देहरादून: उत्तराखंड में पहली बार आयोजित होने जा रहे हिमालयन कॉन्क्लेव को देश भर में सुर्खियां मिल रही हैं. 11 राज्यों के मुख्यमंत्री इस कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंच रहे हैं. इसके अलावा वित्त मंत्री के साथ ही नीति आयोग के उपाध्यक्ष के शामिल होने से राज्य सरकार के साथ ही लोगों को भी इससे खासी उम्मीदें हैं. वहीं बात अगर पर्यावरणीय मामलों के जानकारों की करें तो उन्हें नहीं लगता की मात्र हिमालय के नाम पर कॉन्क्लेव कर देने से समस्याओं का हल हो जाएगा. पर्यावरणविदों का मानना है कि प्रकृति और पर्वतीय राज्यों का वजूद तभी बच सकता है जब इसके लिए कोई ठोस खाका तैयार कर उस पर गंभीरता से काम हो.
पर्यावरणविद, पद्मश्री अनिल जोशी ने हिमालयन कॉन्क्लेव पर कहा कि केवल बैठकों में चर्चा करने से हिमालयी राज्यों की समस्याएं खत्म नहीं हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि सरकारों को यह मानना चाहिए कि अगर मुंबई, देश की वित्त, दिल्ली देश की पॉलिटिकल राजधानी है तो हिमालय यहां कि इकोलॉजिकल कैपिटल है.
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उन्होंने कहा हिमालय पारिस्थितिकी राजधानी इसलिए है, क्योंकि सारे देश को पानी, वन और पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने में ये राज्य अहम योगदान निभाते हैं. इसलिए हिमालय को बचाने के लिए सरकार कुछ भी न करें, बस हिमालय को इकोलॉजिकल कैपिटल का दर्जा दे दे तो फिर इससे जुड़े तमाम सवाल और दायित्व देश के होंगे.
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जोशी ने कहा कि सरकारों को ये समझना होगा कि पर्वत हमारे लिये सिर्फ पत्थर, पहाड़, जंगल और नदी तक ही सीमित नहीं है. बल्कि ये पहाड़ प्रकृति के रक्षक और इंसान को जीवन देने वाली अमूल्य धरोहर है. लिहाजा मानव जाती और सरकारी सिस्टम को खत्म होती कुदरत की इस अमूल्य धरोहर को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे.
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उन्होंने कहा कि आज हिमालय की हालात वास्तव में बड़ी गंभीर है और इसे केवल चर्चाओं से नहीं सुधारा जा सकता है. जोशी ने कहा कि ये अच्छी बात है कि पीएम मोदी उत्तराखंड के लिए चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी को अपने नेतृत्व में हिमालयी राज्यों के लिए एक समिति का गठन करना चाहिए.