देहरादून : आपातकालीन सेवा 108 में संचालित एम्बुलेंस का रोज-रोज खराब होना नई कंपनी के लिए मुसीबत बन गया है. इसे लेकर स्वास्थ्य महकमे पर आये दिन तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं. माना जा रहा है कि विभाग के अधिकारियों ने आपातकालीन सेवा जैसे अहम मुद्दे पर भी एंबुलेंस खरीद और इसके मानकों से समझौता किया है. इसी पर पेश है ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट...
बात अगर जीवन रक्षा कि करें तो इस मामले में कोई भी किसी तरह से समझौता नहीं करना चाहता, लेकिन उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग की सोच शायद इस से परे है, तभी तो कुछ समय पहले खरीदी गई 108 सेवा के लिए एंबुलेंस के पहिए कहीं भी रुक जा रहे हैं. जिसके कारण उत्तराखंड की लाइफ लाइन कही जाने वाली 108 सेवा हिचकोले खाने लगी है. कुछ महीनों पहले ही खरीदी गई एंबुलेंसों में अभी से तकनीकी दिक्कतें आने लगी हैं. जिसके कारण स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर सवाल उठने लगे हैं.
108 सेवा के लिए खरीदी गई एक या दो नहीं बल्कि 15 एंबुलेंस अब तक खराब हो चुकी हैं, हालांकि इन एंबुलेंसों को ठीक करवा कर से जन सेवा में लगा दिया जाता है. लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर ये नई गाड़ियां आये दिन क्यों खराब हो जाती हैं?
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इस सेवा से जुड़े कुछ लोग बताते हैं की उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के लिहाज से प्रदेश में फोर्स की एंबुलेंस ज्यादा कारगर साबित होती है. इसी बात को समझते हुए सेवा संचालित करने वाली पूर्व कंपनी जीवीके ने स्वास्थ्य महानिदेशालय को फोर्स की गाड़ियों की स्पेसिफिकेशन सबमिट की थी, लेकिन निदेशालय ने टाटा की एंबुलेंस को खरीदना ज्यादा बेहतर समझा. इससे इतर एंबुलेंस को एडवांस लाइफ सपोर्ट और बेसिक लाइफ सपोर्ट के मानकों के लिहाज से भी पूरी तरह सुसज्जित नहीं किया गया है.
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प्रदेश में संचालित हो रही 108 सेवा ने भारत सरकार के एंबुलेंस को लेकर मानकों तक को पूरा नहीं किया गया. हालांकि मौजूदा कंपनी कैंप के अधिकारी मामले पर सीधे तौर से बोलने से बच रहे हैं.
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स्वास्थ्य महानिदेशालय द्वारा खरीदी गई गाड़ियों को लेकर कंपनी भले ही कुछ न कह रही हो, लेकिन गाड़ियों के बार-बार खराब होने के चलते कंपनी को यह सेवा संचालित करने में खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. प्रदेश में कुल 139 आपातकालीन सेवा 108 की एंबुलेंस संचालित हो रही हैं. उधर भारत सरकार द्वारा तय किए गए मानकों को पूरा किए जाने को लेकर भी मौजूदा कंपनी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है.
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आपातकालीन सेवा 108 अक्सर समय-समय पर सवालों से घिरी रही है. बावजूद इसके भारत सरकार द्वारा तय मानकों को पूरा किए जाने जैसी जरूरी बातों पर ध्यान न दिया जाना और भी गंभीर सवाल खड़े करता है.