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भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का साक्षी रहा ये पेड़, अस्तित्व बचाने के लिए अनुसंधान केंद्र कर रहा ये कार्य - Uttarakhand News

हल्द्वानी से 15 किलोमीटर दूर स्थित लाल कुआं अनुसंधान केंद्र ऐसे तो कई प्रजातियों के पौधों को संरक्षित करने का काम करता है. लेकिन इन सभी पौधों में एक पौधा ऐसा भी है जो भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीलाओं से जुड़ा हुआ है. कृष्ण बट नाम की प्रजाति के ये पौधा ऐसे तो माखन कटोरी के नाम से जाना जाता है. कृष्ण बट की पत्तियों का आकार चम्मच-कटोरी के जैसा होता है

विश्व पर्यावरण दिवस विशेष.
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Published : Jun 5, 2019, 11:14 AM IST

हल्द्वानी: आपने भगवान श्री कृष्ण के बचपन की बाल लीलाओं की बहुत सारी कथाएं सुनी होंगी लेकिन उनकी लीलाएं प्रत्यक्ष रूप किसी ने भी नहीं देखी. भगवान श्री कृष्ण की बाल्यकाल में गोपियों के साथ लीलाएं कर उनके माखन को कृष्ण बट पेड़ में छिपा देते थे. लेकिन बदलते समय और पर्यावरण में बदलाव के साथ-साथ धीरें-धीरे ये वृक्ष अब खत्म होने की कगार पर हैं. ऐसे में कृष्ण लीलाओं से जुड़े बट वृक्ष या कहें कृष्ण बट को बचाने का लिए लालकुआं स्थित वन अनुसंधान केंद्र लगातार काम कर रहा है.

विश्व पर्यावरण दिवस

हल्द्वानी से 15 किलोमीटर दूर स्थित लाल कुआं अनुसंधान केंद्र ऐसे तो कई प्रजातियों के पौधों को संरक्षित करने का काम करता है. लेकिन इन सभी पौधों में एक पौधा ऐसा भी है जो भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीलाओं से जुड़ा हुआ है. कृष्ण बट नाम की प्रजाति के ये पौधा ऐसे तो माखन कटोरी के नाम से जाना जाता है. कृष्ण बट की पत्तियों का आकार चम्मच-कटोरी के जैसा होता है जिसे तोड़ने पर दूध भी निकलता है. मान्यता है कि कृष्ण बचपन में माखन चुराकर भाग रहे थे तो उनकी मां यशोदा ने उन्हें पकड़ लिया.

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जिसके बाद मां की डांट से बचने के लिए भगवान कृष्ण ने माखन को एक पेड़ के पत्ते की कटोरी बनाकर उसमें छिपा दिया. जिसके बाद भगवान कृष्ण ने मां यशोदा की डांट सुन ली. तब तक पत्ते की कटोरी में रखा मक्खन पिघल गया और कटोरी से बहने लगा. तब से इस पेड़ के पत्तों को तोड़ने पर उसमें से सफेद तरल पदार्थ निकलता है जिसे मक्खन कहा जाता है.

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माना जाता है कि तब से ही कृष्ण बट की पत्तियों का आकार को कटोरी जैसा हो गया. उसके बाद से पेड़ की इस किस्म को मक्खन कटोरी का पेड़ कहा जाने लगा. ऐसे कृष्ण बट उत्तराखंड के कई जगहों पर पाये जाते हैं. लेकिन अब ये पेड़ धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है. जिसके संरक्षण के लिए लाल कुआं वन अनुसंधान केंद्र काम कर रहा है .कृष्ण बट की डिमांड धार्मिक स्थलों और आयोजनों पर खूब की जाती है.

पढ़ें-कटते पेड़-घटते जंगल, कंक्रीट दीवारें, धुंध का दंगल...जल-जंगल-जमीन बचे तभी हो मंगल

लगातार आधुनिकता के दौर में हो रहे वायु प्रदूषण के चलते जीवन रक्षक और शुद्ध वातावरण देने वाले पौधों के साथ-साथ धार्मिक आस्था से जुड़े पेड़-पौधों को संजोए रखना और संवारना बेहद जरूरी है. जिससे शुद्ध हवाओं के साथ ही एक सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हो सके.

हल्द्वानी: आपने भगवान श्री कृष्ण के बचपन की बाल लीलाओं की बहुत सारी कथाएं सुनी होंगी लेकिन उनकी लीलाएं प्रत्यक्ष रूप किसी ने भी नहीं देखी. भगवान श्री कृष्ण की बाल्यकाल में गोपियों के साथ लीलाएं कर उनके माखन को कृष्ण बट पेड़ में छिपा देते थे. लेकिन बदलते समय और पर्यावरण में बदलाव के साथ-साथ धीरें-धीरे ये वृक्ष अब खत्म होने की कगार पर हैं. ऐसे में कृष्ण लीलाओं से जुड़े बट वृक्ष या कहें कृष्ण बट को बचाने का लिए लालकुआं स्थित वन अनुसंधान केंद्र लगातार काम कर रहा है.

विश्व पर्यावरण दिवस

हल्द्वानी से 15 किलोमीटर दूर स्थित लाल कुआं अनुसंधान केंद्र ऐसे तो कई प्रजातियों के पौधों को संरक्षित करने का काम करता है. लेकिन इन सभी पौधों में एक पौधा ऐसा भी है जो भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीलाओं से जुड़ा हुआ है. कृष्ण बट नाम की प्रजाति के ये पौधा ऐसे तो माखन कटोरी के नाम से जाना जाता है. कृष्ण बट की पत्तियों का आकार चम्मच-कटोरी के जैसा होता है जिसे तोड़ने पर दूध भी निकलता है. मान्यता है कि कृष्ण बचपन में माखन चुराकर भाग रहे थे तो उनकी मां यशोदा ने उन्हें पकड़ लिया.

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जिसके बाद मां की डांट से बचने के लिए भगवान कृष्ण ने माखन को एक पेड़ के पत्ते की कटोरी बनाकर उसमें छिपा दिया. जिसके बाद भगवान कृष्ण ने मां यशोदा की डांट सुन ली. तब तक पत्ते की कटोरी में रखा मक्खन पिघल गया और कटोरी से बहने लगा. तब से इस पेड़ के पत्तों को तोड़ने पर उसमें से सफेद तरल पदार्थ निकलता है जिसे मक्खन कहा जाता है.

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माना जाता है कि तब से ही कृष्ण बट की पत्तियों का आकार को कटोरी जैसा हो गया. उसके बाद से पेड़ की इस किस्म को मक्खन कटोरी का पेड़ कहा जाने लगा. ऐसे कृष्ण बट उत्तराखंड के कई जगहों पर पाये जाते हैं. लेकिन अब ये पेड़ धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है. जिसके संरक्षण के लिए लाल कुआं वन अनुसंधान केंद्र काम कर रहा है .कृष्ण बट की डिमांड धार्मिक स्थलों और आयोजनों पर खूब की जाती है.

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लगातार आधुनिकता के दौर में हो रहे वायु प्रदूषण के चलते जीवन रक्षक और शुद्ध वातावरण देने वाले पौधों के साथ-साथ धार्मिक आस्था से जुड़े पेड़-पौधों को संजोए रखना और संवारना बेहद जरूरी है. जिससे शुद्ध हवाओं के साथ ही एक सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हो सके.

Intro:स्लग-भगवान कृष्ण बचपन में इसी पेड़ के पत्तों में छुपा कर खाई थी माखन( विश्व पर्यावरण दिवस)
रिपोर्टर भावना पंडित हल्द्वानी।
एंकर- आपने भगवान श्री कृष्ण के बचपन की बाल लीलाएं बहुत सारी सुनी होगी। लेकिन उनकी लीलाएं प्रत्यक्ष रूप किसी ने भी नहीं देखा होगा। लेकिन उन्ही लीलाओं में एक लीला का जीता जागता उदाहरण उत्तराखंड के लालकुआं स्थित वन अनुसंधान केंद्र में देखने को मिलता है जब श्री कृष्ण ने माखन चोरी कर माखन को जिस पेड़ में छुपाते थे उस पेड़ को अब वन अनुसंधान केंद्र संरक्षित करने का काम कर रहा है।


Body:हल्द्वानी से 15 किलोमीटर दूर स्थित लाल कुआं अनुसंधान केंद्र ऐसे तो कई प्रजातियों के पौधों को संरक्षित करने का काम कर रहा है लेकिन इन सभी पौधों में एक पौधा खास है जो भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीला से जुड़ा हुआ है। कृष्ण बट नाम के प्रजाति का पौधा ऐसे तो माखन कटोरी के नाम से जाना जाता है। कृष्ण बट के पेड़ के पतियों का आकार चम्मच कटोरी के जैसा है जिसे तोड़ने पर दूध भी निकलता है। मान्यता है कि कृष्ण बचपन में माखन चुराकर भाग रहे थे तो उनकी मां यशोदा ने उन्हें पकड़ लिया यशोदा मैया की डांट से बचने के लिए भगवान कृष्ण ने माखन को एक पेड़ के पत्ते की कटोरी बनाकर उसने मक्खन छिपा दिया।
मान्यता है कि तभी से उस पेड़ की पत्तियों का आकार को कटोरी जैसा हो गया और उसके बाद से पेड़ की इस किस्म को मक्खन कटोरी का पेड़ कहा जाने लगा।
इस पेड़ की कथा यहीं समाप्त नहीं होती । बताया जाता है कि श्री कृष्ण यशोदा मैया की डांट सुन ली और उसके बाद पत्ते की कटोरी में रखा मक्खन पिघल गया और और पते की कटोरी से बने लगा। यही मानता है कि आज भी इस पेड़ के पत्ते को तोड़ने पर उसमें से सफेद तरल पदार्थ निकलता है जिसे मक्खन कहा जाता है।
ऐसे कृष्ण बट उत्तराखंड के कई जगह पर पाया जाता है लेकिन अब विलुप्त होती प्रजाति का पेड़ कहां जा रहा है। क्योंकि कृष्ण बट का पेड़ अब धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है जिस के संरक्षण के लिए लाल कुआं वन अनुसंधान केंद्र काम कर रहा है और इस पेड़ की संरक्षित कर रहा है।
कृष्ण बट पेड़ की डिमांड धार्मिक स्थल पर अब खूब की जा रही
है।
बाइट -नवीन रौतेला वन क्षेत्राधिकारी वन अनुसंधान केंद्र


Conclusion:यह नहीं बन संधान केंद्र लालकुआं में कदम के पेड़ भी बड़ी मात्रा में मौजूद है जिनको संरक्षित करने का काम कर रहा है। मान्यता है कि कान्हा कदम के पेड़ पर चढ़कर गोपियों को रिझा थे और इस पेड़ पर चढ़कर बंसी बजाया करते करते थे।
लगातार आधुनिकता के दौर में हो रहे वायु प्रदूषण के चलते जीवन रक्षक और शुद्ध वातावरण रखने वाले पौधों के साथ-साथ धार्मिक आस्था से जुड़े पेड़-पौधों को संजोए रखना और सवारना बेहद जरूरी है जिससे शुद्ध हवाओं के साथ ही एक सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हो सके।
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