रुद्रपुर: कम होती कृषि भूमि और लगातार बढ़ती जनसंख्या दिनों-दिन पशु वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बन गया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर देश में ऐसे ही हालत रहे तो देश में ह्यूमन बींग और जानवरों के बीच खाद्यान को लेकर टकराव हो सकता है. जिसे लेकर अब पशु वैज्ञानिक शोध कार्यो में जुटे हुए हैं.
भले ही भारत दुग्ध उत्पादन में विश्व में पहले पायदान पर हो, लेकिन देश में दुधारू पशुओं से होने वाले दुग्ध उत्पादन को लेकर पशु वैज्ञानिक चिंतित दिखाई दे रहे हैं. अन्य देशों के मुकाबले भारत में पशुओं की संख्या अधिक है, लेकिन उनसे मिलने वाले दूध की मात्रा बहुत कम है. ऐसे में भारत की बढ़ती जनसंख्या और कम होती कृषि भूमि वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय बनी हुई है. कम होती कृषि भूमि के कारण खाद्य श्रृंखला में दिनों-दिन बदलाव होते जा रहे हैं.
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इस मामले को लेकर पन्तनगर पशु विज्ञान महाविद्यालय के वैज्ञानिक शोध में जुटे हुए हैं. वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तराखंड के जिलों में दुधारू पशुओं की स्थिति दयनीय है. पहाड़ों के पशुओं से मिलने वाले दूध की मात्रा 2 लीटर से ढाई लीटर है. जिसे बढ़ाने के लिए शोधकार्य किये जा रहे हैं.
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इसके लिए पशुओं में क्रॉस ब्रीडिंग कर उनकी नस्ल को सुधारा जा रहा है. इसके साथ-साथ चारे की समस्या से निपटने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा गेंहू के भूसे व धान की पुआल को लेकर पोषक तत्व मिला कर बैग तैयार किया जा रहा है. जिसमें सभी पोषक तत्व मौजूद होंगे ताकि पशुओं के लिए चारे की कमी न हो.
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पंतनगर पशु चिकित्सक व पशु विज्ञान के डीन डॉ. वाई पीएस डबास ने बताया कि आने वाले समय में खाद्यान को लेकर समस्याएं बढ़ सकती हैं. वैज्ञानिकों की टीम लगातार इस पर शोध कार्य करते हुए ऐसे मिनरल मिक्चर तैयार कर रही है, ताकि चारा न होने पर भी पशुओं को भरपूर पौष्टिक आहार मिल सके.