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हिमालयन कॉन्क्लेवः पर्यावरणविद, पद्मश्री अनिल जोशी बोले- बैठकों से नहीं होगा हिमालयी राज्यों का उद्धार

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Published : Jul 27, 2019, 6:38 PM IST

जोशी ने कहा कि सरकारों को ये समझना होगा कि पर्वत हमारे लिये सिर्फ पत्थर, पहाड़, जंगल और नदी तक ही सीमित नहीं है. बल्कि ये पहाड़ प्रकृति के रक्षक और इंसान को जीवन देने वाली अमूल्य धरोहर है.

बैठकों से नहीं होगा हिमालयी राज्यों का उद्धार.

देहरादून: उत्तराखंड में पहली बार आयोजित होने जा रहे हिमालयन कॉन्क्लेव को देश भर में सुर्खियां मिल रही हैं. 11 राज्यों के मुख्यमंत्री इस कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंच रहे हैं. इसके अलावा वित्त मंत्री के साथ ही नीति आयोग के उपाध्यक्ष के शामिल होने से राज्य सरकार के साथ ही लोगों को भी इससे खासी उम्मीदें हैं. वहीं बात अगर पर्यावरणीय मामलों के जानकारों की करें तो उन्हें नहीं लगता की मात्र हिमालय के नाम पर कॉन्क्लेव कर देने से समस्याओं का हल हो जाएगा. पर्यावरणविदों का मानना है कि प्रकृति और पर्वतीय राज्यों का वजूद तभी बच सकता है जब इसके लिए कोई ठोस खाका तैयार कर उस पर गंभीरता से काम हो.

बैठकों से नहीं होगा हिमालयी राज्यों का उद्धार.

पर्यावरणविद, पद्मश्री अनिल जोशी ने हिमालयन कॉन्क्लेव पर कहा कि केवल बैठकों में चर्चा करने से हिमालयी राज्यों की समस्याएं खत्म नहीं हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि सरकारों को यह मानना चाहिए कि अगर मुंबई, देश की वित्त, दिल्ली देश की पॉलिटिकल राजधानी है तो हिमालय यहां कि इकोलॉजिकल कैपिटल है.

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उन्होंने कहा हिमालय पारिस्थितिकी राजधानी इसलिए है, क्योंकि सारे देश को पानी, वन और पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने में ये राज्य अहम योगदान निभाते हैं. इसलिए हिमालय को बचाने के लिए सरकार कुछ भी न करें, बस हिमालय को इकोलॉजिकल कैपिटल का दर्जा दे दे तो फिर इससे जुड़े तमाम सवाल और दायित्व देश के होंगे.

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जोशी ने कहा कि सरकारों को ये समझना होगा कि पर्वत हमारे लिये सिर्फ पत्थर, पहाड़, जंगल और नदी तक ही सीमित नहीं है. बल्कि ये पहाड़ प्रकृति के रक्षक और इंसान को जीवन देने वाली अमूल्य धरोहर है. लिहाजा मानव जाती और सरकारी सिस्टम को खत्म होती कुदरत की इस अमूल्य धरोहर को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे.

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उन्होंने कहा कि आज हिमालय की हालात वास्तव में बड़ी गंभीर है और इसे केवल चर्चाओं से नहीं सुधारा जा सकता है. जोशी ने कहा कि ये अच्छी बात है कि पीएम मोदी उत्तराखंड के लिए चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी को अपने नेतृत्व में हिमालयी राज्यों के लिए एक समिति का गठन करना चाहिए.

देहरादून: उत्तराखंड में पहली बार आयोजित होने जा रहे हिमालयन कॉन्क्लेव को देश भर में सुर्खियां मिल रही हैं. 11 राज्यों के मुख्यमंत्री इस कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंच रहे हैं. इसके अलावा वित्त मंत्री के साथ ही नीति आयोग के उपाध्यक्ष के शामिल होने से राज्य सरकार के साथ ही लोगों को भी इससे खासी उम्मीदें हैं. वहीं बात अगर पर्यावरणीय मामलों के जानकारों की करें तो उन्हें नहीं लगता की मात्र हिमालय के नाम पर कॉन्क्लेव कर देने से समस्याओं का हल हो जाएगा. पर्यावरणविदों का मानना है कि प्रकृति और पर्वतीय राज्यों का वजूद तभी बच सकता है जब इसके लिए कोई ठोस खाका तैयार कर उस पर गंभीरता से काम हो.

बैठकों से नहीं होगा हिमालयी राज्यों का उद्धार.

पर्यावरणविद, पद्मश्री अनिल जोशी ने हिमालयन कॉन्क्लेव पर कहा कि केवल बैठकों में चर्चा करने से हिमालयी राज्यों की समस्याएं खत्म नहीं हो सकती हैं. उन्होंने कहा कि सरकारों को यह मानना चाहिए कि अगर मुंबई, देश की वित्त, दिल्ली देश की पॉलिटिकल राजधानी है तो हिमालय यहां कि इकोलॉजिकल कैपिटल है.

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उन्होंने कहा हिमालय पारिस्थितिकी राजधानी इसलिए है, क्योंकि सारे देश को पानी, वन और पर्यावरणीय संतुलन बनाये रखने में ये राज्य अहम योगदान निभाते हैं. इसलिए हिमालय को बचाने के लिए सरकार कुछ भी न करें, बस हिमालय को इकोलॉजिकल कैपिटल का दर्जा दे दे तो फिर इससे जुड़े तमाम सवाल और दायित्व देश के होंगे.

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जोशी ने कहा कि सरकारों को ये समझना होगा कि पर्वत हमारे लिये सिर्फ पत्थर, पहाड़, जंगल और नदी तक ही सीमित नहीं है. बल्कि ये पहाड़ प्रकृति के रक्षक और इंसान को जीवन देने वाली अमूल्य धरोहर है. लिहाजा मानव जाती और सरकारी सिस्टम को खत्म होती कुदरत की इस अमूल्य धरोहर को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे.

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उन्होंने कहा कि आज हिमालय की हालात वास्तव में बड़ी गंभीर है और इसे केवल चर्चाओं से नहीं सुधारा जा सकता है. जोशी ने कहा कि ये अच्छी बात है कि पीएम मोदी उत्तराखंड के लिए चिंतित हैं. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी को अपने नेतृत्व में हिमालयी राज्यों के लिए एक समिति का गठन करना चाहिए.

Intro:उत्तराखंड के इतिहास में पहली बार आयोजित होने जा रहे हिमालयन कॉन्क्लेव को भले ही देश भर में सुर्खिया मिल जाए, और पर्वतीय राज्यों के मुख्यमंत्री इस साझा मंच पर मंथन करते नजर आए, लेकिन हिमालय और प्रकृति को जानने वाले मानते है कि खाली कॉन्क्लेव करने मात्र से पर्वतीय राज्यों की समस्या कम नही हो सकती है। हालांकि प्रकृति के साथ पर्वतीय राज्यों का वजूद तभी बच सकता है जब इस तरह की बैठकों पर सरकारें ठोस खाका तैयार कर के उस पर काम करें।


Body:सरकारों को ये समझना होगा कि पर्वत हमारे लिये सिर्फ पत्थर ,पहाड़, जंगल और नदी तक ही सीमित नही बल्कि ये पहाड़ प्रकृति के रक्षक और इन्सान को जीवन देने वाली अमूल्य धरोहर है, लिहाजा मानवजाती और सरकारी सिस्ट्म को ख़त्म होती कुदरत की इस अमूल्य धरोहर की रक्षा करने के लिए हर संभव प्रयाश करने की जरूरत है। हिमालय के वर्तमान हालात वास्तव में बड़ी गंभीर हैं। और हम खाली चर्चाओं से हिमालय को नहीं सुधार सकते। सबसे बड़ा सवाल यह है कि हिमालय की जो संरचना है। वह एक ऐसी पारिस्थितिकी है जो देश के अन्य राज्यो से भिन्न है और बड़ी संवेदनशील है, इसलिए उसकी संवेदनशीलता को केंद्र में रखकर सोचना होगा। साथ ही बताया कि हिमालय अकेला पत्थर, पहाड़ और नदी नहीं है बल्कि यहां के लोग उसका हिस्सा है जो इसका रूप और स्वरूप तैयार करते हैं। इसलिए हिमालय को बचाने की जो पॉलिसी हो, उनको जोड़कर इंक्लूसिव होनी चाहिए।

साथ ही पर्यावरणविद, पद्मश्री अनिल जोशी ने बताया कि सरकारों को यह मानना चाहिए कि अगर मुंबई, देश की वित्त राजधानी है, दिल्ली, देश की पॉलिटिकल राजधानी है तो हिमालय इकोलॉजिकल कैपिटल है। और हिमालय पारिस्थितिकी राजधानी इसलिए है क्योकि सारे देश को पानी देना, सारे देश को वनो से उत्पाद देना, मिट्टी देना, प्राणवायु देना, यह हिमालय का काम है। इसलिए हिमालय को बचाने के लिए सरकार कुछ भी ना करें, बस हिमालय को इकोलॉजिकल कैपिटल का दर्जा दे दे। तो फिर इससे जुड़े तमाम सवाल और दायित्व सारे देश के होंगे कि ब्रह्मपुत्र बचाना चाहिए, गंगा बचनी चाहिए और यमुना से जो जुड़ाव है देशभर के वो साफ साफ नजर आएंगे। उनकी जो गिरती पड़ती हालात है इस पर अलग तरह से गंभीरता होगी।

साथ ही बताया कि ये अच्छी बात है कि देश के प्रधानमंत्री, उत्तराखंड और हिमालय के प्रति चिंतित है लेकिन प्रधानमंत्री को अपने नेतृत्व में पूरे हिमालयी राज्यों का प्रतिनिधित्व में एक समिति का गठन करना चाहिए, और एक नए सिरे से हिमालय के ऊपर चर्चा करनी चाहिए, कि इसका रूप और स्वरूप क्या हो। 

बाइट - पद्मश्री अनिल जोशी, पर्यावरण विद


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