बागेश्वर/देहरादून: एडवोकेट ललित मोहन जोशी कोरोनाकाल में अनाथ हो चुके 100 बच्चों को निशुल्क उच्च शिक्षा प्रदान करेंगे. प्रदेश के किसी भी जिले से योग्यता रखने वाले छात्र-छात्राएं उनके देहरादून स्थिति शिक्षण संस्थान सीआईएसएस और यूआईएचएमटी में डिप्लोमा या डिग्री कोर्स कर सकेंगे.
कोरोना महामारी ने प्रदेश में कई बच्चों के सिर से माता-पिता का साया छीन लिया है. कई युवाओं के सामने शिक्षा और रोजगार का संकट पैदा हो गया है. योग्यता वाले बच्चों के इस संकट को दूर करने के लिए संस्थान ने पहल शुरू की है. सीआईएसएस और यूआईएचएमटी ग्रुप के चेयरमैन ललित मोहन जोशी ने कहा कि कोरोना के चलते कुमाऊं और गढ़वाल के पहाड़ी क्षेत्रों में भी कई बच्चे अनाथ हो गए हैं. कमाई का जरिया नहीं होने से उच्च योग्यता वाले बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित होने की आशंका है.
ऐसे बच्चे जो योग्यता पर खरा उतरते हों और मोटी फीस देने में असमर्थ हैं, उन्हें संस्थान निशुल्क शिक्षा प्रदान करेगा उनके शिक्षण संस्थान में ऐसे बच्चों को निशुल्क प्रवेश दिया जाएगा और शिक्षा का पूरा खर्च भी कॉलेज उठाएगा. कोरोना के चलते किसी बच्चे का उज्जवल भविष्य अंधकार में नहीं जाना चाहिए ,अगर सभी लोग मिलकर प्रयास करेंगे तो विपदा की मार झेल रहे युवाओं को बड़ी राहत मिलेगी.
पढ़ें: रामदेव और IMA विवाद के बीच दून में साथ दिखा आयुर्वेद-एलोपैथ, आयुष विभाग ने किया प्रयोग
जोशी ने बताया कि उनके संस्थान में हर वर्ष 30 गरीब और अनाथ बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है. पिछले आठ वर्षों से संस्थान में कई गरीब बच्चों ने विभिन्न डिप्लोमा और डिग्री कोर्स में दाखिला लेकर शिक्षा पूरी की है. पिछले आठ वर्ष से यह सिलसिला जारी है. मूलरूप से हरखोला गांव के रहने वाले ललित जोशी देहरादून में शिक्षण संस्थान चलाने के साथ नशे के खिलाफ अभियान भी चला रहे हैं. 2011 से वह प्रदेश के सभी स्कूल-कॉलेजों में जाकर बच्चों को नशे के दुष्प्रभाव बताकर नशे से दूर रहने और दूसरों को भी नशामुक्त करने के लिए प्रेरित करते रहे हैं. नशामुक्ति अभियान के लिए उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान मिल चुके हैं.
प्रदेश के सैकड़ों शिक्षण संस्थानों से जरूरतमंदों को गोद लेने की अपील
कोरोना महामारी में आर्थिक रूप से टूट चुके असहाय और जरूरतमंद बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का प्रण ले चुके ललित जोशी का मानना है कि राज्य में 500 से अधिक सरकारी और गैर सरकारी उच्च शिक्षा क्षेत्र से जुड़े शिक्षण संस्थान हैं. ऐसे में इस मानव संकटकाल में अगर एक शिक्षण संस्थान भी 100 बच्चों को सहारा देकर उनको शिक्षा दान देकर गोद लेता है. तो इससे बड़ा नेक और क्या हो सकता है.
वही, नि:शुल्क शिक्षा पाने वाले छात्र ने बताया कि कुछ समय पहले वह नेपाल से आकर अल्मोड़ा में मजदूरी कर होटल मैनेजमेंट का कोर्स करना चाहता था. इसी दौरान उनकी मुलाकात संस्थान के चेयरमैन ललित जोशी से हुई. जिन्होंने उनकी आर्थिक हालात को देखते हुए उन्हें नि:शुल्क अपने कॉलेज में होटल मैनेजमेंट कोर्स कराने का वादा किया. आज वह संस्थान के चेयरमैन ललित जोशी के मुताबिक उनके कॉलेज में होटल मैनेजमेंट का कोर्स निशुल्क कर रहा है. जिसका खर्चा लगभग एक लाख से अधिक का आता हैं.
उत्तराखंड में उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालयों की स्थिति
बता दें कि उत्तराखंड में वर्तमान समय में 106 सरकारी तकनीकी उच्च शिक्षा के कॉलेज हैं. जबकि 400 निजी तकनीकी कॉलेज संचालित हो रहे हैं . ऐसे अनुमानित इन सभी तरह के कॉलेज में लगभग 25 से 30 लाख छात्र-छात्राएं उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. जानकारी के अनुसार राज्य में 11 सरकारी विश्वविद्यालय हैं. वही 19 निजी विश्वविद्यालय संचालित हो रहे हैं. ऐसे में एफआरआई ,गुरुकुल कांगड़ी और एचएनबी (हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय ) लगाकर कुल 33 विश्वविद्यालय उत्तराखंड में संचालित है.
10 फीसदी जरूरमंद बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने से देश की बड़ी समस्या का हल
जानकारों के मुताबिक औसतन उच्च व तकनीकी शिक्षा के लिए लगभग 1 साल में अलग-अलग कोर्स 1 से 2 लाख तक का प्रति छात्र का खर्चा आता हैं. जबकि चार साल तक के अलग-अलग कोर्स के लिए लगभग सात लाख तक या उससे भी अधिक खर्चा आ जाता हैं. ऐसे में कोरोना संकटकाल में आर्थिक रूप से टूट चुके परिवार के बच्चों को अगर राज्य में संचालित 500 तकनीक व उच्च शिक्षा संस्थान पहले से चल रहे अपने इंफ्रास्ट्रक्चर में 10% सीट देकर निशुल्क शिक्षा देते हैं. इससे हजारों जरूरमद देश के होनहारों की बहुत बड़ी समस्या का समाधान नेक कार्य के रूप में हो सकता है.
कोरोना वायरस के चलते शिक्षण संस्थानों में पसरा सन्नाटा
देश भर में तकरीबन दो सालों से कोरोना महामारी के चलते स्कूल-कॉलेज से लेकर उच्च शिक्षा क्षेत्र से जुड़े अधिकांश शिक्षण संस्थान बंद हैं.ऐसे में आर्थिक गतिविधि न होने के कारण तमाम संस्थानों को अपने इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे अन्य शिक्षण सुविधाओं को मेंटेन कर बरकरार रखना सबसे अधिक चुनौतीपूर्ण विषय बना हुआ है. महामारी के चलते तमाम शिक्षा के मंदिर बंद होने के चलते कक्षाएं पूरी तरह से वीरान पड़ी हैं. चारों तरफ सन्नाटा में पसरा है. ऐसे में सदीं की सबसे बड़ी वैश्विक महामारी के परिदृश्य को देखते यह अंदाज लगाना मुश्किल हो रहा कि कब जनजीवन सामान्य होगा. ताकि स्कूली पढ़ाई से लेकर रोजगारपूरक उच्च शिक्षा सुचारु कर विद्यार्थी अपना भविष्य बना सकेंगे.