पिथौरागढ़: उत्तराखंड के तीन जिले पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी 60 साल पहले आज ही के दिन अस्तित्व में आये थे. 1960 में जब चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत तिब्बत पर कब्जा करने लगा तो तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने भारत में शरण ली. जिसके कारण भारत और चीन के रिश्तों में खटास चरम पर पहुंच गयी. दोनों मुल्कों के बीच बढ़ती तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए 24 फरवरी, 1960 को अविभाजित उत्तर प्रदेश में तीन नये सीमांत जनपदों को मिलाकर कमिश्नरी का गठन किया गया. पौड़ी गढ़वाल में जहां चमोली तहसील को अलग जिले का दर्जा मिला, वहीं टिहरी से उत्तरकाशी और अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ जनपद अस्तित्व में आया.
उत्तराखंड कमिश्नरी के गठन का मुख्य उद्देश्य चीन से लगे सीमांत क्षेत्रों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ना था, ताकि चीन से लगी भारतीय सीमाओं को सुरक्षित किया जा सके. उत्तराखंड कमिश्नरी के गठन के शुरुआती दौर में तीनों सीमांत जिलों को सामरिक रूप से सशक्त बनाने और अवस्थापना सुविधाओं के विकास के लिए विशेष आर्थिक पैकेज दिया जाता था. लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता चला गया इन जनपदों की उपेक्षा होती चली गई. आज हालात ये ही कि इन जिलों में पलायन, बेरोजगारी ने अपने पैर पसार लिए हैं.
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आज ये जिले शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पूरी तरह खाली हो गये हैं. लोग गांव से शहरों और शहरों से महानगरों की ओर पलायन कर रहे हैं. राज्य बनने के बाद कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने बारी-बारी से राज किया, मगर इन सीमांत जनपदों की ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया.
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2011 की जनगणना के अनुसार उत्तरकाशी में 63, पिथौरागढ़ में 45, चमोली में 18 गावों से 50 प्रतिशत लोग पलायन कर चुके हैं. उत्तराखंड पलायन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार चीन सीमा से लगे तीनों जिलों में कुल 250 गांव पलायन की मार झेल रहे हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की पहल पर चीन सीमा से सटे खाली हो रहे इन गांवों को फिर से बसाने के लिए विशेष योजना बनाई जा रही है.