बागेश्वर: सरकार ने खुले में शौचमुक्त करने के लिए युद्धस्तर पर अभियान चलाया और शौचालयों के निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए. ग्रामीण अंचलों में सब्सिडी देकर लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ शौचालय बनवाए गए. वहीं इस सब के बीच गरूड़ के भिलकोट में आजादी के 75 वर्षों बाद भी एक परिवार को शौचालय नहीं मिल पाया है. हालांकि आकड़ों में गांव को शौचमुक्त गांव घोषित किया गया है, लेकिन जमीनी हकीकत ठीक उलट है.
गरूड़ के भिलकोट निवासी बुजुर्ग महिला रमावती के परिवार को आज तक शौचालय नहीं मिल पाया है, इससे पता चलता है कि प्रशासन और जनप्रतिनिधि अपने अपने क्षेत्रों में विकास कार्यों को लेकर कितने तत्पर हैं. गांव के बाहर सड़क किनारे शौचमुक्त का बोर्ड तो लगा दिया गया, लेकिन गांव के अंदर की हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. बता दें कि सरकारी आकड़ों में भिलकोट गांव शौचमुक्त गांव है. गांव की हकीकत ये है कि लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं.
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ग्रामीणों का कहना है कि ऐसा एक गांव नहीं, बल्कि कई गांव हैं. जहां बोर्ड शौचमुक्त का लगा दिया गया है. ग्रामीण क्षेत्र का विकास हमेशा सरकारी आकड़ों और बोर्डों पर ही देखे जाते हैं. चुनाव के समय जनप्रतिनिधि द्वारा बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, सरकार बनते ही दावे हवा-हवाई साबित हो जाते हैं. ग्राम प्रधान रेखा देवी का कहना है कि बुजुर्ग महिला रमावती के परिवार के लिए शौचालय आ गया था. जगह नहीं होने के चलते परिवार शौचालय बनाने में असमर्थ है. जिसके लिए कई बार कार्रवाई की जा चुकी है. परिवार बार-बार जगह के अभाव में शौचालय बनाने से वंचित हो रहा है.