हरिद्वार: पतंजलि योगपीठ के योग भवन सभागार में गुरु पूर्णिमा महोत्सव ऋषि ज्ञान परंपरा के साथ मनाया गया. इस अवसर पर पतंजलि योगपीठ परिवार को योगगुरु बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण का आशीर्वाद लाभ मिला. कार्यक्रम में बाबा रामदेव ने कहा कि पतंजलि के माध्यम से ऋषि-मुनियों की प्राचीन परंपरा स्थापित कर विश्व की सबसे बड़ी आध्यात्मिक शक्ति भारत का निर्माण हो रहा है. अब वह दिन दूर नहीं जब भारत विश्व का नेतृत्व करेगा.
स्वामी रामदेव ने कहा कि पतंजलि के माध्यम से शिक्षा, संस्कार, चिकित्सा, कृषि, अनुसंधान आदि विविध क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किए जा रहे हैं. यहां दिव्य चरित्र गढ़ने का अद्वितीय कार्य किया जा रहा है. नन्हे-नन्हे बच्चे पतंजलि गुरुकुलम् और देश के लिए निस्वार्थ भाव से समर्पित संन्यासी, पतंजलि संन्यास आश्रम में तैयार किए जा रहे हैं. पंचोपदेश- अष्टाध्यायी, धातु पाठ, योग दर्शन, व्यासभाष्य सहित गीता, उपनिषद्, पंचदर्शन, व्याकरण महाभाष्य आदि में इन्हें पारंगत किया जा रहा है.
बाबा रामदेव ने कहा कि पतंजलि गुरुकुलम् और पतंजलि विश्वविद्यालय को 10 हजार विद्यार्थियों से प्रांरभ होकर 1 लाख विद्यार्थियों तक पहुंचाने का लक्ष्य आगामी 10 वर्षों में पूर्ण करना है. उन्होंने कहा कि पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम् और पतंजलि विश्वविद्यालय में भारत के साथ-साथ विश्व के 200 देशों से आए बच्चों को विश्व नेतृत्व के लिए तैयार किया जाएगा. उन्हें उनकी मातृभाषा के साथ-साथ वैश्विक भाषा अंग्रेजी और संस्कृत में पारंगत किया जाएगा. नन्हे-मुन्नों को वेद, शास्त्र और उपनिषदों में दीक्षित किया जाएगा.
रामदेव ने कहा कि आज सोशल मीडिया के दुरुपयोग से वैचारिक आतंकवाद बहुत तेजी से बढ़ रहा है. यू-ट्यूबर्स, इंस्ट्राग्राम, ट्विटर और फेसबुक यूजर्स वैचारिक आतंकवाद के नए चेहरे हैं. रामदेव ने कहा कि नए-नए अकाउंट्स बनाकर हमारे पूर्वज, ऋषि-मुनियों, भारत की आध्यात्मिक विभूतियों, महापुरुषों को खुलेआम गाली दी जा रही है. उन्होंने कहा कि पतंजलि अपनी सांस्कृतिक विरासत का संवाहक बनकर इन उन्मादियों के सामने दीवार बनकर खड़ा है. इन भौतिक, मजहबी, राजनैतिक आतंकवाद फैलाने वालों को स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण कभी रास नहीं आएंगे, लेकिन हमने वैचारिक विरोधियों की कभी चिंता नहीं की.
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इस अवसर पर आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि गुरु पूर्णिमा का यह पर्व गुरु की महत्ता को समर्पित है. आज हम जो कुछ भी हैं, हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों और गुरुजनों की कृपा से हैं. उन्होंने कहा कि उन सभी गुरुजनों का स्मरण करते हुए हृदय की अनंत गहराइयों से उन्हें प्रणाम करते हैं. उन्होंने कहा कि स्वामी विरजानंद व महर्षि दयानंद से चली आई गुरु-शिष्य परंपरा को हमें आगे बढ़ाना है. गुरुओं का आश्रय व आलम्बन लेते हुए हमें ऋषि परंपरा का संवाहक बनाना है. हमें यह तय करना है कि इस राष्ट्र निर्माण से विश्व निर्माण की यात्रा में हमें क्या योगदान देना है?