हल्द्वानी: आपने भगवान श्री कृष्ण के बचपन की बाल लीलाओं की बहुत सारी कथाएं सुनी होंगी लेकिन उनकी लीलाएं प्रत्यक्ष रूप किसी ने भी नहीं देखी. भगवान श्री कृष्ण की बाल्यकाल में गोपियों के साथ लीलाएं कर उनके माखन को कृष्ण बट पेड़ में छिपा देते थे. लेकिन बदलते समय और पर्यावरण में बदलाव के साथ-साथ धीरें-धीरे ये वृक्ष अब खत्म होने की कगार पर हैं. ऐसे में कृष्ण लीलाओं से जुड़े बट वृक्ष या कहें कृष्ण बट को बचाने का लिए लालकुआं स्थित वन अनुसंधान केंद्र लगातार काम कर रहा है.
हल्द्वानी से 15 किलोमीटर दूर स्थित लाल कुआं अनुसंधान केंद्र ऐसे तो कई प्रजातियों के पौधों को संरक्षित करने का काम करता है. लेकिन इन सभी पौधों में एक पौधा ऐसा भी है जो भगवान श्री कृष्ण की जीवन लीलाओं से जुड़ा हुआ है. कृष्ण बट नाम की प्रजाति के ये पौधा ऐसे तो माखन कटोरी के नाम से जाना जाता है. कृष्ण बट की पत्तियों का आकार चम्मच-कटोरी के जैसा होता है जिसे तोड़ने पर दूध भी निकलता है. मान्यता है कि कृष्ण बचपन में माखन चुराकर भाग रहे थे तो उनकी मां यशोदा ने उन्हें पकड़ लिया.
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जिसके बाद मां की डांट से बचने के लिए भगवान कृष्ण ने माखन को एक पेड़ के पत्ते की कटोरी बनाकर उसमें छिपा दिया. जिसके बाद भगवान कृष्ण ने मां यशोदा की डांट सुन ली. तब तक पत्ते की कटोरी में रखा मक्खन पिघल गया और कटोरी से बहने लगा. तब से इस पेड़ के पत्तों को तोड़ने पर उसमें से सफेद तरल पदार्थ निकलता है जिसे मक्खन कहा जाता है.
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माना जाता है कि तब से ही कृष्ण बट की पत्तियों का आकार को कटोरी जैसा हो गया. उसके बाद से पेड़ की इस किस्म को मक्खन कटोरी का पेड़ कहा जाने लगा. ऐसे कृष्ण बट उत्तराखंड के कई जगहों पर पाये जाते हैं. लेकिन अब ये पेड़ धीरे-धीरे समाप्ति की ओर है. जिसके संरक्षण के लिए लाल कुआं वन अनुसंधान केंद्र काम कर रहा है .कृष्ण बट की डिमांड धार्मिक स्थलों और आयोजनों पर खूब की जाती है.
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लगातार आधुनिकता के दौर में हो रहे वायु प्रदूषण के चलते जीवन रक्षक और शुद्ध वातावरण देने वाले पौधों के साथ-साथ धार्मिक आस्था से जुड़े पेड़-पौधों को संजोए रखना और संवारना बेहद जरूरी है. जिससे शुद्ध हवाओं के साथ ही एक सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति हो सके.