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निशंक के राजनीतिक करियर से जुड़ी हैं कुछ खट्टी यादें, सीएम पद से देना पड़ा था इस्तीफा - देहरादून न्यूज

हरिद्वार लोकसभा सीट से दूसरी बार सासंद बने रमेश पोखरियाल निशंक का सियासी कद में ऐसे कई पायदान जुड़े हैं, जिन्हें चढ़ने के बाद आज वह मोदी कैबिनेट में शामिल हुए हैं. तो वहीं उनके इस राजनैतिक सफरनामे में कुछ खट्टी यादें भी जुड़ी हैं.

डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक
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Published : May 30, 2019, 7:49 PM IST

देहरादूनः केंद्र में पीएम मोदी की कैबिनेट पूरी तरह से तैयार है. उत्तराखंड से डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को भी मंत्रिमंडल में जगह मिली है. हरिद्वार लोकसभा सीट से दूसरी बार सासंद बने रमेश पोखरियाल निशंक का सियासी कद में ऐसे कई पायदान जुड़े हैं, जिन्हें चढ़ने के बाद आज वह मोदी कैबिनेट में शामिल हुए हैं. तो वहीं उनके इस राजनैतिक सफरनामे में कुछ खट्टी यादें भी जुड़ी हैं. ऐसी ही निशंक के बतौर सीएम एक खट्टी याद 2011 से जुड़ी है, जहां उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था. क्या है पूरा वाकिया पढ़िए.

उत्तराखंड से डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को भी मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली है.

साल 1991 में कर्णप्रयाग विधानसभा से बतौर विधायक राजनीति में आने वाले डॉ. रमेश पोखरियाल निंशक का राजनीतिक कद आज इतना ऊंचा हो गया है कि उनके अनुभव और कार्यशैली का डंका केंद्र में भी बजने लगा है.

गुरुवार को सुबह से ही मोदी कैबिनेट में निशंक को जगह मिलने की खबरों ने देखते ही देखते आग पकड़ ली जिसके बाद उनके सियासी कद में इसे एक और बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन निंशक के इस सफरनामे में कुछ खट्टी यादें भी जुड़ी हुई हैं.

ये वाकया साल 2007 से 2012 तक की भाजपा सरकार से जुड़ा है, जहां 2009 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के प्रदेश में खराब प्रदर्शन के चलते मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी को हटाकर रमेश पोखरियाल पर हाईकमान ने भरोसा जताया था,

लेकिन अफसोस कि आलाकमान के इस भरोसे को निशंक ज्यादा समय बरकरार नहीं रख पाये और 2011 में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले निशंक को इस्तीफा देना पड़ा और एक बार फिर बीसी खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया गया.

यह भी पढ़ेंः निशंक ने संसद में बनाया था नया रिकॉर्ड, देशभर के सांसदों में सबसे ऊपर

बताया जाता है कि निंशक के मुख्यमंत्री रहते सरकार पर घोटालों के काफी आरोप लगे, जिनमें से कुंभ घोटाले ने निशंक को सबसे ज्यादा परेशान किया था, लेकिन निशंक पर किसी तरह के आरोप सिद्ध नहीं हो पाये. पर पार्टी के दबाव के चलते उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी.

वहीं राजनीतिक जानकारों के अनुसार निशंक को सीएम पद से हटाने के पीछे पार्टी के आंतरिक सर्वे की एक रिपोर्ट भी थी. जिसमें निशंक के रहते आने वाले 2012 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को भारी नुकसान बताया गया था.

जिसको दखते हुए विधानसभा चुनावों से ठीक पहले नुकसान को रोकने के लिए निशंक को हटाकर बीसी खंडूड़ी को एक बार फिर प्रोजेक्ट किया गया, लेकिन अफसोस उसके बावजूद भी पार्टी की हालत 2012 के विधानसभा चुनावों में कमजोर ही रही और राज्य में कांग्रेस की सरकार आयी.

देहरादूनः केंद्र में पीएम मोदी की कैबिनेट पूरी तरह से तैयार है. उत्तराखंड से डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को भी मंत्रिमंडल में जगह मिली है. हरिद्वार लोकसभा सीट से दूसरी बार सासंद बने रमेश पोखरियाल निशंक का सियासी कद में ऐसे कई पायदान जुड़े हैं, जिन्हें चढ़ने के बाद आज वह मोदी कैबिनेट में शामिल हुए हैं. तो वहीं उनके इस राजनैतिक सफरनामे में कुछ खट्टी यादें भी जुड़ी हैं. ऐसी ही निशंक के बतौर सीएम एक खट्टी याद 2011 से जुड़ी है, जहां उन्हें सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था. क्या है पूरा वाकिया पढ़िए.

उत्तराखंड से डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक को भी मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली है.

साल 1991 में कर्णप्रयाग विधानसभा से बतौर विधायक राजनीति में आने वाले डॉ. रमेश पोखरियाल निंशक का राजनीतिक कद आज इतना ऊंचा हो गया है कि उनके अनुभव और कार्यशैली का डंका केंद्र में भी बजने लगा है.

गुरुवार को सुबह से ही मोदी कैबिनेट में निशंक को जगह मिलने की खबरों ने देखते ही देखते आग पकड़ ली जिसके बाद उनके सियासी कद में इसे एक और बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन निंशक के इस सफरनामे में कुछ खट्टी यादें भी जुड़ी हुई हैं.

ये वाकया साल 2007 से 2012 तक की भाजपा सरकार से जुड़ा है, जहां 2009 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के प्रदेश में खराब प्रदर्शन के चलते मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी को हटाकर रमेश पोखरियाल पर हाईकमान ने भरोसा जताया था,

लेकिन अफसोस कि आलाकमान के इस भरोसे को निशंक ज्यादा समय बरकरार नहीं रख पाये और 2011 में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले निशंक को इस्तीफा देना पड़ा और एक बार फिर बीसी खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया गया.

यह भी पढ़ेंः निशंक ने संसद में बनाया था नया रिकॉर्ड, देशभर के सांसदों में सबसे ऊपर

बताया जाता है कि निंशक के मुख्यमंत्री रहते सरकार पर घोटालों के काफी आरोप लगे, जिनमें से कुंभ घोटाले ने निशंक को सबसे ज्यादा परेशान किया था, लेकिन निशंक पर किसी तरह के आरोप सिद्ध नहीं हो पाये. पर पार्टी के दबाव के चलते उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी.

वहीं राजनीतिक जानकारों के अनुसार निशंक को सीएम पद से हटाने के पीछे पार्टी के आंतरिक सर्वे की एक रिपोर्ट भी थी. जिसमें निशंक के रहते आने वाले 2012 के विधानसभा चुनावों में पार्टी को भारी नुकसान बताया गया था.

जिसको दखते हुए विधानसभा चुनावों से ठीक पहले नुकसान को रोकने के लिए निशंक को हटाकर बीसी खंडूड़ी को एक बार फिर प्रोजेक्ट किया गया, लेकिन अफसोस उसके बावजूद भी पार्टी की हालत 2012 के विधानसभा चुनावों में कमजोर ही रही और राज्य में कांग्रेस की सरकार आयी.

Intro:निशंक से जुड़ी खट्टी याद, सीएम पद से देना पड़ा था इस्तीफा
- Special

एंकर- वो दिन जब केंद्र में पीएम सहीत पूरी कैबिनेट का शपथ ग्रहण होना है तो उत्तराखंड से जो नाम सबसे ज्यादा सुर्खियों में है वो है डॉ रमेश पोखरियाल निशक.. हरिद्वार लोकसभा सीट से दूसरी बार सासंद बने रमेश पोखरियाल निशंक का सियासी कद में एसे कई पायदान जूड़े है जिने चढ़ने के बाद आज वो मोदी कैबिनेट की रेस में शामिल है। तो वहीं उनके इस राजनैतिक सफरनामें में कुछ खट्टी यादें भी जुड़ी है। एसी ही निशंक के बतौर सीएम एक खट्टी याद 2011 से जुड़ी है जहां उन्हे सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था। क्या है पूरा वाकिया पढ़िए...


Body:वीओ- साल 1991 में कर्णप्रयाग विधानसभा से बतौर विधायक राजनीती में डेब्यु करने वाले डॉ रमेश पोखरियाल निंशक का राजनितिक कद आज इतना ऊंचा हो चला है कि उनके अनुभव और कार्यशैली का डंका केंद्र में भी बजने लगा है। गुरुवार सुबह से ही मोदी कैबिनेट में निशंक को जगह मिलने की खबरों ने देखते ही देखते आग पकड़ ली जिसके बाद उनके सियासी कद में इसे एक और बड़ी उपलब्धी के तौर पर देखा जा रहा है। लेकिन निंशक के इस सफर नामे में कुछ खट्टी यादें भी जुड़ी हुई है। ये वाकिया साल 2007 से 2012 तक की भाजपा सरकार से जुड़ा है जहां 2009 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के प्रदेश में खराब प्रदर्शन के चलते मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी को हटा कर रमेश पोखरियाल पर हाई कमान ने भरोसा जताया था लेकिन अफसोस कि आला कमान के इस भरोसे को निशंक ज्यादा समय बरकरार नही रख पाये और 2011 में विधानसभा चुनावों से ठीक पहले निशंक को इस्तीफा देना पड़ा और एक बार फिर बीसी खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया। 

बाइट- आशुतोष डिमरी, राजनीति के जानकार

वीओ- बताया जाता है कि निंशक के मुख्यमंत्री रहते सरकार पर घोटालों के काफी आरोप लगे जिनमें से कुंभ घोटाले ने निशंक को सबसे ज्यादा परेशान किया था लेकिन इसके बावजूद भी निशंक पर किसी तरह के आरोप तो सिद्ध नही हो पाये लेकिन पार्टी के दबाव के चलते उन्हे मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी तो वहीं राजनितीक जानकारों के अनुसार निशंक को सीएम पद से हटाने के पीछे पार्टी के आंतरिक सर्वे की एक रिपोर्ट भी थी। जिसमें निशंक के रहते आने वाले 2012 के विधानसभा चुनवों में पार्टी को भारी नुकसान की बाताया गया था। जिसको दखते हुए विधान सभा चुनावों से ठीक पहले नुकसान को रोकने के लिए निशंक को हटाकर बीेसी खंडूरी को एक बार फिर प्रोजेक्ट किया गया था लेकिन अफसोस की उसके बावजूद भी पार्टी की हालत 2012 के विधानसभा चुनावों में कमजोर ही रही और राज्य में कांग्रेस की सरकार आयी।




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