मसूरी: गांधी ग्लोबल फैमिली सोसाइटी के अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद आज मसूरी पहुंचे. यहां इप्टा के कार्यकर्ताओं ने गुलाम नबी आजाद का जोरदार स्वागत किया. जिसके बाद गुलाम नबी आजाद इप्टा के कार्यकर्ताओं के साथ मसूरी के भगत सिंह चौक पहुंचे. जहां उन्होंने भगत सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की.
गुलाम नबी आजाद मसूरी में भारतीय जन नाट्य संघ इप्टा के शहीद-ए-आजम भगत सिंह सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे थे. कार्यक्रम में भगत सिंह, सुखदेव आदि शहीदों के परिजनों को शॉल और मोमेंटो देकर सम्मानित किया गया. इस मौके पर इप्टा द्वारा भगत सिंह की जीवनी पर प्रकाश डाला गया. मसूरी में पूर्व केंद्रीय मंत्री के दौरे को लेकर पुलिस-प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये थे.
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कार्यक्रम में गायिका मनु वंदना ने देश भक्ति गीत सुनाया. जिसने सभी को भावुक कर दिया. इस मौके पर बाल कलाकारों ने उत्तराखंड की संस्कृति पर आधारित नृत्य पेश किया. जिसने सभी के मन को मोह लिया. इस मौके पर ब्लैक डे फॉर इंडियन कांस्पीरेसी और किसान आंदोलन पर आधारित फिल्म भी प्रदर्शित की गई.
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क्या है इप्टा?: भारतीय जन नाट्य संघ या इंडियन पीपल्स थियेटर असोसिएशन (इप्टा) कोलकाता स्थित रंगमंच कर्मियों का एक दल है. इसका नामकरण प्रसिद्ध वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा ने किया था. इसका नारा था “ पीपल्स थियेटर स्टार्स पीपल”
आजादी से पहले हुई इप्टा की स्थापना: 25 मई 1943 को मुंबई के मारवाड़ी हॉल में प्रो. हीरेन मुखर्जी ने इप्टा की स्थापना के अवसर की अध्यक्षता की और आह्वान किया, “लेखक और कलाकार आओ, अभिनेता और नाटककार आओ, हाथ से और दिमाग से काम करने वाले आओ और स्वयं को आजादी और सामाजिक न्याय की नयी दुनिया के निर्माण के लिये समर्पित कर दो”.
इप्टा का रहा क्रांतिकारी इतिहास: आजादी से पहले ‘इप्टा के रूप में ऐसा संगठन बना जिसने पूरे हिन्दुस्तान में प्रदर्शनकारी कलाओं की परिवर्तनकारी शक्ति को पहचानने की कोशिश पहली बार की. कलाओं में भी आवाम को सजग करने की अद्भुत शक्ति है को हिंदुस्तान की तमाम भाषाओं में पहचाना गया. ललित कलाएं, काव्य, नाटक, गीत, पारंपरिक नाट्यरूप, इनके कर्ता, राजनेता और बुद्धिजीवी एक जगह इकठ्ठे हुए, ऐसा फिर कभी नहीं हुआ.”
इप्टा में कौन-कौन थे?: स्थापना के उस दौर में नाटक संगीत, चित्रकला, लेखन, फिल्म से जुड़ा शायद ही कोई वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी होगा जो इप्टा से नहीं जुड़ा होगा. आज भले ही नई पीढ़ी इप्टा के बारे में बहुत कुछ नहीं जानती है लेकिन उस समय के सदस्यों के नाम आप जानेंगे तो आश्चर्य करेंगे.
पृथ्वीराज कपूर और बलराज साहनी जैसे दिग्गज जुड़े थे: पृथ्वीराज कपूर, बलराज साहनी और दमयंती साहनी, चेतन और उमा आनंद, हबीब तनवीर, शंभु मित्र, जोहरा सहगल, दीना पाठक जैसे बड़े और चर्चित अभिनेता इप्टा से शुरुआती दौर से जुड़े थे.
कृष्ण चंदर, सज्जाद जहीर, अली सरदार जाफरी, राशिद जहां, इस्मत चुगताई, ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे लेखक भी इसे धार देते थे. शांति वर्द्धन, गुल वर्द्धन, नरेन्द्र शर्मा, रेखा जैन, सचिन शंकर, नागेश जैसे नर्तकों ने इप्टा को देश भर में चर्चित कर दिया तो रविशंकर, सलिल चौधरी, जैसे संगीतकार भी इससे जुड़े थे. फैज अहमद फैज, मखदुम मोहिउद्दीन, साहिर लुधियानवी, शैलेंद्र, प्रेम धवन जैसे गीतकार भी इप्टा की शोभा बढ़ाते थे. विनय राय, अण्णा भाऊ साठे, अमर शेख, दशरथ लाल जैसे लोक गायक भी इसी मंच पर थे. चित्तो प्रसाद, रामकिंकर बैज जैसे चित्रकार और पीसी जोशी जैसे जनप्रिय नेता इप्टा की शान बढ़ाते थे.
इप्टा का बिखराव: आजादी के बाद से ही इप्टा की सरकार ने निगरानी शुरू कर दी. इसके नाटकों को प्रतिबंधित किया गया. सेंसर और ड्रामेटिक पर्फ़ार्मेंस एक्ट का डंडा चला कर कई प्रदर्शनों और प्रसार को रोका गया. सदस्य भूमिगत होने लगे. ऐसे माहौल में इलाहाबाद कॉन्फ्रेंस में बलराज साहनी ने व्यंग्य नाटक ‘जादू की कुर्सी’ का मंचन किया जिसमें सत्ता के चरित्र की तीखी आलोचना की गई थी.