हल्द्वानी: कहते हैं जब सरकार गैर जिम्मेदार और अधिकारी लापरवाह हो जाए तो गरीबों का हक मरा जाना लाजमी हो जाता है. ऐसा ही वाक्या गौला नदी में देखने को मिल रहा है. प्रदेश सरकार को सबसे ज्यादा राजस्व इन्हीं गौला श्रमिको की मेहनत से मिलता है. लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. गौला के श्रमिक गौला नदी का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. लेकिन वन विभाग को मजदूरों की हालत पर तरस नहीं आ रहा. जिस कारण मजदूर गंदा पानी पीकर बीमारी के कगार पर हैं.
दरअसल प्रदेश सरकार का खजाना भरने का सबसे बड़ा स्रोत खनन है. इस खजाने को भरने में सबसे बड़ा योगदान हल्द्वानी के गौला नदी और यहां काम करने वाले हजारों श्रमिकों का होता है. लेकिन सरकार और अधिकारियों ने इन मजदूरों को उनके हालात पर छोड़ दिया है. यूपी-बिहार जैसे दूरदराज राज्यों से रोजगार की तलाश में हर साल करीब 20000 मजदूर खनन चुगान करने गौला नदी में पहुंचते हैं और मजदूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं. वहीं नदी में खनन कराने वाली कार्यदाई संस्था वन विकास निगम इन मजदूरों को सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं देती है. खनन मजदूरी करने आए हजारों मजदूरों को पानी की बूंद बूंद के लिए तरसना पड़ रहा है. मजबूरन श्रमिक नदी का गंदा पानी पी रहे हैं. जिस कारण मजदूर बार-बार बीमार हो जाते हैं. हालात ये हैं का इन्हे इलाज की सुविधा भी नहीं मिल पाती है.
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मजदूरों का कहना है कि नदी के आस-पास वन विकास निगम की ओर से पीने के पानी की कोई सुविधा नहीं की गई है. ना ही कोई हैंडपंप लगाया गया है. ना ही पानी के टैंकर की व्यवस्था है. मजबूर होकर नदी का गंदा पानी पीते हैं. साथ ही उन्होनें कहा है कि नदी में काम करने वाले सभी मजदूर अन्य प्रदेशों से आते हैं. जिस कारण आवाज नहीं उठा पाते, जिसका फायदा वन विकास निगम उठाता रहा है और मजदूरों को सुविधा देने के नाम पर शोषण कर रहा है.
वहीं इस पूरे मामले में वन विकास निगम के क्षेत्रीय प्रबंधक एम पी एस रावत का कहना है कि वन विकास निगम द्वारा नदी में पानी का टैंकर भेजा जाता है. लेकिन मजदूरों की आदत ही है गंदा पानी पीने की.