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पलायन रोकने के लिए संतों ने शुरू की 'छड़ी यात्रा', पहाड़ में अपने खर्चे से स्कूल-कॉलेज बनाएंगे

पहाड़ों से पलायन के रोकने के अब साधु-संत आगे आए हैं. हरिद्वार से श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े ने पौराणिक छड़ी यात्रा शुरू की है. यात्रा के जरिए तीर्थों का विकास करना तथा जनमानस का ध्यान आकर्षित करना है उनका ध्येय है.

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हरिद्वार
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Published : Oct 15, 2021, 7:49 PM IST

Updated : Oct 15, 2021, 9:08 PM IST

हरिद्वारः धर्मनगरी हरिद्वार के संतों ने उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में हो रहे पलायन को लेकर नाराजगी व्यक्त की है. उन्होंने राज्य सरकार से पलायन को रोकने के लिए उचित कदम उठाने की मांग की है. दरअसल सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार और पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े द्वारा पौराणिक छड़ी यात्रा का आयोजन किया जाता है. अखाड़े के साधु-संतों द्वारा पौराणिक छड़ी यात्रा की तैयारी शुरू कर दी गई है.

शुक्रवार को साधु-संतों ने हरिद्वार में हर की पैड़ी स्थित ब्रह्मकुंड में यात्रा की पवित्र छड़ी को गंगा स्नान कराया और गंगा पूजन भी किया. इस दौरान साधु-संतों ने कहा कि सनातनी संस्कृति के प्रचार-प्रसार और पहाड़ों के विकास के लिए इस पौराणिक छड़ी यात्रा का आयोजन किया जाता है. लेकिन सरकार की गलत नीतियों और उदासीन रवैये के चलते पहाड़ खाली हो रहे हैं. संतों ने कहा कि पहाड़ के विकास के लिए अब साधु-संत आगे आएंगे. पहाड़ों में अपने खर्चे से स्कूल-कॉलेज बनाएंगे. वहीं साधु-संतों ने राज्य सरकार से भी मांग की है कि सरकार पलायन रोकने के लिए उचित कदम उठाए.

पलायन रोकने के लिए संतों ने शुरू की 'छड़ी यात्रा'

ये भी पढ़ेंः हरिद्वार में नागा साधुओं ने दशहरा पर किया शस्त्र पूजन, ऐसे पड़ी ये परंपरा

श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा द्वारा निकाली जाने वाली पौराणिक छड़ी यात्रा का आयोजन शुरू हो गया है. जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक तथा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरि महाराज ने बताया कि यह पौराणिक छड़ी यात्रा प्राचीन काल से चली आ रही है. लेकिन लगभग 70 साल से पूर्व बागेश्वर से प्रारंभ होने वाली यह पौराणिक छड़ी यात्रा कतिपय कारणों से स्थगित हो गयी थी. लेकिन 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत व अखाड़ों के संयुक्त प्रयास से इसे फिर से शुरू किया गया है.

उन्होंने बताया कि यह छड़ी यात्रा चारों धाम सहित उत्तराखंड के सभी पौराणिक तीर्थों के अतिरिक्त ऐसे तीर्थों पर भी जाएगी जो पौराणिक महत्व के होते हुए भी उपेक्षित हैं, तथा जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. यात्रा का उददे्श्य इन तीर्थों का विकास करना तथा जनमानस का ध्यान इस ओर आकर्षित कराना है. ताकि इन तीर्थों के विकास के साथ-साथ स्थानीय जनता को रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें और उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति में सुधार हो.

हरिद्वारः धर्मनगरी हरिद्वार के संतों ने उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में हो रहे पलायन को लेकर नाराजगी व्यक्त की है. उन्होंने राज्य सरकार से पलायन को रोकने के लिए उचित कदम उठाने की मांग की है. दरअसल सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार और पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े द्वारा पौराणिक छड़ी यात्रा का आयोजन किया जाता है. अखाड़े के साधु-संतों द्वारा पौराणिक छड़ी यात्रा की तैयारी शुरू कर दी गई है.

शुक्रवार को साधु-संतों ने हरिद्वार में हर की पैड़ी स्थित ब्रह्मकुंड में यात्रा की पवित्र छड़ी को गंगा स्नान कराया और गंगा पूजन भी किया. इस दौरान साधु-संतों ने कहा कि सनातनी संस्कृति के प्रचार-प्रसार और पहाड़ों के विकास के लिए इस पौराणिक छड़ी यात्रा का आयोजन किया जाता है. लेकिन सरकार की गलत नीतियों और उदासीन रवैये के चलते पहाड़ खाली हो रहे हैं. संतों ने कहा कि पहाड़ के विकास के लिए अब साधु-संत आगे आएंगे. पहाड़ों में अपने खर्चे से स्कूल-कॉलेज बनाएंगे. वहीं साधु-संतों ने राज्य सरकार से भी मांग की है कि सरकार पलायन रोकने के लिए उचित कदम उठाए.

पलायन रोकने के लिए संतों ने शुरू की 'छड़ी यात्रा'

ये भी पढ़ेंः हरिद्वार में नागा साधुओं ने दशहरा पर किया शस्त्र पूजन, ऐसे पड़ी ये परंपरा

श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा द्वारा निकाली जाने वाली पौराणिक छड़ी यात्रा का आयोजन शुरू हो गया है. जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक तथा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरिगिरि महाराज ने बताया कि यह पौराणिक छड़ी यात्रा प्राचीन काल से चली आ रही है. लेकिन लगभग 70 साल से पूर्व बागेश्वर से प्रारंभ होने वाली यह पौराणिक छड़ी यात्रा कतिपय कारणों से स्थगित हो गयी थी. लेकिन 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत व अखाड़ों के संयुक्त प्रयास से इसे फिर से शुरू किया गया है.

उन्होंने बताया कि यह छड़ी यात्रा चारों धाम सहित उत्तराखंड के सभी पौराणिक तीर्थों के अतिरिक्त ऐसे तीर्थों पर भी जाएगी जो पौराणिक महत्व के होते हुए भी उपेक्षित हैं, तथा जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है. यात्रा का उददे्श्य इन तीर्थों का विकास करना तथा जनमानस का ध्यान इस ओर आकर्षित कराना है. ताकि इन तीर्थों के विकास के साथ-साथ स्थानीय जनता को रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें और उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति में सुधार हो.

Last Updated : Oct 15, 2021, 9:08 PM IST
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