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अंग्रेज कर्नल की बेटी जो बनी सबकी दीदी, समाजसेवा को समर्पित एलिजाबेथ व्हीलर

उनके पितामह भारत में ब्रिटिश सेना के प्रथम गवर्नर जनरल रहे. दादा भी आर्मी में जनरल के पद पर थे. पिता आर्मी में कर्नल थे. राजकुमारी की तरह पली वो बच्ची भारत और भारतीयता में इतनी रच बस गई थी कि उत्तराखंड के अल्मोड़ा को अपना ठिकाना बना लिया. समाज सेवा के ऐसे-ऐसे काम किए कि व्हीलर दीदी के नाम से प्रसिद्ध हो गईं. अब व्हीलर दीदी इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी ममता, सहृदयता, सब कुछ बांटने की इच्छा, गरीबों को अपनाने की ललक ये यादें जिंदा हैं.

elizabeth wheeler
एलिजाबेथ व्हीलर
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Published : Oct 25, 2021, 2:43 PM IST

पौड़ी/अल्मोड़ा: जानी-मानी समाज सेविका एलिजाबेथ व्हीलर अब इस दुनिया में नहीं रहीं. उनके किए सामाजिक कार्य हमेशा याद किए जाते रहेंगे. व्हीलर दीदी के नाम से प्रसिद्ध एलिजाबेथ व्हीलर ने 84 साल की उम्र में काठगोदाम में अंतिम सांस ली. उत्तराखंड के जाने-माने लेखक, पत्रकार, राज्य आंदोलनकारी और समाजसेवी डॉक्टर अरुण कुकसाल ने व्हीलर दीदी की संजोई यादें फेसबुक पर शेयर कीं. डॉक्टर साहब को इस बात का दुख है कि इतनी बड़ी समाज सेवी के निधन पर नेताओं और अफसरों के साथ ही समाज सेवियों ने शोक सांत्वना तक नहीं जताई.

व्हीलर दीदी को याद करते हुए डॉक्टर अरुण कुकसाल ने कुछ यों लिखा-

प्यारी दीदी एलिजाबेथ व्हीलर-

और, उसके बाद उन्होंने जीवन में अंग्रेजी में बात नहीं की-

‘‘जीवन तो मुठ्ठी में बंद रेत की तरह है, जितना कसोगे उतना ही छूटता जायेगा. होशियारी इसी में है कि जिन्दगी की सीमायें खूब फैला दो, तभी तुम जीवन को संपूर्णता में जी सकोगे. डर कर जीना तो रोज मरना हुआ.’’

समाजसेवा को समर्पित जीवन: एलिजाबेथ व्हीलर दीदी ने इसी जीवन-दर्शन को मूल-मंत्र मानकर अपना संपूर्ण जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया था. लोकहित की उनकी अद्भुत भावना ने हजारों जिन्दगियों को संवारा. वे जीवन में अविवाहित रहीं. परन्तु जीवन-भर सैंकड़ों बच्चों का लालन-पालन उनकी नवजात अवस्था से उन्होंने किया था. आज वे बच्चे समर्थ होकर सुखमय जीवन-यापन कर रहे हैं.

सामाजिक सेवा कार्यों के लिए त्याग, समर्पण, स्नेह और कर्तव्य-निष्ठा की जीती-जागती हमारी दीदी एलिजाबेथ व्हीलर (84 वर्ष) का काठगोदाम (नैनीताल) में 20 अक्टूबर, 2021 को निधन हो गया. कुछ समय से वे बीमार थीं.

संपन्न परिवार में हुआ था जन्म: दीदी एलिजाबेथ व्हीलर का जन्म धन-धान्य और प्रतिष्ठा से सम्पन्न परिवार में 14 अगस्त, 1938 को अल्मोड़ा नगर से 15 किमी. दूर जलना-पौंधार स्टेट (लमगड़ा) में हुआ था. बचपन से ही कुछ नया, कठिन एवं लोकल्याणकारी कार्यों को करने की ललक ने उनको समाज सेवा के लिए प्रेरित किया. छोटी सी उमर में ही उन्होंने उन निजी सुख-सुविधाओं एवं सफलताओं से अपने को अलग कर लिया, जिनके लिए लोग पूरा जीवन स्वाह कर देते हैं.

जांबाज सैन्य अफसरों के खानदान से थीं एलिजाबेथ व्हीलर: भवाली, जलना एवं पौंधार स्टेट के मालिक व्हीलर परिवार का पूरे कुमाऊं में उच्च मान-सम्मान रहा है. व्हीलर जाति विश्व में कुशल एवं जांबाज सैनिकों के रूप में विख्यात रही हैं. एलिजाबेथ दीदी के पूर्वज भी सेना के उच्च अधिकारी रहे. उनके पितामह 'सर ह्यू व्हीलर' भारत में ब्रिटिश सेना के प्रथम गर्वनर जनरल रहे तथा 'दादा पैट्रिक व्हीलर' भी आर्मी में जनरल के पद पर थे. पिता 'वाल्टर व्हीलर' आर्मी में कर्नल थे.

अल्मोड़ा के खन्तोली गांव में हुई पिता की शादी: संयोग से 'वाल्टर व्हीलर' की शादी अल्मोड़ा के खन्तोली गांव के पंत परिवार में हुयी थी. सेना से अवकाश के बाद वाल्टर व्हीलर पौंधार (अल्मोड़ा) में रहने लगे थे. वाल्टर व्हीलर ज्योतिष विद्या में पारंगत थे. दूर-दराज के लोग उनके पास ज्योतिष गणना के लिए आया करते थे.

उदार धार्मिक विचारों वाला था परिवार: बचपन से ही क्रिश्चियन एवं हिन्दू धर्म के आदर्श समन्वित स्वरूप में एलिजाबेथ एवं उनके बड़े भाई आर. व्हीलर का पालन-पोषण हुआ. दोनों धर्मों के रीति-रिवाजों और संस्कारों ने भाई-बहन की सोच और सामाजिक व्यवहार के दायरे को व्यापकता में विकसित किया.

अल्मोड़ा और लखनऊ से ली शिक्षा: एलिजाबेथ दीदी ने एडम्स स्कूल, अल्मोड़ा से हाईस्कूल (सन् 1958), लालबाग, लखनऊ से इण्टरमीडिएट (सन् 1960), आईटी. कालेज, लखनऊ से बीए (सन् 1960) एमए अंग्रेजी (सन् 1964) और एमए (हिन्दी) की शिक्षा प्राप्त की थी. विद्यार्थी जीवन में खेल एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे अव्वल थीं. हारना उनको मंजूर नहीं था. इसलिए हमेशा अपने प्रयासों को और बेहतर करती रहतीं. और, यह आदत जीवन-भर उनके साथ रही. अनावश्यक डर और संकोच से वह काफी दूर थीं.

पौंधार से अल्मोड़ा आने-जाने के लिए 15 किमी के घने जंगल एवं विकट उतराई-चढ़ाई के रास्ते को वह अक्सर अकेले दौड़ कर तय करती थीं. जंगली जानवरों से हुई मुठभेड़ को वह सामान्य घटना मानती थीं.

एलिजाबेथ दीदी के व्यक्तित्व का एक प्रमुख गुण यह भी रहा कि वे कठोर अनुशासन प्रिय थीं. जो तय कर लिया उसे पूरे मनोयोग से पूरा करके ही छोड़ती थीं.

और फिर उन्होंने अंग्रेजी बोलना छोड़ दिया: पढ़ाई के बाद सामाजिक सेवा के कार्यों की तरफ उन्मुख हुईं तो किसी स्थानीय व्यक्ति ने व्यंग के लहजे में एलिजाबेथ दीदी से सीधे कह दिया कि ‘अंग्रेज जाति और अंग्रेजी बोलने वाली, आप हमारा भला क्यों करेंगी?’

तब एलिजाबेथ ने प्रति-उत्तर में शांत तरीके से कहा कि 'मैं अंग्रेज जाति की हूं, उसको तो मैं चाह कर भी नहीं बदल सकती, पर आज से मैं कभी भी अंग्रेजी में नहीं बोलूंगी।"

सार्वजनिक तौर पर अंग्रेजी में न बोलने के इस प्रण का उन्होंने जीवन-भर पालन किया. इसी जिद पर उन्होंने एमए हिन्दी की डिग्री हासिल की. वे हिन्दी भी बहुत जरूरी हुआ तभी बोलती थीं. कुमाऊंनी ही उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम थी. आकाशवाणी से उनकी कुमाऊंनी वार्ताएं प्रसारित होती थीं.

ग्रामीण महिलाओं के लिए समर्पित कर दिया जीवन: एलिजाबेथ दीदी ने पढ़ाई के दौरान ही ग्रामीण महिलाओं की भलाई के लिए कार्य करना शुरू कर दिया था. वे प्रयास करतीं कि महिलायें जीवन में शारीरिक एवं मानसिक तौर पर सर्मथवान हों. उसके लिए वह गांव की लड़कियों को शिक्षा, खेल, स्वास्थ्य तथा अपनी रक्षा के लिए राइफल चलाना सीखने के लिए उत्साहित करतीं. इसी को अमल में लाने के लिए उन्होंने एसएसबी में 25 वर्ष तक स्वैच्छिक रूप में बिना वेतन के स्वयंसेवी सीओ के पद पर अपनी सेवायें प्रदान की थीं. इस दौरान उन्होंने हजारों महिलाओं को न केवल राइफल चलाना सिखाया, वरन् उनके दुःख-दर्दों में दीदी की भूमिका में भी वे सक्रिय रही थीं.

जब नवजात को ले आईं घर: अपनी युवा अवस्था में एलिजाबेथ व्हीलर के जीवन में अप्रत्याशित रूप में वह दिन भी आया जब एक अज्ञात नवजात शिशु को वे अपने घर ले आयी थीं. घर-परिवार वालों ने उन्हें बहुत समझाया कि अनजान और पराये बच्चे को पालना बहुत कठिन है. परन्तु परिवार के बड़े-बुजुर्गों की इन दलीलों का व्हीलर दीदी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

व्हीलर दीदी ने नहीं की शादी: और, उन्होंने तब एक क्षण भी नहीं गंवाया और प्रण किया कि वह शादी नहीं करेंगी, तथा समाज में बेसहारा बच्चों का जीवन-भर का सहारा बनेगीं. उनके इस दृढ़-संकल्प को परिवार की अतंतः स्वीकृति मिल ही गयी. तब से एक के बाद एक अनेक बच्चे उनके आंचल में मातृ सुख-चैन की छांव पाते गए. वह सैकड़ों बच्चों की ईजा, मौसी, दीदी, फूफू, दादी और नानी थीं.

'वाल्टर व्हीलर सेवा समिति, पौंधार' (सन् 1982) के माध्यम से उन्होंने अपने कार्यों को संगठित स्वरूप प्रदान किया. होम स्टे तथा डे-केयर सेंटर संचालित करने के उनके प्रयास कारगर सिद्ध हुए. जरूरतमंद महिलाओं एवं बच्चों को सुरक्षा, न्याय तथा आर्थिक संबल देकर वे जीने का मजबूत आधार प्रदान करती थीं. गांवों में होने वाले विवादों के सरल समाधान, गरीबों को कानूनी सहायता और जानकारी के लिए 'परिवार परामर्श केन्द्रों' का उन्होंने सफलतापूर्वक संचालन किया था.

युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया: स्वःरोजगारपरक कार्यक्रमों के माध्यम से उन्होंने सैकड़ों स्थानीय युवाओं को स्वः उद्यम हेतु प्रेरित किया था. उन्हीं के मजबूत प्रयासों से ‘पौंधार दुग्ध सहकारी समिति’ का गठन कर स्थानीय दुग्ध व्यवसाय को नया संगठित आयाम प्रदान किया गया था.

उत्तराखंड के वन, शराब और पृथक राज्य आन्दोलन में वे सक्रिय रहीं थीं. पौंधार में उनका घर सामाजिक और आर्थिक चेतना और प्रशिक्षण का प्रमुख केंद्र था.

जीना है तो डरना कैसा?: बेसहारा महिलाओं और बच्चों की तो वो अभिभावक थीं. व्हीलर दीदी सामाजिक कार्यकर्ताओं को समझातीं कि ‘‘सबसे पहले बेसहारा हुए महिला एवं बच्चे के मन-मस्तिष्क में असुरक्षा, डर और हीन भावना से उनको आजाद करने का प्रयास करना चाहिए. 'जीना है तो डरना कैसा.' सब ठीक हो जायेगा की प्रेरणा हमेशा असहाय हुए लोगों को देनी चाहिए. इससे उनका स्वतः ही शारीरिक एवं बौद्धिक विकास होने लगेगा. इस नेक काम में हम तो मात्र एक माध्यम बनते हैं. प्रयास तो वे खुद ही करते हैं.’’

धन-दौलत, पद, प्रतिष्ठा, राजनीति, सम्मान और पुरस्कार की लालसा से दूर वह 'एकला चलो' की रीति और नीति पर अपने जीवन कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए इस दुनिया से चुपचाप अलविदा हो गईं.

नमन दीदी नमन. आपका स्नेह मिलना हमारी पीढ़ी की एक अमूल्य निधि है जो तुम्हारी मधुर याद की तरह हमारे मन-मस्तिष्क में रह कर हमेशा जीवनीय प्रेरणा प्रदान करती रहेगी.

पौड़ी/अल्मोड़ा: जानी-मानी समाज सेविका एलिजाबेथ व्हीलर अब इस दुनिया में नहीं रहीं. उनके किए सामाजिक कार्य हमेशा याद किए जाते रहेंगे. व्हीलर दीदी के नाम से प्रसिद्ध एलिजाबेथ व्हीलर ने 84 साल की उम्र में काठगोदाम में अंतिम सांस ली. उत्तराखंड के जाने-माने लेखक, पत्रकार, राज्य आंदोलनकारी और समाजसेवी डॉक्टर अरुण कुकसाल ने व्हीलर दीदी की संजोई यादें फेसबुक पर शेयर कीं. डॉक्टर साहब को इस बात का दुख है कि इतनी बड़ी समाज सेवी के निधन पर नेताओं और अफसरों के साथ ही समाज सेवियों ने शोक सांत्वना तक नहीं जताई.

व्हीलर दीदी को याद करते हुए डॉक्टर अरुण कुकसाल ने कुछ यों लिखा-

प्यारी दीदी एलिजाबेथ व्हीलर-

और, उसके बाद उन्होंने जीवन में अंग्रेजी में बात नहीं की-

‘‘जीवन तो मुठ्ठी में बंद रेत की तरह है, जितना कसोगे उतना ही छूटता जायेगा. होशियारी इसी में है कि जिन्दगी की सीमायें खूब फैला दो, तभी तुम जीवन को संपूर्णता में जी सकोगे. डर कर जीना तो रोज मरना हुआ.’’

समाजसेवा को समर्पित जीवन: एलिजाबेथ व्हीलर दीदी ने इसी जीवन-दर्शन को मूल-मंत्र मानकर अपना संपूर्ण जीवन समाज सेवा को समर्पित कर दिया था. लोकहित की उनकी अद्भुत भावना ने हजारों जिन्दगियों को संवारा. वे जीवन में अविवाहित रहीं. परन्तु जीवन-भर सैंकड़ों बच्चों का लालन-पालन उनकी नवजात अवस्था से उन्होंने किया था. आज वे बच्चे समर्थ होकर सुखमय जीवन-यापन कर रहे हैं.

सामाजिक सेवा कार्यों के लिए त्याग, समर्पण, स्नेह और कर्तव्य-निष्ठा की जीती-जागती हमारी दीदी एलिजाबेथ व्हीलर (84 वर्ष) का काठगोदाम (नैनीताल) में 20 अक्टूबर, 2021 को निधन हो गया. कुछ समय से वे बीमार थीं.

संपन्न परिवार में हुआ था जन्म: दीदी एलिजाबेथ व्हीलर का जन्म धन-धान्य और प्रतिष्ठा से सम्पन्न परिवार में 14 अगस्त, 1938 को अल्मोड़ा नगर से 15 किमी. दूर जलना-पौंधार स्टेट (लमगड़ा) में हुआ था. बचपन से ही कुछ नया, कठिन एवं लोकल्याणकारी कार्यों को करने की ललक ने उनको समाज सेवा के लिए प्रेरित किया. छोटी सी उमर में ही उन्होंने उन निजी सुख-सुविधाओं एवं सफलताओं से अपने को अलग कर लिया, जिनके लिए लोग पूरा जीवन स्वाह कर देते हैं.

जांबाज सैन्य अफसरों के खानदान से थीं एलिजाबेथ व्हीलर: भवाली, जलना एवं पौंधार स्टेट के मालिक व्हीलर परिवार का पूरे कुमाऊं में उच्च मान-सम्मान रहा है. व्हीलर जाति विश्व में कुशल एवं जांबाज सैनिकों के रूप में विख्यात रही हैं. एलिजाबेथ दीदी के पूर्वज भी सेना के उच्च अधिकारी रहे. उनके पितामह 'सर ह्यू व्हीलर' भारत में ब्रिटिश सेना के प्रथम गर्वनर जनरल रहे तथा 'दादा पैट्रिक व्हीलर' भी आर्मी में जनरल के पद पर थे. पिता 'वाल्टर व्हीलर' आर्मी में कर्नल थे.

अल्मोड़ा के खन्तोली गांव में हुई पिता की शादी: संयोग से 'वाल्टर व्हीलर' की शादी अल्मोड़ा के खन्तोली गांव के पंत परिवार में हुयी थी. सेना से अवकाश के बाद वाल्टर व्हीलर पौंधार (अल्मोड़ा) में रहने लगे थे. वाल्टर व्हीलर ज्योतिष विद्या में पारंगत थे. दूर-दराज के लोग उनके पास ज्योतिष गणना के लिए आया करते थे.

उदार धार्मिक विचारों वाला था परिवार: बचपन से ही क्रिश्चियन एवं हिन्दू धर्म के आदर्श समन्वित स्वरूप में एलिजाबेथ एवं उनके बड़े भाई आर. व्हीलर का पालन-पोषण हुआ. दोनों धर्मों के रीति-रिवाजों और संस्कारों ने भाई-बहन की सोच और सामाजिक व्यवहार के दायरे को व्यापकता में विकसित किया.

अल्मोड़ा और लखनऊ से ली शिक्षा: एलिजाबेथ दीदी ने एडम्स स्कूल, अल्मोड़ा से हाईस्कूल (सन् 1958), लालबाग, लखनऊ से इण्टरमीडिएट (सन् 1960), आईटी. कालेज, लखनऊ से बीए (सन् 1960) एमए अंग्रेजी (सन् 1964) और एमए (हिन्दी) की शिक्षा प्राप्त की थी. विद्यार्थी जीवन में खेल एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे अव्वल थीं. हारना उनको मंजूर नहीं था. इसलिए हमेशा अपने प्रयासों को और बेहतर करती रहतीं. और, यह आदत जीवन-भर उनके साथ रही. अनावश्यक डर और संकोच से वह काफी दूर थीं.

पौंधार से अल्मोड़ा आने-जाने के लिए 15 किमी के घने जंगल एवं विकट उतराई-चढ़ाई के रास्ते को वह अक्सर अकेले दौड़ कर तय करती थीं. जंगली जानवरों से हुई मुठभेड़ को वह सामान्य घटना मानती थीं.

एलिजाबेथ दीदी के व्यक्तित्व का एक प्रमुख गुण यह भी रहा कि वे कठोर अनुशासन प्रिय थीं. जो तय कर लिया उसे पूरे मनोयोग से पूरा करके ही छोड़ती थीं.

और फिर उन्होंने अंग्रेजी बोलना छोड़ दिया: पढ़ाई के बाद सामाजिक सेवा के कार्यों की तरफ उन्मुख हुईं तो किसी स्थानीय व्यक्ति ने व्यंग के लहजे में एलिजाबेथ दीदी से सीधे कह दिया कि ‘अंग्रेज जाति और अंग्रेजी बोलने वाली, आप हमारा भला क्यों करेंगी?’

तब एलिजाबेथ ने प्रति-उत्तर में शांत तरीके से कहा कि 'मैं अंग्रेज जाति की हूं, उसको तो मैं चाह कर भी नहीं बदल सकती, पर आज से मैं कभी भी अंग्रेजी में नहीं बोलूंगी।"

सार्वजनिक तौर पर अंग्रेजी में न बोलने के इस प्रण का उन्होंने जीवन-भर पालन किया. इसी जिद पर उन्होंने एमए हिन्दी की डिग्री हासिल की. वे हिन्दी भी बहुत जरूरी हुआ तभी बोलती थीं. कुमाऊंनी ही उनकी अभिव्यक्ति का माध्यम थी. आकाशवाणी से उनकी कुमाऊंनी वार्ताएं प्रसारित होती थीं.

ग्रामीण महिलाओं के लिए समर्पित कर दिया जीवन: एलिजाबेथ दीदी ने पढ़ाई के दौरान ही ग्रामीण महिलाओं की भलाई के लिए कार्य करना शुरू कर दिया था. वे प्रयास करतीं कि महिलायें जीवन में शारीरिक एवं मानसिक तौर पर सर्मथवान हों. उसके लिए वह गांव की लड़कियों को शिक्षा, खेल, स्वास्थ्य तथा अपनी रक्षा के लिए राइफल चलाना सीखने के लिए उत्साहित करतीं. इसी को अमल में लाने के लिए उन्होंने एसएसबी में 25 वर्ष तक स्वैच्छिक रूप में बिना वेतन के स्वयंसेवी सीओ के पद पर अपनी सेवायें प्रदान की थीं. इस दौरान उन्होंने हजारों महिलाओं को न केवल राइफल चलाना सिखाया, वरन् उनके दुःख-दर्दों में दीदी की भूमिका में भी वे सक्रिय रही थीं.

जब नवजात को ले आईं घर: अपनी युवा अवस्था में एलिजाबेथ व्हीलर के जीवन में अप्रत्याशित रूप में वह दिन भी आया जब एक अज्ञात नवजात शिशु को वे अपने घर ले आयी थीं. घर-परिवार वालों ने उन्हें बहुत समझाया कि अनजान और पराये बच्चे को पालना बहुत कठिन है. परन्तु परिवार के बड़े-बुजुर्गों की इन दलीलों का व्हीलर दीदी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

व्हीलर दीदी ने नहीं की शादी: और, उन्होंने तब एक क्षण भी नहीं गंवाया और प्रण किया कि वह शादी नहीं करेंगी, तथा समाज में बेसहारा बच्चों का जीवन-भर का सहारा बनेगीं. उनके इस दृढ़-संकल्प को परिवार की अतंतः स्वीकृति मिल ही गयी. तब से एक के बाद एक अनेक बच्चे उनके आंचल में मातृ सुख-चैन की छांव पाते गए. वह सैकड़ों बच्चों की ईजा, मौसी, दीदी, फूफू, दादी और नानी थीं.

'वाल्टर व्हीलर सेवा समिति, पौंधार' (सन् 1982) के माध्यम से उन्होंने अपने कार्यों को संगठित स्वरूप प्रदान किया. होम स्टे तथा डे-केयर सेंटर संचालित करने के उनके प्रयास कारगर सिद्ध हुए. जरूरतमंद महिलाओं एवं बच्चों को सुरक्षा, न्याय तथा आर्थिक संबल देकर वे जीने का मजबूत आधार प्रदान करती थीं. गांवों में होने वाले विवादों के सरल समाधान, गरीबों को कानूनी सहायता और जानकारी के लिए 'परिवार परामर्श केन्द्रों' का उन्होंने सफलतापूर्वक संचालन किया था.

युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया: स्वःरोजगारपरक कार्यक्रमों के माध्यम से उन्होंने सैकड़ों स्थानीय युवाओं को स्वः उद्यम हेतु प्रेरित किया था. उन्हीं के मजबूत प्रयासों से ‘पौंधार दुग्ध सहकारी समिति’ का गठन कर स्थानीय दुग्ध व्यवसाय को नया संगठित आयाम प्रदान किया गया था.

उत्तराखंड के वन, शराब और पृथक राज्य आन्दोलन में वे सक्रिय रहीं थीं. पौंधार में उनका घर सामाजिक और आर्थिक चेतना और प्रशिक्षण का प्रमुख केंद्र था.

जीना है तो डरना कैसा?: बेसहारा महिलाओं और बच्चों की तो वो अभिभावक थीं. व्हीलर दीदी सामाजिक कार्यकर्ताओं को समझातीं कि ‘‘सबसे पहले बेसहारा हुए महिला एवं बच्चे के मन-मस्तिष्क में असुरक्षा, डर और हीन भावना से उनको आजाद करने का प्रयास करना चाहिए. 'जीना है तो डरना कैसा.' सब ठीक हो जायेगा की प्रेरणा हमेशा असहाय हुए लोगों को देनी चाहिए. इससे उनका स्वतः ही शारीरिक एवं बौद्धिक विकास होने लगेगा. इस नेक काम में हम तो मात्र एक माध्यम बनते हैं. प्रयास तो वे खुद ही करते हैं.’’

धन-दौलत, पद, प्रतिष्ठा, राजनीति, सम्मान और पुरस्कार की लालसा से दूर वह 'एकला चलो' की रीति और नीति पर अपने जीवन कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए इस दुनिया से चुपचाप अलविदा हो गईं.

नमन दीदी नमन. आपका स्नेह मिलना हमारी पीढ़ी की एक अमूल्य निधि है जो तुम्हारी मधुर याद की तरह हमारे मन-मस्तिष्क में रह कर हमेशा जीवनीय प्रेरणा प्रदान करती रहेगी.

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