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पोलियो के बाद अब रोटावायरस से जंग, शुरू हुआ टीकाकरण अभियान

राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बुधवार को नियमित रोटा वायरस टीकाकरण अभियान का शुभारम्भ किया गया. इसका उद्घाटन जिलाधिकारी, विधायक तथा पालिका अध्यक्ष ने बच्चों को ड्रॉप पिला कर किया.

राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम
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Published : Aug 8, 2019, 7:42 AM IST

बागेश्वरः राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बुधवार को नियमित रोटा वायरस टीकाकरण अभियान का शुभारम्भ किया गया. इसका उद्घाटन जिलाधिकारी, विधायक तथा पालिका अध्यक्ष ने बच्चों को ड्रॉप पिला कर किया.

वहीं मुख्य चिकित्साधिकारी ने बताया कि रोटा वायरस वैक्सीन बच्चों को जन्म के डेढ़, ढाई और साढ़े तीन माह में पिलाना जरूरी होता है. प्रत्येक खुराक में बच्चों को वैक्सीन की पांच बूंद दवा पिलाई जाती हैं. दस्त की रोकथाम में यह टीका काफी कामयाब है.

राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम

बता दें कि भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 9 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु डायरिया के कारण हो जाती है. दस्त की बीमारी के मामलों में 40 फीसदी रोटा वायरस के कारण ही होता है. बच्चों को बचाने के लिए रोटावायरस वैक्सीन को शामिल किया गया है. दस्त में एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं करती हैं. इसका बचाव रोटावायरस वैक्सीन से होता है. इसकी खुराक बच्चों के 06, 10 और 14 सप्ताह की उम्र में दी जानी होती है.

वहीं जिलाधिकारी ने बताया कि रोटा वायरस के कारण बच्चों में डायरिया की बीमारी हो जाती है. जिससे बच्चों में कुपोषण, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी हो जाती है और बच्चों की मौत हो जाती है.

आकंड़ों के मुताबिक रोटा वायरस इतना खतरनाक होता है कि इससे प्रतिवर्ष देश के 78 हजार बच्चों की मृत्यु उनके जीवन के पांचवें साल में हो जाती है. जिसमें 59 हजार बच्चों की मौत जन्म के पहले साल में ही हो जाती है. पोलियो के बाद यह पहली वैक्सीन है जिसे बच्चों को बूंद के रूप में पिलाया जाता है.

बागेश्वरः राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत बुधवार को नियमित रोटा वायरस टीकाकरण अभियान का शुभारम्भ किया गया. इसका उद्घाटन जिलाधिकारी, विधायक तथा पालिका अध्यक्ष ने बच्चों को ड्रॉप पिला कर किया.

वहीं मुख्य चिकित्साधिकारी ने बताया कि रोटा वायरस वैक्सीन बच्चों को जन्म के डेढ़, ढाई और साढ़े तीन माह में पिलाना जरूरी होता है. प्रत्येक खुराक में बच्चों को वैक्सीन की पांच बूंद दवा पिलाई जाती हैं. दस्त की रोकथाम में यह टीका काफी कामयाब है.

राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम

बता दें कि भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के लगभग 9 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु डायरिया के कारण हो जाती है. दस्त की बीमारी के मामलों में 40 फीसदी रोटा वायरस के कारण ही होता है. बच्चों को बचाने के लिए रोटावायरस वैक्सीन को शामिल किया गया है. दस्त में एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं करती हैं. इसका बचाव रोटावायरस वैक्सीन से होता है. इसकी खुराक बच्चों के 06, 10 और 14 सप्ताह की उम्र में दी जानी होती है.

वहीं जिलाधिकारी ने बताया कि रोटा वायरस के कारण बच्चों में डायरिया की बीमारी हो जाती है. जिससे बच्चों में कुपोषण, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी हो जाती है और बच्चों की मौत हो जाती है.

आकंड़ों के मुताबिक रोटा वायरस इतना खतरनाक होता है कि इससे प्रतिवर्ष देश के 78 हजार बच्चों की मृत्यु उनके जीवन के पांचवें साल में हो जाती है. जिसमें 59 हजार बच्चों की मौत जन्म के पहले साल में ही हो जाती है. पोलियो के बाद यह पहली वैक्सीन है जिसे बच्चों को बूंद के रूप में पिलाया जाता है.

Intro:एंकर— राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत आज बागेश्वर में नियमित रोटा वायरस टीकाकरण अभियान की शुरुआत की गई। जिलाधिकारी, विधायक तथा पालिका अध्यक्ष ने बच्चों को ड्रॉप पिला कर अभियान की शुरुआत की। जिलाधिकारी ने टीकाकरण अभियान से जुड़े तकनीकी बिंदुओं की जानकारी ली। साथ ही अभियान की सफलता हेतु सभी की जिम्मेवारी तय करने के निर्देश दिए।

वीओ— मुख्य चिकित्साधिकारी ने बताया के रोटा वायरस वैक्सीन बच्चों को जन्म के डेढ़, ढाई और साढ़े तीन माह में पिलाई जानी जरूरी होती है। प्रत्येक खुराक में बच्चों को वैक्सीन की पांच बूंदें पिलाई जाती हैं। उन्होंने कहा कि यह वैक्सीन बच्चों को डायरिया से बचाव करेगा।
वहीं जिलाधिकारी ने कहा कि रोटा वायरस के कारण बच्चों में डायरिया की बीमारी हो जाती है जिससे बच्चों में कुपोषण, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी हो जाती है और कई बच्चों की मौत भी हो जाती है।

बाईट—1— रंजना राजगुरू, जिलाधिकारी बागेश्वर।

वीओ— भारत में पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 9 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु डायरिया के कारण हो जाती है। बच्चों में दस्त की बीमारी के मामलों में 40 फीसदी रोटा वायरस के कारण ही होता है। इन्हीं बच्चों के जीवन को बचाने के लिए रोटावायरस वैक्सीन को शामिल किया गया है। इस दस्त में एंटीबायोटिक दवाएं भी काम नहीं करती है। यह बचाव रोटावायरस वैक्सीन से होता है। इसकी खुराक बच्चों के 06 सप्ताह के आयु पर तथा फिर 10 और 14 सप्ताह की आयु में दी जानी होती हैं।

बाईट—2— चंदन राम दास, विधायक बागेश्वर।

एफवीओ— आकंड़ों के मुताबिक रोटा वायरस इतना खतरनाक होता है कि इससे प्रतिवर्ष देश के 78 हजार बच्चों की मृत्यु उनके जीवन के पांचवें साल में हो जाती है। जिसमें 59 हजार बच्चे अपने जन्म के पहले साल में हीं मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। पोलियो के बाद यह पहली वैक्सीन है जिसे बच्चों को बूंद के रूप में पिलाया जाता है।Body:वीओ— मुख्य चिकित्साधिकारी ने बताया के रोटा वायरस वैक्सीन बच्चों को जन्म के डेढ़, ढाई और साढ़े तीन माह में पिलाई जानी जरूरी होती है। प्रत्येक खुराक में बच्चों को वैक्सीन की पांच बूंदें पिलाई जाती हैं। उन्होंने कहा कि यह वैक्सीन बच्चों को डायरिया से बचाव करेगा।
वहीं जिलाधिकारी ने कहा कि रोटा वायरस के कारण बच्चों में डायरिया की बीमारी हो जाती है जिससे बच्चों में कुपोषण, रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी हो जाती है और कई बच्चों की मौत भी हो जाती है।

बाईट—1— रंजना राजगुरू, जिलाधिकारी बागेश्वर।

वीओ— भारत में पांच वर्ष से कम आयु के लगभग 9 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु डायरिया के कारण हो जाती है। बच्चों में दस्त की बीमारी के मामलों में 40 फीसदी रोटा वायरस के कारण ही होता है। इन्हीं बच्चों के जीवन को बचाने के लिए रोटावायरस वैक्सीन को शामिल किया गया है। इस दस्त में एंटीबायोटिक दवाएं भी काम नहीं करती है। यह बचाव रोटावायरस वैक्सीन से होता है। इसकी खुराक बच्चों के 06 सप्ताह के आयु पर तथा फिर 10 और 14 सप्ताह की आयु में दी जानी होती हैं।

बाईट—2— चंदन राम दास, विधायक बागेश्वर।Conclusion:एफवीओ— आकंड़ों के मुताबिक रोटा वायरस इतना खतरनाक होता है कि इससे प्रतिवर्ष देश के 78 हजार बच्चों की मृत्यु उनके जीवन के पांचवें साल में हो जाती है। जिसमें 59 हजार बच्चे अपने जन्म के पहले साल में हीं मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। पोलियो के बाद यह पहली वैक्सीन है जिसे बच्चों को बूंद के रूप में पिलाया जाता है।
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