हल्द्वानी: वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी इन दिनों धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के पौधों को संरक्षित करने का काम कर रहा है. इसमें वे पेड़ शामिल हैं जिनके नीचे बैठकर स्वामी विवेकानंद और आदि गुरु शंकराचार्य और रीठा साहब ने तपस्या की थी. वन अनुसंधान केंद्र अपने अनूठे प्रयासों से इनकी तपोस्थली के पेड़ के अंश को संरक्षित कर उन्हें बचाने की जुगत में लगा है जो कि अपने आप में एक सराहनीय पहल है.
देवभूमि उत्तराखंड कई ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही है. ऐसी ही एक तपोस्थली अल्मोड़ा से 22 किलोमीटर दूर कली घाट है. जहां 1890 में स्वामी विवेकानंद हिमालय यात्रा पर आए थे. तब उन्होंने नदी के तट पर स्नान करने के बाद यहां एक वृक्ष के नीचे तप किया था. जिससे उन्हें ब्रह्मांड का ज्ञान प्राप्त हुआ था. साल 1910 में आई आपदा के बाद ये वृक्ष सूखने लगा था. जिसके बाद पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस वृक्ष का क्लोन तैयार किया था.
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अब वन अनुसंधान केंद्र अपने नर्सरी में स्वामी विवेकानंद के तपोस्थली पेड़ के क्लोन संरक्षित करने का काम कर रहा है. इसके अलावा आदि गुरु शंकराचार्य ने जोशीमठ में कल्पवृक्ष के नीचे कठिन तपस्या की थी. उस वृक्ष के बीज को रोपित कर अनुसंधान केंद्र उसे भी संरक्षित करने का काम कर हा है.
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चंपावत में रीठा साहि सिखों का धार्मिक स्थल है. मान्यता का अनुसार गुरु नानक देव यहां भ्रमण के लिए पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने रीठे के एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या की. तब गुरु नानक देव जी से किसी ने खाने के लिए कुछ मांगा तब गुरु नानक देव जी ने रीठा तोड़कर उन्हें खाने के लिए दिया. रीठा खाने में कड़वा होता है लेकिन जब गुरु नानक ने ये फल उस व्यक्ति को दिया तो ये फल मीठा हो गया. तब से ये पेड़ सिखों की आस्था से जुड़ गया.
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ये पेड़ आज भी गुरुद्वारा रीठा साहिब के नाम से जाना जाता है. इस धार्मिक महत्व वाले पेड़ को भी वन अनुसंधान केंद्र संरक्षित कर रहा है. इसके अलावा नैनीताल जिले के काकडी घाट पर बाबा नीम करौली के बरगद की पेड़ भी है. जिसे भी वन अनुसंधान केंद्र संरक्षित करने का काम कर रहा है.
वन अनुसंधान के वन क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट का कहना है कि वन अनुसंधान केंद्र में विलुप्ती की कगार पर पहुंच चुके पौधों के संरक्षण का काम किया जाता है. यहां पर कई ऐसे वाटिकाएं बनाई गई हैं जो अपने आप में विशेष महत्व रखती हैं. इसके अलावा वन अनुसंधान केंद्र आस्था, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखने वाले सभी धर्मों के पौधों और वनस्पतियों को भी संरक्षित करने का काम कर रहा है.