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ग्रेफिन से होगा पेट्रोलियम पदार्थों का उत्पादन, कुमाऊं विश्वविद्यालय साझा कर रहा तकनीक - Chemistry of Kumaon

ग्रेफिन कार्बन का ही नैनो रूप है. इससे आधुनिक दौर के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट तैयार किए जाएंगे. ग्रैफिन के जरिए बनने वाले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट हल्के और बेहद मजबूत होते हैं.  ग्रैफिन से बनने वाली बैटरियां आज की बैटरियों के मुकाबले तीन गुना अधिक काम करेंगी.

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ग्रेफिन से होगा पेट्रोलियम पदार्थों का उत्पादन
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Published : Dec 30, 2019, 10:45 PM IST

Updated : Dec 30, 2019, 11:23 PM IST

नैनातील: तेजी से बढ़ रहे प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग ने अलग-अलग संस्थाओं से करार कर रहा है. विश्वविद्यालय अपनी ग्रैफिन तकनीकी को नई दिल्ली के राष्ट्रीय अनुसंधान विकास परिषद समेत एनएमएचएस कोसी कटारमल समेत हेसक्रॉप प्राइवेट लिमिटेड के साथ साझा कर प्रदूषण से निपटेगा. इस करार के बाद उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे कचरे और प्लास्टिक की समस्या से निपटा जाएगा.

ग्रेफिन से होगा पेट्रोलियम पदार्थों का उत्पादन

कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान के प्रोफेसर नंदलाल साहू ने कहा ग्रैफिन तकनीक बहुत ही उपयोगी तकनीक है. इसकी मदद से भारतीय सेना के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट भी बनाई जाएगी, जोकि कम लागत के साथ अधिक गुणवत्ता वाली होगी.

पढ़ें-थराली: खोई लाइसेंसी रिवाल्वर झाड़ियों से बरामद, पुलिस ने ली राहत की सांस
क्या है ग्रेफिन
ब्रिटेन की एक यूनिवर्सिटी के शोध छात्र आंद्रे सीमा और कांस्टेटिन नोवोसेलोव ने 2004 में कार्बन के नैनो रूप यानी ग्रेफिन की खोज कर तहलका मचा दिया था. ग्रेफिन कार्बन का ही नैनो रूप है. इससे आधुनिक दौर के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट तैयार किए जाएंगे. ग्रैफिन के जरिए बनने वाले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट हल्के और बेहद मजबूत होते हैं. ग्रैफिन से बनने वाली बैटरियां आज की बैटरियों के मुकाबले तीन गुना अधिक काम करेंगी.

पढ़ें-जनरल बिपिन रावत जल्द बनाए जा सकते हैं CDS, सरकार ने बदला ये नियम

ग्रेफिन के उपयोग से बनने वाले कंप्यूटर आज के मुकाबले कम बिजली और 3 गुना अधिक स्पीड से काम कर सकते हैं. ग्रेफिन का इस्तेमाल सोलर पैनल में भी किया जा सकता है. नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से खोजे गए ग्रेफिन का प्रयोग जेट विमान के इंजन से लेकर सड़क निर्माण और दवा बनाने के लिए भी किया जा सकता है.

पढ़ें-हल्द्वानीः प्रियंका गांधी से अभद्रता के खिलाफ कांग्रेसियों ने किया प्रदर्शन, फूंका पुतला

कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान के प्रोफेसर नंद लाल साहू ने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन में ग्रैफिन के इस्तेमाल से न केवल उसकी क्षमता बढ़ाई जा सकेगी, बल्कि बिजली की भी खपत कम होगी. उन्होंने बताया कि भारत ग्रेफिन के इस्तेमाल से दूर था, लेकिन अब भारत में भी कई स्थानों पर इसकी प्रयोगशाला लगाई गई हैं. इन प्रयोगशालाओं में कई प्रकार के पदार्थ भी बनने लगे हैं. जिनसे पेट्रोलियम पदार्थ, दवाई समेत अन्य महत्वपूर्ण पदार्थों का निर्माण शामिल है.

पढ़ें-देहरादून: लूटकांड में फरार इनामी आरोपी को पुलिस ने किया गिरफ्तार, भेजा जेल

बता दें कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग में 2016 में ग्रैफिन का उत्पादन किया गया था. जिसके बाद आज कुमाऊं विश्वविद्यालय ने ग्रैफिन बनाने की तकनीक को नई दिल्ली के राष्ट्रीय अनुसंधान विकास परिषद और एनएमएचएस कोसी कटारमल समेत हेसक्रॉप प्राइवेट लिमिटेड के साथ करार किया.

नैनातील: तेजी से बढ़ रहे प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग ने अलग-अलग संस्थाओं से करार कर रहा है. विश्वविद्यालय अपनी ग्रैफिन तकनीकी को नई दिल्ली के राष्ट्रीय अनुसंधान विकास परिषद समेत एनएमएचएस कोसी कटारमल समेत हेसक्रॉप प्राइवेट लिमिटेड के साथ साझा कर प्रदूषण से निपटेगा. इस करार के बाद उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे कचरे और प्लास्टिक की समस्या से निपटा जाएगा.

ग्रेफिन से होगा पेट्रोलियम पदार्थों का उत्पादन

कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान के प्रोफेसर नंदलाल साहू ने कहा ग्रैफिन तकनीक बहुत ही उपयोगी तकनीक है. इसकी मदद से भारतीय सेना के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट भी बनाई जाएगी, जोकि कम लागत के साथ अधिक गुणवत्ता वाली होगी.

पढ़ें-थराली: खोई लाइसेंसी रिवाल्वर झाड़ियों से बरामद, पुलिस ने ली राहत की सांस
क्या है ग्रेफिन
ब्रिटेन की एक यूनिवर्सिटी के शोध छात्र आंद्रे सीमा और कांस्टेटिन नोवोसेलोव ने 2004 में कार्बन के नैनो रूप यानी ग्रेफिन की खोज कर तहलका मचा दिया था. ग्रेफिन कार्बन का ही नैनो रूप है. इससे आधुनिक दौर के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट तैयार किए जाएंगे. ग्रैफिन के जरिए बनने वाले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट हल्के और बेहद मजबूत होते हैं. ग्रैफिन से बनने वाली बैटरियां आज की बैटरियों के मुकाबले तीन गुना अधिक काम करेंगी.

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ग्रेफिन के उपयोग से बनने वाले कंप्यूटर आज के मुकाबले कम बिजली और 3 गुना अधिक स्पीड से काम कर सकते हैं. ग्रेफिन का इस्तेमाल सोलर पैनल में भी किया जा सकता है. नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से खोजे गए ग्रेफिन का प्रयोग जेट विमान के इंजन से लेकर सड़क निर्माण और दवा बनाने के लिए भी किया जा सकता है.

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कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान के प्रोफेसर नंद लाल साहू ने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन में ग्रैफिन के इस्तेमाल से न केवल उसकी क्षमता बढ़ाई जा सकेगी, बल्कि बिजली की भी खपत कम होगी. उन्होंने बताया कि भारत ग्रेफिन के इस्तेमाल से दूर था, लेकिन अब भारत में भी कई स्थानों पर इसकी प्रयोगशाला लगाई गई हैं. इन प्रयोगशालाओं में कई प्रकार के पदार्थ भी बनने लगे हैं. जिनसे पेट्रोलियम पदार्थ, दवाई समेत अन्य महत्वपूर्ण पदार्थों का निर्माण शामिल है.

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बता दें कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग में 2016 में ग्रैफिन का उत्पादन किया गया था. जिसके बाद आज कुमाऊं विश्वविद्यालय ने ग्रैफिन बनाने की तकनीक को नई दिल्ली के राष्ट्रीय अनुसंधान विकास परिषद और एनएमएचएस कोसी कटारमल समेत हेसक्रॉप प्राइवेट लिमिटेड के साथ करार किया.

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प्लास्टिक से ग्रेफिन बनाने की तकनीक का कुमाऊं विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय अनुसंधान विकास परिषद समेत अन्य के साथ किया करार।

Intro

तेजी से बढ़ रहे प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण से निपटने के लिए कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग द्वारा अपनी ग्रैफीन तकनीकी को राष्ट्रीय अनुसंधान विकास परिषद नई दिल्ली समेत एन एम एच एस कोसी कटारमल समेत हेसक्रॉप प्राइवेट लिमिटेड के बीच करार कर दिया है, जिसके बाद अब उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे कचरे और प्लास्टिक की समस्या से निपटा जाएगा, वही रसायन विज्ञान के प्रोफ़ेसर नंदलाल साहू का कहना है कि ग्रैफीन की मदद से भारतीय सैनिकों के लिए बुलेट प्रूफ जैकेट भी बनाई जाएंगी जो कम लागत और अधिक गुणवत्ता वाली होगी।


Body:आइए आपको बताएं कि आखिर यह ग्रेफिन है क्या -

ब्रिटेन की एक यूनिवर्सिटी के शोध छात्र आंद्रे सीमा और काँस्टेटिन नोवोसेलोव ने 2004 में उस वक्त विज्ञान जगत में तहलका मचा दिया था जब दोनों ने कार्बन के नैनो रूपी यानी ग्रेफिन की खोज की, ग्रेफिन कार्बन का नैनो रूप है
जिससे आधुनिक दौर के इलेक्ट्रॉनिक गैजेट तैयार किए जाएंगे, ग्रैफीन के जरिए बनने वाले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट हल्के और बेहद मजबूत होंगे, ग्रैफीन से बनने वाली बैटरीया आज की बैटरी के मुकाबले तीन गुना अधिक काम करेंगी,, इसके उपयोग से कंप्यूटर आज के मुकाबले कम बिजली और 3 गुना अधिक स्पीड से काम करेंगे,, ग्राफीन का इस्तेमाल सोलर पैनल में किया जाएगा जो आज प्रयोग होने वाले सोलर पैनल में यदि ग्रेफिन की फिल्म चढ़ा दी जाए तो ऐसे पैनल आज के मुकाबले तीन अधिक सूर्य किरणें ऊर्जा का उत्पादन करेंगे।
यह पदार्थ इतना कारगर है इसके उपयोग से मानव जीवन के लिए इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं का इस्तेमाल बेहद सरल और किफायती हो जाएगा, नैनो टेक्नोलॉजी की मदद से खोजे गए ग्राफइन का प्रयोग जेट विमान के इंजन से लेकर सड़क निर्माण दवा बनाने के लिए किया जाएगा।


Conclusion:वही कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान के प्रोफेसर नंद लाल साहू बताते हैं कि ग्रैफीन से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादन में इस्तेमाल से ना केवल उसकी क्षमता बढ़ाई जा सकेगी बल्कि बिजली का भी कम से कम प्रयोग हो सकेगा,
भारत अभी ग्राफ इनके इस्तेमाल से दूर था लेकिन अब भारत में भी कई स्थानों पर प्रगति की प्रयोगशाला में लगाई गई हैं और इन प्रयोगशालाओं में कई प्रकार के पदार्थ भी बनने लगे हैं जिनसे पेट्रोलियम पदार्थ, दवाई समेत अन्य महत्वपूर्ण पदार्थों का निर्माण करा जाने लगा है।
कुमाऊं विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग में 2016 में ग्रैफीन का उत्पादन किया गया था जिसके बाद आज कुमाऊं विश्वविद्यालय के द्वारा ग्रैफीन बनाने की तकनीक को राष्ट्रीय अनुसंधान विकास परिषद नई दिल्ली, एन एम एच एस कोसी कटारमल समेत हेसक्रॉप प्राइवेट लिमिटेड के बीच करार कर दिया है, जिसके बाद अब उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहे कचरे और प्लास्टिक की समस्या से निपटा जाएगा,
कुल मिलाकर कहा जाए तो ग्रैफीन आने वाले युग के लिए एक क्रांति है जिस पर अभी और अधिक शोध होना बाकी है

बाईट- नंद लाल साहू, प्रोफेसर रसायन विज्ञान
बाईट- प्रो के एस राणा,कुलपति कुमाऊं विश्व विद्यालय।
Last Updated : Dec 30, 2019, 11:23 PM IST
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