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EXCLUSIVE: Chandrayaan-4 के बारे में इसरो चीफ ने किए बड़े खुलासे, 2027 में होगी लॉन्चिंग - ISRO CHAIRMAN V NARAYANAN INTERVIEW

इसरो अध्यक्ष वी. नारायणन ने ईटीवी भारत को दिए इंटरव्यू में अपने खास अपकमिंग मिशन चंद्रयान-4 के बारे में कुछ खास जानकारी दी है.

ISRO Chairman V Narayanan during an interview with ETV Bharat
ईटीवी भारत को इंटरव्यू देते हुए इसरो के अध्यक्ष (फोटो - ETV BHARAY)
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By ETV Bharat Tech Team

Published : Feb 15, 2025, 6:50 PM IST

बेंगलुरु: भारत अगले साल गगनयान और समुद्रयान मिशन्स की तैयारी कर रहा है. उसके बाद 2027 में चंद्रयान-4 को लॉन्च किया जाएगा. इसरो अध्यक्ष वी नारायण ने ईटीवी भारत की पत्रकार अनुभा जैन को दिए एक इंटरव्यू में भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो को अगले चांद मिशन यानी चंद्रयान-4 के बारे में कई खास जानकारियां दी है. इसके अलावा उन्होंने चंद्रयान-4 और चंद्रयान-3 के बीच का अंतर भी समझाया है. आइए हम आपको इस एक्सक्लूसिव इंटरव्यू की बातें बताते हैं.

इसरो ने चंद्रयान-3 को चंद्रमा के साउथ पोल में सफलतापूर्वक लैंड करके पूरी दुनिया में एक नया कीर्तिमान रचा था, क्योंकि वह ऐसा करने वाला दुनिया की पहली स्पेस एजेंसी बनी थी. इसके बारे में इसरो के अध्यक्ष वी नारायण ने बताया कि, "चांद के साउथ पोल में सुरक्षित रूप से लैंड करने के बाद चंद्रयान-3 ने वहां की सर्फेस मिनिरल्स, थर्मल ग्रेडिएंट्स, इलेक्ट्रोन क्लाउड्स और भूकंपीय गतिविधियों पर कई खास डेटा प्रदान किए हैं, लेकिन चंद्रयान-4 उससे भी बड़ा कदम साबित होगा. यह ना सिर्फ चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा, बल्कि वहां के सैंपल्स को कलेक्ट करके प्रयोग भी करेगा."

चंद्रयान-4 के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए इसरो चीफ ने कहा कि, चंद्रयान-4 सैटेलाइट का वजन 9,200 किलोग्राम होगा, जो कि 4,000 किलोग्राम वाले चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) से काफी ज्यादा है.

उन्होंने कहा कि, "इसके बड़े साइज की वजह से उन्होंने बताया कि चंद्रयान-4 का वजन 9,200 किलोग्राम होगा, जो कि चंद्रयान-3 के 4,000 किलोग्राम वजन से बहुत ज्यादा है। इसके बड़े आकार की वजह से, इसे स्पेस में भेजने के लिए दो Mark III रॉकेट्स का उपयोग किया जाएगा. यह पूरा मिशन पांच मॉड्यूल्स में बंटा होगा और उन्हें दो समूहों (Stacks) में असंबेल किया जाएगा. ये मॉड्यूल्स पृथ्वी की ऑर्बिट में जाकर एक-दूसरे से जुड़ेंगे और वहां पर रॉकेट का प्रोपलशन सिस्टम अलग हो जाएगा."

नारायणन ने बताया कि, "चंद्रयान-4 मिशन के अंतर्गत चार मॉड्यूल चंद्रमा की ऑर्बिट में जाएंगे, जिनमें से दो चांद की सतह पर उतरेंगे. उनमें से सिर्फ एक सैंपल रिटर्न मॉड्यूल ही पृथ्वी पर वापस आएगा, जबकि बाकी दो मॉड्यूल चांद की ऑर्बिट में ही रह जाएंगे. इसका मतलब है कि इसरो एक मॉड्यूल को चंद्रमा की सतह पर छोड़ देगा."

इन सभी के अलावा इसरो चीफ ने इस इंटरव्यू में आगे बताया कि, "उन्हें कई मिशन्स के लिए मंजूरी मिल चुकी है, जिनमें शुक्र मिशन (Venus mission) और मंगल ऑर्बिटर मिशन (Mars Orbiter Mission) शामिल हैं. हालांकि, हमारा खास ध्यान लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन (LUPEX) पर है, जो चंद्रयान-3 मिशन का बड़ा और एडवांस वर्ज़न है. इस मिशन में 250 किलोग्राम का एक रोवर शामिल होगा, जबकि चंद्रयान-3 के रोवर का वजन सिर्फ 25 किलोग्राम था. इस मिशन की तैयारी जापान की अंतरिक्ष एजेंसी, एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) के साथ मिलकर की जा रही है. यह मिशन चंद्रमा की खोज और साइंटिफिक डिसकवरी के नजरिए से एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम होगा."

इसरो के चंद्रयान मिशन्स

इसरो के अध्यक्ष ने पहले दो चंद्रयान मिशन्स के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि, पहले दो चंद्रयान मिशन्स ने चंद्रमा की सतह, उप-सतह और चंद्रमा के बाहरी वातावरण का अध्ययन किया था. उन्होंने कहा कि चंद्रयान-2 मिशन के ऑप्टिकल पेलोड्स दुनिया में सबसे बेहतरीन हैं और उसपर लगे हाई-रिजॉल्यूशन कैमरों ने इसरो की शानदार काबिलियत का प्रदर्शन किया है.

भारत के तीसरे चंद्रयान मिशन ने चांद के साउथ पोल में सुरक्षित और सफलतापूर्वक लैंडिंग की और वहां की जमीन और नजदीकी सर्फेस प्लाज़्मा का अध्ययन किया. इसके अलावा चंद्रयान-3 ने चांद की साउथ पोल की सतह पर होने वाली कंपन को भी रिकॉर्ड किया है.

आपको बता दें कि जब सूर्य से आने वाली चार्ज पार्टिकल की रेज़ चंद्रमा की सतह से टकराती है तो उस सतह का वातावरण काफी आयनित (Ionized) हो जाता है. इसकी वजह से इलेक्ट्रॉन और आयन (पॉजिटीव चार्ज वाले पार्टिकल्स) बनते हैं, जिन्हें हम नियर सर्फेस प्लाज़्मा कहते हैं. चंद्रयान-3 ने चांद के साउथ पोल की नियर सर्फेस प्लाज़्मा का अध्ययन किया है, क्योंकि इससे चंद्रमा के पार्यावरण और सतह की खास चीजों के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां पता चल सकती है. ये जानकारियां भविष्य में होने वाले चांद मिशन्स के लिए काफी जरूरी हो सकती है.

चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद अब बारी चंद्रयान-4 मिशन की है. चंद्रयान-4 मिशन की सफलता भारत के चांद मिशन (Lunar Exploration) के लिए एक बड़ी छलांग साबित होगी. चंद्रयान-4 मिशन का उद्देश्य चांद की सतह से सैंपल्स को सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना होगा. चांद की सतह के इन सैंपल्स को वहां के अलग-अलग भूवैज्ञानिक क्षेत्रों से जमा किया जाएगा, ताकि चांद की थर्मल हिस्ट्री को समझने में मदद मिल सके.

यहां पर गौर करने के बात है कि चीन के Chang'e-5 चंद्र मिशन ने भी चांद के सैंपल्स पृथ्वी पर लाए थे, लेकिन वो सिर्फ भूवैज्ञानिक रूप से एक युवा ज़ोन के ही सैंपल्स थे. वहीं, अमेरिका के अपोलो और रूस के लूना मिशन्स के द्वारा भी चांद के सैंपल्स पृथ्वी पर लाए गए हैं, लेकिन वो भी उसी भूवैज्ञानिक क्षेत्र के थे. इस कारण उन मिशन्स में चांद के अलग-अलग क्षेत्रों के सैंपल्स और वहां की जानकारियों का पता नहीं चल पाया. इसरो का चंद्रयान-4 मिशन चांद के अलग-अलग भूवैज्ञानिक क्षेत्र से सैंपल्स लेकर पृथ्वी पर सुरक्षित आएगा, जिससे दुनिया में भारत और इसरो का नाम ऊंचा होगा.

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इसरो ने चंद्रयान-3 को चंद्रमा के साउथ पोल में सफलतापूर्वक लैंड करके पूरी दुनिया में एक नया कीर्तिमान रचा था, क्योंकि वह ऐसा करने वाला दुनिया की पहली स्पेस एजेंसी बनी थी. इसके बारे में इसरो के अध्यक्ष वी नारायण ने बताया कि, "चांद के साउथ पोल में सुरक्षित रूप से लैंड करने के बाद चंद्रयान-3 ने वहां की सर्फेस मिनिरल्स, थर्मल ग्रेडिएंट्स, इलेक्ट्रोन क्लाउड्स और भूकंपीय गतिविधियों पर कई खास डेटा प्रदान किए हैं, लेकिन चंद्रयान-4 उससे भी बड़ा कदम साबित होगा. यह ना सिर्फ चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा, बल्कि वहां के सैंपल्स को कलेक्ट करके प्रयोग भी करेगा."

चंद्रयान-4 के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए इसरो चीफ ने कहा कि, चंद्रयान-4 सैटेलाइट का वजन 9,200 किलोग्राम होगा, जो कि 4,000 किलोग्राम वाले चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) से काफी ज्यादा है.

उन्होंने कहा कि, "इसके बड़े साइज की वजह से उन्होंने बताया कि चंद्रयान-4 का वजन 9,200 किलोग्राम होगा, जो कि चंद्रयान-3 के 4,000 किलोग्राम वजन से बहुत ज्यादा है। इसके बड़े आकार की वजह से, इसे स्पेस में भेजने के लिए दो Mark III रॉकेट्स का उपयोग किया जाएगा. यह पूरा मिशन पांच मॉड्यूल्स में बंटा होगा और उन्हें दो समूहों (Stacks) में असंबेल किया जाएगा. ये मॉड्यूल्स पृथ्वी की ऑर्बिट में जाकर एक-दूसरे से जुड़ेंगे और वहां पर रॉकेट का प्रोपलशन सिस्टम अलग हो जाएगा."

नारायणन ने बताया कि, "चंद्रयान-4 मिशन के अंतर्गत चार मॉड्यूल चंद्रमा की ऑर्बिट में जाएंगे, जिनमें से दो चांद की सतह पर उतरेंगे. उनमें से सिर्फ एक सैंपल रिटर्न मॉड्यूल ही पृथ्वी पर वापस आएगा, जबकि बाकी दो मॉड्यूल चांद की ऑर्बिट में ही रह जाएंगे. इसका मतलब है कि इसरो एक मॉड्यूल को चंद्रमा की सतह पर छोड़ देगा."

इन सभी के अलावा इसरो चीफ ने इस इंटरव्यू में आगे बताया कि, "उन्हें कई मिशन्स के लिए मंजूरी मिल चुकी है, जिनमें शुक्र मिशन (Venus mission) और मंगल ऑर्बिटर मिशन (Mars Orbiter Mission) शामिल हैं. हालांकि, हमारा खास ध्यान लूनर पोलर एक्सप्लोरेशन मिशन (LUPEX) पर है, जो चंद्रयान-3 मिशन का बड़ा और एडवांस वर्ज़न है. इस मिशन में 250 किलोग्राम का एक रोवर शामिल होगा, जबकि चंद्रयान-3 के रोवर का वजन सिर्फ 25 किलोग्राम था. इस मिशन की तैयारी जापान की अंतरिक्ष एजेंसी, एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (JAXA) के साथ मिलकर की जा रही है. यह मिशन चंद्रमा की खोज और साइंटिफिक डिसकवरी के नजरिए से एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम होगा."

इसरो के चंद्रयान मिशन्स

इसरो के अध्यक्ष ने पहले दो चंद्रयान मिशन्स के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि, पहले दो चंद्रयान मिशन्स ने चंद्रमा की सतह, उप-सतह और चंद्रमा के बाहरी वातावरण का अध्ययन किया था. उन्होंने कहा कि चंद्रयान-2 मिशन के ऑप्टिकल पेलोड्स दुनिया में सबसे बेहतरीन हैं और उसपर लगे हाई-रिजॉल्यूशन कैमरों ने इसरो की शानदार काबिलियत का प्रदर्शन किया है.

भारत के तीसरे चंद्रयान मिशन ने चांद के साउथ पोल में सुरक्षित और सफलतापूर्वक लैंडिंग की और वहां की जमीन और नजदीकी सर्फेस प्लाज़्मा का अध्ययन किया. इसके अलावा चंद्रयान-3 ने चांद की साउथ पोल की सतह पर होने वाली कंपन को भी रिकॉर्ड किया है.

आपको बता दें कि जब सूर्य से आने वाली चार्ज पार्टिकल की रेज़ चंद्रमा की सतह से टकराती है तो उस सतह का वातावरण काफी आयनित (Ionized) हो जाता है. इसकी वजह से इलेक्ट्रॉन और आयन (पॉजिटीव चार्ज वाले पार्टिकल्स) बनते हैं, जिन्हें हम नियर सर्फेस प्लाज़्मा कहते हैं. चंद्रयान-3 ने चांद के साउथ पोल की नियर सर्फेस प्लाज़्मा का अध्ययन किया है, क्योंकि इससे चंद्रमा के पार्यावरण और सतह की खास चीजों के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां पता चल सकती है. ये जानकारियां भविष्य में होने वाले चांद मिशन्स के लिए काफी जरूरी हो सकती है.

चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद अब बारी चंद्रयान-4 मिशन की है. चंद्रयान-4 मिशन की सफलता भारत के चांद मिशन (Lunar Exploration) के लिए एक बड़ी छलांग साबित होगी. चंद्रयान-4 मिशन का उद्देश्य चांद की सतह से सैंपल्स को सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाना होगा. चांद की सतह के इन सैंपल्स को वहां के अलग-अलग भूवैज्ञानिक क्षेत्रों से जमा किया जाएगा, ताकि चांद की थर्मल हिस्ट्री को समझने में मदद मिल सके.

यहां पर गौर करने के बात है कि चीन के Chang'e-5 चंद्र मिशन ने भी चांद के सैंपल्स पृथ्वी पर लाए थे, लेकिन वो सिर्फ भूवैज्ञानिक रूप से एक युवा ज़ोन के ही सैंपल्स थे. वहीं, अमेरिका के अपोलो और रूस के लूना मिशन्स के द्वारा भी चांद के सैंपल्स पृथ्वी पर लाए गए हैं, लेकिन वो भी उसी भूवैज्ञानिक क्षेत्र के थे. इस कारण उन मिशन्स में चांद के अलग-अलग क्षेत्रों के सैंपल्स और वहां की जानकारियों का पता नहीं चल पाया. इसरो का चंद्रयान-4 मिशन चांद के अलग-अलग भूवैज्ञानिक क्षेत्र से सैंपल्स लेकर पृथ्वी पर सुरक्षित आएगा, जिससे दुनिया में भारत और इसरो का नाम ऊंचा होगा.

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