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प्रीति ने परिश्रम और हौंसले से हासिल किया मुकाम, मशरूम उत्पादन के लिए मिला तीलू रौतेली पुरस्कार

मशरूम उत्पादन के लिए अल्मोड़ा की प्रीति भंडारी को तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. प्रीति भंडारी पिछले पांच सालों से लगातार मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में काम करते हुए युवाओं और महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ रही हैं.

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प्रीति ने परिश्रम और हौंसले से हासिल किया मुकाम
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Published : Aug 8, 2020, 6:21 PM IST

अल्मोड़ा: वो कहते हैं न कुछ करने का जज्बा हो तो हर राह आसान हो जाती है, बस इरादों में दम होना चाहिए... इसी कहावत को अल्मोड़ा की रहने वाली प्रीति भंडारी ने चरितार्थ कर दिखाया है. प्रीति भंडारी को तीलू रौतेली पुरस्कार से नवाजा गया. प्रीति को यह पुरस्कार मशरुम के क्षेत्र में किये गये विशेष कार्य के लिए दिया गया. बता दें प्रीति ने एक छोटे से घर में मशरूम का सफल उत्पादन करते हुए इसे महिलाओं के स्वरोजगार का जरिया बनाया. आज वे कई युवाओं और महिलाओं को प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रही हैं.

प्रीति ने परिश्रम और हौंसले से हासिल किया मुकाम

वीरांगना तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए नामित होने के बाद प्रीति ने अपने अनुभवों को साझा किया. जिसमें उन्होंने बताया कि पांच साल पहले उन्होंने मशरूम के क्षेत्र में काम करते हुए स्वरोजगार करने की जिद ठानी थी. जिसके लिए उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. वे बताती हैं कि पांच साल पहले उन्होंने एक छोटे से कमरे में सिर्फ 20 थैलों से मशरूम उगाने का काम शुरू किया. जिसके लिए पहले उन्होंने प्रशिक्षण लिया, फिर इस दिशा में कदम आगे बढ़ाया.

पढ़ें- खटीमा: पुलिस के हत्थे चढ़े दो शातिर मोबाइल चोर, भेजा जेल

उन्होंने कहा शुरुआत में उनके पास अनुभव और संसाधनों का अभाव था. जिसके कारण मशरूम उगाने और उसे बाजार तक पहुंचाने में उन्हें बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा. मगर बीतते वक्त के साथ धीरे-धीरे चुनौतियों से पार पाते हुए उन्होंने कदम आगे बढ़ाये. पांच साल की कड़ी मेहनत के बाद आज प्रीति तीन जगहों पर मशरूम उगाती हैं. वह बटन और ढिंगरी दोनों ही प्रजाति के मशरूमों का उत्पादन कर रही हैं. वे बताती हैं कि बाजार में इन दोनों की काफी डिमांड है. इसके साथ ही वे मशरूम से अचार भी बनाती हैं. मशरूम के इस अचार की डिमांड दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भी होने लगी है.

पढ़ें- धर्मनगरी से फूंका था राम मंदिर आंदोलन का बिगुल, 500 साल का सपना हुआ साकार

इन पांच सालों में प्रीति ने मशरूम को अच्छे तरीके से उगाने और इसकी अच्छी मार्केटिंग के लिए कई बार प्रशिक्षण भी लिया. आज वह एक कुशल प्रशिक्षक भी हैं. वह नए उत्पादकों को निजी रूप से भी प्रशिक्षण देती हैं. वहीं, उनके द्वारा सरकारी और सामूहिक प्रशिक्षण भी दिए जा रहे हैं. उनकी इसी उद्यमशीलता को देखते हुए सरकार ने उन्हें इस बार का तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए चयनित किया.

पढ़ें-हल्द्वानी: 37 करोड़ रुपये की लागत से बना ऑडिटोरियम खंडहर में तब्दील

प्रीति भंडारी का कहना है कि उन्होंने मशरूम के काम से कामयाबी पाने के लिए काफी संघर्ष किया है. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बाद भी उन्होंने जी जान से इस पर किया. आज उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि वे इस मुकाम पर हैं. प्रीति आज मशरूम के क्षेत्र में काम करते हुए अपने परिवार के साथ ही अन्य महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ रही है. वह बताती हैं कि वे इस काम से हर महीने आसानी से 25—30 हजार रुपये कमा लेती हैं. प्रशिक्षण से होने वाली आय इसके अतिरिक्त है.

अल्मोड़ा: वो कहते हैं न कुछ करने का जज्बा हो तो हर राह आसान हो जाती है, बस इरादों में दम होना चाहिए... इसी कहावत को अल्मोड़ा की रहने वाली प्रीति भंडारी ने चरितार्थ कर दिखाया है. प्रीति भंडारी को तीलू रौतेली पुरस्कार से नवाजा गया. प्रीति को यह पुरस्कार मशरुम के क्षेत्र में किये गये विशेष कार्य के लिए दिया गया. बता दें प्रीति ने एक छोटे से घर में मशरूम का सफल उत्पादन करते हुए इसे महिलाओं के स्वरोजगार का जरिया बनाया. आज वे कई युवाओं और महिलाओं को प्रशिक्षण देकर स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर रही हैं.

प्रीति ने परिश्रम और हौंसले से हासिल किया मुकाम

वीरांगना तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए नामित होने के बाद प्रीति ने अपने अनुभवों को साझा किया. जिसमें उन्होंने बताया कि पांच साल पहले उन्होंने मशरूम के क्षेत्र में काम करते हुए स्वरोजगार करने की जिद ठानी थी. जिसके लिए उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. वे बताती हैं कि पांच साल पहले उन्होंने एक छोटे से कमरे में सिर्फ 20 थैलों से मशरूम उगाने का काम शुरू किया. जिसके लिए पहले उन्होंने प्रशिक्षण लिया, फिर इस दिशा में कदम आगे बढ़ाया.

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उन्होंने कहा शुरुआत में उनके पास अनुभव और संसाधनों का अभाव था. जिसके कारण मशरूम उगाने और उसे बाजार तक पहुंचाने में उन्हें बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा. मगर बीतते वक्त के साथ धीरे-धीरे चुनौतियों से पार पाते हुए उन्होंने कदम आगे बढ़ाये. पांच साल की कड़ी मेहनत के बाद आज प्रीति तीन जगहों पर मशरूम उगाती हैं. वह बटन और ढिंगरी दोनों ही प्रजाति के मशरूमों का उत्पादन कर रही हैं. वे बताती हैं कि बाजार में इन दोनों की काफी डिमांड है. इसके साथ ही वे मशरूम से अचार भी बनाती हैं. मशरूम के इस अचार की डिमांड दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भी होने लगी है.

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इन पांच सालों में प्रीति ने मशरूम को अच्छे तरीके से उगाने और इसकी अच्छी मार्केटिंग के लिए कई बार प्रशिक्षण भी लिया. आज वह एक कुशल प्रशिक्षक भी हैं. वह नए उत्पादकों को निजी रूप से भी प्रशिक्षण देती हैं. वहीं, उनके द्वारा सरकारी और सामूहिक प्रशिक्षण भी दिए जा रहे हैं. उनकी इसी उद्यमशीलता को देखते हुए सरकार ने उन्हें इस बार का तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए चयनित किया.

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प्रीति भंडारी का कहना है कि उन्होंने मशरूम के काम से कामयाबी पाने के लिए काफी संघर्ष किया है. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के बाद भी उन्होंने जी जान से इस पर किया. आज उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि वे इस मुकाम पर हैं. प्रीति आज मशरूम के क्षेत्र में काम करते हुए अपने परिवार के साथ ही अन्य महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ रही है. वह बताती हैं कि वे इस काम से हर महीने आसानी से 25—30 हजार रुपये कमा लेती हैं. प्रशिक्षण से होने वाली आय इसके अतिरिक्त है.

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