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देवभूमि में सातू-आठू पर्व की धूम, लोकगीतों पर जमकर थिरक रहे लोग

गरुड़ तहसील से 20 किमी की दूरी पर गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर स्थित कुलाऊं गांव में आठूं पर्व पर मां भगवती (मां नंदा देवी) की आठ दिनों तक  उपासना की जाती है. यह पर्व गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति के अनूठे मिलन का गवाह भी है.

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Published : Aug 22, 2019, 10:11 AM IST

Updated : Aug 22, 2019, 10:42 AM IST

देवभूमि में सातू-आठू पर्व की धूम.

बागेश्वर: कुमाऊं और गढ़वाल की सीमा पर स्थित कुलाऊं गांव में आठ दिनों तक चलने वाले आठूं पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. इस पर्व की खास बात यह है कि इस पर्व में कुमाऊं और गढ़वाल की पारंपरिक विरासत साझा रूप से देखने को मिलती है.ग्रामीण महिलाएं और पुरुष मिलकर झोड़ा-चांचरी का गायन करते हुए नृत्य करते हैं. जिसका लोग जमकर लुत्फ उठाते हैं.

देवभूमि में सातू-आठू पर्व की धूम.

गौर हो कि गरुड़ तहसील से 20 किमी की दूरी पर गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर स्थित कुलाऊं गांव में आठूं पर्व पर मां भगवती (मां नंदा देवी) की आठ दिनों तक उपासना की जाती है. यह पर्व गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति के अनूठे मिलन का गवाह भी है. जहां पर गढ़वाल और कुमाऊं की लोक संस्कृति एक साथ देखने को मिलती है. इस धार्मिक कार्य में लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं. कुलाऊं क्षेत्र की महिलाएं और पुरुष मिल कर रात्रि में गढ़वाली और कुमांऊनी भाषा में पौराणिक लोकगाथाओं को झोड़ा- चांचरी के रूप में गाते हुए चांचरी गायन करते हैं.

पढ़ें-उत्तरकाशी आपदा के बाद प्रशासन ने डोइवाला में जारी किया अलर्ट

जो सामाजिक सद्भावना, एकता और अखंडता को प्रस्तुत करता है. जिसके बाद नैनोल का गायन कर कुलदेवी मां भगवती का आह्वान किया जाता है और देव डांगरों की पूजा अर्चना की जाती है. यह पर्व पूरे आठ दिनों तक इसी तरह बदस्तूर जारी रहता है. मान्यता है कि पंचमी के दिन से अन्य गांवों की कुल देवियां अपनी बहन मां भगवती से मिलने आती हैं. इस पर्व में करीब 22 गांव के हजारों लोग हिस्सा लेते हैं.

आठ दिनों तक चलने वाला यह पर्व पौराणिक काल से बदस्तूर जारी है. इस पर्व के दौरान एक खास परम्परा देखने को मिलती है. जिसमें ग्रामीण एक खास वृक्ष को कंधे पर रख कर ढोल- नगाड़े बजाते हुए पूजा स्थल तक लाते हैं और इस वृक्ष को जमीन में गाड़ कर इसके सिरे में धूनी जलाई जाती है. इसी धूनी की परिक्रमा करते हुए झोड़ा-चांचरी और नैनोल गायन कर मां भगवती की आराधना की जाती है.

आम तौर पर धूनी जमीन पर ही जलाई जाती है. ग्रामीणों के अनुसार आज तक बिना प्रशासनिक सहयोग के ही इस पर्व का सफल आयोजन होता रहा है. जो अपने आप मे एक बड़ी मिसाल पेश करता है. इस पर्व का भंडारे के साथ विधिवत समापन 27 अगस्त को होगा. बता दें कि इस तरह के पर्व व त्योहार पूरे गांव को एकसूत्र में बांधते हैं. इस बहाने सब लोग एक साथ मिलते हैं और एक दूसरे के दुख दर्द को साझा करते हैं. वहीं सातू-आठू त्योहारों की प्रासंगिकता लगातार बढ़ रही है.

बागेश्वर: कुमाऊं और गढ़वाल की सीमा पर स्थित कुलाऊं गांव में आठ दिनों तक चलने वाले आठूं पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. इस पर्व की खास बात यह है कि इस पर्व में कुमाऊं और गढ़वाल की पारंपरिक विरासत साझा रूप से देखने को मिलती है.ग्रामीण महिलाएं और पुरुष मिलकर झोड़ा-चांचरी का गायन करते हुए नृत्य करते हैं. जिसका लोग जमकर लुत्फ उठाते हैं.

देवभूमि में सातू-आठू पर्व की धूम.

गौर हो कि गरुड़ तहसील से 20 किमी की दूरी पर गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर स्थित कुलाऊं गांव में आठूं पर्व पर मां भगवती (मां नंदा देवी) की आठ दिनों तक उपासना की जाती है. यह पर्व गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति के अनूठे मिलन का गवाह भी है. जहां पर गढ़वाल और कुमाऊं की लोक संस्कृति एक साथ देखने को मिलती है. इस धार्मिक कार्य में लोग बढ़-चढ़ कर भाग लेते हैं. कुलाऊं क्षेत्र की महिलाएं और पुरुष मिल कर रात्रि में गढ़वाली और कुमांऊनी भाषा में पौराणिक लोकगाथाओं को झोड़ा- चांचरी के रूप में गाते हुए चांचरी गायन करते हैं.

पढ़ें-उत्तरकाशी आपदा के बाद प्रशासन ने डोइवाला में जारी किया अलर्ट

जो सामाजिक सद्भावना, एकता और अखंडता को प्रस्तुत करता है. जिसके बाद नैनोल का गायन कर कुलदेवी मां भगवती का आह्वान किया जाता है और देव डांगरों की पूजा अर्चना की जाती है. यह पर्व पूरे आठ दिनों तक इसी तरह बदस्तूर जारी रहता है. मान्यता है कि पंचमी के दिन से अन्य गांवों की कुल देवियां अपनी बहन मां भगवती से मिलने आती हैं. इस पर्व में करीब 22 गांव के हजारों लोग हिस्सा लेते हैं.

आठ दिनों तक चलने वाला यह पर्व पौराणिक काल से बदस्तूर जारी है. इस पर्व के दौरान एक खास परम्परा देखने को मिलती है. जिसमें ग्रामीण एक खास वृक्ष को कंधे पर रख कर ढोल- नगाड़े बजाते हुए पूजा स्थल तक लाते हैं और इस वृक्ष को जमीन में गाड़ कर इसके सिरे में धूनी जलाई जाती है. इसी धूनी की परिक्रमा करते हुए झोड़ा-चांचरी और नैनोल गायन कर मां भगवती की आराधना की जाती है.

आम तौर पर धूनी जमीन पर ही जलाई जाती है. ग्रामीणों के अनुसार आज तक बिना प्रशासनिक सहयोग के ही इस पर्व का सफल आयोजन होता रहा है. जो अपने आप मे एक बड़ी मिसाल पेश करता है. इस पर्व का भंडारे के साथ विधिवत समापन 27 अगस्त को होगा. बता दें कि इस तरह के पर्व व त्योहार पूरे गांव को एकसूत्र में बांधते हैं. इस बहाने सब लोग एक साथ मिलते हैं और एक दूसरे के दुख दर्द को साझा करते हैं. वहीं सातू-आठू त्योहारों की प्रासंगिकता लगातार बढ़ रही है.

Intro:एंकर- गढ़वाल और कुमाऊं की सीमा पर स्थित कुलाऊँ गावँ में आठ दिनों तक चलने वाले आठूं पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। इस पर्व की खास बात यह है कि यहां पर कुमाऊं और गढ़वाल की भाषा में ग्रामीण महिलाएं और पुरुष मिल कर झोड़ा- चांचरी का गायन करते हुए नृत्य करते हैं। यह परंपरा पूरे कुमाऊं में यहीं देखने को मिलती है। जो सामाजिक सौहार्द को प्रदर्शित करती है।

वीओ- गरुड़ तहसील से 20 किमी की दूरी पर गढ़वाल कुमाऊं की सीमा पर स्थित कुलाऊँ गावँ में आठूं पर्व पर माँ भगवती की आठ दिनों तक पूजा अर्चना होती है। यह पर्व गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति के अनूठे मिलन का गवाह भी है। जहां पर गढ़वाल और कुमाऊं की लोक संस्कृति एक साथ देखने को मिलती है। कुलाऊँ क्षेत्र की महिलाएं और पुरुष मिल कर रात्रि में गढ़वाली और कुमांऊनी भाषा में पौराणिक लोकगाथाओं को झोड़ा- चांचरी के रूप में गाते हुए गोल घेरा बना कर नृत्य करते हैं। जो सामाजिक सद्भावना, एकता और अखंडता को प्रस्तुत करता है। जिसके बाद नैनोल का गायन कर कुलदेवी माँ भगवती का आह्वान किया जाता है और माँ भगवती स्वरूपा देव डांगरों की पूजा अर्चना की जाती है। यह पर्व पूरे आठ दिनों तक इसी तरह बदस्तूर जारी रहता है। पंचमी के दिन से अन्य गांवों की कुल देवियां अपनी बहन माँ भगवती से मिलने आती हैं। इस पर्व में करीब 22 गावँ के हजारों लोग हिस्सा लेते हैं। आठ दिनों तक चलने वाला यह पर्व पौराणिक काल से बदस्तूर जारी है। इस पर्व के दौरान एक खास परम्परा देखने को मिलती है। जिसमें ग्रामीण एक खास वृक्ष को कंधे पर रख कर ढोल- नगाड़े बजाते हुए पूजा स्थल तक लाते हैं। और इस वृक्ष को जमीन में गाड़ कर इसके सिरे में धूनी जलाई जाती है। और इसी धूनी की परिक्रमा करते हुए झोड़ा- चांचरी और नैनोल गायन कर मां भगवती की आराधना की जाती है। आम तौर पर धूनी जमीन पर ही जलाई जाती है। ग्रामीणों के अनुसार आज तक बिना प्रशासनिक सहयोग के ही इस पर्व का सफल आयोजन होता रहा है। जो अपने आप मे एक बड़ी मिशाल पेश करता है। इस पर्व का भंडारे के साथ विधिवत समापन 27 अगस्त को होगा।

बाईट- 01- बचे सिंह रावत, अध्यक्षय मेला युवा समिति कुलाऊँ।

बाईट- 02-रंजीत रावत, युवा।Body:वीओ- गरुड़ तहसील से 20 किमी की दूरी पर गढ़वाल कुमाऊं की सीमा पर स्थित कुलाऊँ गावँ में आठूं पर्व पर माँ भगवती की आठ दिनों तक पूजा अर्चना होती है। यह पर्व गढ़वाल और कुमाऊं की संस्कृति के अनूठे मिलन का गवाह भी है। जहां पर गढ़वाल और कुमाऊं की लोक संस्कृति एक साथ देखने को मिलती है। कुलाऊँ क्षेत्र की महिलाएं और पुरुष मिल कर रात्रि में गढ़वाली और कुमांऊनी भाषा में पौराणिक लोकगाथाओं को झोड़ा- चांचरी के रूप में गाते हुए गोल घेरा बना कर नृत्य करते हैं। जो सामाजिक सद्भावना, एकता और अखंडता को प्रस्तुत करता है। जिसके बाद नैनोल का गायन कर कुलदेवी माँ भगवती का आह्वान किया जाता है और माँ भगवती स्वरूपा देव डांगरों की पूजा अर्चना की जाती है। यह पर्व पूरे आठ दिनों तक इसी तरह बदस्तूर जारी रहता है। पंचमी के दिन से अन्य गांवों की कुल देवियां अपनी बहन माँ भगवती से मिलने आती हैं। इस पर्व में करीब 22 गावँ के हजारों लोग हिस्सा लेते हैं। आठ दिनों तक चलने वाला यह पर्व पौराणिक काल से बदस्तूर जारी है। इस पर्व के दौरान एक खास परम्परा देखने को मिलती है। जिसमें ग्रामीण एक खास वृक्ष को कंधे पर रख कर ढोल- नगाड़े बजाते हुए पूजा स्थल तक लाते हैं। और इस वृक्ष को जमीन में गाड़ कर इसके सिरे में धूनी जलाई जाती है। और इसी धूनी की परिक्रमा करते हुए झोड़ा- चांचरी और नैनोल गायन कर मां भगवती की आराधना की जाती है। आम तौर पर धूनी जमीन पर ही जलाई जाती है। ग्रामीणों के अनुसार आज तक बिना प्रशासनिक सहयोग के ही इस पर्व का सफल आयोजन होता रहा है। जो अपने आप मे एक बड़ी मिशाल पेश करता है। इस पर्व का भंडारे के साथ विधिवत समापन 27 अगस्त को होगा।

बाईट- 01- बचे सिंह रावत, अध्यक्षय मेला युवा समिति कुलाऊँ।

बाईट- 02-रंजीत रावत, युवा।Conclusion:null
Last Updated : Aug 22, 2019, 10:42 AM IST
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