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मसूरी में लिखा गया था भारत का पहला प्रेम पत्र, अंग्रेज टीचर ने अपनी पत्नी को लिखा था प्यार भरा पत्र - Uttarakhand News

1843 में मसूरी में एक प्रेम की दास्तान लिखी गई थी . यहां एक प्रेमी ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक प्रेम पत्र लिखा. जिसे भारत के इतिहास में पहला प्रेम पत्र माना जाता है.

मसूरी से लिखा गया था भारत का पहला प्रेम पत्र
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Published : Feb 14, 2019, 5:15 AM IST

Updated : Feb 14, 2019, 10:16 AM IST

मसूरी: 14 फरवरी प्यार का दिन, इजहार का दिन, अपने जज्बातों को शब्दों में बयां करने के लिए इस दिन का हर धड़कते हुए दिल को बेसब्री से इंतजार रहता है. प्यार के परवानों के लिए ये दिन खुशियों का प्रतीक माना जाता है. हर प्यार करने वाले शख्स के लिए ये दिन अलग ही अहमियत रखता है. बात अगर पहाड़ों की रानी मसूरी की करें तो वैलेंटाइन डे को लेकर मसूरी का अपना ही अलग इतिहास है. जो कि प्यार करने वालों के लिए जानना बेहद जरूरी है.


पारंपरिक रूप से इस दिन को मनाने के लिए 'वैलेंटाइन-डे' नाम से प्रेम-पत्रों का आदान प्रदान किया जाता है. साथ ही दिल, क्यूपिड, फूलों आदि प्रेम के चिन्हों को उपहार स्वरूप देकर भावनाओं का इजहार किया जाता है. 1843 में कुछ ऐसी ही दास्तान मसूरी की वादियों में लिखी गई. यहां एक प्रेमी ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक प्रेम पत्र लिखा. जिसे भारत के इतिहास में पहला प्रेम पत्र माना जाता है.

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मसूरी से लिखा गया था भारत का पहला प्रेम पत्र
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मसूरी के मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि भारत में लिखे गये इस पहले प्रेम पत्र को लिखने वाले व्यक्ति का नाम जॉन मैकेनन था जो कि पेशे से एक टीचर थें. जॉन मैकेनन मसूरी के लेंडेड स्टेट स्कूल में लैटिन भाषा के अध्यापक थे. उन्होंने 1843 में वैलेंटाइन-डे के खास मौके पर अपनी पत्नी एलिजाबेथ लुईस से प्यार का इजहार करने के लिए प्रेम पत्र लिखा था. इस प्रेम पत्र में जॉन अपने दिल की बातें खोल कर रख दी थी. जॉन ने अपने पत्र में लिखा था कि 'तुम्हारे आने से मेरी जिंदगी के मायने बदल गये हैं, तुम्हारे आने से जिंदगी में नई प्रेरणा जगी है. जॉन पत्र में लिखते हैं कि तुम्हारे आने से पहले मेरी जिंदगी के कोई मायने नहीं थे, तुम्हारे आने के बाद जीने का बहाना मिल गया है.


गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि उस दौर में भारतीय डाक सेवा की स्थिति बहुत बेहतर नहीं थी. उस वक्त पत्र कई महीनों बाद पहुंचता था. जॉन मैकेनन और एलिजाबेथ लुईस के कुछ ऐसे ही लेटर्स का जिक्र उनके करीबी दोस्त एडम माइगन ने अपनी किताब मसूरी मर्चेंट द इंडियन लैटर्स में किया है. ये बुक लिखने के 50 साल बाद पब्लिश हुई थी. इस प्रेम कहानी के हीरो जॉन मैकेनन की मौत 32 साल की छोटी उम्र हो गई थी. मेरठ के सेंट जोंस चर्च में आज भी उनकी कब्र मौजूद है. आज भले ही कम लोग जॉन मैकेनन को जानते हैं, लेकिन इनके द्वारा शुरू की गई इस परंपरा को आज हर प्रेमी निभाता है.

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गोपाल भारद्वाज कहते हैं कि प्यार किसी से भी हो सकता है. इसी के इजहार का दिन वेलेंटाइन डे है. वे कहते हैं कि आज के दौर में पूरी तरह से वैलेंटाइन डे का बाजारीकरण कर दिया गया है. जिससे इस दिन का असली महत्व समाप्त होता जा रहा है.


ऐसा माना जाता है कि वैलेंटाइन-डे मूल रूप से सैंट वैलेंटाइन के नाम पर रखा गया है. लेकिन सैंट वैलेंटाइन के विषय में ऐतिहासिक तौर पर विभिन्न मत हैं. 1969 में कैथोलिक चर्च ने कुल ग्यारह सैंट वैलेंटाइन के होने की पुष्टि की और 14 फरवरी को उनके सम्मान में पर्व मनाने की घोषणा की. इनमें सबसे महत्वपूर्ण वैलेंटाइन रोम के सैंट वैलेंटाइन माने जाते हैं.


वैलेंटइन डे की शुरुआत अमेरिका में सैंट वैलेंटाइन की याद में हुई थी. सबसे पहले यह दिन अमेरिेका में ही मनाया गया, फिर इंग्लैंड में इसे मनाने की शुरुआत हुई. इसके बाद धीरे-धीरे पूरे विश्व में ये दिन मनाया जाने लगा. अलग-अलग देशों में ये दिन अलग नामों के साथ भी मनाया जाता है. चीन में इसे नाइट्स आफ सेवेन्स, जापान व कोरिया में वाइट डे के नाम से जाना जाता है. भारत में वैलेंटाइन डे मनाने की शुरुआत 1992 के आसपास हुई थी.

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मसूरी: 14 फरवरी प्यार का दिन, इजहार का दिन, अपने जज्बातों को शब्दों में बयां करने के लिए इस दिन का हर धड़कते हुए दिल को बेसब्री से इंतजार रहता है. प्यार के परवानों के लिए ये दिन खुशियों का प्रतीक माना जाता है. हर प्यार करने वाले शख्स के लिए ये दिन अलग ही अहमियत रखता है. बात अगर पहाड़ों की रानी मसूरी की करें तो वैलेंटाइन डे को लेकर मसूरी का अपना ही अलग इतिहास है. जो कि प्यार करने वालों के लिए जानना बेहद जरूरी है.


पारंपरिक रूप से इस दिन को मनाने के लिए 'वैलेंटाइन-डे' नाम से प्रेम-पत्रों का आदान प्रदान किया जाता है. साथ ही दिल, क्यूपिड, फूलों आदि प्रेम के चिन्हों को उपहार स्वरूप देकर भावनाओं का इजहार किया जाता है. 1843 में कुछ ऐसी ही दास्तान मसूरी की वादियों में लिखी गई. यहां एक प्रेमी ने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक प्रेम पत्र लिखा. जिसे भारत के इतिहास में पहला प्रेम पत्र माना जाता है.

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मसूरी से लिखा गया था भारत का पहला प्रेम पत्र
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मसूरी के मशहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि भारत में लिखे गये इस पहले प्रेम पत्र को लिखने वाले व्यक्ति का नाम जॉन मैकेनन था जो कि पेशे से एक टीचर थें. जॉन मैकेनन मसूरी के लेंडेड स्टेट स्कूल में लैटिन भाषा के अध्यापक थे. उन्होंने 1843 में वैलेंटाइन-डे के खास मौके पर अपनी पत्नी एलिजाबेथ लुईस से प्यार का इजहार करने के लिए प्रेम पत्र लिखा था. इस प्रेम पत्र में जॉन अपने दिल की बातें खोल कर रख दी थी. जॉन ने अपने पत्र में लिखा था कि 'तुम्हारे आने से मेरी जिंदगी के मायने बदल गये हैं, तुम्हारे आने से जिंदगी में नई प्रेरणा जगी है. जॉन पत्र में लिखते हैं कि तुम्हारे आने से पहले मेरी जिंदगी के कोई मायने नहीं थे, तुम्हारे आने के बाद जीने का बहाना मिल गया है.


गोपाल भारद्वाज बताते हैं कि उस दौर में भारतीय डाक सेवा की स्थिति बहुत बेहतर नहीं थी. उस वक्त पत्र कई महीनों बाद पहुंचता था. जॉन मैकेनन और एलिजाबेथ लुईस के कुछ ऐसे ही लेटर्स का जिक्र उनके करीबी दोस्त एडम माइगन ने अपनी किताब मसूरी मर्चेंट द इंडियन लैटर्स में किया है. ये बुक लिखने के 50 साल बाद पब्लिश हुई थी. इस प्रेम कहानी के हीरो जॉन मैकेनन की मौत 32 साल की छोटी उम्र हो गई थी. मेरठ के सेंट जोंस चर्च में आज भी उनकी कब्र मौजूद है. आज भले ही कम लोग जॉन मैकेनन को जानते हैं, लेकिन इनके द्वारा शुरू की गई इस परंपरा को आज हर प्रेमी निभाता है.

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गोपाल भारद्वाज कहते हैं कि प्यार किसी से भी हो सकता है. इसी के इजहार का दिन वेलेंटाइन डे है. वे कहते हैं कि आज के दौर में पूरी तरह से वैलेंटाइन डे का बाजारीकरण कर दिया गया है. जिससे इस दिन का असली महत्व समाप्त होता जा रहा है.


ऐसा माना जाता है कि वैलेंटाइन-डे मूल रूप से सैंट वैलेंटाइन के नाम पर रखा गया है. लेकिन सैंट वैलेंटाइन के विषय में ऐतिहासिक तौर पर विभिन्न मत हैं. 1969 में कैथोलिक चर्च ने कुल ग्यारह सैंट वैलेंटाइन के होने की पुष्टि की और 14 फरवरी को उनके सम्मान में पर्व मनाने की घोषणा की. इनमें सबसे महत्वपूर्ण वैलेंटाइन रोम के सैंट वैलेंटाइन माने जाते हैं.


वैलेंटइन डे की शुरुआत अमेरिका में सैंट वैलेंटाइन की याद में हुई थी. सबसे पहले यह दिन अमेरिेका में ही मनाया गया, फिर इंग्लैंड में इसे मनाने की शुरुआत हुई. इसके बाद धीरे-धीरे पूरे विश्व में ये दिन मनाया जाने लगा. अलग-अलग देशों में ये दिन अलग नामों के साथ भी मनाया जाता है. चीन में इसे नाइट्स आफ सेवेन्स, जापान व कोरिया में वाइट डे के नाम से जाना जाता है. भारत में वैलेंटाइन डे मनाने की शुरुआत 1992 के आसपास हुई थी.

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मसूरी में वेलेंटाइन डे से जुडी यादे (स्पेषल स्टोरी)
रिपोर्टर सुनील सोनकर    12.2.2019
एकंर वीओ0
प्रत्येक वर्ष 14 फरवरी के दिन वेलेंटाइन डे मनाया जाता है। वेलेंटाइन डे को प्रेम दिवस के रूप में भी जाना जाता है। यह दिन प्रेमी युगलों के लिए एक उत्सव की तरह होता है, जब खास तौर से अपने प्रिय को प्रेम अभिव्यक्त किया जाता है वही पहाडों की रानी मसूरी में वेलेंटाइन डे का अपना एक इतिहास है प्यार एक ऐसा अहसास, जो हर धड़कन को होता है. भले ही कई लोग इसे आजकल फेसबुक, व्हाट्स ऐप, एसएमएस और फोन के जरिए फैल रहा वायरस कहते हो, लेकिन सच तो ये है कि तेजी से बदलते हुए जमाने में सिर्फ सच्ची मोहब्बत ही ऐसी चीज है, जो नहीं बदली है. वही 1843 में एक प्रेमी द्वारा अपने प्यार को लेकर उत्तराखंड के मसूरी में लिखा एक पत्र लिखा गया था. इसे भारत का पहला प्रेम पत्र भी माना जाता है. मसूरी के मषहूर इतिहासकार गोपाल भाद्ववाज ने बताया की इस लव लेटर की खास बात यह है कि इसे लिखा भारत में गया था, लेकिन इसे लिखने वाले एक विदेशी टीचर जान मैकेनन थे. जान मैकेनन मसूरी के लेंडेड स्टेट स्कूल में लैटिन भाषा के अध्यापक थे. उन्होंने ये लेटर 14 फरवरी 1843 को अपनी बिलव्ड एलिजाबेथ लुईस को लिखा था. लुईस उनकी पत्नी थी. ये लेटर उन्होंने वेलेंटाइन के खास मौके पर अपनी वाइफ को अपनी फीलिंग्स बताने के लिए लिखा था. इस लेटर में  उन्होंने अपने दिल की सारी बातें शब्दों के जरिए एलिजाबेथ तक पहुंचाने की कोशिश की थी। बताते है कि जान ने अपनी वाइफ को उस लेटर में लिखा कि चाहे ये लेटर तुम्हें जब भी मिले, लेकिन ये मैंने वेलेंटाइन डे के मौके पर तुम्हारे लिए खास लिखा है. शादी से पहले मेरी लाइफ बिल्कुल बोरिंग थी, मसूरी के जंगलों में उसे बेमतलब देखता था, लेकिन जब से तुम से शादी हुई है मानो जिंदगी को नए मायने मिल गए हैं. तुम मेरा बहुत ध्यान रखती हो. तुमने जिंदगी में आकर मुझ में जिंदगी जीने की नई प्रेरणा जगाई है. भाद्ववाज बताते है कि उस दौर में अगर डाक सेवा की बात करें तो, भारत में डाक सेवा की स्थिति बहुत बेहतर नहीं थी. इंडिया में डाक सेवा 1828 में शुरू हुई थी. उस वक्त एक पत्र छह महीने बाद समुद्र के रास्ते इंग्लैंड पहुंचता था, लेकिन सच्चे प्रेम को कोई दूरी नहीं दूर कर सकती. जान मैकेनन और एलिजाबेथ लुईस के कुछ ऐसे ही लेटर्स का जिक्र उनके करीबी दोस्त एडम माइगन ने अपनी किताब मसूरी मर्चेंट द इंडियन लैटर्स में किया है. ये बुक लिखने के 50 साल बाद पब्लिश हुई थी, इस प्रेम कहानी के हीरो जान मैकेनन की डेथ 32 साल की उम्र में 1849 में हो गई थी. उनकी कब्र आज भी मेरठ के चर्च सेंट जोंस चर्च में है. भले ही जान बहुत कम उम्र में दुनिया से चल गए, लेकिन आज भी उनके इस लव टोकन को लोग जानना चाहते हैं।
गोपाल भाद्ववाज ने आज की युवा पीडी से आग्रह करते हुए कहा कि प्यार जरूरी नही की लडका लडकी में हो प्यार मां बाप, दोस्त, प्राकृति, जानवर आदि से भी होता है ऐसे में एक व्यक्ति के लिये उसका वेलेंटाइन वही है जिसको पर सबसे जयादा चहाता है। उन्होने कहा कि वर्तमान में वेलेंटाइन डे का बाजारीकरण कर दिया गया है जिससे इस पर्व का असली महत्व समाप्त होता जा रहा है। 
वेलेंटइन डे की शुरुआत अमेरिका में सेंट वेलेंटाइन की याद में हुई थी। सर्वप्रथन यह दिन अमेरिेका में ही मनाया गया, फिर इंग्लैंड में इसे मनाने की शुरुआत हुई। इसके बाद यह पूरे विश्व में धीरे-धीरे मनाया जाने लगा। कुछ देशों में इसे अलग-अलग नामों के साथ भी मनाया जाता है। चीन में इसे नाइट्स आफ सेवेन्स वहीं जापान व कोरिया में वाइट डे के नाम से जाना जाता है और पूरा फरवरी माह प्रेम का महीना माना जाता है। भारत में वेलेंटाइन डे मनाने की शुरुआत सन 1992 के लगभग हुई थी, जिसके बाद इसका चलन यहां भी शुरू हो गया। 
बाईट मषहूर इतिहासकार गोपाल भारद्वाज

Last Updated : Feb 14, 2019, 10:16 AM IST
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