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हरिद्वार पुस्तकालय घोटाले पर हाईकोर्ट सख्त, नगर निगम से मांगा जवाब

हरिद्वार पुस्तकालय घोटाले में हाईकोर्ट ने नगर निगम से जवाब मांगा है. नगर निगम को जवाब देने के लिए 2 हफ्ते का समय दिया है.

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हरिद्वार पुस्तकालय घोटाले के मामले पर हाईकोर्ट सख्त
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Published : Aug 4, 2021, 7:28 PM IST

Updated : Aug 4, 2021, 7:42 PM IST

नैनीताल: हरिद्वार के बहुचर्चित पुस्तकालय घोटाले पर नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में सुनवाई हुई. सुनवाई में हाईकोर्ट ने नगर निगम को अपना विस्तृत जवाब 2 सप्ताह के भीतर पेश करने के आदेश दिए हैं.

आज सुनवाई के दौरान नगर निगम के द्वारा याचिका पर आपत्ति दर्ज की गई. कहा गया कि पूर्व में हुई जनहित याचिका में सुनवाई के बाद नगर निगम के द्वारा सभी पुस्तकालयों को अपने अधीन लेकर नगर निगम के नाम पर चढ़ा दिया गया है. जिस पर अधिवक्ता शिव भट्ट ने कोर्ट को बताया कि हरिद्वार के तत्कालीन डीएम दीपक रावत के द्वारा पुस्तकालय को अपने अधीन लेने की बात कही गई, जबकि मुख्य विकास अधिकारी के द्वारा नवम्बर 2019 से मार्च 2020 तक 3 पत्र जारी कर पुस्तकालय हस्तांतरण न लेने की बात कही गई.

हरिद्वार पुस्तकालय घोटाले के मामले पर हाईकोर्ट सख्त

पढ़ें- हरिद्वार के 16 पुस्तकालयों के घोटाले की पड़ताल, ढूंढ़ने से भी नहीं मिली डेढ़ करोड़ की लाइब्रेरी

मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने नगर निगम हरिद्वार को अपना विस्तृत जवाब 2 सप्ताह के भीतर कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं.

पढ़ें- त्रिवेंद्र बोले शुरू होनी चाहिए चारधाम यात्रा, फ्री बिजली को बताया केजरीवाल का 'पासा'

बता दें देहरादून निवासी याचिकाकर्ता सच्चिदानंद डबराल के द्वारा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा गया है कि 2010 में तत्कालीन विधायक मदन कौशिक के द्वारा विधायक निधि से करीब डेढ़ करोड़ की लागत से 16 पुस्तकालय बनाने के लिए पैसा आवंटित किया गया. पुस्तकालय बनाने के लिए भूमि पूजन से लेकर उद्घाटन और फाइनल पेमेंट हुई, लेकिन आज तक धरातल पर किसी भी पुस्तकालय का निर्माण नहीं हुआ. जिससे स्पष्ट होता है कि विधायक निधि के नाम पर तत्कालीन जिला अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी समेत ग्रामीण निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता के द्वारा बड़ा घोटाला किया गया है.

पढ़ें- HNB गढ़वाल विवि की यूजी व पीजी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं 20 अगस्त से होगी शुरू

हाईकोर्ट पहुंचे याचिकाकर्ता का कहना है कि पुस्तकालय निर्माण का जिम्मा ग्रामीण अभियंत्रण सर्विसेस को दिया गया. विभाग के अधिशासी अभियंता के फाइनल निरीक्षण और सीडीओ की संस्तुति के बाद काम की फाइनल पेमेंट होती है. ऐसे में विभाग के अधिशासी अभियंता और सीडीओ के द्वारा बिना पुस्तकालय निर्माण के ही अपनी फाइनल रिपोर्ट लगाकर पेमेंट कर दिया गया. इससे स्पष्ट होता है कि अधिकारियों की मिलीभगत से बड़ा घोटाला हुआ है. लिहाजा पुस्तकालय के नाम पर हुए इस घोटाले की सीबीआई जांच करवाई जाए.

नैनीताल: हरिद्वार के बहुचर्चित पुस्तकालय घोटाले पर नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में सुनवाई हुई. सुनवाई में हाईकोर्ट ने नगर निगम को अपना विस्तृत जवाब 2 सप्ताह के भीतर पेश करने के आदेश दिए हैं.

आज सुनवाई के दौरान नगर निगम के द्वारा याचिका पर आपत्ति दर्ज की गई. कहा गया कि पूर्व में हुई जनहित याचिका में सुनवाई के बाद नगर निगम के द्वारा सभी पुस्तकालयों को अपने अधीन लेकर नगर निगम के नाम पर चढ़ा दिया गया है. जिस पर अधिवक्ता शिव भट्ट ने कोर्ट को बताया कि हरिद्वार के तत्कालीन डीएम दीपक रावत के द्वारा पुस्तकालय को अपने अधीन लेने की बात कही गई, जबकि मुख्य विकास अधिकारी के द्वारा नवम्बर 2019 से मार्च 2020 तक 3 पत्र जारी कर पुस्तकालय हस्तांतरण न लेने की बात कही गई.

हरिद्वार पुस्तकालय घोटाले के मामले पर हाईकोर्ट सख्त

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मामले को गंभीरता से लेते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने नगर निगम हरिद्वार को अपना विस्तृत जवाब 2 सप्ताह के भीतर कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं.

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बता दें देहरादून निवासी याचिकाकर्ता सच्चिदानंद डबराल के द्वारा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा गया है कि 2010 में तत्कालीन विधायक मदन कौशिक के द्वारा विधायक निधि से करीब डेढ़ करोड़ की लागत से 16 पुस्तकालय बनाने के लिए पैसा आवंटित किया गया. पुस्तकालय बनाने के लिए भूमि पूजन से लेकर उद्घाटन और फाइनल पेमेंट हुई, लेकिन आज तक धरातल पर किसी भी पुस्तकालय का निर्माण नहीं हुआ. जिससे स्पष्ट होता है कि विधायक निधि के नाम पर तत्कालीन जिला अधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी समेत ग्रामीण निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता के द्वारा बड़ा घोटाला किया गया है.

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हाईकोर्ट पहुंचे याचिकाकर्ता का कहना है कि पुस्तकालय निर्माण का जिम्मा ग्रामीण अभियंत्रण सर्विसेस को दिया गया. विभाग के अधिशासी अभियंता के फाइनल निरीक्षण और सीडीओ की संस्तुति के बाद काम की फाइनल पेमेंट होती है. ऐसे में विभाग के अधिशासी अभियंता और सीडीओ के द्वारा बिना पुस्तकालय निर्माण के ही अपनी फाइनल रिपोर्ट लगाकर पेमेंट कर दिया गया. इससे स्पष्ट होता है कि अधिकारियों की मिलीभगत से बड़ा घोटाला हुआ है. लिहाजा पुस्तकालय के नाम पर हुए इस घोटाले की सीबीआई जांच करवाई जाए.

Last Updated : Aug 4, 2021, 7:42 PM IST
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