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हल्द्वानी: वन अनुसंधान केंद्र ने शुरू की अनोखी पहल, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के पोधों का कर रहा संरक्षण - extinct plants

अब वन अनुसंधान केंद्र अपने नर्सरी में स्वामी विवेकानंद के तपोस्थली पेड़ के क्लोन संरक्षित करने का काम कर रहा है. इसके अलावा आदि गुरु शंकराचार्य ने जोशीमठ में कल्पवृक्ष के नीचे कठिन तपस्या की थी. उस वृक्ष के बीज को रोपित कर अनुसंधान केंद्र उसे भी संरक्षित करने का काम कर हा है.

वन अनुसंधान केंद्र ने शुरू की अनोखी पहल
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Published : Nov 13, 2019, 3:08 AM IST

हल्द्वानी: वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी इन दिनों धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के पौधों को संरक्षित करने का काम कर रहा है. इसमें वे पेड़ शामिल हैं जिनके नीचे बैठकर स्वामी विवेकानंद और आदि गुरु शंकराचार्य और रीठा साहब ने तपस्या की थी. वन अनुसंधान केंद्र अपने अनूठे प्रयासों से इनकी तपोस्थली के पेड़ के अंश को संरक्षित कर उन्हें बचाने की जुगत में लगा है जो कि अपने आप में एक सराहनीय पहल है.

वन अनुसंधान केंद्र ने शुरू की अनोखी पहल

देवभूमि उत्तराखंड कई ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही है. ऐसी ही एक तपोस्थली अल्मोड़ा से 22 किलोमीटर दूर कली घाट है. जहां 1890 में स्वामी विवेकानंद हिमालय यात्रा पर आए थे. तब उन्होंने नदी के तट पर स्नान करने के बाद यहां एक वृक्ष के नीचे तप किया था. जिससे उन्हें ब्रह्मांड का ज्ञान प्राप्त हुआ था. साल 1910 में आई आपदा के बाद ये वृक्ष सूखने लगा था. जिसके बाद पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस वृक्ष का क्लोन तैयार किया था.

पढ़ें-कार्तिक पूर्णिमा आज, गंगा स्नान से भगवान विष्णु की होती है विशेष कृपा

अब वन अनुसंधान केंद्र अपने नर्सरी में स्वामी विवेकानंद के तपोस्थली पेड़ के क्लोन संरक्षित करने का काम कर रहा है. इसके अलावा आदि गुरु शंकराचार्य ने जोशीमठ में कल्पवृक्ष के नीचे कठिन तपस्या की थी. उस वृक्ष के बीज को रोपित कर अनुसंधान केंद्र उसे भी संरक्षित करने का काम कर हा है.

पढ़ें-हरिद्वारः कार्तिक पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं ने गंगा में लगाई आस्था की डुबकी, जानें क्या है महत्व

चंपावत में रीठा साहि सिखों का धार्मिक स्थल है. मान्यता का अनुसार गुरु नानक देव यहां भ्रमण के लिए पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने रीठे के एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या की. तब गुरु नानक देव जी से किसी ने खाने के लिए कुछ मांगा तब गुरु नानक देव जी ने रीठा तोड़कर उन्हें खाने के लिए दिया. रीठा खाने में कड़वा होता है लेकिन जब गुरु नानक ने ये फल उस व्यक्ति को दिया तो ये फल मीठा हो गया. तब से ये पेड़ सिखों की आस्था से जुड़ गया.

पढ़ें-नैनीताल: पर्यटक को टॉर्चर करने के मामले में प्रशासन सख्त, वनकर्मियों के खिलाफ FIR

ये पेड़ आज भी गुरुद्वारा रीठा साहिब के नाम से जाना जाता है. इस धार्मिक महत्व वाले पेड़ को भी वन अनुसंधान केंद्र संरक्षित कर रहा है. इसके अलावा नैनीताल जिले के काकडी घाट पर बाबा नीम करौली के बरगद की पेड़ भी है. जिसे भी वन अनुसंधान केंद्र संरक्षित करने का काम कर रहा है.

वन अनुसंधान के वन क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट का कहना है कि वन अनुसंधान केंद्र में विलुप्ती की कगार पर पहुंच चुके पौधों के संरक्षण का काम किया जाता है. यहां पर कई ऐसे वाटिकाएं बनाई गई हैं जो अपने आप में विशेष महत्व रखती हैं. इसके अलावा वन अनुसंधान केंद्र आस्था, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखने वाले सभी धर्मों के पौधों और वनस्पतियों को भी संरक्षित करने का काम कर रहा है.

हल्द्वानी: वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी इन दिनों धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के पौधों को संरक्षित करने का काम कर रहा है. इसमें वे पेड़ शामिल हैं जिनके नीचे बैठकर स्वामी विवेकानंद और आदि गुरु शंकराचार्य और रीठा साहब ने तपस्या की थी. वन अनुसंधान केंद्र अपने अनूठे प्रयासों से इनकी तपोस्थली के पेड़ के अंश को संरक्षित कर उन्हें बचाने की जुगत में लगा है जो कि अपने आप में एक सराहनीय पहल है.

वन अनुसंधान केंद्र ने शुरू की अनोखी पहल

देवभूमि उत्तराखंड कई ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही है. ऐसी ही एक तपोस्थली अल्मोड़ा से 22 किलोमीटर दूर कली घाट है. जहां 1890 में स्वामी विवेकानंद हिमालय यात्रा पर आए थे. तब उन्होंने नदी के तट पर स्नान करने के बाद यहां एक वृक्ष के नीचे तप किया था. जिससे उन्हें ब्रह्मांड का ज्ञान प्राप्त हुआ था. साल 1910 में आई आपदा के बाद ये वृक्ष सूखने लगा था. जिसके बाद पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने इस वृक्ष का क्लोन तैयार किया था.

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अब वन अनुसंधान केंद्र अपने नर्सरी में स्वामी विवेकानंद के तपोस्थली पेड़ के क्लोन संरक्षित करने का काम कर रहा है. इसके अलावा आदि गुरु शंकराचार्य ने जोशीमठ में कल्पवृक्ष के नीचे कठिन तपस्या की थी. उस वृक्ष के बीज को रोपित कर अनुसंधान केंद्र उसे भी संरक्षित करने का काम कर हा है.

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चंपावत में रीठा साहि सिखों का धार्मिक स्थल है. मान्यता का अनुसार गुरु नानक देव यहां भ्रमण के लिए पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने रीठे के एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या की. तब गुरु नानक देव जी से किसी ने खाने के लिए कुछ मांगा तब गुरु नानक देव जी ने रीठा तोड़कर उन्हें खाने के लिए दिया. रीठा खाने में कड़वा होता है लेकिन जब गुरु नानक ने ये फल उस व्यक्ति को दिया तो ये फल मीठा हो गया. तब से ये पेड़ सिखों की आस्था से जुड़ गया.

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ये पेड़ आज भी गुरुद्वारा रीठा साहिब के नाम से जाना जाता है. इस धार्मिक महत्व वाले पेड़ को भी वन अनुसंधान केंद्र संरक्षित कर रहा है. इसके अलावा नैनीताल जिले के काकडी घाट पर बाबा नीम करौली के बरगद की पेड़ भी है. जिसे भी वन अनुसंधान केंद्र संरक्षित करने का काम कर रहा है.

वन अनुसंधान के वन क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट का कहना है कि वन अनुसंधान केंद्र में विलुप्ती की कगार पर पहुंच चुके पौधों के संरक्षण का काम किया जाता है. यहां पर कई ऐसे वाटिकाएं बनाई गई हैं जो अपने आप में विशेष महत्व रखती हैं. इसके अलावा वन अनुसंधान केंद्र आस्था, धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखने वाले सभी धर्मों के पौधों और वनस्पतियों को भी संरक्षित करने का काम कर रहा है.

Intro:sammry- अनुसंधान केंद्र की पहल देव वाटिका के माध्यम से शंकराचार्य और स्वामी विवेकानंद की वृक्षों का कर रहा है संरक्षण का काम।


एंकर- हल्द्वानी स्थित वन अनुसंधान केंद्र ऐसे तो सैकड़ों विलुप्त हो रहे प्रजाति के पौधों के संरक्षण करने का काम कर रहा है लेकिन एक और नई अनूठी पार करते हुए धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के पौधों का संरक्षण करने का काम कर रहा है इसमें वह पेड़ शामिल है जिसमें स्वामी विवेकानंद और आदि गुरु शंकराचार्य और रीठा साहब ने उस पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या की थी जो आज वन अनुसंधान केंद्र उनके तपोस्थली के पेड़ के अंश को संरक्षित करने का काम कर रहा है।


Body:देवभूमि उत्तराखंड कई ऋषि मुनि का तपोस्थली रहा है उन्हीं तपोस्थली में अल्मोड़ा से 22 किलोमीटर दूर का कली घाट में सन 1890 में स्वामी विवेकानंद हिमालय यात्रा पर आए हुए थे नदी के तट पर स्नान के बाद वह जेंडर दिन हो गए वहीं पर उन्हें ब्रम्हांड का ज्ञान प्राप्त हुआ था सन 1910 में आए आपदा के बाद वृक्ष सूखने लगा था जिसके बाद पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने उसका क्लोन तैयार किया था अब वन अनुसंधान केंद्र अपने नर्सरी में स्वामी विवेकानंद के तपोस्थली पेड़ के क्लोन संरक्षित करने का काम कर रहा है।
इसके अलावा आदि गुरु शंकराचार्य के जोशीमठ में कल्पवृक्ष के नीचे कठिन तपस्या की थी उस वृक्ष के बीज को आज अनुसंधान केंद्र रोपित कर उसको संरक्षित करने का काम किया जा रहा है।

सिखों का धार्मिक स्थान चंपावत के रीठा साहिब धार्मिक स्थल है मान्यता का अनुसार गुरु नानक देव यहां भ्रमण के लिए पहुंचे थे इस दौरान उन्होंने रीठे के एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या कर रहे थे जिस पर किसी ने गुरु नानक देव जी से खाने के लिए कुछ मांगा तब गुरु नानक देव जी रीठा तोड़कर उसको खाने के लिए दिए लेकिन रीठे का कड़वा फल मीठा हो गया जिसके बाद से वहा गुरु नानक देव जी का आस्था का पेड़ माने जाने लगा और आज गुरुद्वारा रीठा साहिब के नाम से जाना जाता है।

उसी तरह बाबा नीम करोली महाराज का नैनीताल जिले के काकडी घाट का बरगद का पेड़ भी यहां संरक्षित करने का काम किया जाता है बाबा नीम करोली महाराज अक्सर विशालकाय बरगद के पेड़ के नीचे ध्यान मग्न हुआ करते थे आज वहां के बरगद के पेड़ के अंश को लाकर संरक्षित करने का काम भी किया जा रहा है।


Conclusion:वन अनुसंधान के वन क्षेत्राधिकारी मदन बिष्ट का कहना है कि वन अनुसंधान केंद्र में विलुप्त के कगार पर पहुंच चुके पौधों का यहां संरक्षण का काम किया जाता है यहां पर कई ऐसे वाटिका बनाए गए हैं जो अपने आप में विशेष महत्व रखता है लेकिन आस्था और धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखने वाले सभी धर्मों के पौधों और वनस्पतियों का संरक्षण करने का भी काम किया जा रहा है।

बाइट -मदन जोशी वन क्षेत्राधिकारी वन अनुसंधान केंद्र हल्द्वानी
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