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जांबाज भाइयों ने द्रास में पाकिस्तान को चटाई थी धूल, एक को मिली शहादत, दूसरे को यादें

कारगिल की लड़ाई के दौरान गौरखा रेजीमेंट के राइफलमैन शंकर थापा और रमेश थापा जम्मू के द्रास सेक्टर में तैनात थे. ये दोनों भाई एक ही सैनिक शिविर में थे. इसी दौरान 3 जुलाई 1999 की शाम को द्रास सेक्टर में दुश्मनों के कब्जे वाली चौकियों को वापस पाने के लिए लड़ी गई लड़ाई में रमेश थापा शहीद हो गये.

दो जांबाज भाईयों ने द्रास में पाकिस्तानियों को चटाई थी धूल.
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Published : Jul 26, 2019, 7:08 PM IST

देहरादून: आज कारगिल दिवस को 20 साल पूरे हो गये हैं. कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों के शौर्य गाथाएं दस्तावेजों के रूप में मौजूद हैं, जिन्हें हर साल याद किया जाता है. कारगिल युद्ध लड़ने वाले ऐसे कई जांबाज आज भी हमारे बीच हैं जिन्होंने जान हथेली पर रखकर दुश्मनों से लोहा लिया था. ऐसी ही कहानी दो जांबाज भाइयों की है, जिन्होंने एक साथ कारगिल में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये थे. लड़ाई में जब एक भाई लड़ते-लड़ते शहीद हो गया तब भी दूसरे भाई ने हथियार नहीं छोड़े. भाई के शहीद होने की खबर और दुश्मनों से लड़ते हुए मां भारती की रक्षा करने वाले गोरखा रेजमेंट के राइफलमैन शंकर थापा से विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत की खास बातचीत.

जांबाज भाइयों ने द्रास में पाकिस्तान को चटाई थी धूल.

देश की सेवा को सेना में भर्ती हुये थे दोनों भाई

देहरादून के गढ़ी कैंट क्षेत्र के गल्जवाड़ी में रहने वाले रमेश थापा और शंकर थापा मां भारती की सेवा के लिए सेना में भर्ती हुए थे. कारगिल की लड़ाई के दौरान गौरखा रेजीमेंट के राइफलमैन शंकर थापा और रमेश थापा जम्मू के द्रास सेक्टर में तैनात थे. ये दोनों भाई एक ही सैनिक शिविर में थे. इसी दौरान 3 जुलाई 1999 की शाम को द्रास सेक्टर में दुश्मनों के कब्जे वाली चौकियों को वापस पाने के लिए लड़ी गई लड़ाई में रमेश थापा शहीद हो गये.

ये दोनों भाई 27 दिसम्बर 1994 को लैंसडाउन में हुई भर्ती के दौरान गोरखा रेजीमेंट में भर्ती हुए. महज 5 साल की सर्विस में 3 जुलाई 1999 की रोज रमेश थापा पाकिस्तानी सेना से लड़ते-लड़ते शहीद हो गये.

पढ़ें-वकील से मारपीट के मामले में हाई कोर्ट सख्त, आरोपियों पर 48 घंटे के अंदर FIR दर्ज करने के आदेश

इस दौरान भाई की मौत को अपनी आंखों से देखने वाले शंकर के पांव तले जैसे जमीन खिसक गई थी. भाई की मौत ने शंकर थापा को गुस्से और बदले की भावना से भर दिया था. जिसके बाद वे गोरखा रेजीमेंट के जयघोष 'जय महाकाली-आयो गोरखाली' के साथ दुश्मनों का नरसंहार करते चले गये.

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...यादें हैं साथ

शंकर उस मनहूस दिन को याद करते हुए बाताते हैं कि मौसम बरसात का था और रात ही द्रास सेक्टर से आगे दुश्मन के कब्जे वाली अपनी चौकियों को छुड़ाने के लिए चढ़ाई करने का आर्डर मिला था. अलग-अलग टुकड़ियों में सबसे आगे रवाना होने वाली टुकड़ी में उनके भाई रमेश थापा मौजूद थे.

शंकर बताते हैं कि देर रात को सूचना मिली की दुश्मनों से लड़ते-लड़ते हमारे कुछ सैनिक भी घायल हुए थे. तबतक शंकर को अंदाजा भी नहीं था कि घायलों में उनका भाई भी शामिल है, लेकिन अगली सुबह जब परेड हुई तो बताया गया कि उनके भाई ने दुश्मनों से लड़ते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है.

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शंकर बताते हैं कि भाई की शहादत से उन्हें गहरा धक्का पहुंचा. वो कहते हैं कि भले ही उनका भाई देश के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हो गया लेकिन उन्होंने देश की सेना में रहते हुए पूरे 24 साल सेवा की. रिटायरमेंट लेते वक्त वो आखिरी बार उसी द्रास सेक्टर पर अपने देश की मिट्टी चूम कर घर आये थे.

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वहीं दोनों भाइयों की इकलौती बहन आशा आले बताती हैं कि उनके भाइयों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाई है. आशा बताती हैं कि त्याहारों पर भाई की बहुत याद आती है. आशा उस दिन को याद करते हुए बताती हैं कि शाम 7 बजे सेना ने उन्हें फोन कर उनके शहीद होने की खबर दी थी, जिसके बाद उनके परिजन बेहद घबरा गये थे क्योंकि उनके दोनों बेटे सेना में तैनात थे. आशा कहती हैं कि उन्हें फक्र है कि उनके भाई ने देश के लिए शहादत दी. वे कहती हैं कि उनकी भी चाहत थी कि अगर उनका बेटा हो तो वो सेना में जाकर देश की सेवा करें.

देहरादून: आज कारगिल दिवस को 20 साल पूरे हो गये हैं. कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों के शौर्य गाथाएं दस्तावेजों के रूप में मौजूद हैं, जिन्हें हर साल याद किया जाता है. कारगिल युद्ध लड़ने वाले ऐसे कई जांबाज आज भी हमारे बीच हैं जिन्होंने जान हथेली पर रखकर दुश्मनों से लोहा लिया था. ऐसी ही कहानी दो जांबाज भाइयों की है, जिन्होंने एक साथ कारगिल में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये थे. लड़ाई में जब एक भाई लड़ते-लड़ते शहीद हो गया तब भी दूसरे भाई ने हथियार नहीं छोड़े. भाई के शहीद होने की खबर और दुश्मनों से लड़ते हुए मां भारती की रक्षा करने वाले गोरखा रेजमेंट के राइफलमैन शंकर थापा से विजय दिवस के मौके पर ईटीवी भारत की खास बातचीत.

जांबाज भाइयों ने द्रास में पाकिस्तान को चटाई थी धूल.

देश की सेवा को सेना में भर्ती हुये थे दोनों भाई

देहरादून के गढ़ी कैंट क्षेत्र के गल्जवाड़ी में रहने वाले रमेश थापा और शंकर थापा मां भारती की सेवा के लिए सेना में भर्ती हुए थे. कारगिल की लड़ाई के दौरान गौरखा रेजीमेंट के राइफलमैन शंकर थापा और रमेश थापा जम्मू के द्रास सेक्टर में तैनात थे. ये दोनों भाई एक ही सैनिक शिविर में थे. इसी दौरान 3 जुलाई 1999 की शाम को द्रास सेक्टर में दुश्मनों के कब्जे वाली चौकियों को वापस पाने के लिए लड़ी गई लड़ाई में रमेश थापा शहीद हो गये.

ये दोनों भाई 27 दिसम्बर 1994 को लैंसडाउन में हुई भर्ती के दौरान गोरखा रेजीमेंट में भर्ती हुए. महज 5 साल की सर्विस में 3 जुलाई 1999 की रोज रमेश थापा पाकिस्तानी सेना से लड़ते-लड़ते शहीद हो गये.

पढ़ें-वकील से मारपीट के मामले में हाई कोर्ट सख्त, आरोपियों पर 48 घंटे के अंदर FIR दर्ज करने के आदेश

इस दौरान भाई की मौत को अपनी आंखों से देखने वाले शंकर के पांव तले जैसे जमीन खिसक गई थी. भाई की मौत ने शंकर थापा को गुस्से और बदले की भावना से भर दिया था. जिसके बाद वे गोरखा रेजीमेंट के जयघोष 'जय महाकाली-आयो गोरखाली' के साथ दुश्मनों का नरसंहार करते चले गये.

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...यादें हैं साथ

शंकर उस मनहूस दिन को याद करते हुए बाताते हैं कि मौसम बरसात का था और रात ही द्रास सेक्टर से आगे दुश्मन के कब्जे वाली अपनी चौकियों को छुड़ाने के लिए चढ़ाई करने का आर्डर मिला था. अलग-अलग टुकड़ियों में सबसे आगे रवाना होने वाली टुकड़ी में उनके भाई रमेश थापा मौजूद थे.

शंकर बताते हैं कि देर रात को सूचना मिली की दुश्मनों से लड़ते-लड़ते हमारे कुछ सैनिक भी घायल हुए थे. तबतक शंकर को अंदाजा भी नहीं था कि घायलों में उनका भाई भी शामिल है, लेकिन अगली सुबह जब परेड हुई तो बताया गया कि उनके भाई ने दुश्मनों से लड़ते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है.

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शंकर बताते हैं कि भाई की शहादत से उन्हें गहरा धक्का पहुंचा. वो कहते हैं कि भले ही उनका भाई देश के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हो गया लेकिन उन्होंने देश की सेना में रहते हुए पूरे 24 साल सेवा की. रिटायरमेंट लेते वक्त वो आखिरी बार उसी द्रास सेक्टर पर अपने देश की मिट्टी चूम कर घर आये थे.

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वहीं दोनों भाइयों की इकलौती बहन आशा आले बताती हैं कि उनके भाइयों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाई है. आशा बताती हैं कि त्याहारों पर भाई की बहुत याद आती है. आशा उस दिन को याद करते हुए बताती हैं कि शाम 7 बजे सेना ने उन्हें फोन कर उनके शहीद होने की खबर दी थी, जिसके बाद उनके परिजन बेहद घबरा गये थे क्योंकि उनके दोनों बेटे सेना में तैनात थे. आशा कहती हैं कि उन्हें फक्र है कि उनके भाई ने देश के लिए शहादत दी. वे कहती हैं कि उनकी भी चाहत थी कि अगर उनका बेटा हो तो वो सेना में जाकर देश की सेवा करें.

Intro:Note- ये कारगिल दिवस पर स्पेशल स्टोरी है। फीड FTP से (uk_deh_05_do jabaj bhai_vis_byte_7205800) नाम से भेजी गई है।

एंकर- कारगिल युद्ध की शौर्य गाथाएं देश के गौरव पूर्ण इतिहास को हर साल दौहराती है। 20 साल होने जा रहे कारगिल युद्ध को लड़ने वाले आज भी कुछ एसे जाबाज हमारे बीच है जिन्होने जान हथेली पर रखकर दुश्मनों से लोहा लिया था। एसी ही एक कहानी है दो जबाज भाईयो की जिन्होने एक साथ कारगिल में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये थे। लेकिन इसी लड़ाई में एक भाई जब लड़ते लड़ते दुश्मनों की गोलियों से छलनी होकर शहीद हो गया तो दूसरे भाई की आंखों से आसूं तो बहे लेकिन हाथों से हथियार नही छूटे और वो आखिरी तक दुश्मनो से लड़ता रहा। कैसा था वो भाई से बिछड़ने और दुश्मनो से लोहा लेने वाला मंजर हमने जाना खुद गोरखा रेजमेंट के राइफलमैन शकर थापा से। Body:वीओ- कारगिल युद्ध में जंग लड़ने वाले और शहीद होने जबाज जवानों की हर एक कहानी आपके जहन सिहरन पैदा करेगी। हर एक कहानी आपके अंदर देश प्रेम की भावनो को ओत प्रोत कर देगी और एसी ही कहानी है दो जबाज भाई शंकर और रमेश थापा की। कारगिल युद्ध में लड़ते लड़ते एक भाई ने दुश्मन के सीने पर तिरंगा गाड़ दिया तो एक दुसरा भाई तिरगें में लिपट कर घर लौटा।

देहरादून गड़ी कैंट क्षेत्र के गल्जवाड़ी में रहने वाले रमेश थापा और शंकर थापा। कारगिल की लड़ाई के दौरान गौरखा रेजमैंट के राइफलमैन शंकर थापा और उनके भाई रमेश थापा जम्मू के दरास्स सैक्टर में तैनात थै और दौनाे भाईयों का सैनिक शीविर भी एक ही था। इसी दौरन 3 जुलाई 1999 की शाम दरास्स सैक्टर में ही दुश्मनों के कब्जे वाली अपनी चौकियों को वापिस पाने के लिए हुई लड़ाई में रमेश थापा शहीद हो गये। गौरखा रेजमेंट में 27 दिसम्बर 1994 को उत्तराखंड के लैसिंडोन से भर्ती हुए दोनो भाई रमेश थापा और शंकर थापा में से मात्र 5 साल की सर्विस में 3 जुलाई 1999 की रोज रमेंश थापा पाकिस्तानी सेना की गोली से घायल हो गये। राइफलमैन रमेश थापा के पैर में गोली लगी थी जिसके बाद उन्हे उपचार के लिए अस्पताल तो ले जाया गया लेकिन वो बच नही पाये और उनका नाम देश के प्रति सर्वोच्च बलिदान देने वाले लोगों में शामिल हो गया।

अपनी भाई की मौत को अपनी आंखो के सामने देख शंकर के पांव तले जैसे जमीन खिसक गई थी। भाई की मौत ने शंकर थापा को गुस्से और बदले की भावना से भर दिया और वो गौरखा रेजमेंट के यहघोष "जय महाकाली, आयो गोरखाली" के साथ दुश्मनो का नरसंहार करते चले गये। शकंर उस मनहूस दिन को याद करते हुए बाताते हैं कि मौसम बरसात का था और रात ही दरास्स सैक्टर से आगे दुश्मन के कब्जे वाली अपनी चौकियों को छुड़ाने के लिए चढ़ाई करने का आर्डर मिला था। अलग अलग टुकड़ियों में सबसे आगे रवाना होने वाली टुकड़ी में उनके भाई रमेश थापा मौजूद थे। शंकर बताते हैं कि देर रात को सूचना मिली की दुश्मनो से लड़ते लड़ते हमारे कुछ सैनिक भी घायल हुए थे और तब तक शंकर को अंदाजा भी नही था कि घायलों में उनका भाई भी मौजूद है लेकिन अगली सुबह जब परेड़ हुई तो बताया गया कि आपके भाई ने दुश्मनो से लड़ते हुए देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है।

शकंर भरे हुए गले से आंसुओं का घूट पीते हुए बताते हैं कि उनकी भाई की शहादत ने उन्हे गहरा धक्का पंहुचाया था लेकिन इसके साथ ही कारगिल युद्ध जितने के बाद मन में एक संतुष्टी यह भी थी कि भारत सरकरा को जो नमक खाया है उसका हिसाब अदा कर दिया है। शंकर बाताते है कि भले ही उनके भाई देश के लिए लड़ते लड़ते शहीद हो गये लेकिन उन्होने देश की सेना में रहते हुए पूरे 24 वर्ष सेवा की है और रिटार्यरमेंट लेते वक्त हो आखिरी बार उसी दरास सेक्टर पर अपने देश की मिट्टी चूम कर आये हैं जो उस समय दुश्मनों के कब्जे में थी और आज आजाद भारत का हिस्सा है। साथ ही उन्होने उस मिट्टी को इसलिये भी चूमा क्योंकि उनके भाई को भी आखिरी समय में वही मिट्टी नसीब हुई थी।
बाइट- शंकर थापा, कारगिल युद्ध के जवान और शहीद के भाई


वहीं दोनो भाईयों की एक बहन आशा आले कहती है की उनके दो भाई है और दोनो भाईयों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राणो की तक बाजी लगाई है जिसमें से एक भाई देश के लिए शहीद हो गया। आशा बताती है कि त्याहारों पर भाई की बहुत याद आती है खाश तौर से रक्षाबंधन पर। आशा भाई के शहीद होने वाले दिन को याद करते हुए बताते हुए कहा कि उन्हे शाम को 7 बजे सेना द्वारा आये एक फोन से भाई के शहीद होने की सूचना मिली थी लैकिन घर मै मौजूद लोग बहुत घबरा गये थे क्योंकि घर के दोनो चिराग सेना में थे। आशा आले कहती है उनके भाई देश के लिए शहीद हुए है इस बात का उन्हे फक्र है उन्होने कहा कि उनकी दो बेटियां है लेकिन वो चाहती है कि उनकी बेटी भी देश की सेवा कर सके साथ ही उन्होने सभी मा और बहनो को कहा कि देश सेवा करने वाला जवान का पूरा देश एक परिवार है।
बाइट- आशा आले, शहीद की बहनConclusion:
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