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देवभूमि के इस जगह स्वामी विवेकानंद को हुई थी ज्ञान की प्राप्ति, पीपल का पेड़ दे रहा गवाही

जब भी स्वामी विवेकानंद विदेश से भारत आते थे, वो अपनी थकान मिटाने के लिए देवभूमि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों का रुख करते थे. यहां स्वामी विवेकानंद लंबे समय तक साधना में लीन रहते थे.

उत्तराखंड में हुई थी स्वामी विवेकानंद को ज्ञान की प्राप्ति.
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Published : May 17, 2019, 7:03 AM IST

Updated : May 17, 2019, 8:47 AM IST

अल्मोड़ा: देवभूमि उत्तराखंड को देवों की धरा कहा जाता है. यहां के पौराणिक मंदिर श्रद्धालुओं को देवत्व से साक्षात्कार कराते रहते हैं. यहां कई साधु संतों ने अपने तप से ज्ञान की प्राप्ति की है. उन्हीं में एक थे स्वामी विवेकानंद, जिन्होंने अपने ज्ञान से पूरे विश्व को हिन्दू धर्म की महत्ता से रूबरू कराया था. लेकिन उनका भी देवभूमि से खासा नाता रहा है. स्वामी विवेकानंद को काकड़ीघाट स्थित पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था. ये स्थान आज भी उनकी साधना की गवाही देता नजर आता है.

मंदिर में दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु.

उल्लेखनीय है कि जब भी स्वामी विवेकानंद विदेश से भारत आते थे, वो अपनी थकान मिटाने के लिए देवभूमि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों का रुख करते थे. यहां स्वामी विवेकानंद लंबे समय तक साधना में लीन रहते थे. स्वामी विवेकानंद अपने शिष्य स्वामी अखंडानंद के साथ अगस्त 1890 में नैनीताल से पैदल अल्मोड़ा के लिए निकले थे.

अपने उत्तराखंड भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद काकड़ीघाट में एक झरने के किनारे पानी की चक्की के पास ठहरे थे. जिसके बाद विवेकानंद स्नान करने के बाद पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करने बैठे गए. ध्यान में एक घंटा बीत जाने के बाद स्वामी जी ने अखंडानंद से कहा देखो गंगाधर इस पीपल के वृक्ष के नीचे एक अत्यंत शुभ मुहूर्त बीत गया है. आज एक बड़ी समस्या का समाधान हो गया है.

उन्होंने अपने परम शिष्य स्वामी अखंडानंद से कहा कि उन्होंने जान लिया है कि विश्व ब्रह्माण्ड और अणु ब्रह्माण्ड दोनों एक ही नियम से प्रतिपाधित होते हैं. जिस पूरे वाकये की कहानी पीपल का पेड़ आज भी बयां कर रहा है. जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

अल्मोड़ा: देवभूमि उत्तराखंड को देवों की धरा कहा जाता है. यहां के पौराणिक मंदिर श्रद्धालुओं को देवत्व से साक्षात्कार कराते रहते हैं. यहां कई साधु संतों ने अपने तप से ज्ञान की प्राप्ति की है. उन्हीं में एक थे स्वामी विवेकानंद, जिन्होंने अपने ज्ञान से पूरे विश्व को हिन्दू धर्म की महत्ता से रूबरू कराया था. लेकिन उनका भी देवभूमि से खासा नाता रहा है. स्वामी विवेकानंद को काकड़ीघाट स्थित पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था. ये स्थान आज भी उनकी साधना की गवाही देता नजर आता है.

मंदिर में दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु.

उल्लेखनीय है कि जब भी स्वामी विवेकानंद विदेश से भारत आते थे, वो अपनी थकान मिटाने के लिए देवभूमि उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों का रुख करते थे. यहां स्वामी विवेकानंद लंबे समय तक साधना में लीन रहते थे. स्वामी विवेकानंद अपने शिष्य स्वामी अखंडानंद के साथ अगस्त 1890 में नैनीताल से पैदल अल्मोड़ा के लिए निकले थे.

अपने उत्तराखंड भ्रमण के दौरान स्वामी विवेकानंद काकड़ीघाट में एक झरने के किनारे पानी की चक्की के पास ठहरे थे. जिसके बाद विवेकानंद स्नान करने के बाद पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करने बैठे गए. ध्यान में एक घंटा बीत जाने के बाद स्वामी जी ने अखंडानंद से कहा देखो गंगाधर इस पीपल के वृक्ष के नीचे एक अत्यंत शुभ मुहूर्त बीत गया है. आज एक बड़ी समस्या का समाधान हो गया है.

उन्होंने अपने परम शिष्य स्वामी अखंडानंद से कहा कि उन्होंने जान लिया है कि विश्व ब्रह्माण्ड और अणु ब्रह्माण्ड दोनों एक ही नियम से प्रतिपाधित होते हैं. जिस पूरे वाकये की कहानी पीपल का पेड़ आज भी बयां कर रहा है. जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

Intro:भारतीय दर्शनों को दुनिया तक पहुचाकर भारत का नाम पूरे दुनिया मे रोशन करने वाले भारत की महान विभूतियों में शुमार स्वामी विवेकानंद को आखिर ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई थी। अगर आपको मालूम न हो तो आज ईटीवी भारत आपको बताने जा रहा है उस जगह के बारे में जहाँ स्वामी विवेवेकानंद को परम ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उस ज्ञान की प्राप्ति के बाद विवेकानद ने अमेरिका के शिकागो शहर में भाषण देकर भारत का लोहा पूरे दुनिया मे मनाया था।


Body:सन 1890 यह वो साल था जब स्वामी विवेकानंद ज्ञान की खोज में हिमालय की यात्रा पर निकले थे। हिमालय की यात्रा के क्रम में सबसे पहले उन्होंने कुमाऊं का रुख किया। कुमाऊं के द्वार माने जाने वाला काठगोदाम में उतरने के बाद स्वामी विवेकानंद अपने शिष्य अखंडानंद के साथ पैदल अल्मोड़ा की ओर रास्ता लगे। पैदल चलकर तीसरे दिन अल्मोड़ा जिले के काकड़ीघाट नामक जगह में पहुचने पर उन्होंने वहां आराम किया। कोसी और सुयाल नदी के संगम में बसे काकड़ीघाट के कंकडेश्वर मंदिर की धर्मशाला में आराम करने के बाद दूसरी सुबह स्वामी विवेकानंद ने नदी के संगम में स्नान कर पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान लगाया। बताते हैं कि लगभग एक घंटे बाद स्वामी विवेकानंद को उस जगह पर एक अदभुद अनुभूति हुई और स्रष्टि का ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने शिष्य अखंडानंद से कहा देखो गंगाधर इस वृक्ष के नीचे एक अत्यंत शुभ मुहूर्त बीत गया है। आज एक बड़ी समस्या का समाधान हो चुका है। मैंने जान लिया कि समष्टि और व्यष्टि यानी विश्व ब्रह्मांड तथा अणु ब्रह्मांड दोनों एक ही नियम से सरंचना हुई हैं। स्वामी अखंडानंद की नोट बुक में स्वामी विवेकानद ने उस क्षण का अनुभव लिखा। उन्होंने अपने अनुभव की कुछ अन्य बातें भी अखंडानंद को बताई। जानकर बताते है कि इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्होंने 1893 में शिकागो में भाषण दिया जिसके बाद पूरी दुनिया मे उनको प्रसिद्धि मिली।
अल्मोड़ा और नैनीताल जिले की सीमा पर स्थित काकड़ीघाट नामक जगह सुयाल और कोसी नदी के संगम में बसा बड़ा ही रमणीक स्थल है। जिस जगह पर स्वामी विवेकानंद को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी वहां कंकडेश्वर महादेव का मंदिर और भैरव का मंदिर है। इस जगह पर एक 200 साल पुराना विशालकाय पीपल का पेड़ हुआ करता था लेकिन 2014 में वह पेड़ सूख चुका था उसकी जगह पर 2016 में जीबी पंत पंतनगर के वैज्ञानिकों ने उसी पुराने पेड़ के क्लोन से तैयार कर नया पेड़ रोपित किया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यहाँ पर स्वामी विवेकानद को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी इतना महत्वपूर्ण स्थल होने के बाद भी यह जगह पर्यटन के लिए आज तक विकसित नही हो पाया है। यहाँ पर आजतक स्वामी विवेकानद की मूर्ति तक नही लग पाई। हालांकि दूर दराज से लोगों की आवक यहाँ जरूर रहती है। लेकिन सरकार की तरफ से इसकी ओर कोई ध्यान न दिए जाने से यह स्थल गुमनामी की ओर जा रहा है।

बाइट 1 खीमानंद, स्थानीय निवासी काकड़ीघाट
बाइट 2 नवीन स्थानीय निवासी काकड़ीघाट
बाइट 3 चंद्र सिंह चौहान, इतिहासकार व पुरातत्ववेत्ता
बाइट 4 स्वामी परानाथ, रामकृष्ण कुटीर





Conclusion:
Last Updated : May 17, 2019, 8:47 AM IST
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