हल्द्वानी: जागरुकता के अभाव और समय पर डेंगू का इलाज नहीं मिलने के कारण सूबे में हर साल कई लोग अपनी जान गवां देते हैं. जिसके चलते लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से पूरे देश में 16 मई को राष्ट्रीय डेंगू दिवस के रूप में मनाया जाता है. देश को डेंगू मुक्त बनाने के लिए सरकार कई योजनाएं चलाकर लोगों को डेंगू के प्रति जागरुक कर रही है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि लगातार डेंगू के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है. उत्तराखंड के नैनीताल जिले में साल 2017 में 297 मरीज डेंगू के पॉजिटिव पाए गए थे. जबकि साल 2018 में 176 मरीज पॉजिटिव पाए गए थे.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार डेंगू के लिहाज से उत्तराखंड का नैनीताल जिला सबसे संवेदनशील माना जाता है. साल 2017 में उत्तराखंड में 757 लोग डेंगू की चपेट में आए थे. जिसमें 297 मरीज नैनीताल जिले के थे. साथ ही 200 से अधिक लोगों ने निजी अस्पतालों में अपना इलाज कराया था. सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2017 में कोई मौत नहीं बताई गई थी. लेकिन 2017 में नैनीताल जिले में अलग-अलग जगहों पर इलाज के दौरान डेंगू से 5 लोगों की मौत हुई थी.
पढ़ें: रुद्रपुर में बिना पंजीकरण दौड़ रहे 50 से अधिक ई-रिक्शा सीज
कुमाऊं मंडल क्षेत्र में सुशीला तिवारी अस्पताल के अलावा किसी अन्य सरकारी अस्पताल में डेंगू का इलाज नहीं होता. जिसके चलते क्षेत्र के लोग इसी अस्पताल में इलाज के लिए पहुंचते हैं. जिसमें से ज्यादातर लोग नैनीताल जिले के लालकुआं और हल्द्वानी से आते है.
वहीं, जिला मलेरिया अधिकारी अर्जुन सिंह का कहना है कि डेंगू और मलेरिया की रोकथाम के लिए विभाग समय-समय पर मच्छर के लारवा को टेस्ट के लिए भेजता है. साथ ही फॉगिंग और छिड़काव भी किया जाता है.