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Budget 2019: उत्तराखंड के लिए बड़े काम का था 'ग्रीन बोनस', जानिए प्रदेश को इससे क्या होते फायदे?

उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्यों द्वारा पर्यावरण संरक्षण में विशेष भूमिका निभाने के एवज में ग्रीन बोनस की मांग की जा रही है. राज्यों की मांग है कि पर्यावरण के लिए वन संपदा की सुरक्षा के बदले उन्हें एक विशेष पैकेज केंद्र से मिलना चाहिए.

ग्रीन बोनस
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Published : Jul 6, 2019, 1:59 PM IST

Updated : Jul 6, 2019, 2:21 PM IST

देहरादून: मोदी सरकार के बजट से उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्यों को उम्मीदें थी कि पर्यावरण संरक्षण के एवज में केंद्र उन्हें ग्रीन बोनस देगा. लेकिन बजट पेश होने के बाद ग्रीन बोनस को लेकर सभी राज्यों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है. जिस कारण उत्तराखंड को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है. राज्य सरकार का मानना है कि वन संपदा को संरक्षित करने के लिए विकास कार्यों की कुर्बानी दी गई है, जिसके एवज में केंद्र को ग्रीन बोनस के जरिए क्षतिपूर्ति करनी चाहिए.

पढ़ें: HC ने पूर्व मुख्यमंत्रियों से बकाया वसूली के मामले पर फैसला रखा सुरक्षित

उत्तराखंड को ग्रीन बोनस दिए जाने की मांग सबसे पहले पुरजोर तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने की थी. सालों से ग्रीन बोनस की इस मांग को अब तक केंद्रीय स्तर पर नहीं सुना गया है. इसकी एक वजह यह भी है कि न केवल उत्तराखंड बल्कि कई हिमालयी राज्य भी ग्रीन बोनस को लेकर मांग कर रहे हैं.

क्या है ग्रीन बोनस?
पर्यावरण को बचाने के लिए राज्य सरकार विकास कार्यों को छोड़ वनों का संरक्षण करती है, जिसके एवज में राज्य सरकार केंद्र से विशेष पैकेज की मांग करती है. इस विशेष पैकेज को ग्रीन बोनस कहा जाता है. दरअसल उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन हैं और लगातार राज्य में वन संपदा बढ़ रही है. ऐसे में राज्य सरकार केंद्र से पर्यावरण को बचाने के लिए एक खास पैकेज की उम्मीद कर रही है.

वन संरक्षण में प्रदेशवासियों की अहम भूमिका
उत्तराखंड में वन्य भू-भाग के लगातार बढ़ने के आंकड़े ये जाहिर करते हैं कि न केवल राज्य सरकार बल्कि उत्तराखंड के लोग भी वन संरक्षण को लेकर बेहद संजीदा हैं. प्रदेशवासियों की ये भूमिका तमाम परेशानियों से भी जुड़ी हुई है. प्रदेश में कई विकास कार्य वन्य भू-भाग होने के चलते अधर में लटक जाते हैं. इन मुश्किलों के बावजूद प्रदेश के लोग वन संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाते हैं.

एक अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड अपने वनों से करीब 110 बिलियन रुपये की पर्यावरण सेवाएं दे रहा है. वनों के संरक्षण के चलते ग्रामीण लोग भी वनों की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं कर पाते. यही नहीं राजस्व बढ़ोतरी के लिए भी राज्य सरकार ने वनों को काटकर इसका उपयोग नहीं किया है.

ग्रीन बोनस का फायदा

योजना आयोग भी वन संपदा को बचाने में उत्तराखंड की भूमिका को अहम मानता है. साथ ही क्षतिपूर्ति के रूप में ग्रीन बोनस की मांग को भी जायज ठहराया जा रहा है.. लेकिन इन सबके बावजूद उत्तराखंड को अब तक इसका लाभ नहीं मिल पाया है. बाकी राज्यों की तुलना में उत्तराखंड के लिए ग्रीन बोनस इसलिए भी अहम है क्योंकि उत्तराखंड लगातार आर्थिक रूप से पिछड़ रहा है. ऐसे में अगर ग्रीन बोनस मिलता है तो उत्तराखंड की आर्थिकी में सुधार होगा.

देखा जाए तो ग्रीन बोनस राज्य की महज मांग नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड का हक भी है. क्योंकि उत्तराखंड के लोग लगातार वन संपदा को बचाने के चक्कर में न केवल नुकसान झेल रहे हैं बल्कि विकास कार्यों से भी महरूम रहते हैं. ऐसे में ग्रीन बोनस की मांग को पूरा किया जाना बेहद जरूरी माना जाता है.

देहरादून: मोदी सरकार के बजट से उत्तराखंड समेत तमाम हिमालयी राज्यों को उम्मीदें थी कि पर्यावरण संरक्षण के एवज में केंद्र उन्हें ग्रीन बोनस देगा. लेकिन बजट पेश होने के बाद ग्रीन बोनस को लेकर सभी राज्यों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है. जिस कारण उत्तराखंड को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है. राज्य सरकार का मानना है कि वन संपदा को संरक्षित करने के लिए विकास कार्यों की कुर्बानी दी गई है, जिसके एवज में केंद्र को ग्रीन बोनस के जरिए क्षतिपूर्ति करनी चाहिए.

पढ़ें: HC ने पूर्व मुख्यमंत्रियों से बकाया वसूली के मामले पर फैसला रखा सुरक्षित

उत्तराखंड को ग्रीन बोनस दिए जाने की मांग सबसे पहले पुरजोर तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने की थी. सालों से ग्रीन बोनस की इस मांग को अब तक केंद्रीय स्तर पर नहीं सुना गया है. इसकी एक वजह यह भी है कि न केवल उत्तराखंड बल्कि कई हिमालयी राज्य भी ग्रीन बोनस को लेकर मांग कर रहे हैं.

क्या है ग्रीन बोनस?
पर्यावरण को बचाने के लिए राज्य सरकार विकास कार्यों को छोड़ वनों का संरक्षण करती है, जिसके एवज में राज्य सरकार केंद्र से विशेष पैकेज की मांग करती है. इस विशेष पैकेज को ग्रीन बोनस कहा जाता है. दरअसल उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन हैं और लगातार राज्य में वन संपदा बढ़ रही है. ऐसे में राज्य सरकार केंद्र से पर्यावरण को बचाने के लिए एक खास पैकेज की उम्मीद कर रही है.

वन संरक्षण में प्रदेशवासियों की अहम भूमिका
उत्तराखंड में वन्य भू-भाग के लगातार बढ़ने के आंकड़े ये जाहिर करते हैं कि न केवल राज्य सरकार बल्कि उत्तराखंड के लोग भी वन संरक्षण को लेकर बेहद संजीदा हैं. प्रदेशवासियों की ये भूमिका तमाम परेशानियों से भी जुड़ी हुई है. प्रदेश में कई विकास कार्य वन्य भू-भाग होने के चलते अधर में लटक जाते हैं. इन मुश्किलों के बावजूद प्रदेश के लोग वन संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाते हैं.

एक अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड अपने वनों से करीब 110 बिलियन रुपये की पर्यावरण सेवाएं दे रहा है. वनों के संरक्षण के चलते ग्रामीण लोग भी वनों की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं कर पाते. यही नहीं राजस्व बढ़ोतरी के लिए भी राज्य सरकार ने वनों को काटकर इसका उपयोग नहीं किया है.

ग्रीन बोनस का फायदा

योजना आयोग भी वन संपदा को बचाने में उत्तराखंड की भूमिका को अहम मानता है. साथ ही क्षतिपूर्ति के रूप में ग्रीन बोनस की मांग को भी जायज ठहराया जा रहा है.. लेकिन इन सबके बावजूद उत्तराखंड को अब तक इसका लाभ नहीं मिल पाया है. बाकी राज्यों की तुलना में उत्तराखंड के लिए ग्रीन बोनस इसलिए भी अहम है क्योंकि उत्तराखंड लगातार आर्थिक रूप से पिछड़ रहा है. ऐसे में अगर ग्रीन बोनस मिलता है तो उत्तराखंड की आर्थिकी में सुधार होगा.

देखा जाए तो ग्रीन बोनस राज्य की महज मांग नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड का हक भी है. क्योंकि उत्तराखंड के लोग लगातार वन संपदा को बचाने के चक्कर में न केवल नुकसान झेल रहे हैं बल्कि विकास कार्यों से भी महरूम रहते हैं. ऐसे में ग्रीन बोनस की मांग को पूरा किया जाना बेहद जरूरी माना जाता है.

Intro:summary- उत्तराखंड समेत तमाम हिमालई राज्यों द्वारा पर्यावरण संरक्षण में विशेष भूमिका निभाने की एवज में ग्रीन बोनस की मांग की जा रही है.. राज्यों की मांग है कि पर्यावरण के लिए वन संपदा की सुरक्षा के बदले उन्हें एक विशेष पैकेज केंद्र से मिलना चाहिए ...

उत्तराखंड में ग्रीन बोनस वन संपदा की सुरक्षा के एवज में मांगा जाने वाला पैकेज है... राज्य सरकार का मानना है कि वन संपदा को संरक्षित करने के चलते विकास कार्यों के लिए राज्य के लोग जो कुर्बानी दे रहे हैं उसकी आवाज में केंद्र को भी ग्रीन बोनस के जरिए इसकी क्षतिपूर्ति करनी चाहिए....



Body:मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहला बजट उत्तराखंड के लिए ग्रीन बोनस को लेकर सबसे ज्यादा चर्चाओं में रहा... हालांकि बजट पेश होने के बाद ग्रीन बोनस को लेकर उत्तराखंड की उम्मीदों पर पानी फिर गया है लेकिन ग्रीन बोनस को लेकर क्यों राज्य सरकार और प्रदेश के लोग इतना आशान्वित थे और इसके ना मिलने से क्या नुकसान राज्य को होगा यह जानना भी जरूरी है... लेकिन सबसे पहले ग्रीन बोनस क्या है और क्यों राज्य सरकारें इसको लेकर केंद्र पर इतना दबाव बना रही है.. यह जानना जरूरी है....

क्या है ग्रीन बोनस

जैसा कि नाम से ही समझा जा सकता है कि ग्रीन बोनस वनो के संरक्षण से जुड़ा मामला है दरअसल उत्तराखंड में 71 प्रतिशत वन है और लगातार राज्य में वन संपदा बढ़ रही है ऐसे में राज्य सरकार केंद्र से पर्यावरण को बचाने के लिए वनों के संरक्षण को लेकर एक खास पैकेज की उम्मीदें केंद्र से कर रही है इसी पैकेज को ग्रीन बोनस कहा जा रहा है... दरअसल दुनिया भर में कार्बन कटौती को लेकर खूब हल्ला है और भारत भी इसको लेकर अपनी गंभीर चिंताएं जताता रहा है लेकिन उत्तराखंड और इसके जैसे कुछ राज्य लगातार वनों के संरक्षण के जरिए कार्बन कटौती में उत्तराखंड के स्थान को बेहतर बनाते रहे हैं.. यह बातें हैं जिनके कारण उत्तराखंड और इसके जैसे राज्य खुद को ग्रीन बोनस जैसे स्पेशल पैकेज के हकदार मानते हैं...


कई नुकसान झेलने के बावजूद प्रदेशवासियों की वन संरक्षण में अहम भूमिका

उत्तराखंड में वन्य भूभाग के लगातार बढ़ने के आंकड़े यह जाहिर करते हैं कि न केवल राज्य सरकार बल्कि उत्तराखंड के लोग भी वन संरक्षण को लेकर बेहद संजीदा है... प्रदेशवासियों की यह भूमिका तमाम परेशानियों से भी जुड़ी हुई है... प्रदेश में कई विकास कार्य वन्य भूभाग होने के चलते आधार में लटक जाते हैं यही नहीं विकास कार्यों की कुर्बानियों समेत जंगलों के जंगली जानवरों सभी प्रदेशवासियों को न केवल फसलों के नुकसान के रूप में आर्थिक बल्कि कई बार अपनी जान भी गंवानी पड़ती है... इन मुश्किल परेशानियों के बीच भी प्रदेश के लोग वन संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाते हैं... एक अनुमान के मुताबिक उत्तराखंड अपने वनों से करीब एक सौ 10 बिलियन रुपए की पर्यावरण सेवाएं दे रहा है... वनों के संरक्षण के चलते ग्रामीण लोग भी वनों की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं कर पाते यही नहीं राजस्व बढ़ोतरी के रूप में राज्य सरकार भी वनों को काटकर इसका उपयोग नहीं कर रही...

आर्थिक रूप से पिछड़े उत्तराखंड को ग्रीन बोनस से मिलेगी संजीवनी

उत्तराखंड को ग्रीन बोनस दिए जाने की मांग सबसे पहले पुरजोर तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री और मौजूदा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने की थी... सालों साल से ग्रीन बोनस की इस मांग को अब तक केंद्रीय स्तर पर नहीं सुना गया है इसकी एक वजह यह भी है कि न केवल उत्तराखंड बल्कि उत्तराखंड जैसे कई हिमालय राज्य भी ग्रीन बोनस को लेकर मांग कर रहे हैं... हालांकि योजना आयोग समेत केंद्र सरकार भी उत्तराखंड के वन संपदा को बचाने की भूमिका को अहम मानते रहे हैं और इसके लिए क्षतिपूर्ति के रूप में बोनस की मांग को भी जायज ठहराते रहे हैं लेकिन इस सबके बावजूद उत्तराखंड को अब तक इसका लाभ नहीं मिल पाया है... बाकी राज्यों की तुलना में उत्तराखंड के लिए ग्रीन बोनस इसलिए भी अहम है क्योंकि उत्तराखंड लगातार आर्थिक रूप से पिछड़ रहा है ऐसे में ग्रीन बोनस यदि मिलता है तो उत्तराखंड की आर्थिकी में सुधार होगा...


Conclusion:देखा जाए तो ग्रीन बोनस राज्य की महेश देख मांग नहीं है बल्कि यह उत्तराखंड का हक भी है क्योंकि उत्तराखंड के लोग लगातार इन्हीं वन संपदा ओं के चक्कर में न केवल नुकसान झेल रहे हैं बल्कि विकास कार्यों से भी महरूम रहते हैं ऐसे में ग्रीन बोनस की मांग को पूरा किया जाना बेहद जरूरी माना जाता है...
Last Updated : Jul 6, 2019, 2:21 PM IST
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