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हरेला पर्व पर हरदा ने की पूजा-अर्चना, मां नंदा और बेटी का बताया महत्व

उत्तराखंड में हरेला एक लोकप्रिय और पारंपरिक त्योहार है. जिसे श्रावण मास की संक्रांति को मनाया जाता है. इस त्योहार को हरियाली के आगमन, घर की सुख-समृद्धि व भगवान शिव से जोड़कर देखा जाता है. वहीं, पूर्व सीएम हरीश रावत ने लोगों को हरेला पर्व की बधाई दी.

harela festival
हरेला पर्व
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Published : Jul 16, 2020, 7:18 PM IST

Updated : Jul 16, 2020, 7:40 PM IST

देहरादून/बागेश्वर/चंपावतः उत्तराखंड में हरेला महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. हरेला एक पारंपरिक पर्व है, लेकिन अब इसे पौधरोपण से जोड़ दिया गया है. लिहाजा, हर साल हरेला के मौके पर बड़े स्तर पर पौधरोपण किया जाता है. इसी कड़ी में प्रदेशभर में पौधरोपण किया जा रहा है. वहीं, देहरादून में पूर्व सीएम हरीश रावत ने हरेला पर्व के मौके पर पंचायती मंदिर पहुंचकर पूजा-अर्चना की. साथ ही प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की बधाई दी है.

उत्तराखंड में हरेला पर्व की धूम.

देहरादून
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि हरेला पर्व हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ा पर्व है. कहा जाता है कि हिमालय की बेटी नंदा को अपने मायके का अन्न मिले, इसके लिए 7 या 9 अनाज का हरेला बोकर भेजा जाता था. आज भी उस परंपरा के प्रतीक स्वरूप जहां भी बेटी रहती है, वहां हरेला भेजा जाता है. माना जाता है कि भगवान शिव की भी स्तुति हो रही है. ऐसे में यह पर्व एक महीने तक चलता है और घी संक्रांत को खत्म होता है.

ये भी पढ़ेंः जागेश्वर धाम में श्रावणी मेले का नहीं हुआ आयोजन, पूजा-अर्चना के साथ किया गया पौधरोपण

हरेला पर्व को जानिए
उत्तराखंड में हरेला एक लोकप्रिय और पारंपरिक त्योहार है. जिसे श्रावण मास की संक्रांति को मनाया जाता है. इस त्योहार को हरियाली के आगमन, घर की सुख-समृद्धि व भगवान शिव से जोड़कर देखा जाता है. श्रावण मास की संक्रांति से 9 दिन पहले अषाढ़ महीने में एक टोकरी में घर के अंदर किसी कोने में पांच या सात प्रकार के अनाज जिसमें गेहूं, जौ, मक्का, भट्ट, सरसों, धान आदि को बोया जाता है. इसकी रोजाना पूजा की जाती है और इसमें जल चढ़ाया जाता है. अंधेरे में रखने की वजह से इसका रंग पीला पड़ जाता है.

दसवें दिन श्रावण मास की संक्रांति को इसे काटकर सर्वप्रथम क्षेत्रपाल देवता को चढ़ाया जाता है और धरती में कृषि उपज की अच्छी पैदावार की कामना की जाती है. उसके बाद घर के सदस्यों को यह हरेला चढाया जाता है. इस दिन घर के बडे़ बुजुर्ग अपने बच्चों, नाती, पोतों को हरेला पूजते हुए उनके सिर और कान में हरेला रखते हैं. साथ ही आशीर्वाद भी देते हैं. जिसके बोल कुछ इस तरह से हैं. 'जी रया, जाग रया, यो दिन मास भेंटनै रया' इतना ही नहीं हर साल विषम परिस्थितियों में बोए हुए हरेला की पैदावार से किसान उस साल होने वाली फसल का अंदाजा लगाते हैं.

ये भी पढ़ेंः पर्यावरण संरक्षण का लोक पर्व बना हरेला, रेखा आर्य और प्रेमचंद अग्रवाल ने रोपे पौधे

बागेश्वर
बागेश्वर में हरेला पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस दौरान जिलाधिकारी रंजना राजगुरू ने सभी से जल संवर्धन के लिए पौधरोपण करने की अपील की. उन्होंने कहा कि सभी को धरती को स्वच्छ रखना होगा और ज्यादा से ज्यादा पौधरोपण करना होगा. हरेला त्योहार के मौके पर बागेश्वर में जिला कार्यालय परिसर के साथ ही बिलखेत में वृहद स्तर पौधरोपण किया गया.

चंपावत
चंपावत में हरेला पर्व पर प्रकृति को हरा-भरा बनाने के संकल्प के साथ बड़े पैमाने पर पौधारोपण किया गया. जिला पंचायत अध्यक्ष ज्योति राय, विधायक कैलाश गहतोड़ी, डीएम सुरेंद्र नारायण पांडेय समेत विभिन्न विभागीय अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों ने गौड़ी क्षेत्र में पौधारोपण किया. इस दौरान विधायक कैलाश गहतोड़ी ने कहा कि मानव जीवन के लिए पेड़-पौधे अति आवश्यक है. पेड़-पौधों से ही हमें शुद्व हवा, पानी मिलती है. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा पौधरोपण किया जाना चाहिए.

देहरादून/बागेश्वर/चंपावतः उत्तराखंड में हरेला महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है. हरेला एक पारंपरिक पर्व है, लेकिन अब इसे पौधरोपण से जोड़ दिया गया है. लिहाजा, हर साल हरेला के मौके पर बड़े स्तर पर पौधरोपण किया जाता है. इसी कड़ी में प्रदेशभर में पौधरोपण किया जा रहा है. वहीं, देहरादून में पूर्व सीएम हरीश रावत ने हरेला पर्व के मौके पर पंचायती मंदिर पहुंचकर पूजा-अर्चना की. साथ ही प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की बधाई दी है.

उत्तराखंड में हरेला पर्व की धूम.

देहरादून
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि हरेला पर्व हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ा पर्व है. कहा जाता है कि हिमालय की बेटी नंदा को अपने मायके का अन्न मिले, इसके लिए 7 या 9 अनाज का हरेला बोकर भेजा जाता था. आज भी उस परंपरा के प्रतीक स्वरूप जहां भी बेटी रहती है, वहां हरेला भेजा जाता है. माना जाता है कि भगवान शिव की भी स्तुति हो रही है. ऐसे में यह पर्व एक महीने तक चलता है और घी संक्रांत को खत्म होता है.

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हरेला पर्व को जानिए
उत्तराखंड में हरेला एक लोकप्रिय और पारंपरिक त्योहार है. जिसे श्रावण मास की संक्रांति को मनाया जाता है. इस त्योहार को हरियाली के आगमन, घर की सुख-समृद्धि व भगवान शिव से जोड़कर देखा जाता है. श्रावण मास की संक्रांति से 9 दिन पहले अषाढ़ महीने में एक टोकरी में घर के अंदर किसी कोने में पांच या सात प्रकार के अनाज जिसमें गेहूं, जौ, मक्का, भट्ट, सरसों, धान आदि को बोया जाता है. इसकी रोजाना पूजा की जाती है और इसमें जल चढ़ाया जाता है. अंधेरे में रखने की वजह से इसका रंग पीला पड़ जाता है.

दसवें दिन श्रावण मास की संक्रांति को इसे काटकर सर्वप्रथम क्षेत्रपाल देवता को चढ़ाया जाता है और धरती में कृषि उपज की अच्छी पैदावार की कामना की जाती है. उसके बाद घर के सदस्यों को यह हरेला चढाया जाता है. इस दिन घर के बडे़ बुजुर्ग अपने बच्चों, नाती, पोतों को हरेला पूजते हुए उनके सिर और कान में हरेला रखते हैं. साथ ही आशीर्वाद भी देते हैं. जिसके बोल कुछ इस तरह से हैं. 'जी रया, जाग रया, यो दिन मास भेंटनै रया' इतना ही नहीं हर साल विषम परिस्थितियों में बोए हुए हरेला की पैदावार से किसान उस साल होने वाली फसल का अंदाजा लगाते हैं.

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बागेश्वर
बागेश्वर में हरेला पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस दौरान जिलाधिकारी रंजना राजगुरू ने सभी से जल संवर्धन के लिए पौधरोपण करने की अपील की. उन्होंने कहा कि सभी को धरती को स्वच्छ रखना होगा और ज्यादा से ज्यादा पौधरोपण करना होगा. हरेला त्योहार के मौके पर बागेश्वर में जिला कार्यालय परिसर के साथ ही बिलखेत में वृहद स्तर पौधरोपण किया गया.

चंपावत
चंपावत में हरेला पर्व पर प्रकृति को हरा-भरा बनाने के संकल्प के साथ बड़े पैमाने पर पौधारोपण किया गया. जिला पंचायत अध्यक्ष ज्योति राय, विधायक कैलाश गहतोड़ी, डीएम सुरेंद्र नारायण पांडेय समेत विभिन्न विभागीय अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों ने गौड़ी क्षेत्र में पौधारोपण किया. इस दौरान विधायक कैलाश गहतोड़ी ने कहा कि मानव जीवन के लिए पेड़-पौधे अति आवश्यक है. पेड़-पौधों से ही हमें शुद्व हवा, पानी मिलती है. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा पौधरोपण किया जाना चाहिए.

Last Updated : Jul 16, 2020, 7:40 PM IST
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