अल्मोड़ा: देवभूमि उत्तराखंड को देवों की धरा कहा जाता है. यहां के पौराणिक मंदिर श्रद्धालुओं को देवत्व से साक्षात्कार कराते रहते हैं. यहां कई साधु संतों ने अपने तप से ज्ञान की प्राप्ति की है. उन्हीं में एक थे स्वामी विवेकानंद, जिन्होंने अपने ज्ञान से पूरे विश्व को हिन्दू धर्म की महत्ता से रूबरू कराया था. लेकिन उनका भी देवभूमि से खासा नाता रहा है. स्वामी विवेकानंद को काकड़ीघाट स्थित पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था. ये स्थान आज भी उनकी साधना की गवाही देता नजर आता है.
उल्लेखनीय है कि जब भी स्वामी विवेकानंद विदेश से भारत आते थे, वो अपनी थकान मिटाने के लिए देवभूमि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों का रुख करते थे. यहां स्वामी विवेकानंद लंबे समय तक साधना में लीन रहते थे. स्वामी विवेकानंद अपने शिष्य स्वामी अखंडानंद के साथ अगस्त 1890 में नैनीताल से पैदल अल्मोड़ा के लिए निकले थे.
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अपने उत्तराखंड भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद काकड़ीघाट में एक झरने के किनारे पानी की चक्की के पास ठहरे थे. जिसके बाद विवेकानंद स्नान करने के बाद पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करने बैठे गए. ध्यान में एक घंटा बीत जाने के बाद स्वामी जी ने अखंडानंद से कहा देखो गंगाधर इस पीपल के वृक्ष के नीचे एक अत्यंत शुभ मुहूर्त बीत गया है. आज एक बड़ी समस्या का समाधान हो गया है.
उन्होंने अपने परम शिष्य स्वामी अखंडानंद से कहा कि उन्होंने जान लिया है कि विश्व ब्रह्माण्ड और अणु ब्रह्माण्ड दोनों एक ही नियम से प्रतिपाधित होते हैं. जिस पूरे वाकये की कहानी पीपल का पेड़ आज भी बयां कर रहा है. जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.