज भारतीय वायु सेना के शौर्य को पूरा देश नमन कर रहा है। भारतीय सेना का इस पराक्रम की गाथा पुरानी है। भारतीय वायु सेना से दून का पुराना नाता रहा है जिसका प्रमाण आज भी देहरादून के रेलवे स्टेशन पर मौजूद हैं।


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आज भारतीय सेना ने अपने शौर्य और पराक्रम से देश का गौरव बढ़ाया है तो देहरादून की बात करें तो वीर चक्र से सम्मानित दून निवासी विंग कमांडर सुरपति भट्टाचार्य कमांडेंट हसनैन लेफ्टिनेंट विनोद कुमार ने और विंग कमांडर सुबह चंगाई भी एयरपोर्ट में रखकर 54 साल पहले 1965 की लड़ाई में पाकिस्तान को सबक सिखा चुके हैं। देहरादून के रेलवे स्टेशन पर लगा इन इन तीनों वीरों का शिलापट्ट आज भी उनकी बहादुरी के किस्से याद दिलाता है।दून का सेना से बहुत पुराना नाता रहा है इसी कारण जून को सेना का गढ़ माना जाता है। एयरफोर्स के जांबाजों का जब भी नाम लिया जाता है तो 1965 में दुश्मन देश के छक्के छुड़ाने वाले निवासी वीर सैनिकों का जिक्र जरूर होता है।

विंग कमांडर सुरपति भट्टाचार्य पश्चिमी सेक्टर में एक ऑपरेशनल फाइटर स्कोडर्न के फ्लाइंग कमांडर थे। सन 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में उन्होंने 12 सितंबर 1965 को स्क्वाडर्न की कमान संभाली थी। इस दौरान वो दुश्मन के टैंक, बख्तरबंद वाहनों और सेना की एकाग्रता को नष्ट करने में सफल रहे। इसके चलते 12 सितंबर 1965 को वन्हें वीर चक्र देकर सम्मानित किया गया।

विंग कमांडर सुबोध चन्द मंगाई को भी 10 फरवरी 1962 में वायु सेना में कमीशन किया गया। सन 1965 में सितंबर माह में पाकिस्तान के कलीकुंडा हवाई क्षेत्र में छह कृपाण जेट विमान से हमला किया गया तो फ़्लाइंग ऑफिसर सुबोध ममगाई ने डटकर सामना किया था । वही पूरे युद्ध में अद्भुत वीरता साहस और पराक्रम दिखाने के चलते 7 सितंबर 1965 को उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

इसके साथ ही 4 दिसंबर 1971 के युद्ध में ढाका के परिसर युद्ध को ढाका के परिसर में कुर्मी टोला एयर फील्ड पर हवाई हमला में दुश्मन के वायुयान का सामना कर मार गिराने और पूरे ऑपरेशन में अदम साहस शौर्य और कुशलता परिचय देने के लिए 1972 में उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया

तीनों जवानों के बहादुरी की मिसाल आज भी गर्व से पूरे देश में दी जाती है वही ढूंढ रेलवे स्टेशन में अनाजों के नाम का शिला पक जा बाजो के पराक्रम को दर्शाता है



Conclusion:
Last Updated : Mar 2, 2019, 7:54 PM IST
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