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दहशत के साए में बागेश्वर के 351 परिवार, हर पल मंडरा रहा भूस्खलन का खतरा

बागेश्वर के 24 गांवों के 351 परिवार भूस्खलन की जद में है, जिससे ग्रामीणों में दहशत है. ग्रामीणों ने शासन से विस्थापन की मांग की है.

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Published : Jul 18, 2019, 1:20 PM IST

साढ़े तीन सौ परिवार

बागेश्वर: जिले में साढ़े तीन सौ से ज्यादा परिवार इस साल भी दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं. जिला प्रशासन और सरकार की अनदेखी के कारण ये परिवार बारिश के दौरान पूरी रात जागने को मजबूर हैं. जिला प्रशासन का कहना है कि शासन को संवेदनशील और अतिसंवेदनशील क्षेत्रों की सूची भेजी गयी है, जल्द ही इन परिवारों का विस्थापन किया जाएगा.

बागेश्वर जिले के कुंवारी, सूपी, कर्मी, बड़ेत, लीती, बघर समेत 24 गांवों के 351 परिवार मॉनसून सीजन में इस बार भी दहशत के साए में रहने को मजबूर हैं. जिला प्रशासन के मुताबिक 24 घरों पर भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है और इन्हें विस्थापित किया जाना जरूरी है.

साढ़े तीन सौ परिवार

पढ़ें- खबर का असर: सुसुआ नदी में उप खनिज हटाने का काम शुरू, किसानों को मिली राहत

बता दें, कुंवारी गांव में भारी भूस्खलन के बाद 2016 में जिला प्रशासन ने 19 गांवों के विस्थापन की सूची शासन को भेजी थी. इसके लिए कुछ धनराशि भी मिली लेकिन खर्च होने से पहले ग्रामीणों में विवाद हो गया. जिस स्थान पर ग्रामीण बसना चाहते थे, वहां दूसरे गांव ने आपत्ति जता दी. तब से जिला प्रशासन आज तक भी दूसरे स्थान की तलाश नहीं कर पाया है.

बागेश्वर: जिले में साढ़े तीन सौ से ज्यादा परिवार इस साल भी दहशत के साए में जीने को मजबूर हैं. जिला प्रशासन और सरकार की अनदेखी के कारण ये परिवार बारिश के दौरान पूरी रात जागने को मजबूर हैं. जिला प्रशासन का कहना है कि शासन को संवेदनशील और अतिसंवेदनशील क्षेत्रों की सूची भेजी गयी है, जल्द ही इन परिवारों का विस्थापन किया जाएगा.

बागेश्वर जिले के कुंवारी, सूपी, कर्मी, बड़ेत, लीती, बघर समेत 24 गांवों के 351 परिवार मॉनसून सीजन में इस बार भी दहशत के साए में रहने को मजबूर हैं. जिला प्रशासन के मुताबिक 24 घरों पर भूस्खलन का खतरा मंडरा रहा है और इन्हें विस्थापित किया जाना जरूरी है.

साढ़े तीन सौ परिवार

पढ़ें- खबर का असर: सुसुआ नदी में उप खनिज हटाने का काम शुरू, किसानों को मिली राहत

बता दें, कुंवारी गांव में भारी भूस्खलन के बाद 2016 में जिला प्रशासन ने 19 गांवों के विस्थापन की सूची शासन को भेजी थी. इसके लिए कुछ धनराशि भी मिली लेकिन खर्च होने से पहले ग्रामीणों में विवाद हो गया. जिस स्थान पर ग्रामीण बसना चाहते थे, वहां दूसरे गांव ने आपत्ति जता दी. तब से जिला प्रशासन आज तक भी दूसरे स्थान की तलाश नहीं कर पाया है.

Intro:स्लग— आपदा के साये में साढ़े तीन सौ परिवार
रिपोर्ट—नीरज पाण्डेय, बागेश्वर
मो.-9411776715
दिनांक— 17 जुलाई 2019

एंकर— बागेश्वर जिले के करीब साढ़े तीन सौ परिवार इस साल फिर आपदा के साये में हैं। जिला प्रशासन और सरकार की उपेक्षा के कारण इन परिवारों को बारिश के दौरान रतजगा करने को मजबूर होना पड़ रहा है।

वीओ— बागेश्वर जिले के कुंवारी, सूपी, कर्मी, बड़ेत, लीती, बघर समेत 24 गांवों के 351 परिवार इस बार भी बरसात में बेघर होके रहने को मजबूर होंगे। जिला प्रशासन के मुताबिक भी 24 परिवारों के घरों पर भूस्खलन का खतरा है, और इन्हें विस्थापित किया जाना जरूरी है। कुंवारी गांव में भारी भूस्खलन के बाद 2016 में जिला प्रशासन ने 19 गांवों के विस्थापन की सूची शासन को भेजी। इसके लिए कुछ धनराशि भी मिली लेकिन खर्च होने से पहले ग्रामीणों में विवाद हो गया। जिस स्थान पर ग्रामीण बसना चाहते थे वहां दूसरे गांव ने आपत्ति जता दी। तब से जिला प्रशासन आज तक भी दूसरे स्थान की तलाश नहीं कर सका है। जिला प्रशासन यही राग अलापने में है कि शासन को संवेदनशील और अतिसंवेदनशील क्षेत्रों की सूची भेजी गयी है। कुछ क्षेत्रों के लिये बजट दिया गया जो कि सभी जगहों के हालातों को ठीक करने के लिए प्रयाप्त नहीं था। अब जिला प्रशासन बजट के इंतजार में चुपचाप हो किसी बड़े हादसे के इंतजार में बैठा है।

बाईट 1 - मोहन राम, आपदा पीड़ित।
बाईट 2 - राहुल गोयल, अपर जिलाधिकारी।Body:वीओ— बागेश्वर जिले के कुंवारी, सूपी, कर्मी, बड़ेत, लीती, बघर समेत 24 गांवों के 351 परिवार इस बार भी बरसात में बेघर होके रहने को मजबूर होंगे। जिला प्रशासन के मुताबिक भी 24 परिवारों के घरों पर भूस्खलन का खतरा है, और इन्हें विस्थापित किया जाना जरूरी है। कुंवारी गांव में भारी भूस्खलन के बाद 2016 में जिला प्रशासन ने 19 गांवों के विस्थापन की सूची शासन को भेजी। इसके लिए कुछ धनराशि भी मिली लेकिन खर्च होने से पहले ग्रामीणों में विवाद हो गया। जिस स्थान पर ग्रामीण बसना चाहते थे वहां दूसरे गांव ने आपत्ति जता दी। तब से जिला प्रशासन आज तक भी दूसरे स्थान की तलाश नहीं कर सका है। जिला प्रशासन यही राग अलापने में है कि शासन को संवेदनशील और अतिसंवेदनशील क्षेत्रों की सूची भेजी गयी है। कुछ क्षेत्रों के लिये बजट दिया गया जो कि सभी जगहों के हालातों को ठीक करने के लिए प्रयाप्त नहीं था। अब जिला प्रशासन बजट के इंतजार में चुपचाप हो किसी बड़े हादसे के इंतजार में बैठा है।Conclusion:एफवीओ- शासन और प्रशासन की अनदेखी का दंश आपदा पीड़ित परिवारों को उठाना पड़ रहा है। देखना होगा कब तक आपदा पीड़ित परिवारों के विस्थापन के लिए प्रशासन गंभीर होकर कदम उठता है।
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