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राज्य सरकार को नैनीताल हाई कोर्ट से बड़ी राहत, पंचायत चुनाव में आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

नैनीताल हाई कोर्ट ने पंचायत चुनाव में आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की खंडपीठ ने माना कि राज्य सरकार द्वारा तय किया गया आरक्षण सही है.

नैनीताल हाईकोर्ट
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Published : Sep 18, 2019, 11:29 PM IST

Updated : Sep 18, 2019, 11:54 PM IST

नैनीताल: हाई कोर्ट से राज्य सरकार को पंचायत चुनाव में आरक्षण तय करने के मामले में बड़ी राहत मिली है. नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. वहीं, मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की खंडपीठ ने माना कि राज्य सरकार द्वारा तय किया गया आरक्षण सही है.

पढ़ें: दिग्विजय सिंह के विवादित बयान पर भड़का संत समाज, बोले माफी मांगे दिग्विजय

बता दें कि किच्छा निवासी लाल बहादुर कुशवाहा ने नैनीताल हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि सरकार नियमों के खिलाफ पंचायतों में आरक्षण लागू कर रही है. याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार द्वारा जारी 13 अगस्त और 22 अगस्त के नोटिफिकेशन को चुनौती दी थी, जिसमें सरकार ने पंचायत चुनाव में आरक्षण व्यवस्था को दो भागों में विभाजित किया था.

याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार ने एक ग्राम जिसमें कोई फेरबदल नहीं किया, उसमें आरक्षण चौथे चक्र में लागू करने की व्यवस्था की है. साथ ही जिस ग्राम पंचायत में नए वोटर बने हैं या जिनमें 50 प्रतिशत सदस्य जुड़े हैं या कोई नई ग्राम पंचायत बनी है उसमें प्रथम चक्र के आरक्षण की व्यवस्था की है, जोकि गलत है. साथ ही याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार की यह आरक्षण व्यवस्था उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1994 के प्रधान के भी खिलाफ है. इसलिए उत्तराखंड सरकार ये नोटिफिकेशन निरस्त करने योग्य है.

वहीं, मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आरक्षण के मामले में राहत देते हुए याचिका को खारिज कर दिया. सरकार द्वारा जारी किए गए आरक्षण के फैसले को सही माना.

नैनीताल: हाई कोर्ट से राज्य सरकार को पंचायत चुनाव में आरक्षण तय करने के मामले में बड़ी राहत मिली है. नैनीताल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है. वहीं, मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट की खंडपीठ ने माना कि राज्य सरकार द्वारा तय किया गया आरक्षण सही है.

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बता दें कि किच्छा निवासी लाल बहादुर कुशवाहा ने नैनीताल हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि सरकार नियमों के खिलाफ पंचायतों में आरक्षण लागू कर रही है. याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार द्वारा जारी 13 अगस्त और 22 अगस्त के नोटिफिकेशन को चुनौती दी थी, जिसमें सरकार ने पंचायत चुनाव में आरक्षण व्यवस्था को दो भागों में विभाजित किया था.

याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार ने एक ग्राम जिसमें कोई फेरबदल नहीं किया, उसमें आरक्षण चौथे चक्र में लागू करने की व्यवस्था की है. साथ ही जिस ग्राम पंचायत में नए वोटर बने हैं या जिनमें 50 प्रतिशत सदस्य जुड़े हैं या कोई नई ग्राम पंचायत बनी है उसमें प्रथम चक्र के आरक्षण की व्यवस्था की है, जोकि गलत है. साथ ही याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य सरकार की यह आरक्षण व्यवस्था उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1994 के प्रधान के भी खिलाफ है. इसलिए उत्तराखंड सरकार ये नोटिफिकेशन निरस्त करने योग्य है.

वहीं, मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आरक्षण के मामले में राहत देते हुए याचिका को खारिज कर दिया. सरकार द्वारा जारी किए गए आरक्षण के फैसले को सही माना.

Intro:Summry

उत्तराखंड में होने वाले पंचायत चुनाव में में आरक्षण दिए जाने के मामले में राज्य सरकार को नैनीताल हाई कोर्ट से बड़ी राहत।

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नैनीताल हाईकोर्ट से राज्य सरकार को पंचायत चुनाव में आरक्षण तय करने के मामले में बड़ी राहत मिली है नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया, वहीं कोर्ट के आदेश के बाद पंचायत में आरक्षण बदलाव की संभावनाओ और अटकलों पर पूरी तरह से विराम लग गया है,,
मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने माना कि राज्य सरकार द्वारा तय किया गया आरक्षण सही है।


Body:आपको बता दें कि किच्छा निवासी लाल बहादुर कुशवाहा ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि सरकार नियम विरुद्ध तरह से पंचायतों में आरक्षण लागू कर रही है जो गलत है वही याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार द्वारा जारी 13 अगस्त और 22 अगस्त के नोटिफिकेशन को चुनौती दी है जिसमें सरकार ने पंचायत चुनाव में आरक्षण व्यवस्था को दो भागों में विभाजित किया था।


Conclusion:सरकार द्वारा एक ग्राम पंचायत चुनाव जिसमें कोई फेरबदल नहीं किया गया हो उस में आरक्षण चौथे चक्र में लागू करने की व्यवस्था की गई है जबकि दूसरे 1 ग्राम में वह पंचायत जिसमें नए वोट बने हैं या जिनमें 50% ने सदस्य जुड़े हैं या कोई नई ग्राम पंचायत बनी है उसमें प्रथम चक्र का आरक्षण की व्यवस्था की गई है जो गलत है, साथ ही याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य सरकार की यह आरक्षण व्यवस्था उत्तर प्रदेश पंचायती राज अधिनियम 1994 के प्रधान के भी विरुद्ध है इसलिए उत्तराखंड सरकार ये नोटिफिकेशन निरस्त करने योग्य है।
मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आरक्षण के मामले बड़ी राहत देते हुए याचिका को खारिज कर दिया और सरकार द्वारा जारी किए गए आरक्षण के फैसले को सही माना।
Last Updated : Sep 18, 2019, 11:54 PM IST
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