अल्मोड़ा: पहाड़ी क्षेत्रों पाये जाने वाले फल सेहत के साथ ही ग्रामीणों के लिए रोजगार का भी साधन हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में पाये जाने वाला एक ऐसा ही जंगली फल काफल है. औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ काफल स्थानीय लोगों की आर्थिकी का साधन भी है. लेकिन कोरोना काल मे पर्यटकों की आवाजाही बंद होने से काफल से जुड़े लोगों का रोजगार प्रभावित हो रहा है.
काफल अपने खट्टे-मीठे स्वाद के लिए जाना जाता है. स्वाद के कारण काफल की भारी डिमांड रहती है. सैलानी भी इस फल जमकर लुत्फ उठाते हैं.मध्य हिमालयी क्षेत्र में पाया जाने वाला काफल विटामिन, आयरन और एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है. काफल में तमाम औषधीय गुण पाये जाते हैं. जिसके चलते काफल एनीमिया, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस,जुखाम, अतिसार, बुखार, मूत्राशय रोग एवं यकृत संबंधी रोगों में रामबाण माना जाता है.
मनुष्य के 80 फीसदी रोगों की जड़ उसका पेट होता है, जबकि काफल पेट की गंदगी को बाहर निकालकर खून साफ करने में महत्पूर्ण माना जाता है. औषधीय गुणों और स्वाद को देखते हुए सीजन में काफल की भारी डिमांड रहती है. जिसके चलते ग्रामीण जंगलों से काफल तोड़कर बाजार में बेचते हैं. लेकिन कोरोना का असर काफल पर भी दिखायी दे रहा है.
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कोरोना के कारण जहां पर्यटक नदारद हैं, वहीं बाजार में लोगों की भीड़ कम होने के कारण काफल की बिक्री नहीं हो पा रही है. काफल बेचने वाले लोगों का कहना है कोरोना के चलते काफल की बिक्री पर भी असर पड़ा है. दिनभर वे मुश्किल से 300 से 500 रुपए कमा रहें हैं,.