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केदारघाटी में खिलने लगी फ्योंली, बुरांस से भी आया निखार, चारों ओर फैला बंसत की बयार - FYONLI BURANS UTTARAKHAND

प्रवासी पक्षियों ने किया केदारघाटी की ओर रूख, बसंत ऋतु के आगमन से महिलाओं को सताने लगी मायके की याद !

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केदारघाटी में खिलने लगी फ्योंली (SOURCE: ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Feb 15, 2025, 6:51 PM IST

रुद्रप्रयाग: केदारघाटी की खूबसूरती इस वक्त देखते ही बनती है. केदारघाटी में खिले पीले फूलों ने यहां नई ऊर्जा भर दी है. फ्योंली, बुरांस प्रजाति के पुष्पों से केदारघाटी सज गई है इससे प्राकृतिक सौन्दर्य पर चार चांद लगे हैं.

रुद्रप्रयाग में फ्योली, बुरांस के फूल खिलने लगे हैं. इन खूबसूरत फूलों ने इसकी इलाके की सुंदरता को और बढ़ा दिया है. वैसे तो वसंत ऋतु की शुरूआत मार्च माह से मानी जाती है. लेकिन मार्च से पहले ही ऐसा लगता है कि यहां वसंत ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर है. वहीं प्रवासी पक्षियों ने केदारघाटी की ओर रूख करना शुरू कर दिया है तथा ब्रह्म बेला पर प्रकृति की छांव में प्रवासी पक्षियों की चहक अति प्रिय लग रही है.

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फ्योंली के फूल (SOURCE: ETV BHARAT)

फ्योंली, बुरांस के फूल वैसे तो गर्मियों में खिलते हैं लेकिन पिछले काफी साल से फरवरी माह में ही फ्योंली बुरांस के फूल खिलने लगे हैं, जो प्रकृति के लिए तो अच्छे संकेत नहीं है लेकिन इनकी खूबसूरती इलाके को लोगों को त्योहार मनाने, गाना गाने, वसंत ऋतु को आनंद लेने को प्रेरित कर रही है.

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खिलने लगा बुरांस (SOURCE: ETV BHARAT)

चट्टानों पर खिली फ्यूोंली खुशहाली का संदेश दे रही है तो बुरांस उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी है.

वंसत ऋतु के आगमन का संकेत: गढ़ गौरव नरेन्द्र सिंह नेगी सहित देवभूमि उत्तराखंड के साहित्यकारों व संगीतकारों ने वसंत ऋतु की महिमा का गुणगान किया है. इन फूलों को देख महिलाओं को मायके की याद सताने लगी है. बसंत ऋतु में धियाणियों के मायके आगमन का वृतांत संगीतकारों ने खुदेड़ गीतों से किया है. संगीतकार नरेन्द्र सिंह नेगी के गीतों में इस ऋतु की खुशी का जिक्र किया गया है.

लोगों को याद आ रहे लोक गीत: जिसके बाद “घुघूती घुरोण लगी म्यारा मैत की, बौड़ी बौड़ी ऐगे ऋतु ऋतु चेत की, जैसे खुदेड़ गीत महिलाएं गुनगुनाती मायके में सुनाई दे रही हैं.

ऐसा माना जाता है कि बसंत ऋतु धियाणियों के मायके आगमन व ऋतु परिवर्तन का द्योतक माना गया है. क्योंकि जब-जब वसंत ऋतु पूर्ण यौवन पर होता है, तब-तब ससुराल में महिलाओं को मायके की याद बहुत सताती है.

वसन्त ऋतु के अन्तर्गत ही चैत्र मास का आगमन होता है तथा चैत्र मास में ही नौनिहाल ब्रह्म बेला पर घरों की चौखटों में अनेक प्रजाति के पुष्प बिखेरकर वसन्त आगमन का सन्देश देते हैं तथा चैत्र मास आठ गते तक घरों की चौखटों की पुष्प बिखेरने की परम्परा युगों पूर्व की है. चैत्र मास के बाद कफुवा, घुघूती, हिलांस सहित अनेक प्रजाति के पक्षियों की मधुर आवाज ब्रह्म बेला पर सुनने को मिलती है.

ये भी पढे़ें- उत्तराखंड में अप्रैल की जगह फरवरी में ही खिलने लगे बुरांस और फ्योंली, पर्यावरणविदों ने जताई चिंता

ये भी पढ़ें- वसंत के फूलों से सजी केदारघाटी, प्रवासी पक्षियों का आगमन शुरू

रुद्रप्रयाग: केदारघाटी की खूबसूरती इस वक्त देखते ही बनती है. केदारघाटी में खिले पीले फूलों ने यहां नई ऊर्जा भर दी है. फ्योंली, बुरांस प्रजाति के पुष्पों से केदारघाटी सज गई है इससे प्राकृतिक सौन्दर्य पर चार चांद लगे हैं.

रुद्रप्रयाग में फ्योली, बुरांस के फूल खिलने लगे हैं. इन खूबसूरत फूलों ने इसकी इलाके की सुंदरता को और बढ़ा दिया है. वैसे तो वसंत ऋतु की शुरूआत मार्च माह से मानी जाती है. लेकिन मार्च से पहले ही ऐसा लगता है कि यहां वसंत ऋतु अपने पूर्ण यौवन पर है. वहीं प्रवासी पक्षियों ने केदारघाटी की ओर रूख करना शुरू कर दिया है तथा ब्रह्म बेला पर प्रकृति की छांव में प्रवासी पक्षियों की चहक अति प्रिय लग रही है.

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फ्योंली के फूल (SOURCE: ETV BHARAT)

फ्योंली, बुरांस के फूल वैसे तो गर्मियों में खिलते हैं लेकिन पिछले काफी साल से फरवरी माह में ही फ्योंली बुरांस के फूल खिलने लगे हैं, जो प्रकृति के लिए तो अच्छे संकेत नहीं है लेकिन इनकी खूबसूरती इलाके को लोगों को त्योहार मनाने, गाना गाने, वसंत ऋतु को आनंद लेने को प्रेरित कर रही है.

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खिलने लगा बुरांस (SOURCE: ETV BHARAT)

चट्टानों पर खिली फ्यूोंली खुशहाली का संदेश दे रही है तो बुरांस उत्तराखंड का राज्य पुष्प भी है.

वंसत ऋतु के आगमन का संकेत: गढ़ गौरव नरेन्द्र सिंह नेगी सहित देवभूमि उत्तराखंड के साहित्यकारों व संगीतकारों ने वसंत ऋतु की महिमा का गुणगान किया है. इन फूलों को देख महिलाओं को मायके की याद सताने लगी है. बसंत ऋतु में धियाणियों के मायके आगमन का वृतांत संगीतकारों ने खुदेड़ गीतों से किया है. संगीतकार नरेन्द्र सिंह नेगी के गीतों में इस ऋतु की खुशी का जिक्र किया गया है.

लोगों को याद आ रहे लोक गीत: जिसके बाद “घुघूती घुरोण लगी म्यारा मैत की, बौड़ी बौड़ी ऐगे ऋतु ऋतु चेत की, जैसे खुदेड़ गीत महिलाएं गुनगुनाती मायके में सुनाई दे रही हैं.

ऐसा माना जाता है कि बसंत ऋतु धियाणियों के मायके आगमन व ऋतु परिवर्तन का द्योतक माना गया है. क्योंकि जब-जब वसंत ऋतु पूर्ण यौवन पर होता है, तब-तब ससुराल में महिलाओं को मायके की याद बहुत सताती है.

वसन्त ऋतु के अन्तर्गत ही चैत्र मास का आगमन होता है तथा चैत्र मास में ही नौनिहाल ब्रह्म बेला पर घरों की चौखटों में अनेक प्रजाति के पुष्प बिखेरकर वसन्त आगमन का सन्देश देते हैं तथा चैत्र मास आठ गते तक घरों की चौखटों की पुष्प बिखेरने की परम्परा युगों पूर्व की है. चैत्र मास के बाद कफुवा, घुघूती, हिलांस सहित अनेक प्रजाति के पक्षियों की मधुर आवाज ब्रह्म बेला पर सुनने को मिलती है.

ये भी पढे़ें- उत्तराखंड में अप्रैल की जगह फरवरी में ही खिलने लगे बुरांस और फ्योंली, पर्यावरणविदों ने जताई चिंता

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